Tuesday, March 29, 2011

सुदेशी और सुराज्य (२ )

गांधी जी ने देश की आजादी के दौरान 'स्वदेशी और स्वराज्य'पर जोर दिया था उनका प्रयास सफल भी रहा था.आज हम राजनीतिक रूप से स्वतंत्र तो हैं ,परन्तु आर्थिक रूप से पहले से कहीं ज्यादा गुलाम हैं.इसी ब्लॉग में मैंने आज 'सुदेशी और सुराज्य' आंदोलन चलाये जाने की आवश्यकता समझानी चाही थी.इसकी क्यों जरूरत है?आइये देखें प्रस्तुत लेख को,जो निष्काम परिवर्तन पत्रिका (अप्रैल २०००)में प्रकाशित हुआ था.-


कोई भी देश भक्त नागरिक बड़ी आसानी से मान लेगा कि इस लेख में वर्णित सभी बातें बिलकुल सही हैं.फिर यह हम सभी का दायित्व है कि अपने -अपने स्तर से  तो विदेशी कं. के बने मालों का प्रयोग बंद कर दें जैसा कि श्री मनोज कुमार जी ने अपनी टिप्पणी में सुझाव भी दिया था.सम्भव हो तो राजनीतिक मतभेदों को भुला कर   एक जोरदार अभियान 'सुदेशी और सुराज्य'के मुद्दे पर चलाया जाना चाहिए.देखिये आज के हिंदुस्तान में छपे विक्कीलीक्स के इस खुलासे को कैसे साम्राज्यवादी हमारे देश को दबाव में लेना चाहते हैं?साम्राज्यवाद पर हमले का विरोध कर संकीर्ण मनोवृति के लोग क्या चाहते हैं?

'हिंदुस्तान'-लखनऊ-29/03/2011

4 comments:

  1. माथुर साहब, यह एक न्यायोचित बात है कि जहां तक हो सके हम स्वदेशी माल का उपयोग करे ! लेकिन आतंरिक स्थित पर गौर फरमाए तो परिस्थितियाँ भिन्न है ! आज उत्तर प्रदेश को ही केंद्र मानकर चले तो औद्योगिक उत्पादन सरकार के स्वार्थों और उदासीनता की वजह से बिलकुल ठप्प है बिद्युत और श्रमिक दिक्कते, इंस्पेक्टरी राज, राजनैतिक हस्तक्षेप ! अब जब उप्ताप्दन ही नहीं होगा, स्वदेशी वस्तु की लागत विदेशी की अपेक्षा बहुत अधिक होगी, गुणवत्ता कम होगी, तो स्वदेशी वस्तु इस्तेमाल करेगे कहाँ से ?

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  2. बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने -------
    विचारणीय है।

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  3. हम स्वदेशी चीज़ों को बढ़ावा दे तो घरेलू उत्पादकों को प्रोत्साहन भी मिलेगा ...... बहुत सार्थक और विचारणीय विषय....

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