जब यशवन्त 6 या 7 वर्ष का रहा होगा तब उसके लिए यह निबंध लिख कर दिया था जो उस समय की परिस्थितियों के आधार पर तैयार किया था-
मै न तो व्यंग्य लेखक हूँ ,न पत्रकार न राजनीतिज्ञ फिर कैसी काल्पनिक बातें कर रहा हूँ-आप हँसेंगे। जी हाँ 07 दिसंबर 1990 के पंजाब केसरी मे "निबन्ध लिखो" शीर्षक से श्री मदन गुप्ता सपाटू का व्यंग्य पढ़ कर मुझे निबन्ध लिखने का शौक चररा आया। मेरी जान-पहचान चोपड़ा जी (श्री विजय कुमार चोपड़ा'निर्बाध') से नहीं है वरना उन्हें ही यह निबन्ध 'पंजाब केसरी'मे छापने को भेजता। वैसे आगे बड़ी कक्षाओं मे ऐसे निबन्ध मुझे भी लिखने ही होंगे,सोचा क्यों न अभी से अभ्यास कर लिया जाये। वैसे मज़ाक करना तो बच्चों का धर्म है ही।सो पढ़िये मेरा बाल मज़ाक-
देश के सामने विषम परिस्थितियों को देखते हुये राष्ट्रपति महोदय ने सरकार बर्खास्त करके लोक-सभा भंग कर दी होती और मुझे प्रधान मंत्री बना दिया होता तो मै दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर एक आदर्श सरकार का गठन करता। मित्र जी को वित्त मंत्री, जेनरल अरोड़ा को रक्षा मंत्री,भूषण जी को गृह मंत्री बना कर मै विकट समस्याओं से निश्चित हो जाता। महिलाओं और मजदूरों के कल्याण के ख्याल से सुभाषिनी अली को 'श्रम एवं कल्याण मंत्री'बना कर समाज की सबसे बड़ी समस्याओं पर भी पार पा लेता। सभी विश्वविद्यालयों और बड़े कालेजों को तीन साल के लिए बन्द कर देता इसलिए मेरी सरकार मे कोई शिक्षा मंत्री नहीं होता।
मै अपने पास सिर्फ सूचना प्रसारण मंत्रालय रखता ,इसी विभाग मे गुप्तचर विभाग का विलय कर देता। महत्वपूर्ण सूचना का स्त्रोत तो हमारे गुप्तचर ही होते हैं। सूचना विभाग से सबसे पहले संकीर्ण सांप्रदायिक मनोवृत्ति के कर्मचारियों की छटनी कर देता। हमारे देश मे फैले हाल के सांप्रदायिक दंगों के पीछे हमारे दूरदर्शन की भी गलत भूमिका रही है। दूरदर्शन ने ही निर्दोष छात्रों को मण्डल कमीशन का विरोध करके मरने के लिए उकसाया था। अतः दोषी अधिकारी और कर्मचारी जायज सजा के पात्र हैं।
बढ़ रही मंहगाई,जमाखोरी और काला बाजारी को दूर करने के लिए तुरंत सौ और पचास के नोटों को रद्द कर देता। बीस बड़े औढयोगिक ग्रुपों को अविलंब सरकारी नियंत्रण मे ले लेता। टाटा,बिड़ला आदि बड़े घरानों को किसी भी प्रकार का कोई मुआवजा न दिलवाता।
बेरोजगारी दूर करने के लिए सब जगह कंप्यूटर का प्रयोग बन्द करके नए नौजवानों को लगाने का आदेश देना मेरे सरकार की सबसे बड़ी कारवाई होती। सेना और पुलिस की सेवाओं को छोड़ कर सब सरकारी और गैर सरकारी सेवाओं से कंप्यूटर हटा दिये जाते।
खाड़ी संकट और आसन्न तृतीय विश्वयुद्ध को देखते हुये अनिवार्य सैनिक शिक्षा लागू कर देता । सब भारतीयों को एक रखने मे सैन्य-शिक्षा अमूल्य योग देती। महात्मा विश्वनाथ प्रताप सिंह को विदेश मंत्री का महत्वपूर्ण विभाग सौंप देता। महावीर ,बुद्ध और गांधी का देश होने के कारण हम अहिंसा के पुजारी हैं और मेरी सरकार सभी युद्ध रत देशों से तुरंत व्यापारिक और आर्थिक संबन्ध विच्छेद कर लेती।
आत्म-निर्भरता,सुदेशी हमारी सरकार के मूल मंत्र होते। सारे देश मे कुटीर उद्द्योगो का जाल फैलवा देता। कृषि मे महत्वपूर्ण सुधार करके जमीन उसकी जो जोते के आधार पर बँटवा देता। इस तरह बड़े जमींदारों और उदद्योगपतियों का शोषण समाप्त करा देता।
उत्पादक और उपभोक्ता के मध्य सीधा संपर्क स्थापित करने के लिए मेरी सरकार उत्पादकों और उपभोक्ताओं की सहकारी समितियों को वितरण प्रणाली मे स्थान देती। इससे बिचौलियों का सफाया हो जाता। सारी जनता सुखी हो जाती---काश मै प्रधानमंत्री होता!
(यह लेख 1990-91मे उस समय के व्यक्तित्वों और परिस्थितियों के अनुसार लिखा गया था ,बिना किसी संशोधन के अब प्रकाशित किया जा रहा है क्योंकि इधर कुछ ब्लागर्स ने व्यंग्यात्मक रूप से लेख लिख कर प्रधानमंत्री न बनने की घोषणा की है और मै उस समय की परिस्थितियों मे छोटे बच्चे के माध्यम से प्रधानमंत्री को क्या जन-हित मे करना चाहिए था यह बताना चाहता था और मुझे लगता है कि पात्र बदल कर अब भी वैसा ही कुछ किया जाना चाहिए । )
मै न तो व्यंग्य लेखक हूँ ,न पत्रकार न राजनीतिज्ञ फिर कैसी काल्पनिक बातें कर रहा हूँ-आप हँसेंगे। जी हाँ 07 दिसंबर 1990 के पंजाब केसरी मे "निबन्ध लिखो" शीर्षक से श्री मदन गुप्ता सपाटू का व्यंग्य पढ़ कर मुझे निबन्ध लिखने का शौक चररा आया। मेरी जान-पहचान चोपड़ा जी (श्री विजय कुमार चोपड़ा'निर्बाध') से नहीं है वरना उन्हें ही यह निबन्ध 'पंजाब केसरी'मे छापने को भेजता। वैसे आगे बड़ी कक्षाओं मे ऐसे निबन्ध मुझे भी लिखने ही होंगे,सोचा क्यों न अभी से अभ्यास कर लिया जाये। वैसे मज़ाक करना तो बच्चों का धर्म है ही।सो पढ़िये मेरा बाल मज़ाक-
देश के सामने विषम परिस्थितियों को देखते हुये राष्ट्रपति महोदय ने सरकार बर्खास्त करके लोक-सभा भंग कर दी होती और मुझे प्रधान मंत्री बना दिया होता तो मै दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर एक आदर्श सरकार का गठन करता। मित्र जी को वित्त मंत्री, जेनरल अरोड़ा को रक्षा मंत्री,भूषण जी को गृह मंत्री बना कर मै विकट समस्याओं से निश्चित हो जाता। महिलाओं और मजदूरों के कल्याण के ख्याल से सुभाषिनी अली को 'श्रम एवं कल्याण मंत्री'बना कर समाज की सबसे बड़ी समस्याओं पर भी पार पा लेता। सभी विश्वविद्यालयों और बड़े कालेजों को तीन साल के लिए बन्द कर देता इसलिए मेरी सरकार मे कोई शिक्षा मंत्री नहीं होता।
मै अपने पास सिर्फ सूचना प्रसारण मंत्रालय रखता ,इसी विभाग मे गुप्तचर विभाग का विलय कर देता। महत्वपूर्ण सूचना का स्त्रोत तो हमारे गुप्तचर ही होते हैं। सूचना विभाग से सबसे पहले संकीर्ण सांप्रदायिक मनोवृत्ति के कर्मचारियों की छटनी कर देता। हमारे देश मे फैले हाल के सांप्रदायिक दंगों के पीछे हमारे दूरदर्शन की भी गलत भूमिका रही है। दूरदर्शन ने ही निर्दोष छात्रों को मण्डल कमीशन का विरोध करके मरने के लिए उकसाया था। अतः दोषी अधिकारी और कर्मचारी जायज सजा के पात्र हैं।
बढ़ रही मंहगाई,जमाखोरी और काला बाजारी को दूर करने के लिए तुरंत सौ और पचास के नोटों को रद्द कर देता। बीस बड़े औढयोगिक ग्रुपों को अविलंब सरकारी नियंत्रण मे ले लेता। टाटा,बिड़ला आदि बड़े घरानों को किसी भी प्रकार का कोई मुआवजा न दिलवाता।
बेरोजगारी दूर करने के लिए सब जगह कंप्यूटर का प्रयोग बन्द करके नए नौजवानों को लगाने का आदेश देना मेरे सरकार की सबसे बड़ी कारवाई होती। सेना और पुलिस की सेवाओं को छोड़ कर सब सरकारी और गैर सरकारी सेवाओं से कंप्यूटर हटा दिये जाते।
खाड़ी संकट और आसन्न तृतीय विश्वयुद्ध को देखते हुये अनिवार्य सैनिक शिक्षा लागू कर देता । सब भारतीयों को एक रखने मे सैन्य-शिक्षा अमूल्य योग देती। महात्मा विश्वनाथ प्रताप सिंह को विदेश मंत्री का महत्वपूर्ण विभाग सौंप देता। महावीर ,बुद्ध और गांधी का देश होने के कारण हम अहिंसा के पुजारी हैं और मेरी सरकार सभी युद्ध रत देशों से तुरंत व्यापारिक और आर्थिक संबन्ध विच्छेद कर लेती।
आत्म-निर्भरता,सुदेशी हमारी सरकार के मूल मंत्र होते। सारे देश मे कुटीर उद्द्योगो का जाल फैलवा देता। कृषि मे महत्वपूर्ण सुधार करके जमीन उसकी जो जोते के आधार पर बँटवा देता। इस तरह बड़े जमींदारों और उदद्योगपतियों का शोषण समाप्त करा देता।
उत्पादक और उपभोक्ता के मध्य सीधा संपर्क स्थापित करने के लिए मेरी सरकार उत्पादकों और उपभोक्ताओं की सहकारी समितियों को वितरण प्रणाली मे स्थान देती। इससे बिचौलियों का सफाया हो जाता। सारी जनता सुखी हो जाती---काश मै प्रधानमंत्री होता!
(यह लेख 1990-91मे उस समय के व्यक्तित्वों और परिस्थितियों के अनुसार लिखा गया था ,बिना किसी संशोधन के अब प्रकाशित किया जा रहा है क्योंकि इधर कुछ ब्लागर्स ने व्यंग्यात्मक रूप से लेख लिख कर प्रधानमंत्री न बनने की घोषणा की है और मै उस समय की परिस्थितियों मे छोटे बच्चे के माध्यम से प्रधानमंत्री को क्या जन-हित मे करना चाहिए था यह बताना चाहता था और मुझे लगता है कि पात्र बदल कर अब भी वैसा ही कुछ किया जाना चाहिए । )
कुछ प्रयास,चाहे जितने विवादित हों, ज़रूरी हैं।
ReplyDeleteजिस समय को आप उद्धृत कर रहे हैं उसके हम भी साक्षी हैं. खूब लिखा है. उस समय के आक्रोश का यही स्वरूप था. बढ़िया.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteत्योहारों की यह श्रृंखला मुबारक ||
बहुत बहुत बधाई ||