वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी ने सावन में शिव दर्शन के बहाने से दान और भगवान् को खुश करने की प्रचलित परंपरा पर सवाल उठाया है जो बिलकुल सही है.उम्मीद है कि लोग उनकी भावना को समझ कर उस पर अब अमल करने की सोचेंगे.अपने लेख ‘’आये देखें ……….सपने’’ में इस बात को भी सामने रखा है कि भारत में लोग खुद अपने या खानदान के नाम को अमर करने के लिए दान करते हैं जबकि अमेरिका के एक व्यापार समूह के प्रमुख ने अपनी 85 % संपत्ति दुसरे ट्रस्ट को दान करदी अपने नाम का भी लोभ नहीं रखा.यह अनुकरनीय उदाहरण है.लेकिन अभी कुछ समय पहले सर्वोच्च अदालत द्वारा प्रतिबन्ध लगाने से पहले हमारे यहाँ गणेश,लक्ष्मी आदि देवी देवताओं के नाम पर आयकर बचाने का धंधा चल रहा था.हमारे देश में दान देने पर विशेष जोर दिया जाता है परन्तु गृह नक्षत्रों के आधार पर सब को सब तरह का दान नहीं करना चाहिए वर्ना हानि होती है.जिन्हें मंदिर में और मंदिर के पुजारी को कुछ भी दान नहीं देना चाहिए ऐसी ही एक शिक्षिका ने झाँसी के एक मंदिर में rs. ११००/- दान दिए –शिला पट पर उनका नाम अंकित हुआ.परिणामस्वरूप ड्यूटी से लौटते में उनकी कार में विपरीत दिशा से आती मोटर साइकिल ने गलत turn लेकर टक्कर मार दी.कार तो छतिग्रस्त हुई ही आठ सालों से आज भी मुकदमा चल रहा है.लाखों रु.का नुक्सान हो गया।
उत्तर प्रदेश सरकार के एक उपक्रम में executive इंजिनियर साहब ने वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर में दर्शन करने के बाद दो भूखे लोगों को भरपेट भोजन कराया जब की उन्हें अन्न और मिठाई का दान करना हानिकारक था.नतीजा यह हुआ की आगरा शहर में पहुचते- पहुचते उनका और उनकी पत्नी का सारा कैश और गहना लूट लिया गया.इस घटना के बाद से अब उन्होंने दान करना बंद किया है और वे सुखी हैं.पहले वैष्णो देवीn के दर्शन के समय भी उनकी पत्नी के कंगन और कुंडल लुटे थे तब तक वह दान करने के आदि थे.आरा के एक extension ऑफिसर साहब महियर देवी के दर्शन करने गए और .१०१/-मंदिर में चढ़ाए उनकी माता जी को भी भारी का सामना करना पड़ा क्यों की उन्हें भी मंदिर में और पुजारी को दान नहीं देना चाहिए था जो उन्होंने दिया.जिस व्यक्ति के जन्म के समय जो गृह उच्च के अथवा स्वग्राही होते हैं उसे आजीवन उस गृह से सम्बंधित पदार्थों का दान भूल कर भी नहीं करना चाहिए वर्ना कुछ न कुछ नुक्सान जरूर होगा ही होगा.दान देने के इच्छुक लोगों को अपना जनमपत्र जरूर चेक करा लेना चाहिए यदि वे किसी हानि से बचना चाहते हों तो.उसी दान का अच्छा फल मिलता है जो बगैर किसी स्वार्थ के और गैर संपर्क के व्यक्ति को दिया जाये और वह व्यक्ति उस दान के लिए सुपात्र हो।
भगवान् के बारे में भी लोगों को भ्रम है की वह यहाँ या वहां है जबकि भगवान् तो घट-घट वासी कण-कण वासी है.इसे समझना बहुत ही सरल है.भूमि का भ,गगन का ग,वायु का व् अनल का T, नीर का न मिलकर भगवान् शब्द बनता है.भूमि,गगन ,वायु,अग्नि और जल ये पंचतत्व ही समस्त प्राणियों और वनस्पतियों के जीवन उसके पालन के लिए जरूरी हैं और इनके कुपित होने पर जीवन का संहार होता है इसलिए इन्हें ही G O D- Generator,Operator,Destroyer कहा जाता है और चूंकि ये खुद ही बने हैं इसलिए इन्हीं को खुदा भी कहा जाता है.
आज लोग धर्म की गलत व्याख्या करके दान और भगवान् के बारे में ग़लतफ़हमी पाले हुए हैं इसीलिए झगडे और नुक्सान हो रहे हैं.प्रकृति की मार सहनी पर रही है.भगवान् की पूजा का साधन केवल हवन है और माध्यम दिखावा और ढोंग पाखण्ड हैं जिनका आज बोल-बाला है.हमारी प्राचीन पूजा पद्धति यज्ञ की दुर्दशा है.मानव जीवन को सुन्दर,सुखद और सम्रद्ध बनाने के लिए प्राचीन हवन -पूजा पद्धति को अपनाना होगा।
Typist-Yashwant
उत्तर प्रदेश सरकार के एक उपक्रम में executive इंजिनियर साहब ने वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर में दर्शन करने के बाद दो भूखे लोगों को भरपेट भोजन कराया जब की उन्हें अन्न और मिठाई का दान करना हानिकारक था.नतीजा यह हुआ की आगरा शहर में पहुचते- पहुचते उनका और उनकी पत्नी का सारा कैश और गहना लूट लिया गया.इस घटना के बाद से अब उन्होंने दान करना बंद किया है और वे सुखी हैं.पहले वैष्णो देवीn के दर्शन के समय भी उनकी पत्नी के कंगन और कुंडल लुटे थे तब तक वह दान करने के आदि थे.आरा के एक extension ऑफिसर साहब महियर देवी के दर्शन करने गए और .१०१/-मंदिर में चढ़ाए उनकी माता जी को भी भारी का सामना करना पड़ा क्यों की उन्हें भी मंदिर में और पुजारी को दान नहीं देना चाहिए था जो उन्होंने दिया.जिस व्यक्ति के जन्म के समय जो गृह उच्च के अथवा स्वग्राही होते हैं उसे आजीवन उस गृह से सम्बंधित पदार्थों का दान भूल कर भी नहीं करना चाहिए वर्ना कुछ न कुछ नुक्सान जरूर होगा ही होगा.दान देने के इच्छुक लोगों को अपना जनमपत्र जरूर चेक करा लेना चाहिए यदि वे किसी हानि से बचना चाहते हों तो.उसी दान का अच्छा फल मिलता है जो बगैर किसी स्वार्थ के और गैर संपर्क के व्यक्ति को दिया जाये और वह व्यक्ति उस दान के लिए सुपात्र हो।
भगवान् के बारे में भी लोगों को भ्रम है की वह यहाँ या वहां है जबकि भगवान् तो घट-घट वासी कण-कण वासी है.इसे समझना बहुत ही सरल है.भूमि का भ,गगन का ग,वायु का व् अनल का T, नीर का न मिलकर भगवान् शब्द बनता है.भूमि,गगन ,वायु,अग्नि और जल ये पंचतत्व ही समस्त प्राणियों और वनस्पतियों के जीवन उसके पालन के लिए जरूरी हैं और इनके कुपित होने पर जीवन का संहार होता है इसलिए इन्हें ही G O D- Generator,Operator,Destroyer कहा जाता है और चूंकि ये खुद ही बने हैं इसलिए इन्हीं को खुदा भी कहा जाता है.
आज लोग धर्म की गलत व्याख्या करके दान और भगवान् के बारे में ग़लतफ़हमी पाले हुए हैं इसीलिए झगडे और नुक्सान हो रहे हैं.प्रकृति की मार सहनी पर रही है.भगवान् की पूजा का साधन केवल हवन है और माध्यम दिखावा और ढोंग पाखण्ड हैं जिनका आज बोल-बाला है.हमारी प्राचीन पूजा पद्धति यज्ञ की दुर्दशा है.मानव जीवन को सुन्दर,सुखद और सम्रद्ध बनाने के लिए प्राचीन हवन -पूजा पद्धति को अपनाना होगा।
Typist-Yashwant
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इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है.फिर भी तर्कसंगत असहमति एवं स्वस्थ आलोचना का स्वागत है.किन्तु कुतर्कपूर्ण,विवादास्पद तथा ढोंग-पाखण्ड पर आधारित टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं किया जाएगा;इसी कारण सखेद माडरेशन लागू है.