Wednesday, January 12, 2011

स्वामी विवेकानंद का अपहरण ------ विजय राजबली माथुर



आज १२ जनवरी है स्वामी विवेकानंद का जन्म-दिन और आप चौंक गये होंगे उनके अपहरण की बात से.दरअसल मेरा आशय उनके विचारों क़े अपहरण से है.विवेकानंद जी एक क्रांतिकारी संत थे और उन्होंने अपने देश क़े युवकों का आह्वान  किया था-उठो,जागो और महान बनो.उन्होंने कहा है-नास्तिक वह व्यक्ति है जिसका अपने पर विश्वास नहीं है.विश्व का इतिहास उन गिने चुने व्यक्तियों का इतिहास है जिनको अपने ऊपर विश्वास एवं आस्था थी.इस महान शक्ति क़े बल पर संसार का कोई भी कार्य किया जा सकता है .अपने ऊपर आस्था एवं विश्वास खोने पर किसी भी राष्ट्र का जीवन मृतप्राय हो जाता है.कभी अपने को असहाय असमर्थ मत समझो .तुम्हारी शक्ति असीम है ,संसार में कोई भी कार्य करना तुम्हारे सामर्थ्य में है.
स्वामी विवेकानंद ने युवकों से स्पष्ट कहा था-"धनी कहलाने वाले लोगों का विश्वास मत करो."दुखीजनों से सहानुभूति रख कर प्रभु से सहायता मांगो अवश्य मिलेगी.उनका लक्ष्य युवजनों क़े हृदयों में दरिद्रों,अज्ञानियों  एवं दलितों क़े लिये सहानुभूति एवं संघर्षशील वृति  उत्त्पन्न करना था.लेकिन आज हम देखते हैं कि,"विवेकानंद विचार मंच" बना कर उद्योगपतियों,पूंजीपतियों तथा सरमायेदारों क़े दलालों ने रियुमर स्पिचुयेटेड सोसाईटी की पालिसी क़े तहत स्वामी विवेकानंद क़े मूल विचारों क़े विपरीत मनगढ़ंत बातों को उनके नाम से परोस कर समाज में विषमता ,वैमनस्य और विद्वेष फ़ैलाने का ही काम किया है.महात्मा बुद्ध ने वैदिक हवन पद्धति में आई विकृतियों  का तीव्र विरोध किया था ,अवतारवाद की आलोचना की थी. किन्तु उनके बाद ढोंगियों-पाखंडियों ने उन्हें ही दशावतारों में शामिल करके उनकी ही मूर्तियाँ गढ़ क़े उनके  मूल उपदेशों को ध्वस्त कर दिया .इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद जो चाहते थे उस भावना को समाप्त करने हेतु उनके दर्शन को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है.१९७२ में मेरठ विश्वविद्यालय द्वारा कन्वोकेशन क़े अवसर पर प्रदत्त पुस्तक "भारत क़े नवयुवकों से" स्वामी विवेकानंद क़े विचार उद्घृत करके मैं यह बताना चाहता हूँ कि,उनके नाम पर संगठन बना कर उनके मूल विचारों को नष्ट करने का जो अभियान चलाया जा रहा है उससे कम से कम युवकों को तो बचने की आवश्यकता है ही.

स्वामी विवेकानंद युवकों से कहते हैं-"अपनी दुर्बलताओं पर बार-बार मत सोचो,शक्ति का ध्यान करो,शक्ति की साधना करो............समस्त वेदों एवं वेदान्त का सार यही है-अभयम-शक्ति,सामर्थ्य....मेरे युवा मित्रों!शक्तिवान बनो.यही मेरा तुम्हें परामर्श है.फ़ुटबाल क़े खेल द्वारा बलवान हो कर तुम प्रभु क़े निकट शीघ्र आ सकते हो-निर्बल रह कर गीता अध्ययन से तुम्हें ब्रह्म की प्राप्ति नहीं हो सकेगी.यह मैं तुमसे पूरी निष्ठां से कह रहा हूँ क्योंकि मेरा तुम पर स्नेह है.मुझे तुम्हारी तीव्र जिज्ञासा का ज्ञान है.शारीरिक बल ,सामर्थ्य एवं शक्ति क़े द्वारा गीता का ज्ञान सरल,सुलभ एवं सहज हो जाता है."

"समझ लो ,सत्य की साधना ही शक्ति देती है और शक्ति ही संसार क़े सब रोगों-क्लेशों की दवा है.यह एक महान तथ्य है कि,शक्ति ही जीवन है;शक्तिहीनता ही मृत्यु.शक्ति क़े द्वारा ही सुख,समृद्धि एवं जीवन की अमरता प्राप्त होती है.दुर्बलता से अशान्ति,कष्ट,क्लेश जन्म लेते हैं.यह दुर्बलता ही तो मृत्यु है."

"चारों ओर से पुकार है 'मनुष्य चाहिये मनुष्य',फिर सब कुछ प्राप्त हो जायेगा.पर कैसे मनुष्य?ऐसे मनुष्य जो दृढ संकल्प -शक्ति क़े धनी हों-गहरी अटूट आस्था वाले हों-ऐसे मनुष्य केवल एक सौ भी हों तो सारे विश्व में क्रांति की लहर दौड़ जायेगी."उन्होंने वर्तमान शिक्षा-व्यवस्था क़े सम्बन्ध में कहा है कि,इसके परिणामस्वरूप हमारी संकल्प शक्ति,पीढी दर पीढी हुए तीव्र आक्रमणों क़े कारण ,आज बिलकुल निर्जीव एवं मृतप्राय हो गई है.जिसके कारण नये विचार ही नहीं वरन पुराने विचार भी लुप्त होते जा रहे हैं.कठोर ब्रहमचर्य  की साधना से समस्त ज्ञान को ग्रहण करना थोड़े समय में ही सम्भव हो जायेगा.केवल एक बार का सुना हुआ और ग्रहण किया हुआ ज्ञान सर्वदा स्मृति में बना रहता है.इस ब्रह्मचर्य  क़े व्रत की साधना क़े अभाव में सारा देश नष्ट-भ्रष्ट हो रहा है.

धर्म क्या है?-"हम मानव समाज को उस स्थल पर ले जाना चाहते हैं जहाँ न वेद हों,न बाईबिल,न कुरआन ,परन्तु यह बाईबिल एवं कुरान का परस्पर समन्वय प्रस्थापित करके कर सकते हैं.मनुष्यों को केवल यह बताना होगा कि,नाना प्रकार क़े धर्म केवल एक महान धर्म क़े विभिन्न रूप ही हैं और यह महान धर्म है ,एकात्मकता जिससे कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी वृत्ति और रूचि क़े अनुसार अपना मार्ग चुन सके."यह तो हुई स्वामी विवेक नन्द की बात .अब जरा देखिये कि,उनके विचारों का अपहरण करने वाले उनके नाम क़े संगठन क़े अनुयायी क्या करते हैं.पादरियों पर हमले ,मस्जिदों पर हमले,विध्वंस और दुष्प्रचार.
स्वामी जी का प्रश्न है-शरीर में शक्ति नहीं ,ह्रदय में उत्साह नहीं ,मस्तिष्क में कोई मौलिकता नहीं.फिर ऐसे मट्टी क़े लौंदे मानव क्या कर पायेंगे?संख्या बल प्रभावी नहीं होता,न संपत्ति,न दरिद्रता ;मुट्ठी भर लोग  सारे संसार को उखाड़ फेंक सकते है यदि  वे लोग मनसा -वाचा-कर्मणा संगठित हों -इस निश्चित विश्वास को कभी मत भूलो जितना ही अधिक विरोध होगा,उतना ही अच्छा है.क्या बाधाओं को पार किये बिना सरिता वेग ग्रहण कर सकती है?जितनी नवीन और उत्तम एक वस्तु होगी उतना ही प्रारम्भ में उसे अधिक विरोध सहना होगा.विरोध क़े आधार पर ही तो सफलता की भविष्यवाणी होती है.समाज को ही सत्य की उपासना करनी होगी अथवा यह समाप्त हो जायेगा.वह समाज श्रेष्ठतम है जहाँ उच्चतम सत्य व्यवहार में प्रकट होते हैं.और यदि समाज उच्चतम सत्य को ग्रहण करने को तत्पर नहीं है तो हमें उसे इसके लिये उद्यत करना होगा और यह कार्य जितना जल्दी हो जाये उतना ही अच्छा है.निकृष्टत्तम वस्तु का भी सुधार सम्भव है.जीवन का सम्पूर्ण रहस्य समन्वय है;इसी समन्वय क़े द्वारा जीवन का सम्पूर्ण विकास होता है.दमनकारी वाह्य शक्तियों क़े विरुद्ध स्वंय क़े संघर्ष का परिणाम ही समन्वय है.यह समन्वय जितना प्रभावशाली होगा,जीवन उतना ही दीर्घायु हो जायेगा.

किसी भी व्यक्ति अथवा राष्ट्र की उन्नत्ति क़े लिये तीन बातों की आवश्यकता है:-
१ .अच्छाई की शक्तियों में आस्था.
२ .द्वेष एवं संदेह रहित होना.
३ .उन सब की सहायता करना जो अच्छा बनना एवं अच्छे कर्म करने का प्रयास कर रहे हैं.

स्वामी विवेकानंद का दृढ मत था -जब तक निर्धन की झोंपड़ी में दीपक नहीं जलेगा ,कोई भूँखा  नहीं सोयेगा तब तक देश की स्वाधीनता का कोई अर्थ नहीं होगा.अब आप ही तय करें क्या हम स्वामी विवेकनन्द क़े बताये मार्ग पर चल सकते हैं?या उनके विचारों का यों ही अपहरण होता रहेगा?

सम्पादन समन्वय -यशवन्त माथुर 
 (इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)
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12 Jan.2016 
12-01-2017 
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12-01-2017 

5 comments:

  1. स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन पर यह आलेख बहुत सार्थक और जानकारीपूर्ण लगा ।
    उनके चेहरे से तेज़ टपक रहा है ।

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  2. बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।

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  3. आदरणीय विजय जी,
    स्वामी विवेकानंद पर आपका लेख पढ़कर अति प्रसन्नता हुई !
    आज हमारे युवकों को स्वामी जी के विचारों की आवश्यकता है जिससे वो अपनी संस्कृति और मिट्टी को पहचान सकें !
    स्वामी जी के विचार लोगों तक पहुँचा कर आपने सराहनीय कार्य किया है !
    साभार,
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  4. आपके लेखन की धार सोचने पर विवश कर देती है

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  5. सच्चाई का उद्घाटन किया है-आपने! सामाजिक जागरूकता हेतु ऐसे लेखों की बड़ी आवश्यकता है! हार्दिक बधार्इ...😊

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इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है.फिर भी तर्कसंगत असहमति एवं स्वस्थ आलोचना का स्वागत है.किन्तु कुतर्कपूर्ण,विवादास्पद तथा ढोंग-पाखण्ड पर आधारित टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं किया जाएगा;इसी कारण सखेद माडरेशन लागू है.