१४ जूलाई १९९० को आगरा के सप्तदिवा साप्ताहिक में पूर्व प्राकाशित
गौतम बुद्ध ने कहा था -दुःख है,दुःख का कारण है,दुःख दूर हो सकता है,दुःख दूर करने का उपाय है.आज हम निसंकोच कह सकते हैं कि,भ्रष्टाचार है,भ्रष्टाचार का कारण है,भ्रष्टाचार दूर हो सकता है और भ्रष्टाचार दूर करने का भी उपाय है.तो आईये पहले जान लें कि,भ्रष्टाचार है क्या बला ?
भ्रष्टाचार=भ्रष्ट +आचार अर्थात गलत आचरण चाहे वह आर्थिक,राजनीतिक क्षेत्र में हो या सामाजिक -पारिवारिक क्षेत्र में और चाहे वह धन से सम्बंधित हो या मन से वह हर हालत में भ्रष्टाचार है.
आज भ्रष्टाचार सार्वभौम सत्य के रूप में अपनी बुलंदगी पर है,बगैर धन दिए आप आज किसी से कोई छोटा सा भी काम नहीं करा सकते हैं.पहले भ्रष्टाचार नीचे रहता था तो ऊपर बैठे लोगों का डर भी था पर अब तो भ्रष्टाचार सिर पर चढ़ा है.यथा राजा तथा प्रजा.हालांकि पूर्ववर्ती सरकार का मुखिया विदेशी सौदों में संलिप्तता के चलते सम्पूर्ण पार्टी सहित सत्ताच्युत हो गया है,परन्तु भ्रष्टाचार अब समाप्त हो गया है ऐसा कहने का साहस वर्तमान सरकार का मुखिया भी अभी तक नहीं जुटा पाया है.
बल्कि वर्तमान सरकार के कुछ मंत्री भी विवाद के घेरे में आ गए .वास्तव में ईमानदारी आज सबसे बड़ा अपराध है और वह दण्डित हुए बगैर नहीं रह सकती .तो साहब भ्रष्टाचार तो है सर्वव्यापी.उसका कारण क्या है,आइये यह भी जान लिया जाए.
समयान्तर के साथ आज हमारा समाज तक कलयुग अर्थात कल (मेकेनिकल) युग (एरा)में चल रहा है.आज हर कार्य तीव्र गति से और अल्प श्रम द्वारा ही किया जा सकता है.जब थोड़े श्रम से अत्यधिक उत्पादन होगा और उत्पादित माल के निष्पादन अर्थात बिक्री की समस्या उत्पन्न होगी तो उत्पादक तरह-तरह के प्रलोभन जैसे कमीशन और डिस्काउन्ट-रिबेट और रिश्वत आदि का प्रयोग करता है जिससे उसे अधिक बिक्री होने से अधिक मुनाफ़ा हो सके .बस यह प्रयोग ही भ्रष्टाचार है.आज हर कार्य धन से सम्पन्न होता है और धनार्जन चाहे जिस स्त्रोत से हो इसकी बाबत ध्यान दिये बगैर ही आपको सम्मान आपके द्वारा अर्जित धन के अनुपात में ही प्राप्त होगा.
ऐसी स्थिति धन-संग्रह को जन्म देती है और धन प्राप्ति के लिए नाना विधियां विकसित होती चली जाती हैं.शीघ्रातिशीघ्र धनवान बनने की लालसा में ही दहेज़ प्रणाली विकसित की गई-क्या यह सामाजिक भ्रष्टाचार नहीं है?फिर दहेज़ के लिए वधु का दाह भीषण भ्रष्टाचार क्यों नहीं है ?आप एक वकील या एक व्यापारी या कोई भी निजी धंधा करने वाले हैं.आपको अपने व्यवसाय की दूकान चलाने के लिए ग्राहकों की आवश्यकता है.आपने अपनी मेकेनिकल (कलयुगी) बुद्धि से अनी जाती या धर्म अथवा सम्प्रदाय के उत्थान का बीड़ा उठा लिया और उस सम्बंधित वर्ग के अपने ग्राहकों के बल-बूते अपने क्षेत्र में सफल हो गए.इस प्रकार की परस्पर प्रतिद्वन्दिता ने ही सम्प्रदायवाद,जातिवाद और धार्मिक वितण्डावाद को जन्म दिया.अतः ये सब हथकण्डे सीधे-सीधे भ्रष्टाचार की ही परिधि में आते हैं.हमने देखा कि,समाज में धनवान बनने की होड़ ही आर्थिक,राजनीतिक,साम्प्रदायिक,जातीय,भाषाई भ्रष्टाचार और भड़कते विग्रह की जड़ है.
जब तक मंदिर में चढ़ावा और मजार पर चादर चढाने की प्रवृतियां रहेंगीं तब तक हर लें-दें में काम के बदले धन देने की प्रवृति को गलत सिद्ध नहीं किया जा सकता क्योंकि जब विधाता ही बगैर किसी चढ़ावे के कुछ करने को तैयार नहीं तब मनुष्य तो मन का कलुष है ही.
जब भ्रष्टाचार दूर किया जा सकता है तो उसका उपाय भी मौजूद है -धन पर आधारित समाज अर्थात पूंजीवाद का विनाश.पूंजीवाद को समाप्त कर जब श्रम के महत्त्व पर आधारित समाज -व्यवस्था क स्थापित कर दिया जाएगा तो भ्राश्ताचार स्वतः ही समाप्त हो जाएगा.परन्तु समाजवाद पर आधारित व्यवस्था को कौन स्थापित करेगा,कैसे करेगा जब आज सभी राजनीतिक दल तो संवैधानिक बाध्यता के कारण समाजवाद की स्थापना को ही अपना अभीष्ट लक्ष्य घोषित करते हैं.आज क्या राजीव कांग्रेस(इंका) क्या भाजपा(गांधीवादी समाजवाद) और जनता दल सभी तो समाजवाद के अलमबरदार हैं.(आज तो एक समाजवादी पार्टी भी अस्तित्व में है).फिर क्यों नहीं आया समाजवादी समाज हमारे भारत में -आज आजादी के तैंतालीस वर्षों बाद भी (अब तो ६३ वर्ष पूर्ण हो चुके हैं).निश्चय ही प्रयास नहीं किया गया ,नहीं किया जा रहा और न ही किया जाएगा.आज कौन ऐसा अभागा है जो प्राप्त सुविधा को स्वेच्छा से छोड़ देगा?इसलिए जनता को गुमराह करने के लिए समाजवाद का नाम लेकर दरअसल पूंजीवाद को ही सबल किया गया है तभी तो पनडुब्बी,टॉप,सुंदरवन आदि के भ्रष्टाचार चल सके हैं और ऐसे ही आगे भी कामयाब हो रहे हैं.(आज तक दूर-संचार,स्पेक्ट्रम ,अनाज ,दवा,बाढ़ घोटाले आदि और जुड़ चुके हैं).
यदि हम मनसा-वाचा-कर्मणा भ्रष्टाचार दूर करना चाहते हैं .तो हमें मन,वचन और कर्म से उन समाजवादियों का साथ देना होगा जो श्रम करने वाले के हक के अलम्बरदार हैं और जिन्होंने इस धरती के आधे भाग पर और आबादी के एक तिहाई भाग पर वास्तविक समाजवादी समाज की स्थापना की है.सिर्फ सिर मुण्डों को बदलने से कुछ नहीं होने वाला.सत्ता परिवर्तन मात्र व्यवस्था -परिवर्तन नहीं कर सकता .इसके लिए परिवर्तनकारी सोच और संलग्नता का होना परमावश्यक है.अन्यथा भ्रष्टाचार की जय बोलते हुए हमें शोषण व उत्पीडन में अपनी जिन्दगी गुजार देना ही परम्परा व विरासत में मिला है.भ्राश्ताचार पर प्रहार करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है!
११ मई २०१ ० को लखनऊ के एक स्थानीय अखबार में छपे लेख की स्कैन कापी संलग्न है (इमेज को बड़ा करने और स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए कृपया इमेज पर डबल क्लिक करें ) और श्री प्रदीप तिवारी के ई मेल की भी कृपया अवलोकन करें.:-
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (16.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
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ReplyDeleteनमस्कार सर ,
ReplyDeleteइस सुन्दर और सार्थक लेख के लिए अनेकानेक धन्यवाद |
सार्थक पोस्ट,भ्रष्टाचार की जड़ों का काटना होगा कुछ लोग तो इसकी छाया में ही जी रहे हैं |
ReplyDeleteअंदर तक पैठ बनी हुई है इस बुराई की ...... भ्रष्टाचार को मिटाने के प्रयास हर स्तर पर करने होंगें...
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक लेख के लिए धन्यवाद|
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