हिंदुस्तान,लखनऊ के 18 जूलाई 2011 के पृष्ठ 16 पर मुंबई से एक भ्रामक दास्तान छ्पी है कि,'अमीर और दानवीर होते जा रहे हैं भारतीय'।स्कैन कापी का अवलोकन करें :-
यह आंकलन अपर्ण सेठ और मधुर सिंघल ने 'भारत परोपकार रिपोर्ट 2011'मे 300 अमीरों पर किए सर्वे के आधार पर दिया है।उन्होने यह भी बताया है कि ,74 प्रतिशत दान कारपोरेट क्षेत्र और विदेशी फंड से आता है।यही वह रहस्य है जो इस धोखे के खेल को समझने के लिए काफी है।आय कर की धारा 80 एल आदि के अंतर्गत दान देने वाले को आय कर मे छूट मिल जाती है जिसका लाभ उठाने हेतु दान का यह स्वांग किया जाता है।इस दान का प्रयोग कहाँ होता है जब आप यह जानेंगे तब मानेंगे कि वस्तुतः यह न तो दान है और न ही परोपकार।
कारपोरेट क .पार्कों आदि को गोद लेकर उनका विकास करती हैं जिनमे झूले वगैरह लगाए जाते हैं घूमने का प्रबंध किया जाता है और इंनका प्रयोग समृद्ध वर्ग ही करता है।वहाँ गरीब और निम्न आय वर्ग के लोगों का प्रवेश संभव ही नहीं है,फिर वह कैसा दान हुआ? विदेशी कारपोरेट क .जो धन देती हैं वह राजनीतिक दृष्टिकोण उनके देश के पक्ष मे करने हेतु व्यय किया जाता है ।जब पी.एल.480 के तहत शराब हेतु सत्व खींचने के बाद गेंहू हमारे देश मे अमेरिका से आता था तो अमेरिकी विदेश मंत्रालय कालेजों के छात्रों को वहाँ की मेगजीन्स आदि मुफ्त मे वितरित करता था जाहिर है यह उनका दान था जो उनकी विचार-धारा फैलाने के काम आता था।
बाबरी आंदोलन के दौरान कार निर्माता क .फोर्ड ने 'फोर्ड फाउंडेशन' के फ़ंड से 'विश्व हिन्दू परिषद'को बेहद दान दिया था जो रथ-यात्राएं,ईंट-पूजन,शस्त्र-खरीद आदि मे व्यय हुआ था और नतीजा इतिहास मे दर्ज है ।इसी प्रकार आज कल 26 प्रतिशत दान देने वाले निजी लोग भी इस दान का व्यवसायिक और राजनीतिक लाभ लेते हैं,आयकर से छूट अलग प्राप्त हो जाती है।क्या यह सब दान है?
पहले हमारे देश मे जब व्यापारी दान देते थे तो वह उस धन से छायादार वृक्ष मार्ग के दोनों ओर लगवाते थे,प्याऊ लगवा कर यात्रियों की क्षुधा शांत करने का प्रबंध करते थे।तालाब खुदवाते थे,बावड़ियों का बंदोबस्त करते थे और इन सब चीजों से आम जनता को प्रत्यक्ष लाभ होता था,राहत मिलती थी।उन चीजों को तो दान की श्रेणी मे माना जा सकता है परंतु आयकर विभाग से छूट प्राप्त करने हेतु किया गया स्वांग दान नहीं है ।
हाल ही मे आपने पढ़ा कि दान किया खजाना मंदिरों मे छिपा पड़ा है और असंख्य जनता भूख से तड़प -तड़प कर अपनी जान गवां रही है,तमाम लोग अपने बच्चों से बाल-मजदूरी करा रहे हैं उनके पढ़ने का प्रबंध नहीं कर पा रहे हैं ।क्या ऐसा धन दान है?इसका पुण्य दाता को मिलेगा ?कदापि नहीं।वस्तुतः प्रत्येक व्यक्ति को हर वस्तु का दान करना भी नहीं चाहिए अन्यथा हानि ही होती है।एक दो उदाहरण देना चाहूँगा -
एक सेमी इंजीनियर साहब ने अपनी फैक्टरी के मंदिर मे अपनी श्रीमती जी के नाम का पत्थर लगवाने के चक्कर मे रु.1100/-का दान दिया जिसका नतीजा यह हुआ आर्मी स्कूल मे वाईस प्रिंसीपल उनकी श्रीमती जी का लौटते मे कार से एक्सीडेंट हुआ जिसमे सामने से टकराने वाले मोटर साईकिल सवार दंपति की मौत हो गई।भले ही गलती मरने वालों की थी इन लोगों को नौ वर्ष मुकदमे को झेलना और व्यर्थ की परेशाने तथा धन की तबाही का सामना करना पड़ा ।यह कैसा दान हुआ ?पुण्य मिला या दण्ड?लेकिन ठोकर खा कर भी अक्ल मे सुधार नहीं हुआ।
एक ई.ओ.सहाब ने अपने साढू की नकल मे एक देवी मंदिर मे रु .101/-चढ़ाये नतीजा?उनकी माता जी गंभीर बीमार हुयीं तथा परेशानी और अपव्यय का सामना करना पड़ा ।उनके साढू साहब तो अक्सर दान करते ही रहते थे और असमय केंसर से मौत को गले लगा चुके हैं और परेशानी उनके बच्चों एवं पत्नी को है ।
एक ई .ई .साहब पहले गरीबों को भोजन आदि खूब कराते थे उनकी पत्नी भी मांगने वालों को भोजन या सीधा देती रहती थीं । नतीजा उनके साथ लूट-पाट की घटनाएँ होती रहती थीं । अपने आगरा के कार्यकाल मे वह मेरे संपर्क मे आए थे ,मैंने उन्हें तमाम चीजों के दान का निषेद्ध बताया तब से नहीं कर रहे हैं । अब यहाँ लखनऊ मे भी वह मेरे संपर्क मे हैं। गोमती नगर मे अपने मकान का भूमि-पूजन उन्होने कर्मकांडी से नहीं मुझसे ही कराया था।
आगे किसी लेख मे किस व्यक्ति को किस वस्तु का दान नहीं देना चाहिए यह स्पष्ट करने का प्रयास करूंगा ।
यह आंकलन अपर्ण सेठ और मधुर सिंघल ने 'भारत परोपकार रिपोर्ट 2011'मे 300 अमीरों पर किए सर्वे के आधार पर दिया है।उन्होने यह भी बताया है कि ,74 प्रतिशत दान कारपोरेट क्षेत्र और विदेशी फंड से आता है।यही वह रहस्य है जो इस धोखे के खेल को समझने के लिए काफी है।आय कर की धारा 80 एल आदि के अंतर्गत दान देने वाले को आय कर मे छूट मिल जाती है जिसका लाभ उठाने हेतु दान का यह स्वांग किया जाता है।इस दान का प्रयोग कहाँ होता है जब आप यह जानेंगे तब मानेंगे कि वस्तुतः यह न तो दान है और न ही परोपकार।
कारपोरेट क .पार्कों आदि को गोद लेकर उनका विकास करती हैं जिनमे झूले वगैरह लगाए जाते हैं घूमने का प्रबंध किया जाता है और इंनका प्रयोग समृद्ध वर्ग ही करता है।वहाँ गरीब और निम्न आय वर्ग के लोगों का प्रवेश संभव ही नहीं है,फिर वह कैसा दान हुआ? विदेशी कारपोरेट क .जो धन देती हैं वह राजनीतिक दृष्टिकोण उनके देश के पक्ष मे करने हेतु व्यय किया जाता है ।जब पी.एल.480 के तहत शराब हेतु सत्व खींचने के बाद गेंहू हमारे देश मे अमेरिका से आता था तो अमेरिकी विदेश मंत्रालय कालेजों के छात्रों को वहाँ की मेगजीन्स आदि मुफ्त मे वितरित करता था जाहिर है यह उनका दान था जो उनकी विचार-धारा फैलाने के काम आता था।
बाबरी आंदोलन के दौरान कार निर्माता क .फोर्ड ने 'फोर्ड फाउंडेशन' के फ़ंड से 'विश्व हिन्दू परिषद'को बेहद दान दिया था जो रथ-यात्राएं,ईंट-पूजन,शस्त्र-खरीद आदि मे व्यय हुआ था और नतीजा इतिहास मे दर्ज है ।इसी प्रकार आज कल 26 प्रतिशत दान देने वाले निजी लोग भी इस दान का व्यवसायिक और राजनीतिक लाभ लेते हैं,आयकर से छूट अलग प्राप्त हो जाती है।क्या यह सब दान है?
पहले हमारे देश मे जब व्यापारी दान देते थे तो वह उस धन से छायादार वृक्ष मार्ग के दोनों ओर लगवाते थे,प्याऊ लगवा कर यात्रियों की क्षुधा शांत करने का प्रबंध करते थे।तालाब खुदवाते थे,बावड़ियों का बंदोबस्त करते थे और इन सब चीजों से आम जनता को प्रत्यक्ष लाभ होता था,राहत मिलती थी।उन चीजों को तो दान की श्रेणी मे माना जा सकता है परंतु आयकर विभाग से छूट प्राप्त करने हेतु किया गया स्वांग दान नहीं है ।
हाल ही मे आपने पढ़ा कि दान किया खजाना मंदिरों मे छिपा पड़ा है और असंख्य जनता भूख से तड़प -तड़प कर अपनी जान गवां रही है,तमाम लोग अपने बच्चों से बाल-मजदूरी करा रहे हैं उनके पढ़ने का प्रबंध नहीं कर पा रहे हैं ।क्या ऐसा धन दान है?इसका पुण्य दाता को मिलेगा ?कदापि नहीं।वस्तुतः प्रत्येक व्यक्ति को हर वस्तु का दान करना भी नहीं चाहिए अन्यथा हानि ही होती है।एक दो उदाहरण देना चाहूँगा -
एक सेमी इंजीनियर साहब ने अपनी फैक्टरी के मंदिर मे अपनी श्रीमती जी के नाम का पत्थर लगवाने के चक्कर मे रु.1100/-का दान दिया जिसका नतीजा यह हुआ आर्मी स्कूल मे वाईस प्रिंसीपल उनकी श्रीमती जी का लौटते मे कार से एक्सीडेंट हुआ जिसमे सामने से टकराने वाले मोटर साईकिल सवार दंपति की मौत हो गई।भले ही गलती मरने वालों की थी इन लोगों को नौ वर्ष मुकदमे को झेलना और व्यर्थ की परेशाने तथा धन की तबाही का सामना करना पड़ा ।यह कैसा दान हुआ ?पुण्य मिला या दण्ड?लेकिन ठोकर खा कर भी अक्ल मे सुधार नहीं हुआ।
एक ई.ओ.सहाब ने अपने साढू की नकल मे एक देवी मंदिर मे रु .101/-चढ़ाये नतीजा?उनकी माता जी गंभीर बीमार हुयीं तथा परेशानी और अपव्यय का सामना करना पड़ा ।उनके साढू साहब तो अक्सर दान करते ही रहते थे और असमय केंसर से मौत को गले लगा चुके हैं और परेशानी उनके बच्चों एवं पत्नी को है ।
एक ई .ई .साहब पहले गरीबों को भोजन आदि खूब कराते थे उनकी पत्नी भी मांगने वालों को भोजन या सीधा देती रहती थीं । नतीजा उनके साथ लूट-पाट की घटनाएँ होती रहती थीं । अपने आगरा के कार्यकाल मे वह मेरे संपर्क मे आए थे ,मैंने उन्हें तमाम चीजों के दान का निषेद्ध बताया तब से नहीं कर रहे हैं । अब यहाँ लखनऊ मे भी वह मेरे संपर्क मे हैं। गोमती नगर मे अपने मकान का भूमि-पूजन उन्होने कर्मकांडी से नहीं मुझसे ही कराया था।
आगे किसी लेख मे किस व्यक्ति को किस वस्तु का दान नहीं देना चाहिए यह स्पष्ट करने का प्रयास करूंगा ।
आपका यह लेख दान की सच्चाई को उजागर करता है...विचारणीय है.
ReplyDeleteहमेशा की तरह विचारणीय....
ReplyDeleteदान के वास्तविक चहरे को आपने उजागर किया है ! मैं भी यही मानता हूँ जो दान अपने निजी हित के लिए किया जाय और जिसका फायदा ज़रूरतमंद को नहीं मिले वह कैसा दान !
ReplyDeleteआभार !
माथुर जी! आपको बहुत-बहुत बधाई। दान के विषय में औचित्य एवं अनौचित्य की संक्षित्प किन्तु गर्भित जानकारी दी है। यह विचार जीवन में उतारने वाला है।
ReplyDeleteआपका हर आलेख पढ़ना मुझे अच्छा लगता है। विचारणीय पोस्ट।
ReplyDelete