I N DIA IS SOVEREIGN DEMOCRATIC SOCIALIST REPUBLIC-ये संविधान के शब्द हैं। 15 अगस्त 2011 की रात 8-9 के मध्य रोशनी बन्द करने का आह्वान है उस शख्स का जिसका इस संविधान मे विश्वास बिलकुल भी नहीं है। उस शख्स के अभियान को खुला समर्थन दिया है अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता विक्टोरिया नूलैंड ने । वाशिंगटन D C मे संवाददाताओं से उन्होने कहा-वह लोकतान्त्रिक भारत से उम्मीद करती हैं कि वह शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनकारियों के खिलाफ संयम बरतेगा। इस शख्स के वकील और सहयोगी का कहना है-“अमेरिकी टिप्पणी मे गलत क्या है”। देखिये हिंदुस्तान,लखनऊ (14-8-2011)प्र-12 पर छपे समाचार की स्कैन-
अब देखिये उसी अखबार के 12-8-2011 के प्र 16 पर छ्पे इस स्कैन कापी को-
जिस सरकार से उसके अपने देश के नागरिक असंतुष्ट हैं उसके विदेश विभाग की अधिकारी भारत सरकार को निर्देश जारी करें और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वकील साहब उसका समर्थन करें ,यह सब किस तथ्य का द्योतक है?
यह सब इसलिए है क्योंकि जब पाकिस्तान मे घुस कर वहाँ की सरकार की इजाजत लिए बगैर ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी सेना ने मार डाला तो उसका प्रतिवाद करने की बजाए हमारे देशवासियों ने समर्थन किया था। अमेरिका ने दिखा दिया कि वह न पाकिस्तान की न भारत की ‘सार्वभौमिकता’की परवाह करता है। सरदार भगत सिंह ,चंद्रशेखर आजाद ,बटुकेश्वर दत्त ,अशफाक़ उल्लाह खान ,लाहिड़ी बंधुओं,रामप्रसाद ‘बिस्मिल’आदि अनगिनत क्रांतिकारियों की शहादत तथा राजेन्द्र प्रसाद, महात्मा गांधी,जवाहर लाल नेहरू,लाला लाजपतराय ,बिपिन चंद्र पाल,बाल गंगा धर ‘तिलक’ नेताजी सुभाष चंद्र बॉस आदि असंख्य नेताओं के त्याग एवं बलिदान से प्राप्त आजादी के दिन-15 अगस्त 2011 को सजावट-रोशनी करने की बजाए अंधकार-शोक-ब्लैक आउट करने का आह्वान करके अन्ना हज़ारे ने ‘राष्ट्रद्रोह’का परिचय दिया था अतः सरकार को चाहिए था कि उन्हें ‘राष्ट्रद्रोह’के आरोप मे गिरफ्तार करके मुकदमा चलाती। लेकिन वर्ल्ड बैंक और I M F के चहेते प्रधानमंत्री की सरकार ने अन्ना साहब को गिरफ्तार किया सरकारी आदेश न मानने की धारा 65 मे जो असंवैधानिक ठहराई जा सकती थी अतः उन्हें उन्हीं की शर्तों पर छोड़ दिया गया ,यह प्रमाण है सरकार और अन्ना की मिलीभगत का जिसे पूर्ण अमेरिकी शह प्राप्त है।
बेहद दुख की बात है कि हमारे देश मे भेड़-चाल के चलते पढे-लिखे,समझदार लोगों ने भी साजिश को अनदेखा करके ‘अन्ना-पूजा’ चालू कर दी। आज अपने देश की सार्वभौमिकता की परवाह किसी को भी नहीं है न ही आज की सरकार को और न ही जनता को। लेकिन जागरूक लोगों ने अपने कर्तव्य का पालन जरूर किया है,देखिये पार्टी जीवन से साभार लिए इन लेखों की स्कैन कापियाँ-
अमेरिका ने दिखा दिया कि वह न पाकिस्तान की न भारत की ‘सार्वभौमिकता’की परवाह करता है।
ReplyDeleteसच है... उन्हें भी सिर्फ अपने स्वार्थों की पूर्ति करना है... बेहतरीन विश्लेषण
यह बात सही है की जन लोकपाल सब कुछ ठीक नहीं कर देगा..पर मुस्किल यही तो है की जो काम नेताओं को कर देना था अब तक..वोह हो नहीं सका है...अब इस समय इस आन्दोलन विरोध करना उचित नहीं होगा...इस आन्दोलन की नक्सल से तुन्लना करना भी गलत है...पर सवाल यह है की पहल कैसे हो...कौन करे....अब तक कोई भी जनता को कोई इतने सही तरीके से आन्दोलन में नहीं जोड़ पाया है....दूसरी बात यह है की यह सोचना गलत है की अगर बिज़नस हाउस किसी आन्दोलन को समर्थन दे रहें है तो आन्दोलन गलत है....क्या भारत का बिज़नस हाउस सही लोगो को चंदा नहीं देता.....?
ReplyDeleteआज अपने देश की सार्वभौमिकता की परवाह किसी को भी नहीं है न ही आज की सरकार को और न ही जनता को।
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने. ऐसा लगता है कि सब भेड़चाल के आदी हैं. सचमुच दुख होता है.
अगर आप की बात मान भी ली जाय तो केवल इतना और बता दीजिये की जनलोकपाल यदि आ जाये तो फायदा किसका होगा. आज़ादी के बाद भी जहाँ भारत के सत्तर प्रतिशत लोगों की रातें अँधेरे में ही कटती है . जिस दिन देश आज़ाद हुआ था उस दिन भी महात्मा गाँधी अँधेरे में ही चुपचाप थे .
ReplyDeleteअगर आपको प्रेमचन्द की कहानिया पसंद हैं तो आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है |
ReplyDeletehttp://premchand-sahitya.blogspot.com/
रेखा जी जन-लोकपाल हो या सरकारी लोकपाल ये दोनों कारपोरेट घरानों का फाइदा पहुंचाने वाले हैं। शक्तिशाली 'लोकपाल'के गठन की आवश्यकता है जो आम गरीब-मेहनतकश जनता को लाभ दिला सके। जिंका कहीं कोई जिक्र तक नहीं है और अन्ना की भीड़ भी गुमराह कर बटोरे नौजवानों की है। फिर ये लोग एन जी ओ को लोकपाल के आधीन रखने पर क्यों नहीं राजी हैं?इस पर भी तो गौर कीजिये।
ReplyDelete