Monday, April 4, 2011

भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में आर्य समाज का योगदान



चैत्र प्रतिपदा आर्य समाज के स्थापना दिवस पर विशेष


वैदिक संस्कृति के विकृत होने के बाद भारतीय समाज घोंघे की भाँति सिकुड़ता चला गया और अपनी इसी संकीर्ण तथा परस्पर वैमनस्यता के कारण भारत एक के बाद एक आये विदेशी आक्रान्ताओं से पराजित होता गया.व्यापारी बन कर आये अंग्रेज हमारे देश की परस्पर फूट का लाभ उठा कर यहाँ शासक बन बैठे और हमको हेय समझने लगे.सन१८५७ ई.का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम लार्ड कैनिंग की अत्याचार कैंची से कुतर-बोंत कर दिया गया था,जिसमें पंजाब के सिखों ,ग्वालियर के सिंधिया ,भोपाल की बेगम और नेपाल के राणा सर सालार जंग बहादुर ने देश भक्तों को कुचलने में विदेशी शासकों का साथ दिया था.विदेशी शासन की इस लम्बी अवधि में भारतीयों का नैतिक,सामजिक और आध्यात्मिक पतन पराकाष्ठा  को पार कर चुका था.सत्य के स्थान पर असत्य,धर्म के नाम पर ढोंग व पाखण्ड का बोल-बाला था.वेदों का ज्ञान संकुचित कर दिया गया था.स्त्रियों एवं शूद्रों(मेहनतकशों)को वेड पढने का अधिकार न था.ऐसे ही विकत समय में युगांतरकारी महर्षि दयानंद सरस्वती का आविर्भाव हुआ.एक कवि के शब्दों में-

धरा जब-जब विकल होती,मुसीबत का समय आता.
किसी न किसी रूप में ,कोई न कोई महामानव चला आता..

अपनी युवावस्था में ही महर्षि दयानंद ने सम्पूर्ण राष्ट्र का परिभ्रमण कर जाग्रति की अश्रुधारा बहा दी ,जागरण का सिंहनाद फूंक दिया ,वेदों के अपौरुषेय ज्ञान का प्रतिपादन करते हुए कण-कण में दुर्घर्ष शक्ति का मन्त्र फूंक दिया और पाखंडों अंधविश्वासों ,गुरुदम का अपनी अतर्क्य तर्क -शक्ति का प्रचंड विद्वता के माध्यम से कठोर प्रहार करते हुए सन १८७५ ई.में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मुम्बई में 'आर्य समाज 'की स्थापना की.

कांग्रेस के जन्म से भी दस वर्ष पूर्व आर्य समाज के माध्यम से महर्षि दयानंद ने स्वराज्य का प्रथम उद्घोष कर दिया था.२६ फरवरी ,१८८३ ई. को संपन्न 'सत्यार्थ प्रकाश'में उन्होंने लिखा है कि,माता-पिता के समान होने पर भी विदेशी राज्य स्वराज्य की बराबरी नहीं कर सकता.ध्यान देने की बात यह है -इस समय तक कांग्रेस की भी स्थापना नहीं हुयी थी और तथाकथित हिन्दू महासभा,आर.एस.एस.,मस्लिम लीग आदि का कोई अत-पता भी न था.बंग-भंग आन्दोलन से भी बहुत पूर्व स्वामी जी ने स्वदेशी वस्तुओं का स्वंय व्यवहार करके तथा दूसरों को भी ऐसा ही आग्रह करके स्वदेशी आन्दोलन को जन्म दिया था.महर्षि दयानंद के प्रिय शिष्य क्रांतिवीर श्याम जी कृष्ण वर्मा उनकी अनुमति लेकर लन्दन चले गए और वहां उन्होंने 'इण्डिया हाउस 'की स्थापना की और 'इन्डियन सोशियोलाजिस्ट 'नामक पात्र निकाल कर विदेशी शासकों की धरती पर ही उसे उखाड़ फेंकने का आह्वान कर शेर को उसकी मांद में ही चुनौती दे डाली.महर्षि दयानंद की प्रेरणा और आशीर्वाद ही श्याम जी कृष्ण वर्मा के मुख्य सम्बल थे.कुछ ही समय में लन्दन का इण्डिया हाउस क्रांतिकारियों का अखाड़ा बन गया जहाँ शरण लेने वालों में जलियाँ वाला काण्ड के नर-पिशाच जनरल डायर का वध करने वाले सरदार ऊधम सिंह का नाम विशेष उल्लेखनीय है.

सत्यार्थ प्रकाश के अध्ययन द्वारा ही काकोरी काण्ड के अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल'ने शाहजहांपुर में 'आर्य कुमार सभा'की स्थापना कर बच्चों व नव-युवकों में समाज व देश सेवा का शंखनाद फूंक डाला था.आर्य कुमार सभा रूपी बिस्मिल की इसी फैक्टरी में अशफाक उल्ला खां,ठाकुर रोशन सिंह आदि देशभक्त नौजवान तैयार हुए थे,इसी लिए दिसंबर १९२७ ई. में उनकी फांसी के पश्चात देश में यह नारा गूँज गया था-

मरते बिस्मिल,रोशन ,लाहिड़ी,अशफाक अत्याचार से.
होंगे सैंकड़ों पैदा इनके खून की धार से..

आर्य सन्यासी स्वामी सोमदेव जी तथा डी.ए.वी.स्कूल इटावा के शिक्षक क्रांतिकारी गेंदा लाल दीक्षित ने तो क्रांतिकारी युवकों की एक फ़ौज ही खड़ी कर डी थी जो छल व बल से स्थापित ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने को कृत -संकल्प थी.पंजाब के क्रांतिकारी लाला हरदयाल (जो माथुर कायस्थ)तथा परमानंद,सरदार भगत सिंह, आजाद आदि आर्य समाजी ही थे.अंग्रेज सरकार आर्य समाज को एक राजद्रोही आन्दोलन ही समझती थी जैसा कि,सर वेलेंटाईन शिरोल ने "इन्डियन अनरेस्ट "नामक पुस्तक में स्वीकार भी किया है."एवरीमैन"के विश्वकोश के पृष्ठ ४५१ पर तो आर्य समाज को स्पष्ट रूप से एक ऐसा राजद्रोही संगठन कहा है जिसका उद्देश्य देश की आजादी रहा है.ब्रिटिश शासक स्वामी दयानंद को रिवोल्यूशनरी सैन्ट कहा करते थे.

ऐसा नहीं है कि आर्य समाज ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को सिर्फ क्रांतिकारी ही भेंट किये  हों,वरन लाला लाजपतराय,श्रद्धानंद सरीखे आर्य नेता और असंख्य आर्य समाजी गांधी जी के सत्याग्रह आन्दोलन में जेल गए थे.डा.पट्टाभि सीतारमैया ने "कांग्रेस का इतिहास"नामक पुस्तक में लिखा है कि,स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने वाले कांग्रेसियों में ८५ प्रतिशत आर्य समाजी थे.वास्तव में गांधी जी के सत्याग्रह आन्दोलन को जन-आन्दोलन बनाने में आर्य समाज का योगदान महती रहा है.गांधी जी के आन्दोलन को पिछड़ों,दलितों व महिलाओं का योगदान सिर्फ इसी लिए मिल सका कि,आर्य समाज ने डी.ए.वी.स्कूलों के माध्यम से शिक्षा का प्रसार कर युवकों को जाग्रत कर दिया था,कन्या पाठशालाओं और कन्या गुरुकुलों को खोल कर महिलाओं को पुरुषों से भी श्रेष्ठ अर्थात मातृ -शक्ति घोषित कर दिया था.आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद की ही दूर- दर्शिता थी कि उन्होंने हिन्दी को राष्ट्र -भाषा घोषित कर दिया था जिसका अनुसरण महात्मा गांधी ने किया और इस प्रकार जन-जन तक सत्याग्रह का सन्देश सरलता से पहुंचाया जा सका.दलितों को न केवल पढने बल्कि वेदों को पढ़ने का भी अधिकार आर्य समाज ने ही प्रदान किया और इस प्रकार उन्हें मुख्य धारा में जोड़ कर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने की प्रेरणा प्रदान की.

निष्कर्ष यही है कि,महर्षि दयानंद तथा उनके आर्य समाज ने अपने युगान्तर कारक क्रांतिकारी कार्यक्रमों के माध्यम से भारत की सोयी हुयी तरुणाई को जगा कर माँ की बलिवेदी पर समर्पण हेतु कटिबद्ध किया जिसके आधार पर भारत की स्वाधीनता का महान संग्राम अवरत लड़ाया गया और अन्तोगत्वा भारत १५ अगस्त १९४७ को स्वतन्त्र हुआ.आर्य समाज से ही प्रेरणा पा कर युवकों ने एक कवि के शब्दों में-

देश हित वार दीं,अनेक ही जवानियाँ.
जिनके खून से लिखी ,स्वदेश की कहानियां..

(यह लेख वास्तव में यशवन्त को आर्य समाज ,कमला नगर,आगरा की वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु लिख कर दिया था और उसमें उसे पुरूस्कार स्वरूप 'सत्यार्थ प्रकाश' प्राप्त हुई थी ,देखें नीचे दिए चित्रों में )



फासिस्ट तत्वों(जिनके अनुसार मुझे धर्म की जानकारी नहीं है और मैं कोरा अज्ञानी हूँ) की जानकारी  के लिए मुम्बई आर्य समाज ,सांताक्रुज द्वारा प्रकाशित पाक्षिक पत्रिका में छपे मेरे दो लेखों (जो उन फासिस्टों के मुताबिक़ कूड़ा-कचरा हैं)की स्कैन कापी नीचे संलग्न है-


5 comments:

  1. अच्छी जानकारी प्राप्त हुई । आभार !
    नव-संवत्सर की हार्दिक बधाई ....

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  2. आपको भी नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें माथुर साहब ।

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  3. नव-संवत्सर और विश्व-कप दोनो की हार्दिक बधाई .

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  4. बहुत जानकारीपूर्ण लेख ।
    नव वर्ष की शुभकामनायें ।

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  5. ज्ञानवर्धक आलेख ..... आभार
    नव संवत की शुभकामनायें स्वीकारें....

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