प्रस्तुत आलेख मूल रूप से आगरा से प्रकाशित साप्ताहिक सप्तदिवा क़े २७ अक्तूबर १९८२ एवं ३ नवम्बर १९८२ क़े अंकों में दो किश्तों में पूर्व में ही प्रकाशित हो चुका है तथा इस ब्लॉग पर भी पहले प्रकाशित किया जा चुका है.पूर्व में प्रकाशित इस आलेख की अशुद्धियों को यथासम्भव सुधारते हुए तथा पाठकों की सुविधा क़े लिये यहाँ ४ किश्तों में पुनर्प्रकाशित किया जायेगा.
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राम के विवाह के दो वर्ष पश्चात् प्रधानमंत्री वशिष्ठ ने दरबार (संसद) में राजा को उनकी वृद्धावस्था का आभास कराया और राम को उत्तराधिकार सौपकर अवकाश प्राप्त करने की ओर संकेत दिया.राजा ने संसद के इस प्रस्ताव का स्वागत किया;सहर्ष ही दो दिवस की अल्पावधि में पद त्याग करने की घोषणा की .एक ओर तो राम के राज्याभिषेक (शपथ ग्रहण समारोह) की जोर शोर से तैय्यारियाँ आरंभ हो गयीं तो दूसरी ओर प्रधान मंत्री ने राम को सत्ता से पृथक रखने की साजिश शुरू की.मन्थरा को माध्यम बना कर कैकयी को आस्थगित वरदानों में इस अवसर पर प्रथम तो भरत के लिए राज्य व द्वितीय राम के लिए वनवास १४ वर्ष की अवधि के लिए,दिलाने के लिए भड़काया,जिसमे उन्हें सफलता मिल गयी.इस प्रकार दशरथ की मौन स्वीकृति दिलाकर राज्य की अंतिम मोहर दे कर राम-वनवास का घोषणा पत्र राम को भेंट किया.राम,सीता और लक्ष्मण को गंगा पर (राज्य कि सीमा तक) छोड़ने मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य सुमंत (विदेश मंत्री) को भेजा गया. अब राम के राष्ट्रीय कार्य-कलापों का श्री गणेश हुआ.सर्वप्रथम तो आर्यावर्त के प्रथम डिफेंस सेण्टर प्रयाग में भरद्वाज ऋषि के आश्रम पर राम ने उस राष्ट्रीय योजना का अध्ययन किया जिसके अनुसार उन्हें रावण का वध करना था.भरद्वाज ऋषि ने राम को कूटनीति की प्रबल शिक्षा दी.क्रमशः अग्रिम डिफेंस सेंटरों (विभिन्न ऋषियों के आश्रमों) का निरीक्षण करते हुए राम ने पंचवटी में अपना दूसरा शिविर डाला जो आर्यावर्त से बाहर वा-नर प्रदेश में था जिस पर रावण के मित्र बाली का प्रभाव था.चित्रकूट में राम को अंतिम सेल्यूट दे कर पुनीत कार्य के लिए विदा दे दी गयी थी.अतः अब राम ने अस्त्र (शस्त्र भी) धारण कर लिया था .पंचवटी में रहकर उन का कार्य प्रतिपक्षी को युद्ध के लिए विवश करना था.यहाँ रहकर उन्होंने लंका के विभिन्न गुप्तचरों तथा एजेंटों का वध किया.इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर राष्ट्रद्रोही जयंत का गर्व चूर किया खर-दूषण नामक रावण के दो बंधुओं का सर्वनाश किया.सतत अपमान के समाचारों को प्राप्त करते-करते रावण का खून खुलने लगा उसने अपने मामा को (जो भांजे के प्रति भक्ति न रखकर स्वार्थान्धता वश विदेशियों के प्रति लोभ पूर्ण आस्था रखता था) राम के पास जाने का आदेश दिया और स्वयं वायुयान द्वारा गुप्तरूप से पहुँच गया.राम को मारीच की लोभ-लोलुपता तथा षड्यंत्र की सूचना लंका स्थित उनके गुप्तचर ने बे-तार के तार से दे दी थी अतः उन्होंने मारीच को दंड देने का निश्चय किया.वह उन्हें युद्ध में काफी दूर ले गया तथा छल से लक्ष्मण को भी संग्राम में भाग लेने को विवश किया.अब रावण ने भिक्षुक के रूप में जा कर सीता को लक्ष्मण द्वारा की गयी इलेक्ट्रिक वायरिंग (लक्ष्मण रेखा) से बाहर आकर दान देने के लिए विवश किया और उनका अपहरण कर विमान द्वारा लंका ले गया.
जारी ...
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vaah...jitani bhi prasansa ki jaaye kam hogi....bilkul nayee soch...scientific najariya...
ReplyDeleteराम कथा की वैज्ञानिक व्याख्या पढ़कर अच्छा लग रहा है।
ReplyDeleteपौराणिक तथ्यों की ऐसी व्याख्या से आशा करता हूं कि लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होगा।
अलग और प्रभावी दृष्टिकोण ......अच्छा लगा पढ़कर
ReplyDeleteमाथुर साहब! आपकी व्याख्या देखकर कभी कभी तो मुस्कुराहट छा जाती है होठों पर!! मगर जो भी हो बहुत ही नायाब वर्णन है!!
ReplyDeleteआगामी कड़ियों की प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteइस सार्थक लेख के लिए आपके प्रति आभार।
बहुत सुंदर प्रस्तुति.... नेता जी को गर्व के साथ सलाम...
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