(यह लेख १४.८.१९९१ के दैनिक देशरत्न ,आगरा में तब छपा था जब उ .प्र .में कल्याण सिंह की भाजपा सरकार थी ;आज भी परिस्थतियाँ वैसी ही हैं ,अतः यहाँ पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ )
महात्मा गाँधी ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान जिस स्वराज्य की कल्पना की थी वह रामराज्य लाने की कल्पना थी. हमारे प्रदेश में हाल ही में भाजपा राम का नाम लेकर सत्तारूढ़ हुई है और हमारे मुख्यमंत्री रामराज्य लाने का आश्वासन दे रहे हैं .यदि ऐसा संभव होता है तो स्वराज्य का असली उद्देश्य भी पूरा हो सकेगा .अभी तक हमारी स्वतंत्रता अधूरी है परन्तु गांधीजी के रामराज्य और भाजपा के रामराज्य में मौलिक अंतर है.अब प्रश्न यह है कि कौन सा राम राज्य मर्यादा पुरोषत्तम श्री राम के शासन के अनुकूल होगा . सर्वप्रथम हम देखते हैं कि महात्मा गाँधी ने जब राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन की बागडोर सम्हाली हमारा देश ब्रिटिश साम्राज्यवाद की दासता में जकड़ा हुआ था.यह दासता मात्र राजनीतिक ही नहीं आर्थिक भी थी.वे हमारे ही कच्चे माल से अपने देश में तैयार उत्पादन को हमारे ही देश में ऊंची कीमतों पर बेचते थे .हमारी हस्तकला और दस्तकारी को समूल विनष्ट करने में ब्रिटिश सम्रज्यवाद का ही हाथ है .उनसे पूर्व मुग़ल काल तक जितने भी विदेशी शासक आये उन्होंने यहाँ की सभ्यता और संस्कृति से ताल मेल करके यहाँ की कला और उद्यम को प्रोत्साहित किया.क़ुतुब मीनार ,ताजमहल आदि स्थापत्य कला में उत्कृष्ट स्थान रखने वाले भवन मुग़ल काल में ही निर्मित अथवा उस समय में संशोधित हुए जिस रूप में आज हैं.मुग़ल काल में ही ढाका की मलमल को विश्वव्यापी प्रसिध्धि मिली .परन्तु अंग्रेज जो आये ही व्यापर के माध्यम से हमारे देश की भौतिक सम्पदा को लूटने थे.अपने शासन काल में एक के बाद एक हमारी हस्त कला को समाप्त करते गए और इस प्रकार हमारे देश का सांस्कृतिक उत्पीडन भी किया .
स्वंय अँगरेज़ कलेक्टर आर्थोर किंग ने विल्लियम बेंटिक को लिखते हुए आर्कट जिले की तबाही का मार्मिक वर्णन किया है ,उसने लिखा था.'विश्व के आर्थिक इतिहास में ऐसी गरीबी मुश्किल से दूंढ़े मिलेगी .भारत के मैदान बुनकरों की हड्डियों से सफ़ेद हो रहे हैं'.
यही कारण था कि महात्मा गाँधी ने राजनीतिक के साथ -२ आर्थिक आज़ादी को भी जोड़ा और स्वदेशी का नारा दिया .मर्यादा पुरोषत्तम श्री राम केवल अयोध्या के राजा नहीं थे वह कोटि -२ भारतियों के जन -नायक थे उन्होंने तत्कालीन साम्राज्यवादियों - लंका के रावण ,अमेरिका (पाताल -लोक )के ऐरावन और साईं बेरिया के कुम्भकरण के विस्तारवाद से संघर्ष किया था .राम -रावण युद्ध सीता -अपहरण के कारण नहीं हुआ ,बल्कि सीता का अपहरण करके साम्राज्यवाद ने भारतीय राष्ट्रवाद को ललकारा था .यह राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद का संघर्ष था .महात्मा गाँधी को भी साम्राज्यवाद से ही टकराना पड़ा अतः उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को अपना आदर्श माना और स्वाधीन भारत में रामराज्य की कल्पना की .
अब ज़रा भाजपा का राम -राज्य भी देखें .गत वर्ष जय श्री राम का उद्घोष कर सम्पूर्ण राष्ट्र को साम्प्रदायिकता की वीभत्स आग में झोंक दिया गया .सोमनाथ से वोट -रथ यात्रा निकाल कर . साम्प्रदायिकता साम्राज्यवाद की सहोदरी है जिस कारण महात्माजी ने साम्प्रदायिकता का डट कर विरोध किया था जिसका मूल्य उन्हें अपनी प्राणाहुति देकर चुकाना पड़ा .
ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने भारत में अपने हितों की रक्षार्थ कर्नल टाड ,विन्सेंट स्मिथ ,लेनपूल ,मिसेज़ बेब्रीज़ आदि इतिहासकारों के माध्यम से साम्प्रदायिक -वैमनस्य उत्तपन कराया हमारे अपने सर्व श्री आर .सी .माज़ुम्दार और पी .एन .ऑक साम्राज्यवादियों के स्वर में बोलने लग गए .श्री मति एस .एस .बेब्रीज़ ने बाबरनामा तुजुक्बाब्री के अंग्रेजी अनुवाद में अयोध्या के राम लला मंदिर को गिरा कर बाबरी मस्जिद बनवाने की कहानी गढ़ दी और यही कहानी साम्प्रदायिक ज़हर ढ़ा रही है जिसका शिकार भाजपा है .अर्थात साम्राज्य- वादिओं द्वारा फंसाई गयी राजनीतिक पार्टी साम्राज्यवाद -विरोधी और राष्ट्रवाद के पुरोधा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के राज्य का शतांश भी नहीं ला सकती .
श्री राम ने विखंडित भारत को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में पिरोया ,जन -जातियों ,आदिवासियों को गले लगाया . शबरी ,सुग्रीव ,हनुमान आदि इसका ज्वलंत उदाहरण हैं .तथा कथित उच्च सवर्णवाद की बू से त्रस्त और साम्राज्यवादी साज़िश की शिकार भाजपा सरकार कभी रामराज्य ला ही नहीं सकती .
यदि वास्तव में हमें भारत भू पर राम राज्य लाना है तो वसुधैव कुटुम्बकम को पुनः अपनाना होगा .जब सम्पूर्ण विश्व ही परिवार है तो देशवासी सभी भाई -२ हैं और साम्प्रदायिक वैमनस्य नहीं चल सकता .क्या भाजपा ऐसा कर सकेगी .इसका प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता .
(आप यदि गौर से उस समय लिखे और छपे उपरोक्त लेख को पढेंगे तो स्पष्ट हो जायेगा कि मेरा आंकलन कितना सही निकला .वह भाजपा सरकार साम्प्रदायिक विग्रह करा कर समाप्त हो गयी थी .आज फिर से वह विवाद हमारे सामने है .लगातार कई पोस्ट्स में मै सच्चाई दोहराता आ रहा हूँ ,लोग पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होने के कारण ध्यान नहीं दे रहे हैं.एक विद्वान् खूब विश्लेषण करते हैं लेकिन मैंने उनसे मार्गदर्शन माँगा तो अंतर्ध्यान हो गए ,अब आप ही निर्णय करें .)
Typing Co -ordination-Yashwant
आप ठीक कह रहे है बिना वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा के हमारा उद्धार नहीं होने वाला.....भाजपा अगर साम्प्रदायिकता का मार्ग छोड़ दे जो हो नहीं सकता तो कुछ सम्भावनाओं की उम्मीद की जा सकती है। बहुत अच्छा लिखा है।।।आभार
ReplyDeleteभाजपा अब रही ही कहाँ भाज -- गयी है। नेताओं को धर्म्से कुछ लेना देना नही बस धर्म के नाम पर वोट की राजनीति कर रहे है। अच्छा लगा आपकअ आलेख। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सही बात कही आपने.....आपका अंदाजा और आज के हालात दोनों मिल रहे है..... यह दूरदर्शिता भरा आलेख पढवाने के लिए आभार.....
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