Wednesday, May 19, 2021

Sunday, May 16, 2021

शववाहिनी गंगा • पारुल खख्खर (गुजराती से अनुवाद : इलियास)

  
पारुल खख्खर



गुजरात में आजकल ••• धूम मचाती "शववाहिनी गंगा" : एक गीत जो कर रहा है मोदी-सरकार की नाकामियों को नंगा |||•|||•|||•|||•|||•|||•||| आजकल की इस कोरोना-महामारी के दौर में जब अनुपस्थितप्राय मोदी-सरकार के फेल होने की लोक-टिप्पणियां अनुप्राणित हो रही हों, जब महामारी के इस दौर की विभीषिका को भाजपा-सरकारों व भाजपाई नेताओं द्वारा प्रायोजित बताया जा रहा हो, जब न्यायपालिका तक इसे "सरकारी नरसंहार" करार देती हो, जब अकाल मौतों के आंकड़े कयासों को भी पीछे छोड़ रहे हों, जब हाउसफुल श्मशानों में प्रतीक्षित लाशों के लिए लकड़ियों के भी घोर अभाव के चलते उन्हें हाथ-भर ज़मीन में गड्ढा खोदकर जैसे-तैसे दफ़नाने और गंगा जैसी पावन नदियों में खड़े-खड़ बहाने पर लोग मज़बूर हो रहे हों... ऐसे में उसी गुजरात में, जहां से अघोषित तानाशाहे-आज़म अनन्त-श्री-विभूषित स्वनामधन्य नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी महाराज ने अपनी पातक-घातक राज-यात्रा शुरू की थी, उसी गुजरात में आजकल एक गुजराती गीत की धूम मची हुई है। गुजराती-कवयित्री पारुल खख्खर (फोटो संलग्न) द्वारा विरचित यह गीत दरअसल मौजूदा कोरोना-काल के दौरान गंगा में बहायी जा रही बेशुमार लाशों के बहाने मोदी-सरकार की नाकामियों को नंगा करता है। इस गीत ने गुजरात में आजकल इस क़दर तूफ़ान मचा रखा है कि इसकी मुद्रित-प्रतियों तथा सॉफ्ट-संस्करणों को तो लोग बांट और साझा कर ही रहे हैं, साथ ही बहुतेरे लोग इसे संगीतबद्ध करके शहरों-गांवों में गा-सुना भी रहे हैं। इस बहुचर्चित तथा बहुप्रसारित गीत को यहां उसके मूलरूप, गुजराती लिपि, में प्रस्तुत करने के साथ ही उसके हिन्दी-अनुवाद को भी दिया जा रहा है। इस गीत का सीधे गुजराती से हिन्दी-अनुवाद भी अनेक लोगों ने किया है, लेकिन यहां इलियास का किया हुआ अनुवाद ही प्रस्तुत किया जा रहा है, जो इतना सटीक बन पड़ा है कि मूल-रचना सरीखा ही आस्वाद देता है। इस मूल गुजराती गीत के कथ्य, शिल्प और भावनाओं में ज़रा भी फेरबदल किये बिना इसके प्रस्तुत हिन्दी-अनुवाद में इलियास ने हालांकि हिन्दी की प्रकृति और मीटर को ध्यान में रखते हुए कुछ छूट भी ली है (जैसे कि मूल गुजराती के "રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા" यानी "राज, तुम्हारे रामराज्य में शववाहिनी गंगा" के शाब्दिक रूपांतरण के बजाय "सा'ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा" अनूदित किया गया है)-- लेकिन इससे इस हिन्दी-अनुवाद में और निखार आने के साथ ही मौलिकता भी रेखांकित हुई है। |||•|||•|||•|||•|||•|||•||| શબવાહિની ગંગા • પારુલ ખખ્ખર એક અવાજે મડદા બોલ્યાં 'સબ કુછ ચંગા-ચંગા' રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા. --- રાજ, તમારા મસાણ ખૂટયા, ખૂટયા લક્કડભારા, રાજ, અમારા ડાઘૂ ખૂટયા, ખૂટયા રોવણહારા, ઘરેઘરે જઈ જમડાંટોળી કરતી નાચ કઢંગા રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા. --- રાજ, તમારી ધગધગ ધૂણતી ચીમની પોરો માંગે, રાજ, અમારી ચૂડલી ફૂટે, ધડધડ છાતી ભાંગે બળતું જોઈ ફીડલ વગાડે 'વાહ રે બિલ્લા-રંગા'! રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા. --- રાજ, તમારા દિવ્ય વસ્ત્ર ને દિવ્ય તમારી જ્યોતિ રાજ, તમોને અસલી રૂપે આખી નગરી જોતી હોય મરદ તે આવી બોલો 'રાજા મેરા નંગા' રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા. |||•|||•|||•|||•|||•|||•||| शववाहिनी गंगा • पारुल खख्खर (गुजराती से अनुवाद : इलियास) एक-साथ सब मुर्दे बोले ‘सबकुछ चंगा-चंगा’, सा’ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा. --- ख़तम हुए श्मशान तुम्हारे, ख़तम काष्ठ की बोरी; थके हमारे कंधे सारे, आंखें रह गयीं कोरी; दर-दर जाकर यमदूत खेलें-- मौत का नाच बेढंगा. सा’ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा. --- नित्य निरंतर जलती चिताएं राहत मांगें पल-भर; नित्य निरंतर टूटती चूड़ियां, कुटती छाती घर-घर; देख लपटों को फ़िडल बजाते-- वाह रे ‘बिल्ला-रंगा’! सा’ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा. --- सा’ब, तुम्हारे दिव्य वस्त्र, दिव्यत् तुम्हारी ज्योति; काश, असलियत लोग समझते, हो तुम पत्थर, ना मोती; हो हिम्मत तो आके बोलो-- 'मेरा साहब नंगा’. सा’ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा.




साभार :











~विजय राजबली माथुर ©