सातवीं शताब्दी में बाण भट्ट ने कादम्बरी में लिखा है कि लड़कियों का भी उपनयन होता था .वर्णन है कि महाश्वेता ने जनेऊ पहन रक्खा है.जनेऊ या उपनयन संस्कार शिक्षा प्रारम्भ करने के समय किया जाता है तब तक लड़के -लड़कियों का भेद हमारे देश में नहीं था .यह तो विदेशी शासकों ने भारतीय समाज की रीढ़ -परिवारों को कमज़ोर करने के लिए लड़कियों की उपेक्षा की कहानियें चाटुकार और लालची विद्वानों से धार्मिक -ग्रंथों में उस समय लिखवाई हैं जिनका दुष्परिणाम आज तक सामजिक विद्वेष व विघटन में परिलक्षित हो रहा है .
जनेऊ के तीन धागे :-१.आध्यात्मिक ,२ .आधिदैविक ,३ .आधिभौतिक तीनो दुखों को दूर करने की प्रेरणा देते हैं .
(अ)-माता ,पिता और गुरु का ऋण उतरने की प्रेरणा .
(ब )-अविद्या,अन्याय और आभाव दूर करने की जीवन में प्रेरणा .
(स )-हार्ट (ह्रदय ),हार्निया (आंत्र स्खलन ),हाईड्रोसिल /युरेटस सम्बंधी बीमारयों का शमन ये जनेऊ के तीन धागे ही करते हैं -इसीलिए शौच /लघु शंका करते समय इन्हें कान पर लपेटने की व्यवस्था थी .
जब ,तब लड़का -लड़की का समान रूप से जनेऊ होता था तो स्वाभाविक रूप से पुत्री -पुत्र सभी के कल्याण की कामना की जाती थी .गुलाम भारत में पोंगापंथ के विकास के साथ -२(जो आज निकृष्टत्तम स्तर पर सर्वव्याप्त है )लड़का -लड़की में भेद किया जाने लगा .लड़कियों /स्त्रियों को दबाया -कुचला जाने लगा जिसे आजादी के ६३ वर्ष बाद भी दूर नहीं किया जा सका है .इन नवरात्रों में स्त्री -शक्ति आगे बढ़ कर व्रत (संकल्प )करें कि अन्यायपूर्ण पोंगापंथ का शीघ्र नाश करेंगी तभी नारी -मुक्ति संभव है .खैर लीजिये कुंजिका -स्तोत्र सुनिये ;-
sundar , jaankariyukt aalekh --aabhar
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी...
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'पाखी की दुनिया' के 100 पोस्ट पूरे ..ये मारा शतक !!
बहुत अच्छी जानकारी.... और सार्थक आव्हान
ReplyDeleteबहुत अच्छा आलेख...हमें यह संकल्प लेना ही होगा....
ReplyDeleteसार्थक और सुन्दर प्रयास। संकल्प तो यही लेना चाहिये था मगर स्वार्थी लोगों ने तो भ्रूण हत्या जैसा संकल्प ले रखा है। इस लिये आपकी पोस्ट का महत्व और भी बढ जाता है। धन्यवाद।
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