(सिकन्दरा,आगरा मे अक्तूबर 1993 मे लिए सामूहिक चित्र से 'शालिनी माथुर' ) |
04 जनवरी 1959 को साँय 06 बजे मैनपुरी मे जन्मी शालिनी की मूल जन्म पत्री तो कभी दिखाई ही नहीं गई ,बताया गया कि खो गई है परंतु जो हस्त-लिखित प्रतिलिपि हमारे यहाँ भेजी गई थी उसका विवरण यह है-
रविवार,कृष्ण पक्ष दशमी,पूष मास,विक्रमी संवत 2015,'स्वाती नक्षत्र'।
लग्न-मकर और उसमे 'शुक्र'।
तृतीय भाव मे- 'मीन' का केतू।
चतुर्थ भाव मे -मेष का मंगल।
नवे भाव मे-कन्या का राहू।
दशम भाव मे -तुला का चंद्र।
एकादश भाव मे-वृश्चिक के बुध व गुरु।
द्वादश भाव मे -धनु के सूर्य व शनि।
ग्रहों का विश्लेषण देने से पूर्व यह भी बताना ज़रूरी है कि शालिनी के पिताजी और के बी माथुर साहब (डॉ शोभा के पति) के पिताजी 'रेलवे' के साथी थे और उनही के माध्यम और उनकी सिफ़ारिश पर विवाह हुआ था। जन्म कुंडली डॉ रामनाथ जी ने मिलाई थी ,14 गुण मिलने पर विवाह नहीं हो सकता था अतः उन्होने 28 गुण मिल रहे हैं बताया था। शालिनी के भाई 'कुक्कू' के बी माथुर साहब के पुराने मित्र थे । इससे निष्कर्ष निकाला कि डॉ रामनाथ को खरीद लिया गया था और उन्होने हमारे साथ विश्वासघात किया था। इस धोखे के बाद ही खुद 'ज्योतिष' का गहन अध्यन किया और तमाम जन्म-कुंडलियों का विश्लेषण व्यवहारिक ज्ञानार्जन हेतु किया। ( रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावनालेख 19 अप्रैल 2012 को दिया था और 26 अप्रैल 2012 को वह 'राज्य सभा' मे नामित हो गईं। )
शालिनी के एंगेजमेंट के वक्त जब कुक्कू साहब की पत्नी मधू (जो के बी माथुर साहब की भतीजी भी हैं) ने गाना गाया तब के बी साहब ने स्टूल को तबला बना कर उनके साथ संगत की थी। इस एंगेजमेंट के बाद कुक्कू के मित्र वी बी एस टामटा ने टूंडला से इटावा जाकर शालिनी का हाथ देख कर उनके 35 वर्ष जीवित रहने की बात बताई थी और इसका खुलासा खुद शालिनी ने किया था। यह भी शालिनी ने ही बताया था कि कुक्कू उनको मछली के पकौड़े खूब खिलाते थे। कुक्कू अश्लील साहित्य पढ़ने के शौकीन थे और पुस्तकें बिस्तर के नीचे छिपा कर रखते थे। यह भी रहस्योद्घाटन खुद शालिनी ही ने किया था।
05 जनवरी 1981 से 10 दिसंबर 1981 तक शालिनी की 'गुरु' महादशा मे 'मंगल' की अंतर्दशा थी। यह काल भूमि लाभ दिलाने वाला था। इसी बीच 25 मार्च 1981 को एंगेजमेंट और 08 नवंबर 1981 को मेरे साथ विवाह हुआ । अर्थात विवाह होते ही वह स्वतः मकान स्वामिनी हो गई।
11 दिसंबर 1981 से 04 मई 1984 तक वह 'गुरु' महादशांतर्गत 'राहू' की अंतर्दशा मे थीं जो समय उनके लिए हानि,दुख,यातना का था। नतीजतन उनका प्रथम पुत्र 24 नवंबर 1982 को टूंडला मे प्रातः 04 बजे जन्म लेकर वहीं उसी दिन साँय 04 बजे दिवंगत भी हो गया।
इसी काल मे 1983 मे 'यशवन्त' का भी जन्म हुआ जो बचपन मे बहुत बीमार रहा है।
05 मई 1984से 07 मई 1987 तक का कार्यकाल 'शनि' की महादशांतर्गत 'शनि' की ही अंतर्दशा का उनके लिए लाभदायक था। परंतु इसी काल मे 24/25 अप्रैल 1984 को मुझे होटल मुगल शेरेटन ,आगरा से सस्पेंड कर दिया गया क्योंकि मैंने इंटरनल आडिट करते हुये पौने 06 लाख का घपला पकड़ा था तो बजाए मुझे एवार्ड देने के घपलेबाजों को बचाने हेतु यही विकल्प था मल्टी नेशनल कारपोरेट घराने के पास। (यही कारण है कारपोरेट घरानों के मसीहा 'अन्ना'/'रामदेव' का मैं प्रबल विरोधी हूँ)।
लेकिन 01 अप्रैल 1985 से मुझे हींग-की -मंडी ,आगरा मे दुकानों मे लेखा-कार्य मिलना प्रारम्भ होने से कुछ राहत भी मिल गई।
26 फरवरी 1991 से 25 अप्रैल 1994 तक 'शनि' मे 'शुक्र' की अंतर्दशा का काल उनके लिए श्रेष्ठतम था। इस बीच मुझे कुछ नए पार्ट टाईम जाब भी मिलने से थोड़ी राहत बढ़ गई थी। इसी बीच 11 अप्रैल 1994 को लखनऊ के रवींद्रालय मे प्रदेश भाकपा के सपा मे विलय के समय मैं भी आगरा ज़िला भाकपा के कोषाध्यक्ष पद को छोड़ कर सपा मे आ गया था। किन्तु नवंबर 1993 मे अपनी माँ के घर खाना खा कर शालिनी बुखार से जो घिरीं वह बिलकुल ठीक न हुआ।
26 अप्रैल 1994 से अक्तूबर तक 'शनि'महादशांतर्गत 'सूर्य'की अंतर्दशा उनके लिए सामान्य थी। किन्तु 16 जून 1994 को साँय 04 बजे से 05 बजे के बीच उनका प्राणान्त हो गया।
इस समय के अनुसार शालिनी की जो मृत्यु कुंडली बनती है उसका विवरण यह है-
ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी,संवत-2051 विक्रमी,पूरवा फाल्गुनी नक्षत्र।
लग्न तुला और उसमे-गुरु व राहू।
पंचम भाव मे -कुम्भ का शनि।
सप्तम भाव मे-मेष के केतू व मंगल।
नवे भाव मे -मिथुन के सूर्य और बुध।
दशम भाव मे-कर्क का शुक्र।
एकादश भाव मे -सिंह का चंद्र।
अब इस मृत्यु कुंडली का ग्रह-गोचर फल इस प्रकार होता है -
गुरु भय और राहू हानि दे रहे हैं। शनि पुत्र को कष्ट दे रहा है। केतू कलह कारक है और 'मंगल' पति को कष्ट दे रहा है। बुध पीड़ा दे रहा है तो 'सूर्य' सुकृत का नाश कर रहा है और शुक्र भी दुख दे रहा है। जब सुकृत ही शेष नहीं बच रहा है तब जीवन का बचाव कैसे हो?
जन्म कुंडली मे 'बुध' ग्रह की स्थिति भाई-बहनों से लाभ न होने के संकेत दे रही है तो 'क्रोधी' भी बना रही है । 'केतू' की स्थिति अनावश्यक झगड़े मोल लेने की एवं पारिवारिक स्थिति सुखद न रहने की ओर संकेत कर रही है। 'ब्रहस्पति' की स्थिति पुत्रों से दुख दिलाने वाली है।
कैंसर -
हालांकि डॉ रामनाथ ने शालिनी को टी बी होने की बात कही थी जो TB विशेज्ञ की जांच मे सिद्ध न हो सकी।
बाद मे 1994 मे ही डॉ रमेश चंद्र उप्रेती ने बताया था कि आँतें सूज कर लटक चुकी हैं एक साल इलाज से लाभ न हो तो आपरेशन करना पड़ेगा। उनकी
मृत्यु के उपरांत जन्म-कुंडली की ओवरहालिंग से जो तथ्य ज्ञात हुये उनके
अनुसार उनको आंतों का' कैंसर ' रहा होगा जिसे किसी भी मेडिकल डॉ ने डायगनोज
नहीं किया। इसी लिए सही इलाज भी नही दिया।
ज्योतिष
के अनुसार शनि ग्रह का कुंडली के 'प्रथम'-लग्न भाव और 'अष्टम' भाव से
संबंध हो तथा साथ ही साथ 'मंगल' ग्रह से 'शनि' का संबंध हो तो निश्चय ही
'कैंसर' होता है।
शालिनी
की जन्म कुंडली मे प्रथम भाव मे 'मकर' लग्न है जो 'शनि' की है। यह 'शनि'
अष्टम (सिंह राशि )भाव के स्वामी 'सूर्य' के साथ द्वादश भाव मे स्थित है।
द्वादश भाव (धनु राशि) का स्वामी ब्रहस्पति एकादश भाव मे 'मंगल' की
वृश्चिक राशि मे स्थित है।
अनुमानतः 16-17 वर्ष की उम्र से शालिनी की आंतों मे विकृति प्रारम्भ हुई होगी जो मछली के पकौड़े जैसे पदार्थों के सेवन से बढ़ती गई होगी। चाय का सेवन अत्यधिक मात्रा मे वह करती थीं जिससे आँतें निरंतर शिथिल होती गई होंगी। डॉ उप्रेती ने तले-भुने,चिकने पदार्थ और चाय से कडा परहेज बताया था फिर भी उनकी माता ने डॉ साहब के पास से लौटते ही मैदा की मठरी और एक ग्लास चाय उनको दी। इस व्यवहार ने ही रोग को असाध्य बनाया होगा।
मेडिकल
विशेज्ञों की लापरवाही और खुद को उस वक्त ज्योतिष का गंभीर ज्ञान न होने
के कारण ग्रहों की शांति या 'स्तुति' प्रयोग न हो सका। इसी कारण अब 'जन हित मे' स्तुतियों को सार्वजनिक करना प्रारम्भ किया है जिससे जागरूक लोग लाभ उठा कर अपना बचाव कर सकें। लेकिन
अफसोस कि 'पूना' स्थित 'चंद्र प्रभा',ठगनी प्रभा' और 'उर्वशी उर्फ बब्बी'
की तिकड़ी ब्लाग जगत मे भी मेरे विरुद्ध दुष्प्रचार करके लोगों को इनके लाभ
उठाने से वंचित कर रही है।
शालिनी
अपने पुत्र यशवन्त की 'माँ' और 'माता' तो न बन सकीं किन्तु 'जननी' तो थी
हीं। जिस प्रकार हम अपने बाबूजी और बउआ की मृत्यु की कैलेंडर तारीख को
'हवन' मे सात विशेष आहुतियाँ देते हैं उसी प्रकार शालिनी हेतु भी उन विशेष
आहुतियों से उनकी 'आत्मा' की शांति की प्रार्थना करते हैं। किसी 'ढ़ोंगी' का
पेट धासने की बजाए वैज्ञानिक विधि से हवन करना हमे उचित प्रतीत होता है।
बहुत अधिक तो मैं नहीं जानता लेकिन मनोचिकित्सा विज्ञान और अपराधविज्ञान इस बात को मानता है कि पूर्णमा के दिन कई लोग आवेगातिरेकी हो जाते हैं. अपराध बढ़ जाते हैं. चंद्रमा के प्रभाव को सागर के ज्वार के रूप में तो देख सकते हैं. मानव शरीर में में भी 2/3 पानी की मात्रा है जिसमें एक ज्वार आता है. अमावस्या के दिन कई लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं. इसे भाटा कह सकते हैं.
ReplyDeleteआपके लेख को बहुत ही उत्सुकता से पढता हूँ .मेरे लिए यह बहुत ही अद्भुत अनुभव होता है ....बस इतना ही कहना चाहूँगा ...बधाई
ReplyDeleteबिना किसी विषय को जाने उसे कम भी क्यूँ आँका जाये ..... ? मुझे तो यह लगता है
ReplyDeletemaine aaj pahli baar aapke lekh ko pada bahut accha laga, adbhut laga...... ek baat aur janana chahti hoon ki ye lekh stya tha yaa kalpnik mera kahne ka matlab ye hai ki isme aaye naam sataya the yaa kalpnik... saadar
ReplyDeleteसोनिया जी!
Deleteन तो यह कोई लेख है न काल्पनिक। आपने ध्यान से देखा हो तो स्पष्ट है की वह मेरी पहली पत्नी (यशवन्त की जननी माँ )की जन्म कुंडली का विश्लेषण है। उसे आपने किस प्रकार काल्पनिक मानने की कल्पना की?