Monday, November 28, 2011

1991 के अप्रकाशित लेख-(3 )/ 'मानवता का हत्यारा -जार्ज बुश' ------ विजय राजबली माथुर

सन 1991 मे राजनीतिक परिस्थितिए कुछ इस प्रकार तेजी से मुड़ी कि हमारे लेख जो एक अंक मे एक से अधिक संख्या मे 'सप्त दिवा साप्ताहिक',आगरा के प्रधान संपादक छाप देते थे उन्हें उनके फाइनेंसर्स जो फासिस्ट  समर्थक थे ने मेरे लेखों मे संशोधन करने को कहा। मैंने अपने लेखों मे संशोधन करने के बजाए उनसे वापिस मांग लिया जो अब तक कहीं और भी प्रकाशित नहीं कराये थे उन्हें अब इस ब्लाग पर सार्वजनिक कर रहा हूँ और उसका कारण आज फिर देश पर मंडरा रहा फासिस्ट तानाशाही का खतरा है। जार्ज बुश,सद्दाम हुसैन आदि के संबंध मे उस वक्त के हिसाब से लिखे ये लेख ज्यों के त्यों उसी  रूप मे प्रस्तुत हैं-

'मानवता का हत्यारा -जार्ज बुश'

वह दिन अब दूर नहीं जब आज के नौनिहालों की संताने डाक्ट्रेट हासिल करने के लिए अपने शोध-ग्रन्थों मे अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश को मानवता का निर्मम संहार करने वाला एक जघन्य अपराधी और क्रूरतम -हत्यारा लिख कर वर्तमान काल का ऐतिहासिक मूल्यांकन करेंगी। काश साम्राज्यवादी लूट के सौदागरों का सरगना अमेरिका शोषण-प्रवृत्ति के लोभ को त्याग सकता और अपने राष्ट्रपति की भावी छीछालेदर को बचा सकता! 


आज नहीं तो कल वर्ना परसों तो तृतीय विश्वमहायुद्ध अब छिड़ने ही जा रहा है। पूंजीवादी प्रेस और आंध्राष्ट्रीयतावादी ईराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को इसके लिए उत्तरदाई ठहरा रहे हैं। पश्चिम के साम्राज्यवादी प्रेस ने तो प्रेसीडेंट सद्दाम की तुलना नाजी हिटलर से की है। परंतु वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है।

सिक्किम ने वैधानिक रूप से भारत मे अपना विलय कर लिया था परंतु पुर्तगाली साम्राज्य से मुक्त कराने के लिए 1961 मे हमे भी गोवा मे बल -प्रयोग करना पड़ा था। इसी प्रकार कुवैत जो मूलतः ईराकी गणराज्य का अभिन्न अंग था,पाश्चात्य साम्राज्यवादी लुटेरे देशों की दुरभि संधि से ईराक से अलग किया गया था और तथाकथित स्वतन्त्रता के लबादे मे साम्राज्यवाड़ियों का ही उपनिवेश था। अतः 02 अगस्त 1990 को ईराक ने  बलपूर्वक  पुनः कुवैत का ईराक मे विलय कर लिया। एक प्रकार से यह पुराने षड्यंत्र को विफल किया गया था।

संयुक्त राष्ट्रसंघ दोषी-

जिस प्रकार लीग आफ नेशन्स की गलतियों से 1939 मे जर्मनी द्वारा पोलैंड पर आक्रमण करने से द्वितीय विश्वमहायुद्ध भड़का था;ठीक उसी प्रकार आज भी संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा ईराक को कुवैत न छोडने पर युद्ध का आल्टीमेटम देने और अमेरिका द्वारा उस पर अमल करने की आड़ मे ईराक पर हमला करने से तृतीय विश्वमहायुद्ध महाप्रलय लाने हेतु छिड़ने की संभावना प्रबल है।

जब लीबिया पर अमेरिकी राष्ट्रपति बमबारी की ;राष्ट्रसंघ मौन रहा,जब पनामा मे हमला कर वहाँ के राष्ट्रपति को कैद करके अमेरिका ले जाया गया,राष्ट्रसंघ मौन रहा। इससे पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर ने फाकलैंड द्वीप पर हमला करके उसे अर्जेन्टीना से छीन लिया राष्ट्रसंघ मौन रहा। इज़राईल लगातार राष्ट्रसंघ प्रस्तावों की अवहेलना करके जार्डन के गाजा पट्टी इत्यादि इलाकों को जबरन हथियाए बैठा है-राष्ट्रसंघ नपुसंक बना रहा। सिर्फ ईराक का राष्ट्रीय एकीकरण राष्ट्रसंघ की निगाह मे इसलिए गलत है कि,अमेरिका के आर्थिक और साम्राज्यवादी हितों को ठेस पहुँच रही है।

बाज़ारों की लड़ाई है-

ब्रिटेन ,फ्रांस,पुर्तगाल और हालैण्ड सम्पूर्ण विश्व पर अपने कुटिल व्यापार और शोषण के सहारे प्रभुत्व जमाये हुये थे। यूरोप मे भी और अपने उपनिवेशों मे भी अपने-अपने बाजार फैलाने के लिए ये परस्पर सशस्त्र संघर्ष करते रहते थे। परंतु जर्मनी द्वारा प्रिंस बिस्मार्क के प्रधान् मंत्रित्व और विलियम क़ैसर द्वितीय के शासन मे तीव्र औद्योगिक विकास कर लेने के बाद उसे भी अपना तैयार माल बेचने के लिए 'बाजार' की आवश्यकता थी। इसलिए वह पहले से स्थापित साम्राज्यवाड़ियों का साझा शत्रु था। 'प्रशिया 'प्रांत को जर्मनी से निकाल देने पर समस्त साम्राज्यवादी प्रतिद्वंदी इकट्ठे हो कर जर्मनी पर टूट पड़े और 1914 मे प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ गया। पराजित जर्मनी को बाँट डाला गया। विश्व शांति के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन की पहल पर 'लीग आफ नेशन्स'की स्थापना हुई।


द्वितीय विश्व महायुद्ध भी बाजारू टकराव था-

अमेरिका स्वंय लीग का सदस्य नहीं बना। पराजित जर्मनी मे हर एडोल्फ़ हिटलर,इटली मे बोनीटो मुसोलिनी और जापान मे प्रधानमंत्री टोजो के नेतृत्व मे द्रुत गति से औद्योगिक विकास हुआ और ये तीनों अमेरिका,ब्रिटेन व फ्रांस के समकक्ष आ गए परंतु बाज़ारों पर कब्जा न कर पाये। इटली ने 'अबीसीनिया' पर आक्रमण कर अपने साम्राज्य मे मिला लिया। लीग लुंज-पुंज रहा। 1939 मे जर्मनी ने अपने पुराने भाग पोलैंड पर आक्रमण कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया जिसकी समाप्ती 1945 मे जापान के हीरोशिमा और नागासाकी पर अणु-बमों द्वारा अमेरिकी प्रहार से हुई। पुनः विश्व शांति के लिए 'संयुक्त राष्ट्रसंघ' की स्थापना हुई जिसमे विजेता पाँच राष्ट्रों -अमेरिका,ब्रिटेन,फ्रांस,रूस और चीन को विशेषाधिकार -वीटो दे कर व्यवहार मे इसे पंगु बना दिया गया। इज़राईल के विरुद्ध यू एन ओ का कुछ न कर पाना अमेरिकी वीटो का ही करिश्मा हा।

तृतीय विश्वयुद्ध का प्रयास भी साम्राज्यवादी बाजार की रक्षा का प्रयास है-

ईराक द्वारा विश्व के पांचवे भाग का तेल उत्पादक क्षेत्र वापिस अपने देश मे मिलाने से साम्राज्यवादी लुटेरे देशों और उनके आका अमेरिका को अपने हाथ से विश्व बाजार खिसकता नज़र आया और उसी बाज़ार को बचाने के असफल प्रयास मे अमेरिका समस्त मानवता को विनष्ट करने पर तुला हुआ है। पैसा नहीं तो जी कर क्या करेगा पैसों वाला और अकेला क्यों मारे सभी को ले मरेगा अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश।

खाड़ी देशों से प्राप्त होने वाला तेल एक ऐसा ऊर्जा स्त्रोत है जिस पर आज का सम्पूर्ण औद्योगिक विकास व आर्थिक प्रगति निर्भर हो गई है। कल-कारखानों के लिए ईधन हो या विद्युत जेनेरेटर के लिए अथवा खेतों के पंप सेटों के लिए तेल ही की आवश्यकता है। रेलें,यान,पोत सभी को तो तेल चाहिए। अब तक साम्राज्यवादी देश तेल का अधिकांश भाग अपने दबदबे से हड़प लेते थे। राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने ईराक की सत्ता समहालते ही साम्राज्यवाड़ियों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया और ईराक को एक प्रगतिशील-समृद्ध -सुदृढ़ राष्ट्र का स्वरूप प्रदान किया जबकि,अन्य खाड़ी देश अब भी साम्राज्यवाड़ियों के पिछलग्गू हैं। कुवैत लेकर सद्दाम ने साम्राज्यवाड़ियों का बाजार छीन लिया अतः उन पर युद्ध थोपा जा रहा है,उद्देश्य है ईराक मे तख़्ता पलट अथवा पराजय से साम्राज्यवाड़ियों का विश्व बाजार चंगुल मे फंसाए रखा जाये। (मेरा 1991 मे यह आंकलन गलत नहीं था ,बाद मे ऐसा ही हुआ और अभी-अभी लीबिया मे भी गद्दाफ़ी के खात्मे से इसकी पुष्टि होती है। )


महा विनाश होगा-

विश्व मे अब तक उपलब्ध परमाणु भंडार मे इतनी संहारक क्षमता है कि सम्पूर्ण प्रथ्वी को छप्पन (56)बार समूल विनष्ट किया जा सकता है। शायद परमाणु युद्ध अपने पूरे यौवन के साथ न भी खेला जाये । परंतु युद्ध प्रारम्भ हो जाने पर ईराक समर्थक जारदन,अल्जीरिया आदि राष्ट्र व विरोधी सऊदी अरब,मिश्र और उनके गुरुघंटाल अमेरिका,ब्रिटेन आदि शत्रु देशों के तेल-कूपों पर प्रहार करेंगे। समस्त खाड़ी क्षेत्र जन-संख्या से वीरान तो हो ही जाएगा उनका भूमिगत तेल-भंडार ज्वालामुखी के विस्फोटों के साथ जल उठेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार तब कई वर्षों तक वर्षा नहीं होगी और जब होगी तो अम्लीय जिससे भूमि ऊसर हो जाएगी। अकाल और महामारियों से जन-विनाश होगा। अनुमान है कि,तृतीय महायुद्ध जब भी होगा उसकी समाप्ती होते-होते विश्व की एक चौथाई आबादी ही बचेगी। यदि परमाणु युद्ध भी हुआ तो वायु मण्डल मे ओज़ोन गैस की परतें फट जाएंगी जिससे सूर्य का प्रकाश सीधे प्रथ्वी पर पद कर समस्त जीवों का दहन कर देगा और बचेगा ज्वालामुखी का लावा,खंधर,वीरान प्रथवी मण्डल तब कहाँ साम्राज्यवाद होगा?कहाँ बाजार?और कहाँ जार्ज बुश और उनका अमेरिका। क्या पृथ्वी  पर मानवता का संचार होने की कोई संभावना है?

5 comments:

  1. यह बाज़ारों की ही लड़ाई है, यह प्रत्यक्ष सत्य है. बढ़िया आलेख.

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  2. कितने तथ्य और इतिहास की जानकारी मिल गई आपकी इस पोस्ट से।
    आभार इस प्रस्तुति के लिए।

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  3. बिलकुल सही..... व्यावसायिक सोच ने ही यह परिस्थितियां पैदा की हैं......

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  4. सच कहा...जानकारी देती उत्तम पोस्ट..आभार

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