Tuesday, May 26, 2015
'संसदीय लोकतन्त्र' को बचाने के मजबूत प्रयास न हुये तो --------- विजय राजबली माथुर
सोनिया जी के इस मार्च की तुलना इन्दिरा जी से :
जबकि BBC द्वारा सोनिया जी के इस मार्च की तुलना इन्दिरा जी की 1978 की घटना से करने का प्रयास किया गया है परंतु वस्तुतः यह ऐसा है नहीं। जब 2009 में मनमोहन जी दोबारा पी एम बनने के लिए अड़ गए तो उनको बनाया तो गया था लेकिन बीच में उनको राष्ट्रपति बनवा कर हटाने का प्रयत्न हुआ था जिसको प्रेस में ममता बनर्जी द्वारा लीक करने से वह प्रयास विफल हो गया था। तब हवाई जहाज़ में जापान से लौटते वक्त मनमोहन जी ने कह दिया था कि वह जहां हैं वहीं ठीक हैं बल्कि तीसरे कार्यकाल के लिए भी तैयार हैं। इस घटना से पूर्व ही 2011 में सोनिया जी के इलाज के वास्ते विदेश जाने पर मनमोहन जी ने RSS/हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव के सहयोग से 'कारपोरेट भ्रष्टाचार संरक्षण' का आंदोलन खड़ा करवा दिया था जिसके परिणाम के रूप में मोदी सरकार सत्तारूढ़ है। पूर्व पी एम नरसिंघा राव जी ने अपने उपन्यास THE INSIDER के जरिये खुलासा कर दिया था कि 'हम स्वतन्त्रता के भ्रमजाल में जी रहे हैं'। मनमोहन जी उनके प्रिय शिष्य रहे हैं और वही उनको वित्तमंत्री के रूप में राजनीति में लाये थे। उस वक्त यू एस ए जाकर एल के आडवाणी साहब ने कहा था कि मनमोहन जी ने उनकी (भाजपा की ) नीतियाँ चुरा ली हैं। अब तो सीधे-सीधे भाजपा का ही शासन है। मनमोहन जी के जरिये भाजपा को सत्तारूढ़ कराने के बाद उनकी कोई उपयोगिता नहीं रह गई है इसलिए उनके विरुद्ध अदालती कारवाई हो रही है जिसमें राजनीतिक रूप से कुछ किया जाना संभव नहीं होगा। 'जैसी करनी वैसी भरनी' का दृष्टांत है यह परिघटना। सोनिया जी के कदम अंततः उनकी पार्टी को ही क्षति पहुंचाएंगे जैसा कि यू एस ए प्रवास के दौरान जस्टिस काटजू साहब के अभियान से संकेत मिलते हैं। काटजू साहब को 'मूल निवासी' आंदोलन व वामपंथी रुझान के दलित वर्ग से संबन्धित नेताओं व विद्वानों का भी समर्थन है जो एक प्रकार से 'गोडसेवाद' को ही समर्थन करना हुआ। भाजपा/RSS विरोधी गफलत में भटके हुये चल रहे हैं और देश दक्षिण-पंथी अर्द्ध-सैनिक तानाशाही की ओर बढ़ रहा है यदि अभी भी 'संसदीय लोकतन्त्र' को बचाने के मजबूत प्रयास न हुये तो दिल्ली की सड़कों पर निकट भविष्य में ही 'रक्त-रंजित' संघर्ष की संभावनाएं हकीकत में बदलते देर न लगेगी।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=847638945298083&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=1&theater
13 मार्च 2015 के इस नोट को 'हस्तक्षेप' द्वारा भी स्थान दिया गया है:
http://www.hastakshep.com/
**
जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने गांधी के इस जादू को समझने की जगह घटनाओं की बड़ी थोथी और स्थूल व्याख्या कर उन पर वे आरोप लगा दिए जो किसी ने नहीं लगाए थे. किसी ने उन्हें कभी ब्रिटिश एजेंट नहीं माना और न ही हिंदू-मुस्लिम समुदायों में दरार डालने वाला. काटजू अगर यहां तक सोच पाए तो इसलिए कि शायद उनकी सोच का दायरा यहीं तक जाता है. धार्मिकता और सांप्रदायिकता में फ़र्क होता है, यह बात वे समझ ही नहीं पाए. जो बहुत पढ़े-लिखे और बिल्कुल आधुनिक लोग थे – मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत ख़ान जैसे – वे अपनी राजनीति में निहायत सांप्रदायिक रहे और जो टोपी-दाढ़ी वाले मौलाना बंधु थे, वे धर्मनिरपेक्ष और कांग्रेसी बने रहे.--------
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/847603305301647?pnref=story
~विजय राजबली माथुर ©
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।
Saturday, May 23, 2015
क्या 2019 में सामान्य लोक सभा चुनाव संपन्न होंगे ? --- Alok Bajpai
Alok Bajpai
जो
लोग यह समझ रहे है की 2019 में सामान्य लोक सभा चुनाव संपन्न होंगे और
भारतीय जनता इस भाजपा सरकार से ऊबकर एक धमनिर्पेक्ष विकल्प चुन लेगी. वे
ग़लतफ़हमी में है।
कुछ लोग समझ रहे कि 2004 का वाकया दुहराया जायेगा,वे भी भूल कर रहे।
मत भूलिए की केंद्र सरकार फासिस्ट संगठन और फ़ासिस्ट तरीको को मानने वाले लोगो के हाथ में है।उनका लोकतंत्र में यकीं ही नहीं।जायज नाजायज तरीके उनकी चेतना का हिस्सा ही नहीं।
यह सरकार साम्राज्यवादी शक्तियो और विश्व कारपोर्टे लॉबी के अनुरूप है।
इसे हराना आसां नहीं।बहुत अधिक तैयारी परिश्रम और त्याग की जरुरत होगी।मुझे शक है कि जो धर्मनिरपेक्ष दल मौजूद है उनमे कोई ऐसी दृढ़ता मौजूद हो।
यह निराशावाद नहीं है ।परिस्थितियों को समझने की कोशिश भर है।यु तो राजनीती में भविष्यवाणियां करना नादानी ही कही जायेगी।परंतु निश्चित ही इसका अंदाज तो किया ही जाना चाहिए।सब कुछ चयन पर निर्भर करता है कि भविष्य की दिशा क्या होगी।
जो लोग इस मुगालते में हो की मात्र मोदी सरकार की आर्थिक नाकामियो को रेखांकि कर उन्हें हराया जा सकेगा,चूक कर रहे है।
लिख दिया ताकि सनद रहे और वक्त जरुरत काम आये।
*****
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है। कुछ लोग समझ रहे कि 2004 का वाकया दुहराया जायेगा,वे भी भूल कर रहे।
मत भूलिए की केंद्र सरकार फासिस्ट संगठन और फ़ासिस्ट तरीको को मानने वाले लोगो के हाथ में है।उनका लोकतंत्र में यकीं ही नहीं।जायज नाजायज तरीके उनकी चेतना का हिस्सा ही नहीं।
यह सरकार साम्राज्यवादी शक्तियो और विश्व कारपोर्टे लॉबी के अनुरूप है।
इसे हराना आसां नहीं।बहुत अधिक तैयारी परिश्रम और त्याग की जरुरत होगी।मुझे शक है कि जो धर्मनिरपेक्ष दल मौजूद है उनमे कोई ऐसी दृढ़ता मौजूद हो।
यह निराशावाद नहीं है ।परिस्थितियों को समझने की कोशिश भर है।यु तो राजनीती में भविष्यवाणियां करना नादानी ही कही जायेगी।परंतु निश्चित ही इसका अंदाज तो किया ही जाना चाहिए।सब कुछ चयन पर निर्भर करता है कि भविष्य की दिशा क्या होगी।
जो लोग इस मुगालते में हो की मात्र मोदी सरकार की आर्थिक नाकामियो को रेखांकि कर उन्हें हराया जा सकेगा,चूक कर रहे है।
लिख दिया ताकि सनद रहे और वक्त जरुरत काम आये।
*****
Ramendra Jenwar बहुत सही आँकलन है...बहुत अच्छा लगा पढकर जैसे जो मेरी सोच मेँ भी है उसे आपके शब्दोँ मेँ पढ रहा हूँ । लडाई बहुआयामी है.....
Virendra Yadav यह संयोग ही है कि कुछ ऐसा विचार आज मेरे जेहन में भी आया था भोर के दुस्वप्न सरीखा .
*****************************************************************
आलोक बाजपेयी जी बधाई के पात्र हैं जो उनके दृष्टिकोण को वीरेंद्र यादव जी ,वरिष्ठ साहित्यकार व रामेन्द्र जी जैसे वरिष्ठ राजनीतिज्ञों का समर्थन मिल गया है। वैसे इन सब बातों को मैं तो एक लंबे अरसे से कहता व लिखता रहा तथा सबों की उपेक्षा का सामना करता रहा हूँ। दो ब्लाग पोस्ट्स के लिंक निमन्वत हैं :
(विजय राजबली माथुर )
आलोक बाजपेयी जी बधाई के पात्र हैं जो उनके दृष्टिकोण को वीरेंद्र यादव जी ,वरिष्ठ साहित्यकार व रामेन्द्र जी जैसे वरिष्ठ राजनीतिज्ञों का समर्थन मिल गया है। वैसे इन सब बातों को मैं तो एक लंबे अरसे से कहता व लिखता रहा तथा सबों की उपेक्षा का सामना करता रहा हूँ। दो ब्लाग पोस्ट्स के लिंक निमन्वत हैं :
(विजय राजबली माथुर )
Tuesday, May 27, 2014
प्रियंका-राहुल को राजनीति में रहना है तो समझ लें उनके पिता व दादी के कृत्यों का प्रतिफल है नई सरकार का सत्तारोहण:
"16 वीं लोकसभा चुनावों में भाजपा की सफलता का श्रेय RSS को है जिसको राजनीति में मजबूती देने का श्रेय इंदिरा जी व राजीव जी को जाता है।"
http://krantiswar.blogspot.in/2014/05/blog-post_27.html
Sunday, September 25, 2011
डा सुब्रह्मण्यम स्वामी चाहते क्या हैं?
http://krantiswar.blogspot.in/2011/09/blog-post_25.html
इस पोस्ट के कुछ अंश प्रस्तुत हैं :( 'हस्तक्षेप' तथा 'भड़ास फार मीडिया' ने भी इस लेख को अपने यहाँ प्रकाशित किया था )
*अब क्या करेंगे?:
डा सुब्रह्मण्यम स्वामी हर तरह की संदेहास्पद गतिविधियां जारी रख कर 'लोकतान्त्रिक ढांचे की जड़ों को हिलाते रहेंगे' और संघ सिद्धांतों की सिंचाई द्वारा उसे अधिनायकशाही की ओर ले जाने का अनुपम प्रयास करेंगे।
07 नवंबर 1990 को वी पी सरकार के लोकसभा मे गिरते ही चंद्रशेखर ने तुरन्त आडवाणी को गले मिल कर बधाई दी थी और 10 नवंबर को खुद प्रधानमंत्री बन गए। चंद्रशेखर के प्रभाव से मुलायम सिंह यादव जो धर्म निरपेक्षता की लड़ाई के योद्धा बने हुये थे 06 दिसंबर 1990 को विश्व हिन्दू परिषद को सत्याग्रह केलिए बधाई और धन्यवाद देने लगे। राजीव गांधी को भी रिपोर्ट पेश करके मुलायम सिंह जी ने उत्तर-प्रदेश के वर्तमान दंगों से भाजपा,विहिप आदि को बरी कर दिया है।
आगरा मे बजरंग दल कार्यकर्ता से 15 लीटर पेट्रोल और 80 लीटर तेजाब बरामद होने ,संघ कार्यकर्ताओं के यहाँ बम फैक्टरी पकड़े जाने और पुनः शाहगंज पुलिस द्वारा भाजपा प्रतिनिधियों से आग्नेयास्त्र बरामद होनेपर भी सरकार दंगों के लिए भाजपा को उत्तरदाई नहीं ठहरा पा रही है। छावनी विधायक की पत्नी खुल्लम-खुल्ला बलिया का होने का दंभ भरते हुये कह रही हैं प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उनके हैं और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। चंद्रास्वामी भी विहिप की तर्ज पर ही मंदिर निर्माण की बात कह रहे हैं।
संघ की तानाशाही:
डा सुब्रह्मण्यम स्वामी,चंद्रास्वामी और चंद्रशेखर जिस दिशा मे योजनाबद्ध ढंग से आगे बढ़ रहे हैं वह निकट भविष्य मे भारत मे संघ की तानाशाही स्थापित किए जाने का संकेत देते हैं। 'संघ विरोधी शक्तियाँ' अभी तक कागजी पुलाव ही पका रही हैं। शायद तानाशाही आने के बाद उनमे चेतना जाग्रत हो तब तक तो डा स्वामी अपना गुल खिलाते ही रहेंगे।
डा सुब्रह्मण्यम स्वामी हर तरह की संदेहास्पद गतिविधियां जारी रख कर 'लोकतान्त्रिक ढांचे की जड़ों को हिलाते रहेंगे' और संघ सिद्धांतों की सिंचाई द्वारा उसे अधिनायकशाही की ओर ले जाने का अनुपम प्रयास करेंगे।
07 नवंबर 1990 को वी पी सरकार के लोकसभा मे गिरते ही चंद्रशेखर ने तुरन्त आडवाणी को गले मिल कर बधाई दी थी और 10 नवंबर को खुद प्रधानमंत्री बन गए। चंद्रशेखर के प्रभाव से मुलायम सिंह यादव जो धर्म निरपेक्षता की लड़ाई के योद्धा बने हुये थे 06 दिसंबर 1990 को विश्व हिन्दू परिषद को सत्याग्रह केलिए बधाई और धन्यवाद देने लगे। राजीव गांधी को भी रिपोर्ट पेश करके मुलायम सिंह जी ने उत्तर-प्रदेश के वर्तमान दंगों से भाजपा,विहिप आदि को बरी कर दिया है।
आगरा मे बजरंग दल कार्यकर्ता से 15 लीटर पेट्रोल और 80 लीटर तेजाब बरामद होने ,संघ कार्यकर्ताओं के यहाँ बम फैक्टरी पकड़े जाने और पुनः शाहगंज पुलिस द्वारा भाजपा प्रतिनिधियों से आग्नेयास्त्र बरामद होनेपर भी सरकार दंगों के लिए भाजपा को उत्तरदाई नहीं ठहरा पा रही है। छावनी विधायक की पत्नी खुल्लम-खुल्ला बलिया का होने का दंभ भरते हुये कह रही हैं प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उनके हैं और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। चंद्रास्वामी भी विहिप की तर्ज पर ही मंदिर निर्माण की बात कह रहे हैं।
संघ की तानाशाही:
डा सुब्रह्मण्यम स्वामी,चंद्रास्वामी और चंद्रशेखर जिस दिशा मे योजनाबद्ध ढंग से आगे बढ़ रहे हैं वह निकट भविष्य मे भारत मे संघ की तानाशाही स्थापित किए जाने का संकेत देते हैं। 'संघ विरोधी शक्तियाँ' अभी तक कागजी पुलाव ही पका रही हैं। शायद तानाशाही आने के बाद उनमे चेतना जाग्रत हो तब तक तो डा स्वामी अपना गुल खिलाते ही रहेंगे।
** आज ब्लाग के माध्यम से इसे सार्वजनिक करने का उद्देश्य यह आगाह करना
है कि 'संघ' अपनी योजना के अनुसार आज केवल एक दल भाजपा पर निर्भर नहीं है
30 वर्षों(पहली बार संघ समर्थन से इंदिरा जी की सरकार 1980 मे बनने से)
मे उसने कांग्रेस मे भी अपनी लाबी सुदृढ़ कर ली है और दूसरे दलों मे भी ।
अभी -अभी अन्ना के माध्यम से एक रिहर्सल भी संसदीय लोकतन्त्र की चूलें
हिलाने का सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया है।(हिंदुस्तान,लखनऊ ,25 सितंबर 2011
के पृष्ठ 13 पर प्रकाशित समाचार मे विशेज्ञ विद्व जनों द्वारा अन्ना के जन
लोकपाल बिल को संविधान विरोधी बताया है। ) जिन्होने अन्ना के
राष्ट्रद्रोही आंदोलन की पोल खोली उन्हें गालियां दी गई ब्लाग्स मे भी
फेस बुक पर भी और विभिन्न मंचों से भी और जो उसके साथ रहे उन्हें सराहा गया
है। यह स्थिति देश की आजादी और इसके लोकतन्त्र के लिए खतरे की घंटी है।
समस्त भारत वासियों का कर्तव्य है कि विदेशी साजिश को समय रहते समझ कर
परास्त करें अन्यथा अतीत की भांति उन्हें एक बार फिर रंजो-गम के साथ गाना
पड़ेगा-'मरसिया है एक का,नौहा है सारी कौम का '।
*************************************************
फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणी :
09-05-2016 |
Saturday, May 16, 2015
प्रकृति में क्षमा का नहीं कोई स्थान : (भूकंप) है केवल दंड का विधान .............. विजय राजबली माथुर
22 अप्रैल यानी बुधवार को दुनिया के 192 देश 45वां विश्व पृथ्वी
दिवस मना रहे हैं। इस मौके पर आइए देखें कि 1970 से 2015 के बीच पृथ्वी
कहां से कहां पहुंची है। वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने, जनसंख्या वृद्धि
रोकने, अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाने और जीव-जंतुओं, वनों व जलस्रोतों के
संरक्षण की दिशा में हमने कितनी सफलता अजिर्त की है।
इन मोर्चो पर कुछ संभले हम
वायु प्रदूषण
विश्व
- हवा में औसतन 60 फीसदी तक घटा छह प्रमुख प्रदूषकों का स्तर
- सीसा 80 फीसदी और कार्बन मोनोऑक्साइड 50 फीसदी कम हुआ
- नाइट्रोजन डाईऑक्साइड 52 फीसदी और सल्फर डाई-ऑक्साइड 40 फीसदी तक घटा
- पीएम 2.5 और पीएम 10 माइक्रोमीटर में क्रमश: 38 फीसदी और 27 फीसदी कमी आई
भारत
- 55 फीसदी से घटकर 25 फीसदी के करीब पहुंचा औद्योगिक प्रदूषण
- घरेलू स्रोतों से उत्पन्न प्रदूषण 21 फीसदी के मुकाबले 8 फीसदी हुआ
- पर पेट्रोल-डीजल वाहनों से होने वाले प्रदूषण में 60 फीसदी वृद्धि हुई
- 1970 में 19 लाख के करीब थी वाहनों की संख्या, अभी 20 करोड़ के पार पहुंची
सुधार की दरकार क्यों
- ग्रीनहाउस गैसों के उत्सजर्न में कमी लाने की जरूरत, ग्लोबल वॉर्मिग बढ़ने से कई द्वीपों के अस्तित्व पर खतरा
- भारत में दिल्ली समेत कई शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर चिंताजनक हुआ, बढ़ रहे फेफड़े की बीमारियों के मामले
जनसंख्या
विश्व
- 3.75 अरब के करीब थी विश्व आबादी साल 1970 में
- 1980 में 18.5 फीसदी की वृद्धि से 4.5 अरब तक पहुंची
- 2012 में जनसंख्या वृद्धि दर घटकर 10.6 हुई, 7 अरब के पार पहुंची आबादी
भारत
- 54 करोड़ के करीब थी भारत की जनसंख्या साल 1970 में
- 1.2 अरब के पार पहुंच चुका है यह आंकड़ा मौजूदा समय में
- पिछले 90 दशक में पहली बार जनसंख्या वृद्धि दर में आई कमी
- 2000 के दशक में 17.6 फीसदी की दर से बढ़ी आबादी, 1990 के दशक में 21.5 फीसदी था यह आंकड़ा
सुधार की दरकार क्यों
- 9.4 अरब के करीब पहुंच सकती है विश्व आबादी साल 2050 में, 3 अरब लोगों को होगा खाने का संकट
- बढ़ती आबादी को छत मुहैया कराने और आद्योगिक विकास के लिए 11.2 करोड़ अरब हेक्टेयर वनों की करनी होगी कटाई
अक्षय ऊर्जा
विश्व
- बिजली उत्पादन के लिए सौर एवं पवन ऊर्जा का इस्तेमाल शुरू हुआ
-2035 तक अक्षय ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग तीन गुना तक बढ़ने की उम्मीद
भारत
- 2008 में बिजली उत्पादन में 7.8 फीसदी थी अक्षय ऊर्जा स्नोतों की हिस्सेदारी
- 2013 में बढ़कर 12.3 फीसदी हुई, भारत पवन ऊर्जा से बिजली का पांचवा सबसे बड़ा उत्पादक बना
सुधार की दरकार क्यों
- वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कोयला, पेट्रोल, डीजल व अन्य पारंपरिक ऊर्जा स्नोतों पर निर्भरता घटाई जा सकेगी
यहां बिगड़ रहे हालात
पानी
विश्व
- 20 लाख टन मानव अपशिष्ट और 70 फीसदी कचरा बहाया जाता है जलस्नोतों में रोजाना
- 78.3 करोड़ लोग यानी विश्व में हर नौ में से एक व्यक्ति को स्वच्छ पेयजल मयस्सर नहीं
भारत
- 20 से 50 फीसदी जलस्नोत नाइट्रेट और आर्सेनिक जैसे हानिकारक रसायनों से दूषित
- 04 फीसदी स्वच्छ पेयजल ही उपलब्ध, गंगा-यमुना जैसी नदियों में बढ़ता प्रदूषण बड़ी चिंता
सुधार की दरकार क्यों
- 3 फीसदी पानी ही पीने लायक, जनसंख्या वृद्धि से बढ़ेगा संकट, नदियों की सफाई और वर्षा जल संचयन पर देना होगा जोर
जंगल
विश्व
- 3.9 अरब हेक्टेयर है जंगलों का मौजूदा दायरा
- 45 साल पहले यह 6 अरब हेक्टेयर से ज्यादा था
भारत
- 7.9 करोड़ हेक्टेयर भूमि जंगलों से घिरी है
- 10 करोड़ हेक्टेयर के करीब जंगल थे 45 साल पहले
सुधार की दरकार क्यों
- जहरीली गैसों को सोखने के साथ-साथ प्राणदायिनी ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं वन, वन्यजीवों को भी देते हैं आशियाना
जीव-जंतु आबादी
विश्व
- 52 फीसदी की कमी आई जीव-जंतुओं की संख्या में पिछले चार दशक में
- जल जीवों की तादाद 79 फीसदी और वन्यजीवों की 40 फीसदी तक घटी
भारत
- जीव-जंतुओं की 172 नस्लें विलुप्तिकरण की कगार पर खड़ी हैं
- इनमें 53 स्तनपायी, 69 पक्षी और 26 समुद्री जीवों की नस्लें शामिल
सुधार की दरकार क्यों
- जैविक संतुलन बनाए रखने और बढ़ती आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए जीव-जंतुओं का सुरक्षित रहना बेहद जरूरी
*******************************************************************************इन मोर्चो पर कुछ संभले हम
वायु प्रदूषण
विश्व
- हवा में औसतन 60 फीसदी तक घटा छह प्रमुख प्रदूषकों का स्तर
- सीसा 80 फीसदी और कार्बन मोनोऑक्साइड 50 फीसदी कम हुआ
- नाइट्रोजन डाईऑक्साइड 52 फीसदी और सल्फर डाई-ऑक्साइड 40 फीसदी तक घटा
- पीएम 2.5 और पीएम 10 माइक्रोमीटर में क्रमश: 38 फीसदी और 27 फीसदी कमी आई
भारत
- 55 फीसदी से घटकर 25 फीसदी के करीब पहुंचा औद्योगिक प्रदूषण
- घरेलू स्रोतों से उत्पन्न प्रदूषण 21 फीसदी के मुकाबले 8 फीसदी हुआ
- पर पेट्रोल-डीजल वाहनों से होने वाले प्रदूषण में 60 फीसदी वृद्धि हुई
- 1970 में 19 लाख के करीब थी वाहनों की संख्या, अभी 20 करोड़ के पार पहुंची
सुधार की दरकार क्यों
- ग्रीनहाउस गैसों के उत्सजर्न में कमी लाने की जरूरत, ग्लोबल वॉर्मिग बढ़ने से कई द्वीपों के अस्तित्व पर खतरा
- भारत में दिल्ली समेत कई शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर चिंताजनक हुआ, बढ़ रहे फेफड़े की बीमारियों के मामले
जनसंख्या
विश्व
- 3.75 अरब के करीब थी विश्व आबादी साल 1970 में
- 1980 में 18.5 फीसदी की वृद्धि से 4.5 अरब तक पहुंची
- 2012 में जनसंख्या वृद्धि दर घटकर 10.6 हुई, 7 अरब के पार पहुंची आबादी
भारत
- 54 करोड़ के करीब थी भारत की जनसंख्या साल 1970 में
- 1.2 अरब के पार पहुंच चुका है यह आंकड़ा मौजूदा समय में
- पिछले 90 दशक में पहली बार जनसंख्या वृद्धि दर में आई कमी
- 2000 के दशक में 17.6 फीसदी की दर से बढ़ी आबादी, 1990 के दशक में 21.5 फीसदी था यह आंकड़ा
सुधार की दरकार क्यों
- 9.4 अरब के करीब पहुंच सकती है विश्व आबादी साल 2050 में, 3 अरब लोगों को होगा खाने का संकट
- बढ़ती आबादी को छत मुहैया कराने और आद्योगिक विकास के लिए 11.2 करोड़ अरब हेक्टेयर वनों की करनी होगी कटाई
अक्षय ऊर्जा
विश्व
- बिजली उत्पादन के लिए सौर एवं पवन ऊर्जा का इस्तेमाल शुरू हुआ
-2035 तक अक्षय ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग तीन गुना तक बढ़ने की उम्मीद
भारत
- 2008 में बिजली उत्पादन में 7.8 फीसदी थी अक्षय ऊर्जा स्नोतों की हिस्सेदारी
- 2013 में बढ़कर 12.3 फीसदी हुई, भारत पवन ऊर्जा से बिजली का पांचवा सबसे बड़ा उत्पादक बना
सुधार की दरकार क्यों
- वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कोयला, पेट्रोल, डीजल व अन्य पारंपरिक ऊर्जा स्नोतों पर निर्भरता घटाई जा सकेगी
यहां बिगड़ रहे हालात
पानी
विश्व
- 20 लाख टन मानव अपशिष्ट और 70 फीसदी कचरा बहाया जाता है जलस्नोतों में रोजाना
- 78.3 करोड़ लोग यानी विश्व में हर नौ में से एक व्यक्ति को स्वच्छ पेयजल मयस्सर नहीं
भारत
- 20 से 50 फीसदी जलस्नोत नाइट्रेट और आर्सेनिक जैसे हानिकारक रसायनों से दूषित
- 04 फीसदी स्वच्छ पेयजल ही उपलब्ध, गंगा-यमुना जैसी नदियों में बढ़ता प्रदूषण बड़ी चिंता
सुधार की दरकार क्यों
- 3 फीसदी पानी ही पीने लायक, जनसंख्या वृद्धि से बढ़ेगा संकट, नदियों की सफाई और वर्षा जल संचयन पर देना होगा जोर
जंगल
विश्व
- 3.9 अरब हेक्टेयर है जंगलों का मौजूदा दायरा
- 45 साल पहले यह 6 अरब हेक्टेयर से ज्यादा था
भारत
- 7.9 करोड़ हेक्टेयर भूमि जंगलों से घिरी है
- 10 करोड़ हेक्टेयर के करीब जंगल थे 45 साल पहले
सुधार की दरकार क्यों
- जहरीली गैसों को सोखने के साथ-साथ प्राणदायिनी ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं वन, वन्यजीवों को भी देते हैं आशियाना
जीव-जंतु आबादी
विश्व
- 52 फीसदी की कमी आई जीव-जंतुओं की संख्या में पिछले चार दशक में
- जल जीवों की तादाद 79 फीसदी और वन्यजीवों की 40 फीसदी तक घटी
भारत
- जीव-जंतुओं की 172 नस्लें विलुप्तिकरण की कगार पर खड़ी हैं
- इनमें 53 स्तनपायी, 69 पक्षी और 26 समुद्री जीवों की नस्लें शामिल
सुधार की दरकार क्यों
- जैविक संतुलन बनाए रखने और बढ़ती आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए जीव-जंतुओं का सुरक्षित रहना बेहद जरूरी
विश्व पृथ्वी दिवस की उपरोक्त रिपोर्ट अखबार में पढ़ कर चले थे और जब 25 अप्रैल 2015 को जब हम पटना जंक्शन पर लखनऊ आने हेतु ट्रेन में बैठ चुके थे अचानक बोगी दोनों ओर तेजी से झुकने डोलने लगी पहले तो इलेक्ट्रिक इंजन लगने का शक हुआ फिर बगल की लाईन पर खड़ी पूरी की पूरी ट्रेन इसी प्रकार हिलती नज़र आई तब लोगों को भूकंप आने का बोध हुआ। फिर तो परिचितों के फोन भी कुशल-क्षेम जानने हेतु आए । भूकंप के बाद वहाँ बारिश भी तेज हुई जबकि तीन दिन पहले ही वहाँ ज़बरदस्त आंधी-तूफान आ चुका था। वैज्ञानिकों/विद्वानों की चेतावनियाँ लोग बाग किस्से-कहानियों की तरह पढ़ कर अनदेखा कर देते हैं सावधानी न तो जनता की ओर से न ही सरकार की ओर से बरती जाती है। पंचांग गणितीय गणना द्वारा पहले ही चेतावनी जारी कर देते हैं लेकिन उन पर गौर करना तो दूर उनका मखौल ही उड़ाया जाता है। :
*April 28 at 3:29pm · Lucknow ·
25 व 26 अप्रैल को आए भूकंप के झटके भी प्राकृतिक प्रकोप की झलकी मात्र हैं।इस समय सूर्य अपनी उच्च राशि 'मेष'में तथा शनि अपनी शत्रु राशि वृश्चिक में थे अर्थात दोनों में परस्पर 6 व 8 के संबंध थे।
*(05 अप्रैल से 04 मई 2015 तक वैशाख माह में पाँच रविवार पड़ रहे हैं। इनका भी प्रभाव इस भूकंप पर तथा हालिया नक्सल पंथी हमलों में रहा है जिसमें सुरक्षा बलों की क्षति हुई थी।)
03 मई 2015 की रात्रि 11:52 पर मंगल वृष राशि पर आएगा और 15 जून 2015 की रात्रि 01:08 तक रहेगा अर्थात परस्पर शत्रु ग्रह पूर्ण 180 डिग्री के कोण पर रहेंगे।**++**
***** *************************************निम्नांकित खबरों से स्पष्ट होगा कि उपरोक्त चेतावनी पर यदि ध्यान दिया जाता तो क्षति को कम किया जा सकता था। परंतु ध्यान कौन और क्यों दे?:
"लेकिन इसके लिए जिम्मेदार मुख्य रूप से समाज में प्रचलित अवैज्ञानिक मान्यताएं और धर्म के नाम पर फैले अंध-विशवास एवं पाखण्ड ही हैं.विज्ञान के अनुयायी और साम्यवाद के पक्षधर सिरे से ही धर्म को नकार कर अधार्मिकों के लिए मैदान खुला छोड़ देते हैं जिससे उनकी लूट बदस्तूर जारी रहती है और कुल नुक्सान साम्यवादी-विचार धारा तथा वैज्ञानिक सोच को ही होता है".http://krantiswar.blogspot.in/2014/04/blog-post_14.html
" 'धर्म', 'आस्तिक' और 'नास्तिक ' : इन शब्दों को गलत अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है जिस वजह से गलतफहमिया होती हैं व सर्वाधिक नुकसान भी। वस्तुतः ये हैं :
आस्तिक= जिसका अपने ऊपर विश्वास हो।
नास्तिक= जिसको अपने ऊपर विश्वास न हो।
धर्म = जो शरीर व समाज को धारण करने हेतु आवश्यक हो अर्थात 'सत्य, अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ), अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य'।
उदाहरणार्थ -एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए तो मूली व दही का सेवन करना 'धर्म' है किन्तु वही एक जुकाम-खांसी के रोगी के लिए 'अधर्म' क्योंकि इनके सेवन से उसे निमोनिया हो जाएगा। 'धर्म' व्यक्ति सापेक्ष व समय सापेक्ष होता है न कि चर्च, मंदिर, मज़ार, मस्जिद, गुरुद्वारा आदि जाना। विभिन्न संप्रदायों के परिप्रेक्ष्य में 'धर्म' शब्द उच्चारण करना ही सभी समस्याओं व झगड़े का मूल है।
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/879535992108378?pnref=story
कुछ लोग आधुनिकता के नाम पर, कुछ लोग वैज्ञानिकता के नाम पर और कुछ लोग 'नास्तिकता' : 'एथीस्ट्वाद ' के नाम पर 'ज्योतिष' व 'वास्तु ' विज्ञान का विरोध, निंदा व आलोचना करके जन साधारण को उसका लाभ उठाने से वंचित कर देते हैं। इस कारण शोषकों-लुटेरों के हितैषी पोंगा-पंडित जनता को उल्टे उस्तरे से लूटने में कामयाब हो जाते हैं।
किसी के मानने या न मानने का ग्रह- नक्षत्रों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि पृथ्वी वासियों द्वारा किए गए और किए जा रहे कृत्यों का उन पर पूर्ण प्रभाव पड़ता है और उसी प्रभाव के कारण ये प्राकृतिक प्रकोप - भूकंप, तूफान, सुनामी आदि-आदि के रूप में सामने आ रहे हैं।पर्यावरण विद अनिल प्रकाश जोशी जी ने वनों के विनाश को भी भूकंप आने का एक कारण बताया है। खनन एवं विद्युत परियोजनाओं के संबंध में उनका कहना है कि ये परियोजनाएं किसी आपदा की स्थिति में हमारी अवैज्ञानिक अदूरदर्शिता का नमूना भी बन सकती हैं। इसी कड़ी में मेरे विचार से यूरोप में सुरंग के जरिये आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा GOD पार्टकिल का खोज अभियान भी भू-गर्भ में अनावश्यक हलचल मचा कर भूकंप लाने का हेतु हो सकता है।
उदाहरणार्थ :
*यदि हम एक ग्लास या एक बाल्टी पानी में कोई छोटी सी भी गिट्टी डालेंगे तो हमें उसमें 'तरंगे' साफ नज़र आएंगी।
*जब तालाब या नदी गिट्टी डालेंगे तो तरंगे हल्की और क्षणिक नज़र आएंगी।
*लेकिन जब हम समुद्र में उसी गिट्टी को डालेंगे तो तरंगे बिलकुल भी नज़र नहीं आएंगी। लेकिन तरंगे बनेंगी तो ज़रूर ही भले ही हमें दीख न पाएँ।
*इसी प्रकार ग्रह- नक्षत्रों का प्रभाव सभी जीवधारियों एवं वनस्पतियों पर भी पड़ता है और जीवधारियों के कृत्यों का प्रभाव ग्रह- नक्षत्रों पर भी पड़ता है। 05 अप्रैल से 15 जून 2015की स्थिति का उद्धृण ऊपर दिया गया है जिसकी पुष्टि 15 मई 2015 के इस समाचार से हो रही है कि 25 अप्रैल से 14 मई तक नेपाल में 211 झटके भूकंप के आ चुके हैं। 15 व 16 मई को भी वहाँ भूकंप के झटकों के समाचार हैं।
***
उपाय :
फिलहाल शनि व मंगल मंत्रों का जाप व इनके ही मंत्रों से हवन-यज्ञ द्वारा इन ग्रहों के प्रकोप को थामा जा सकता है। निश्चय ही एथीस्ट, आधुनिक वैज्ञानिक और ढ़ोंगी-पाखंडी सतसंगी गण इसका मखौल उदाएंगे। किन्तु यह विधि है पूर्ण वैज्ञानिक ही। कैसे?
जाप सस्वर करने से बनने वाली तरंगे संबन्धित ग्रहों तक पहुँचती हैं व 'पदार्थ-विज्ञान' : MATERIAL-SCIENCE के अनुसार अग्नि में डाले गए पदार्थों को वह परमाणुओं- ATOMS में विभक्त कर देती है एवं वायु उन सूक्ष्म कणों को उन ग्रहों तक पहुंचा कर उनके प्रकोप शमन में सहायक होती है।
***
*********************************************************************
**++**
~विजय राजबली माथुर ©
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।
Tuesday, May 12, 2015
एथीस्ट और ढ़ोंगी-पाखंडी 'सत्य ' को चाहे जितना दबाएँ पर झुठलाया नहीं जा सकता --- विजय राजबली माथुर
25 अप्रैल 2015 को आए भूकंप की तीव्रता 7.8 थी और आज 12 मई 2015 को आए भूकंप की तीव्रता 7.3 रही किन्तु इस बीच समाचार-पत्रों के अनुसार और भी कई छोटे-छोटे झटके महसूस किए जा चुके हैं । इस संबंध में 28 अप्रैल को निम्नांकित नोट द्वारा पूर्व प्रकाशित चेतावनी को संदर्भ सहित सार्वजनिक किया था। तब एक 'एथीस्ट' ने ज्योतिष का मखौल उड़ाया था जिस पर हिंदुस्तान की यह कटिंग प्रस्तुत करते हुये 30 अप्रैल को टिप्पणी दी थी :
"ओवर स्मार्ट टिप्पणीकार ने 'ज्योतिष' का मखौल तो आसानी से उड़ा दिया क्या हिंदुस्तान अखबार मे छ्पी इस रिपोर्ट की धज्जियां उड़ाने का साहस उनके पास है? वस्तुतः 'ज्योतिष-विज्ञान' द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि ब्रह्मांड में विचरित ग्रह-नक्षत्रों के प्रभाव से पृथ्वी पर कब क्या घटना घटित होने के योग हैं। यदि समुचित उपाय (पोंगापंथी-ब्राह्मणवादी नहीं) किए जाएँ तो बचाव सुनिश्चित है।"
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=873891152672862&set=p.873891152672862&type=1&theater
आज और इस बीच आए भूकंप के सभी झटके ब्रह्मांड स्थित ग्रहों के 'गुरुत्वाकर्षण शक्ति' का ही परिणाम रहे हैं और वैज्ञानिक तथा एथीस्ट उनको न रोक सके हैं न ही झुठला पाये हैं। वह नोट पुनः अवलोकनार्थ प्रस्तुत है :
Vijai RajBali Mathur with Vinay Patsariya and 9 others
25
व 26 अप्रैल को आए भूकंप के झटके भी प्राकृतिक प्रकोप की झलकी मात्र
हैं।इस समय सूर्य अपनी उच्च राशि 'मेष'में तथा शनि अपनी शत्रु राशि वृश्चिक
में थे अर्थात दोनों में परस्पर 6 व 8 के संबंध थे जिसका परिणाम :
षडाष्टकी रवि मंद की,नहीं सुखद प्रतिचार ।
आंदोलित जन साधना, श्रमिक द्वंद विस्तार । ।
यान खान घटना विविध, विश्व मंच परिवेश ।
आरक्षी सेनापति, कष्टद भार विशेष। ।
वार पाँच** गणना गति,रविवासर अभिलक्ष ।
रोग शोक विपदा मति,निर्णय कथन विदक्ष । ।
**:
(05 अप्रैल से 04 मई 2015 तक वैशाख माह में पाँच रविवार पड़ रहे हैं। इनका भी प्रभाव इस भूकंप पर तथा हालिया नक्सल पंथी हमलों में रहा है जिसमें सुरक्षा बलों की क्षति हुई थी।)
03 मई 2015 की रात्रि 11:52 पर मंगल वृष राशि पर आएगा और 15 जून 2015 की रात्रि 01:08 तक रहेगा अर्थात परस्पर शत्रु ग्रह पूर्ण 180 डिग्री के कोण पर रहेंगे। इसके परिणाम स्वरूप (निर्णय सागर पंचांग पृष्ठ-33) :---
चलन कलन शनि भौम का ,सम सप्तम संचार ।
तपन ताप वृद्धि सहित, ऋतुकोप संसार । ।
अग्नि वात विस्फोटकी,जन धन क्षति प्रहार।
भू-क्रंदन भय आपदा, विविध भाग विस्तार । ।
अतः जनता व सरकारों को पहले से ही सुरक्षात्मक उपाय करने चाहिए।
***************************************************
लेकिन
इसके लिए जिम्मेदार मुख्य रूप से समाज में प्रचलित अवैज्ञानिक मान्यताएं
और धर्म के नाम पर फैले अंध-विशवास एवं पाखण्ड ही हैं.विज्ञान के अनुयायी
और साम्यवाद के पक्षधर सिरे से ही धर्म को नकार कर अधार्मिकों के लिए मैदान
खुला छोड़ देते हैं जिससे उनकी लूट बदस्तूर जारी रहती है और कुल नुक्सान
साम्यवादी-विचार धारा तथा वैज्ञानिक सोच को ही होता है.http://krantiswar.blogspot.in/2014/04/blog-post_14.htmlषडाष्टकी रवि मंद की,नहीं सुखद प्रतिचार ।
आंदोलित जन साधना, श्रमिक द्वंद विस्तार । ।
यान खान घटना विविध, विश्व मंच परिवेश ।
आरक्षी सेनापति, कष्टद भार विशेष। ।
वार पाँच** गणना गति,रविवासर अभिलक्ष ।
रोग शोक विपदा मति,निर्णय कथन विदक्ष । ।
**:
(05 अप्रैल से 04 मई 2015 तक वैशाख माह में पाँच रविवार पड़ रहे हैं। इनका भी प्रभाव इस भूकंप पर तथा हालिया नक्सल पंथी हमलों में रहा है जिसमें सुरक्षा बलों की क्षति हुई थी।)
03 मई 2015 की रात्रि 11:52 पर मंगल वृष राशि पर आएगा और 15 जून 2015 की रात्रि 01:08 तक रहेगा अर्थात परस्पर शत्रु ग्रह पूर्ण 180 डिग्री के कोण पर रहेंगे। इसके परिणाम स्वरूप (निर्णय सागर पंचांग पृष्ठ-33) :---
चलन कलन शनि भौम का ,सम सप्तम संचार ।
तपन ताप वृद्धि सहित, ऋतुकोप संसार । ।
अग्नि वात विस्फोटकी,जन धन क्षति प्रहार।
भू-क्रंदन भय आपदा, विविध भाग विस्तार । ।
अतः जनता व सरकारों को पहले से ही सुरक्षात्मक उपाय करने चाहिए।
***************************************************
~विजय राजबली माथुर ©
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।