Friday, March 25, 2011

प .बंगाल के बंधुओं से -एक बे पर की उड़ान .

प.बंगाल के आगामी विधान सभा चुनावों में फैसला तो वहां की जनता को ही करना है कि वह कैसी शासन व्यवस्था चाहती है.जूलाई १९६४ से सितम्बर १९६७ तक सिलीगुड़ी में रहने और वहीं से हाई स्कूल उत्तीर्ण करने के कारण मेरी व्यक्तिगत दिलचस्पी बंगाल की राजनीतिक गतिविधियों में बनी रहती है.जब पहली बार १९६७ में श्री अजोय मुखर्जी के नेतृत्व में १४ पार्टियों के मोर्चे की  गैर कांग्रेस सरकार बनी थी उसमें श्री ज्योति बसु उप-मुख्य मंत्री एवं गृह मंत्री थे.फासिस्ट तत्वों ने तब कलकत्ता के रवीन्द्र सरोवर स्टेडियम में अभद्र ताण्डव कर उन्हें बदनाम करने की कुचेष्टा की थी.सिलीगुड़ी से लगभग १० कि.मी.दूरी पर स्थित नक्सल बाडी में आदिवासियों को आगे करके कमला (सन्तरा)बागानों एवं खेतों पर कब्ज़ा कर लिया गया था.सिलीगुड़ी शहर में मारवाड़ियों दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया था.बाद में दुकानदारों को बीमा कं.से अपने नुक्सान से कहीं ज्यादा मुआवजा मिल गया था.लेकिन उन दुकानदारों ने फिर बंगाली युवकों को दोबारा नौकरी पर नहीं लिया.कुल नुक्सान गरीबों का हुआ था.राज्यपाल श्री धरमवीर,I .C .S .ने बाद में मुखर्जी सरकार को बर्खास्त कर दिया था.लेकिन १९७७ से लगातार सभी चुनावों में बाम-मोर्चा मजबूती से चुनाव जीत कर सफल शासन चलाता  रहा है.इस दफा पहली बार यह कहा जा रहा है कि सुश्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में बाम सत्ता को बेदखल कर दिया जाएगा.

ममता जी जुझारू नेता हैं  और जैसा उन्होंने कहा था कि ज्योति बाबू पद से निवृत होने के बाद उनको बुला कर उनसे उनके आंदोलनों के बारे में जानकारियाँ हासिल करते रहते थे.ममता जी को तीन प्रधानमंत्रियों(नरसिम्हा राव जी,अटल बिहारी बाजपाई जी एवं मनमोहन सिंह जी) के साथ काम करने का विशाल अनुभव है.यदि वह प. बंगाल की मुख्य मंत्री बनती हैं तो वहां की जनता को उनसे नयी उम्मीदें रहेंगी.ममता जी ने बाम मोर्चा सरकार के सिंगूर में 'नैनो' कार बनाने के कारखाना लगाने का तीव्र विरोध किया ,परिणामतः अब वह कारखाना भाजपा शासित गुजरात में चालू हो गया है.उनके रेल विभाग में ऐसे मेडिकल सर्जन बेधड़क नौकरी पर डटे हुए हैं जिन्होंने खुल्लम-खुल्ला सरकारी नियमों तथा संविधान में उद्घोषित सिद्धांतों की अवहेलना कर रखी है.

यदि कोई सरकारी कर्मचारी किसी अखबार आदि या अन्यत्र  में लिखना चाहता है तो उसे सरकार से अनुमति लेनी होती है और वह सरकार विरोधी कोई बात कह एवं लिख नहीं सकता है.सरकारी कर्मचारी द्वारा कही बात सरकारी घोषणा होती है.हमारा भारतीय संविधान -धर्म निरपेक्ष और समाजवादी सिद्धांतों को मानता है.अब रेल विभाग के इन वरिष्ठ सर्जन महोदय का प्रोफाईल देखिये ,और देखिये इनकी घोषणा को कि वह क्या धर्म निरपेक्षता की श्रेणी में आती है.




अब यदि यह साहेब बेधड़क 'मैं हूँ...मैं हूँ...मैं हूँ....'के अहंकार के साथ संविधान विरोधी विचार लिखते और दूसरों को मूर्ख कहते हैं तो समझना चाहिए कि इन्हें ऊपरी संरक्षण प्राप्त है तभी इनके उच्चाधिकारी भी इनके पेंच कसने में असमर्थ हैं.यह साहेब जनता को जागरूक किये जाने वाले हर कदम का तीखा एवं कटु विरोध करते हैं.कुछ नमूने ये देखें-




मैं जो प्रश्न अपने प.बंगाल के बंधुओं से उठाना चाहता हूँ वह यह है कि मताधिकार का प्रयोग करते समय यदि वे भावावेश में बह गए और उन्होंने यह विचार नहीं किया कि अगली सरकार की मुखिया यदि वर्तमान रेल मंत्री बनती हैं जिनकी सहानुभूति ऐसे फासिस्टों के साथ है तो बाद में कहीं उन्हें पछताना न पड़े.फासिस्ट तत्व बड़ी चालाकी से अपनी बात को मीठी चाशनी में पाग कर परोसते हैं. रेल मंत्री जी के कार्यों पर यहाँ के हाई कोर्ट की प्रतिक्रिया पर भी गौर करें किस प्रकार कानून का पालन न करके रेल विभाग को आर्थिक क्षति तथा आम जनता को कष्ट पहुँचाया गया.उसकी  कापी संलग्न है-

हिंदुस्तान-लखनऊ-२४/०३/२०११ 
बंगाल की धरती ने हमें ऐसे रत्न दिए हैं जिन्होंने देश की एकता को मजबूत किया है.राष्ट्र गान के प्रदाता कवीन्द्र रवीन्द्र ने कहा है-

हे मोर चित्त, पुण्य तीर्थे जागो रे धीरे ,
एई  भारतेर महामानवेर सागर तीरे .
कई नाहीं जाने ,कार  आह्वाने,कत मानुशेर् धारा ,
दुवरि स्त्रोते एलो कोथा हते,समुद्रे हलो हारा .
हेथाय आर्य ,हेथा अनार्य,हेथाय द्राविण चीन,
शक -हुण-दल पाठान मोगल एक देहे हलो लींन.
रणधारा वाहि,जय गान गाहि,उन्माद कलरवे ,
 भेदि मरु-पथ ,गिरि-पर्वत  यारा एसेछिलो सबे .
तारा मोर माझे सबाई बिराजे केहो नहे रहे दूर
आमार शोणिते रयेछे ध्वनित तारि विचित्र सूर .

जिसे हम भारतीय संस्कृति कहते हैं उसमें अनेक जातियों का अंशदान है.बाहर से आने वाली जातियों के आचार-विचार धर्म-विश्वास आदि भारतीय संस्कृति के उपादान बन गए .लेकिन रेल मंत्री जी के विभागीय उच्चाधिकारी उद्दंडता पूर्वक एक साम्प्र्दायिक संगठन का प्रचार करता है और उसके विरुद्ध कोई कारवाई नहीं की जाती है .इसका आशय क्या हो सकता है?जरा इस बात का भी बंगाली बन्धुगण मतदान से पूर्व  ध्यान कर लें तो अच्छा रहे.कहीं ऐसा न हो '-पाछे पछताय होत किया ,जब चिडियाँ चुग गयीं खेत.'

4 comments:

  1. माथुर साहब, ऐसा क्या था मेरी टिप्पणी में जो प्रकाशन से वंचित रह गईं???

    ReplyDelete
  2. सलिल जी,
    आपकी हर टिप्पणी पूरे सम्मान के साथ प्रकाशित हुई हैं और ये भी जो टिप्पणी हमें प्राप्त ही नहीं हुई उसका हमें कोई पता भी नहीं है हम कमी कैसे बता सकते हैं?

    ReplyDelete
  3. मुझे स्वयं आश्चर्य हो रहा था कि ऐसा कभी हुआ नहीं कि आप मेरी टिपण्णी प्रकाशित न करें... लेकिन मेरी टिपण्णी पोस्ट हुई थी और मोडरेटर के अप्रूवल के बाद प्रकाशित होगी यह सूचना भी दिखी थी..जाने दीजिए.. टिप्पणी कहाँ गई यह तो गूगल बाबा बताएँगे!! अपनी दूसरी टिप्पणी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ!!

    ReplyDelete
  4. @आदरणीय सलिल जी,
    मैंने खुद पापा के इस ब्लॉग के स्पैम फोल्डर को भी दो बार चेक किया लेकिन आपकी पहली वाली टिप्पणी वहां भी नहीं मिली.


    सादर

    ReplyDelete

इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है.फिर भी तर्कसंगत असहमति एवं स्वस्थ आलोचना का स्वागत है.किन्तु कुतर्कपूर्ण,विवादास्पद तथा ढोंग-पाखण्ड पर आधारित टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं किया जाएगा;इसी कारण सखेद माडरेशन लागू है.