प्रिय जापानी बंधुओं,
विगत ११ मार्च को आपने भूकंप और उसके बाद आये सुनामी के झटके को झेला है अब आपके तीन परमाणु संयंत्रों में विस्फोट के बाद रेडिएशन का खतरा बढ़ गया है.आपने ०६ और ०९ अगस्त १९४५ में भी परमाणु हमलों को झेला है.उनके दुष्परिणामों से आपके अलावा और अधिक कौन जान सकता है.आपके यहाँ ,हमारे यहाँ और सभी जगह आज जो वैज्ञानिक विकास है वह पश्चिम की खोजों पर आधारित है जो पूर्णतयः न तो मानव हित में है और न ही सम्पूर्ण है.हमारे प्राचीन विज्ञान का विकास वेदों पर आधारित था जो जन-कल्याणकारी था साथ-साथ पूर्ण सुरक्षित था.हमारे यहाँ भी प्रथ्वी तक का समूल विनाश करने वाली मिसाईल(शिव-धनुष) ईजाद हो चुकी थी उसे हमारे ऋषी-मुनियों ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम द्वारा बड़ी सुगमता से नष्ट करा दिया था.अमेरिका ने आपके देश की दुर्घटना के बाद भी अपनी परमाणु नीति ज्यों की त्यों जारी रखने की घोषणा की है.ऐसे में आपके और हमारे देश के लिए भी उसे जारी रखना अनिवार्य है.लेकिन हम खतरों से बचाव तो कर ही सकते हैं.हमारे देश के बंधू कहते हैं आज इन विचारों को कोई समझेगा नहीं और समझ भी लिया तो मानेगा नहीं ठीक है हमारे देशवासियों को फारेन रिटर्न बातें और चीजें भाती हैं ,कुछ समय पहले पेरू से एक दंपत्ति आकर हवन द्वारा खेती करना सिखा रहे थे; अतः आप लोग भी अपनी कुशाग्र बुद्धी से शीघ्र समझ भी लेंगे और अपने निजी हित में मान भी लेंगेफिर आकर हमारे देशवासियों को सिखाईयेगा..पहले भी आपने हमारे बौध मत को अंगीकार कर लिया था जैसे वह आपका अपना था.यहाँ मैं सिर्फ कुछ चुने हुए मन्त्र और श्री भवानी दयाल सन्यासी द्वारा प्रस्तुत भावानुवाद दे रहा हूँ ,आप गूगल या अन्य किसी माध्यम से अपनी जापानी-भाषा में अनुवाद कर सकते है.इनका सस्वर वाचन करने पर ध्वनी -तरंगों से आपकी प्रार्थना अंतरिक्ष तक पहुंचेगी और यदि आप इन मन्त्रों के पूर्व ॐ तथा अंत में स्वः लगा कर सामग्री से आहुतियाँ दे सके तो निश्चय ही आपके वायु-मंडल में छाया हुआ परमाणु-विकिरण शीघ्र समाप्त होगा.गाय के गोबर में Anti Atomic Power होती है उससे यदि अपने घर की छतों तथा बाहरी दीवारों को लीपेंगे तो आपके भवन विकिरण से बच जायेंगे.पहले हमारे देश में ऐसा होता था लेकिन अब पाश्चात्य साम्राज्यवादी प्रभाव में आकर इसे छोड़ दिया गया है.गोबर की कमी होने पर आप कहीं से भी आयत करें हमारे व्यापारियों से न मंगाएं वे तो अपने देशवासियों को ही धनिये में मिलाकर खिलाते हैं तो आपको भी गोबर में घोड़े की लीद मिला कर निर्यात कर देंगे.खैर स्वस्ति-वाचन के इन मन्त्रों पर गौर करें:-
अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवम्रित्वज्म
होतारं रत्नधातमम .(ऋ.म.१ /सू.१/म.१ )
(विश्व-विधाता के चरणों पर जीवन पुष्प चढाऊँ.
जिसने यह ब्रह्माण्ड संवारा उसकी गाथा गाऊँ..)
स्वस्ति नो मिमीतामश्विना भगः स्वस्ति देव्यदितिरनर्वंण:
स्वस्ति पूषा असुरो दधातु नः स्वस्तिद्यावाप्रथिवी सुचेतुना.
(विद्युत् ,पवन,मेघ,नभ,धरणी मोदमयी भयहारी.
विद्वानों की वाणी होवे ,सुखद सर्व हितकारी..)
स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहे सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः .
ब्रह्स्पतीं सर्वगणं स्वस्ये स्वस्तय आदित्या सोभवन्तु नः.
(अंतरिक्ष में शशी शुभ्र ,शीतल ज्योत्स्ना फैलाता.
स्वस्ति समन्वित स्नेह सदा सृष्टि सौन्दर्य बढाता ..)
विश्वेदेवा नो अद्या स्वस्तये वैश्वानरो वसुरग्निःस्वस्तये..
देवा अवन्त्वृभवःस्वस्तये स्वस्ति नो रुद्रः पात्र्वहृसः ..
(जनता की कल्याण कामना से यह यज्ञ रचाया.
विश्वदेव के चरणों में अपना सर्वस्व चढ़ाया ..)
स्वस्ति मित्रावरुणा स्वस्ति पथ्ये रेवति.
स्वस्ति न इन्द्रश्चाग्निश्च स्वस्ति नो अदिते कृधि ..
(मारुत हो मन भावन ,विद्युत् विनयशील बन जावे.
भौतिक वास्तु मानवी जीवन में उल्लास बढ़ावे..)
स्वस्ति पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव.
पुनर्ददताध्न्ता जानता सं गमेमहि..(ऋ.मं५ /सू.५१ /मन्त्र ११ से १५)
(नभ -मंडल में सूर्य चन्द्र पावन प्रकाश फैलाते . ज्ञानवान सत्संग जनित कल्याण मार्ग पर जाते..)
ये देवानां यज्ञिया यज्ञियाना मनोर्थजत्राअमृता ऋतज्ञा:
ते नो रासन्तामुरुगायमद्य यूयंपात स्वस्तिभि : सदा न : .(ऋ.म.७ /सूक्त ३५ /मन्त्र १५ )
(यज्ञव्रती विद्वान सर्वदा कर्म-तत्व बतलावें.
अन्तस्तल में ज्योति जगाकर श्रेय मार्ग दिखलावें..)
येभ्यो माता मधु मत्पिन्वते पय:पीयूषं द्यौ रदितिरद्र बर्हा:.
उक्थशुश्मानवृष मरान्त्स्वप्नसस्तां आदित्यांअनुम.दास्वस्तये(ऋ.मं.१० /सू.६३ /मं ३)
(ऋतू अनुकूल मह बरसे दुखप्रद दुष्काल न आवे.
सुजला सुफला मातृ भूमि हो,मधुमय क्षीर पिलावे..)
स्वस्ति न :पथ्यासु धन्वसु स्वस्त्यप्सू वृजने स्ववर्ति .
स्वस्ति न :पुत्र कृथेशु योनिषु स्वस्ति राये मरुतोदधातन ..
(सेना,सूत,जल,धेनु,मार्ग को सुख संपन्न बनाओ .
वातावरण विशुद्ध बना कर वैर विरोध मिटाओ..)
स्वस्ति रिद्धि प्रपथे श्रेष्ठा रेक्णस्वस्तयभि या वाममेती.
सा नो अमा सो अरणेनिपातु स्वावेशा भवतु देवगोपा ..(ऋ.मं.१० /सू ६३ /मं १४ ,१५)
मातृभूमि की सेवा,सागर पर अधिकार जमावें .
धी-श्री से संपन्न जगत को सच्चा स्वर्ग बनावें..)
शं न :सूर्य उरुचक्षा उदेतु शं नश्चतस्त्र: प्रदिशो भवन्तु .
शं न :पर्वता ध्रुवयो भवन्तु शं न :सिन्धवः शमु सन्त्वापः..(ऋ.मं ७ /सू ३५ /मं ८)
(पानी,पवन ,पहाड़ दिशाएँ,रवि रक्षक बन जावें.
वसुधा शांत सुरम्य,समूचे जीव-जन्तु सुख पावें..)
फिलहाल इस संकट की घड़ी में आप इतना ही करें ;वैसे यज्ञ नियमानुसार विधि से संपन्न किये जाते हैं.ये पूर्ण वैज्ञानिक विधि है.आप जो पदार्थ अग्निहोत्र में डालेंगे उन्हें अग्नि परमाणुओं में विभक्त कर देगी और वायु उन एटम्स को अंतरिक्ष में भेज देगी.इसका आधार मेटेरियल साईंस है.
हम यथा शीघ्र इस संकट निवारण की कामना करते हैं.
आद.विजय जी,
ReplyDeleteगाय के गोबर से लेकर श्लोकों के वैज्ञानिक विश्लेषण के साथ आपने जो तर्कपूर्ण लेख लिखा है उसके लिए आपको साधुवाद !
श्लोकों के वैज्ञानिक विश्लेषण के साथ आपने जो तर्कपूर्ण लेख लिखा है उसके लिए धन्यवाद|
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ReplyDeleteगोदियाल साहब
ReplyDeleteआपके द्वारा की गयी प्रत्येक टिप्पणी प्रकाशित की गयी है और अन्य लोगों की भी टिप्पणियाँ प्रकाशित की गयीं हैं.किन्तु यदि किसी दुसरे की आप बात कर रहे हों तो सिर्फ दो ही टिप्पणियाँ अभी तक नहीं प्र्क्साहित कीं क्योंकि उन टिप्पणीकारों का उद्देश्य इस ब्लॉग को विवादित बनाना और गन्दा करना था.
आपके शिकायत करने का कारण समझ में नहीं आया क्योंकि आपकी 'असहमति'व्यक्त करने वाली टिप्पणी भी मौजूद है.
माथुर साहब , क्षमा चाहता हूँ ! मेरी पिछली टिप्पणी में कुछ टंकण अशुद्धियाँ रह गयी थी इसलिए मैंने वह टिपण्णी डिलीट कर दी है ! दरह्सल बात यह है कि अभी कुछ देर पहले मैंने एक टिपण्णी पोस्ट करनी चाही थी जिसमे कुछ यूँ ही मन के उदगार थे मगर जब आपके लेख के नीचे टिपण्णी बॉक्स में उसे कटपेस्ट किया तो उसके नीचे मैंने अक्सर नोट किया कि बॉक्स में मेरा नाम मौजूद नहीं रखता जैसा कि अन्य ब्लोगों की टिपण्णी बॉक्स में अक्सर होता है ! में प्रोफाइल चूज करने के लिए गोगल सेलेक्ट किया और नीचे बटन पर क्लिक किया तो टिपण्णी गायब हो गई ! जनरली उसके बाद वह गोगल में ब्लोगर का नाम ढूंढकर उसे दर्शाता है और फिर टिपण्णी पोस्ट करने के लिए कहता है ! इस बीच कुछ करेक्शन की वजह से जो ओरिजिनल टिपण्णी कर्सर की मेमोरी में होती है वह भी नहीं रही , इसलिए गई भैंस पानी में :)
ReplyDeleteमाथुर जी , फिलहाल तो यहाँ भी इनकी ज़रुरत है । क्योंकि १९ मार्च भी आने ही वाला है ।
ReplyDeleteजाने यह सुपर्मून क्या गुल खिलायेगा ।
हार्दिक संवेदनाएं और संकट निवारण की कमाना ...... वहां के लोगों के लिए ... आभार
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