15 अगस्त 1947 को मिली आज़ादी क्या झूठी है?
सुप्रसिद्ध जन-कवि अदम गोंडवी साहब का कहना है-
"सौ मे 70 आदमी फिलहाल जब नाशाद है,
दिल पे रख कर हाथ कहिए ,देश क्या आज़ाद है?"
'राजनीतिक' रूप से 65 वर्ष पूर्व हमारा देश ब्रिटिश दासता से मुक्त हुआ था जिस उपलक्ष्य मे 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस के रूप मे मनाया जाता है। हमारे देश का अपना स्वतंत्र संविधान भी है जिसके अनुसार जनता अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से अपना शासन स्वतंत्र रूप से चलाती है। लेकिन आर्थिक नीतियाँ वही हैं जो ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने बनाई थीं अतः आज़ादी के थोड़े दिनों बाद कामरेड बी टी रणदिवे के आह्वान पर भाकपा ने नारा दे दिया था-'यह आज़ादी झूठी है,भारत की जनता भूखी है'। असंख्य कार्यकर्ता और नेता बेरहमी से गिरफ्तार किए गए और आंदोलन कुचल दिया गया। भाकपा जो सत्तारूढ़ कांग्रेस के बाद संसद मे दूसरे नंबर पर थी और मुख्य विरोधी दल थी धीरे-धीरे सिमटती गई।
नेहरू जी की 'मिश्रित आर्थिक नीति' बनाने वाले डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी RSS के थे और उन्होने बाद मे 'जनसंघ' बनाया जो अब 'भाजपा' के रूप मे मुख्य विरोधी दल है। 1991 मे 'उदारवाद' की नीति के प्रणेता डॉ मनमोहन सिंह अब पी एम हैं और उनकी नीतियों को यू एस ए मे जाकर अपनी नीतियों को चुराया जाना कहने वाले एल आडवाणी साहब की शिष्या श्रीमती सुषमा स्वराज लोकसभा मे विरोधी दल की नेता हैं।
पद से हटने के बाद 1991 के पी एम पामूलपति वेंकट नरसिंघा राव साहब ने 'दी इन साईडर' मे स्पष्ट किया था-"हम स्वतन्त्रता के भ्रमजाल मे जी रहे हैं"।
निम्नलिखित लिंक्स का अवलोकन करेंगे तो पाएंगे कि विद्वान लेखक भी यही दोहरा रहे हैं जिसे पूर्व पी एम ने कुबूल किया था-
1-http://loksangharsha.blogspot.com/2012/08/blog-post_13.html
2-http://loksangharsha.blogspot.com/2012/08/2_13.html
राजनीतिक आज़ादी के बावजूद पूर्ण कार्यकाल मे अनुभव के आधार पर नरसिंघा राव जी का कथन और सुनील दत्ता जी के विश्लेषण मे समानता है कि हमारे देश की आर्थिक नीतियाँ आज भी 'दासता युग' की ही हैं और पूर्णतः जन -विरोधी हैं। उनका निष्कर्ष है -"
सुप्रसिद्ध जन-कवि अदम गोंडवी साहब का कहना है-
"सौ मे 70 आदमी फिलहाल जब नाशाद है,
दिल पे रख कर हाथ कहिए ,देश क्या आज़ाद है?"
'राजनीतिक' रूप से 65 वर्ष पूर्व हमारा देश ब्रिटिश दासता से मुक्त हुआ था जिस उपलक्ष्य मे 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस के रूप मे मनाया जाता है। हमारे देश का अपना स्वतंत्र संविधान भी है जिसके अनुसार जनता अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से अपना शासन स्वतंत्र रूप से चलाती है। लेकिन आर्थिक नीतियाँ वही हैं जो ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने बनाई थीं अतः आज़ादी के थोड़े दिनों बाद कामरेड बी टी रणदिवे के आह्वान पर भाकपा ने नारा दे दिया था-'यह आज़ादी झूठी है,भारत की जनता भूखी है'। असंख्य कार्यकर्ता और नेता बेरहमी से गिरफ्तार किए गए और आंदोलन कुचल दिया गया। भाकपा जो सत्तारूढ़ कांग्रेस के बाद संसद मे दूसरे नंबर पर थी और मुख्य विरोधी दल थी धीरे-धीरे सिमटती गई।
नेहरू जी की 'मिश्रित आर्थिक नीति' बनाने वाले डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी RSS के थे और उन्होने बाद मे 'जनसंघ' बनाया जो अब 'भाजपा' के रूप मे मुख्य विरोधी दल है। 1991 मे 'उदारवाद' की नीति के प्रणेता डॉ मनमोहन सिंह अब पी एम हैं और उनकी नीतियों को यू एस ए मे जाकर अपनी नीतियों को चुराया जाना कहने वाले एल आडवाणी साहब की शिष्या श्रीमती सुषमा स्वराज लोकसभा मे विरोधी दल की नेता हैं।
पद से हटने के बाद 1991 के पी एम पामूलपति वेंकट नरसिंघा राव साहब ने 'दी इन साईडर' मे स्पष्ट किया था-"हम स्वतन्त्रता के भ्रमजाल मे जी रहे हैं"।
निम्नलिखित लिंक्स का अवलोकन करेंगे तो पाएंगे कि विद्वान लेखक भी यही दोहरा रहे हैं जिसे पूर्व पी एम ने कुबूल किया था-
1-http://loksangharsha.blogspot.com/2012/08/blog-post_13.html
2-http://loksangharsha.blogspot.com/2012/08/2_13.html
राजनीतिक आज़ादी के बावजूद पूर्ण कार्यकाल मे अनुभव के आधार पर नरसिंघा राव जी का कथन और सुनील दत्ता जी के विश्लेषण मे समानता है कि हमारे देश की आर्थिक नीतियाँ आज भी 'दासता युग' की ही हैं और पूर्णतः जन -विरोधी हैं। उनका निष्कर्ष है -"
राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी और स्वार्थपरक सोच हर तरह बदहाली के लिए जिम्मेदार है ....... विचारणीय लेख
ReplyDelete65 वें स्वतंत्रता दिवस की बधाई-शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपकी चिंताएं वाजिब हैं .
इस यौमे आज़ादी पर हमने हिंदी पाठकों को फिर से ध्यान दिलाया है.
देखिये-
http://hbfint.blogspot.com/2012/08/65-swtantrta-diwas.html
हमारे पूर्वजों ने तो हमें पाक साफ आज़ादी ही सौंपी थी , अपने खून से सींचकर .
ReplyDeleteहमने ही इसे नापाक बना दिया .
अभी तो लड़नी है लड़ाई , गुलामी की इन जंजीरों से जिनमे जकड़े , आज के युवा भूल रहे हैं आज़ादी की कीमत और महत्त्व .