डा .टी .एस .दराल सा :,गोदियाल सा :,मनोज कुमारजी ,सलिल वर्माजी, इधर मानवीयता तथा आम जनता क़े हित में एवं व्यवस्था की खामियों पर लिखते रहे हैं.उन्हें पढ़ कर तो लगता ही था परन्तु रंजना जी क़े नवीनतम दो लेखों को पढ़ कर मैंने जो टिप्णी दीं वे इस प्रकार हैं :-
१ .मीठा माने पर -आपने इस व्यंग्यात्मक आलेख क़े माध्यम से बहुत खरा -खरा सच कहा.आज़ाद भारत में अंगरेजी ज्यादा ही फ़ैली है.अपने स्व को भुलाया जा रहा है.आज "सुदेशी और सुराज "आन्दोलन चलाये जाने की महती आवश्यकता है.
२ .अंधेर नगरी पर -"सुदेशी और सुराज "आन्दोलन चलाया जाना अवश्यम्भावी हो गया है.लेकिन अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता .स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि ,यदि मुट्ठी भर लोग मनसा -वाचा -कर्मणा संगठित हो जाएँ तो सारे संसार को उखड फेंक सकते हैं.
गुलामी क़े दौरान महात्मा गांधी जी ने "स्वदेशी और स्वराज्य " आन्दोलन चलाया था ,उस समय लोगों में देश -भक्ति की तीव्र भावना थी.आज हमें स्वतन्त्र हुए ६३ वर्ष हो चुके हैं.जहाँ आज़ादी से पहले हम सुई भी विदेशों से मंगाते थे.आज हमारे यहाँ हवाई जहाज ही नहीं रॉकेट और मिसाईल भी बन रहे हैं,हम विदेशों में कं .खोल रहे हैं .शिक्षा का स्तर पहले से ऊंचा हुआ है."रीढ़ की हड्डी" नाटक क़े रचयिता पूर्व I .C .S .स्व .जगदीश चन्द्र माथुर ने एक स्थान पर लिखा था कि,१९४७ में आज़ादी क़े समय केवल २ प्रतिशत आई.सी .एस .आफीसर्स की पत्नियाँ ही अंग्रेज़ी पढी थीं .आज अंग्रेज़ी का कितना चलन है यह तो रंजना जी क़े आलेखों से स्पष्ट हो ही गया है.एक ओर तो हमने गगन -चुम्बी तरक्की कर ली है ,दूसरी ओर मानवीयता का किता ह्रास हो गया है अन्य विद्वान् ब्लागर्स क़े आलेखों से स्पष्ट है.हमारे कानून हमारे कानूनविदों की राय में सिर्फ अमीरों का हित साधन कर रहे हैं ,गरीब जनता को कानूनों का कोई लाभ नहीं मिल रहा है.कानून गरीब का शोषण और अमीर का पोषण करने वाले सिद्ध हो रहे हैं. एक समय ब्रिटेन में एडमण्ड बर्क क़े नेतृत्व में कानून सुधार आन्दोलन चलाया गया था और वहां क़े कानून अन्ततः सुधारे गये थे.हमारे देश में भी आज एक तो कानून -सुधार आन्दोलन चलाये जाने की नितांत ज़रुरत है दूसरे जनता क़े सर्वांगीण हित में 'सुदेशी और सुराज" आन्दोलन तत्काल चलाया जाये ऐसी परिस्थितियं बन चुकी हैं.
हमारे एक विद्वान् प्रो .ब्लागर सा :ने किसी ब्लाग पर टिप्णी में लिखा कि,उनकी दिलचस्पी राजनीति में नहीं है और भी ज़्यादातर ब्लागर्स तथा अन्य लोग भी राजनीतिज्ञों की तीखी आलोचना करते हैं.परस्पर संबंधों का ताना -बाना समाज है और मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है -अरस्तू की यह परिभाषा सर्वमान्य है.अरस्तू क़े गुरु सुकरात (प्लूटो )का कहना है कि,मैन इज ए पोलिटिकल बीईंग अर्थात मनुष्य जन्म से ही एक राजनीतिक प्राणी है.पोलिटिक्स शब्द ग्रीक भाषा क़े पोली व ट्रिक्स दो शब्दों क़े मेल से बाना है.विभिन्न तरीके इस शब्द का अर्थ है और निजी ज़िंदगी में सभी लोग विभिन्न समयों पर विभिन्न तरीके अपनाते ही हैं.यानी कि सब राजनीति में लगे ही हैं.फिर देश और जनता क़े प्रति ज़िम्मेदारी से बचना क्यों ? अच्छे लोग घर बैठते हैं तभी तो गलत लोग शासन में पहुँच जाते हैं.ज़रुरत है अच्छे लोगों को आगे बढ़ कर सत्ता अपने हाथ में लेने की.सुदेशी और सुराज का संकल्प ले कर हमें सुधारात्मक आन्दोलन छेड़ देना चाहिए -जनता तो स्वतः पीछे -पीछे समर्थन को चल पड़ेगी.यदि मन ,वचन और कर्म से एकजुट हो कर थोड़े से लोग ही पहल कर देंगें तो कारवां जुटते देर नहीं लगेगी.केवल ८० छात्रों ने जनरल द गाल की तानाशाही को उखाड़ फेंका था.तुफैल अहमद ने ढाका क़े छात्रों को एकजुट कर मुजीब क़े पीछे खड़ा कर दिया और याह्या की तानाशाही से आजाद होकर बांगला देश बना.
नया वर्ष दरवाज़े पर खड़ा है.आने वाले समय में कुछ लोग आगे आ कर सुदेशी और सुराज की नयी आवाज़ लगायें तो यह आन्दोलन स्वतः -स्फूर्त फैलते देर नहीं लगेगी.देर है तो सिर्फ पहल की,मैं तो लगातार सड़ी -गली मान्यताओं और व्यवस्था क़े विरुद्ध "क्रन्तिस्वर " बुलंद कर ही रहा हूँ आप सब का सहयोग और समर्थन मिल जाये तो परिवर्तन भी संभव है.
[टाइप समन्वय-यशवन्त ]
(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)
अब एक सवाल आप से और ब्लॉग जगत के तमाम मित्र गणों से;
ReplyDeleteबहुत ऊँची बात कही माथुर साहब , मगर दुखद पहलू यह है हमारा यह देश अन्दर ही अन्दर अनगिनत हिस्सों में इसकदर बंटा है की एकजुटता ला पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है ! इसके लिए जिम्मेदार अनपढ़ नहीं , पढ़े लिखे ही अधिक है ! दिग्गी राजा इसके ताजा उदहारण है ! यूँ ही बैठा था की एक सज्जन के ब्लॉग पर टिपण्णी करते-करते एक ख़याल मेरे दिमाग को भी भेद गया की हम लोग किस तरह समाज को बांटे रखना चाहते है !
आप लोग रोज अक्सर समाचार पत्रों की हेड लाइनों में पढ़ते होंगे ;
" दलित युवक की पिटाई ", "दलित महिला के साथ बलात्कार", दलित युवती के साथ छेड़छाड़ ..... इत्यादि लेकिन पिछले काफी समय से आप लोग भी नोट कर रहे होंगे की देश में जो भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है ! उसमे अधिकाँश तथाकथित दलित नौकरशाह और नेता ही मुख्यत : संलिप्त है ! आपने कभी अखबारों में ऐसी हेडिंग पढी ; दलित जज भर्ष्टाचार में संलिप्त, दलित नौकरशाह ने इतने का घोटाला किया , दलित नेता देश का १.७६ लाख करोड़ खा गये ? यदि नहीं तो क्यों ?
बहुत वाजिब बात कही गोदियाल सा :ने जिसे सभी समझते भी हैं.यह सब महाभारत के बाद से अपनी वैदिक परम्पराओं को त्यागते जाने और ढोंग व पाखण्ड को अपनाते जाने से हुआ है.गुलाम भारत में कुरान की तर्ज़ पर लिखे पुराणों ने जो विभेद उत्पन्न किया और जातीय शोषण किया यह आज उसी की प्रतिक्रिया है.इसी लिए मेरा सारा जोर इस ढोंग व पाखंड के ही विरुद्ध है.
ReplyDeleteमाथुर साहब , पश्चिमी सभ्यता का असर बढ़ता जा रहा है । इसे रोकना तो संभव नहीं है । लेकिन अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए बड़ों को बहुत प्रयत्न करना पड़ेगा ।
ReplyDeleteमेरे विचार से भ्रष्टाचार और घोटालों का जात पात से कोई सम्बन्ध नहीं है ।
बिलकुल सही और उचित बात कही है डा .सा :ने ,मेरा भी अभीष्ट वही है
ReplyDeleteबहुत दिल छूती बात कही।
ReplyDeleteज़्यादा नहीं, नए साल में एक ही प्रण लें कि हम मल्टीनेश्नल कम्पनी का पेस्ट नहीं व्यहवहार में लाएंगे। सिर्फ़ भारतीय कम्पनी द्वारा बनाया गया पेस्ट से ब्रश करेंगे तो सुराज के पथ पर बढा यह बहुत बड़ा क़दम होगा।
यानी -- कोलगेट नहीं, बबूल।
धन्यवाद मनोज कुमार जी ,आपने तो तरीका भी बता दिया -कैसे स्वदेशी को अपना कर सुदेशी के लिए प्रेरित कर सकते हैं.हम लोग ज़्यादातर पहले ही ऐसा कर रहे हैं ,अब और सतर्क रहेंगे.
ReplyDeleteउम्मीद है की और लोग भी आप की बात पर गौर करेंगे.
एक क्रांतिकारी आलेख के लिए साधुवाद।
ReplyDeleteआपका ‘सदेशी और सुराज‘ आंदोलन संबंधी क्रांतिकारी विचार अच्छा लगा। मैं इस अमूल्य विचार का समर्थन करता हूं। कामना करता हूं कि आपका यह क्रांति स्वर दूर-दूर तक प्रसारित हो कर जन जागृति करने में सफल हो।
मुझे राजनीति की अधिक समझ नहीं है ना ही इसके इतिहास को जानता ! कृपया स्पष्ट करें कि क्या सुकरात जिसे सक्रेटीज़ भी कहते है और प्लूटो या प्लेटो एक ही हैं? अलग अलग नहीं हैं...??
ReplyDeleteडा .महेंद्र वर्मा जी ,
ReplyDeleteधन्यवाद एवं आभार आपकी शुभकामनाओं तथा समर्थन के लिए.
डा .आर .रामकुमार जी,
जहाँ तक मुझे याद है कि,प्लेटो-प्लूटो-सुकरात-सोक्रेटीज-एक ही व्यक्ति के विभिन्न भाषाओं के नाम हैं.यह अरस्तु या एरिस्टोटल के गुरु थे.ये दोनों यूनान या ग्रीस देश के थे.