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मंगलवार, 22 मार्च 2011
भगत सिंह का बम
जब स्वामी श्रद्धानंद सन१८८४ ई.में जालंधर में मुंशी राम के रूप में वकालत कर रहे थे तो भगत सिंह जी के बाबा जी सरदार अर्जुन सिंह उनके मुंशी थे.भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह भी उनके साथ थे.इस प्रकार सिख होते हुए भी यह परिवार वैदिक-धर्मी बन गया और मुंशी राम जी (श्रद्धानंद जी) के साथ आर्य समाज के माध्यम से स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने लगा .'सत्यार्थ प्रकाश' में महर्षि दयानंद जी के ये विचार कि,विदेशी शासन यदि माता-पिता से भी बढ़ कर ख्याल रखता हो तब भी बुरा है और उसे जल्दी से जल्दी उखाड़-फेंकना चाहिए पढ़ कर युवा भगत सिंह जी ने भारत को आजादी दिलाने का दृढ निश्चय किया .
२३ मार्च १९३१ को सरदार भगत सिंह को असेम्बली में बम फेंकने के इल्जाम में फांसी दी गयी थी और फांसी के तख्ते की तरफ बढ़ते हुए वीर भगत सिंह मस्ती के साथ गा रहे थे-
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.
देखना है जोर कितना बाजुये कातिल में है..
कैसी अपूर्व मस्ती थी,कैसी उग्रता थी उनके संकल्प में जिससे वह हँसते-हँसते मौत का स्वागत कर सके और उनके कंठों से यह स्वर फूट सके-
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले .
वतन पर मरने वालों का ,यही बाकी निशाँ होगा..
२३ दिसंबर १९२९ को भी क्रांतिकारियों ने वायसराय की गाडी उड़ाने को बम फेंका था जो चूक गया था.तब गांधी जी ने एक कटुता पूर्ण लेख 'बम की पूजा' लिखा था.इसके जवाब में भगवती चरण वोहरा ने 'बम का दर्शन ' लेख लिखा.सत्यार्थ प्रकाश के अनुयायी भगत सिंह के लिए बम का सहारा लेना आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि उसके रचयिता स्वामी दयानंद अपनी युवावस्था -३२ वर्ष की आयु में १८५७ की क्रांति में सक्रिय भाग खुद ही ले चुके थे.दयानंद जी पर तथाकथित पौराणिक हिन्दुओं ने कई बार प्राण घातक हमले किये और उनके रसोइये जगन्नाथ के माध्यम से उनकी हत्या करा दी,उनके बाद आर्य समाज में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के हितैषी आर.एस.एस.की घुसपैठ बढ़ गयी थी.अतः भगत सिंह आदि युवाओं के लिए अग्र-गामी कदम उठाना अनिवार्य हो गया था.अतः 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन 'का गठन कर क्रांतिकारी गतिविधियाँ संचालित की गयीं.
२६ जनवरी १९३० को बांटे गए पर्चे में भगत सिंह ने 'करतार सिंह'के छद्म नाम से जो ख़ास सन्देश दिया था उसका सार यह है-"क्या यह अपराध नहीं है कि ब्रिटेन ने भारत में अनैतिक शासन किया ?हमें भिखारी बनाया तथा हमारा समस्त खून चूस लिया?एक जाति और मानवता के नाते हमारा घोर अपमान तथा शोषण किया गया है.क्या जनता अब भी चाहती है कि इस अपमान को भुला कर हम ब्रिटिश शासकों को क्षमा कर दें?हम बदला लेंगे,जनता द्वारा शासकों से लिया गया न्यायोचित बदला होगा.कायरों को पीठ दिखा कर समझौता और शांति की आशा से चिपके रहने दीजिये.हम किसी से भी दया की भिक्षा नहीं मांगते हैं और हम भी किसी को क्षमा नहीं करेंगे.हमारा युद्ध विजय या मृत्यु के निनाय तक चलता ही रहेगा.इन्कलाब जिंदाबाद!"
और सच में हँसते हुए ही उन्होंने मृत्यु का वरण किया.जिस बम के कारण उनका बलिदान हुआ उसका निर्माण आगरा के नूरी गेट में हुआ था जो अब उन्ही के नाम पर 'शहीद भगत सिंह द्वार'कहलाता है.वहां अब बूरा बाजार है.एक छोटी प्रतिमा 'नौजवान सभा',आगरा द्वारा वहां स्थापित की गयी थी जिसे अब आर.एस.एस. वाले अपनी जागीर समझने लगे हैं.यह बम किसी की हत्या करने के इरादे से नहीं बनाया गया था-०६ जून १९२९ को दिल्ली के सेशन जज मि.लियोनार्ड मिडिल्टन की अदालत में भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने कहा था-"हमारे विचार से उन्हें वैज्ञानिक ढंग से बनाया ही ऐसा गया था.पहली बात ,दोनों बम बेंचों तथा डेस्कों के बीच की खाली जगह में ही गिरे थे .दुसरे उनके फूटने की जगह से दो फिट पर बैठे हुए लोगों को भी ,जिनमें श्री पी.आर.राऊ ,श्री शंकर राव तथा सर जार्ज शुस्टर के नाम उल्लेखनीय हैं,या तो बिलकुल ही चोटें नहीं आयीं या मात्र मामूली आयीं.अगर उन बमों में जोरदार पोटेशियम क्लोरेट और पिक्रिक एसिड भरा होता ,जैसा सरकारी विशेषज्ञ ने कहा है,तो इन बमों ने उस लकड़ी के घेरे को तोड़ कर कुछ गज की दूरी पर खड़े लोगों तक को उड़ा दिया होता .और यदि उनमें कोई और भी शक्तिशाली विस्फोटक भरा जाता तो निश्चय ही वे असेम्बली के अधिकाँश सदस्यों को उड़ा देने में समर्थ होते..................लेकिन इस तरह का हमारा कोई इरादा नहीं था और उन बमों ने उतना ही काम किया जितने के लिए उन्हें तैयार किया गया था.यदि उससे कोई अनहोनी घटना हुयी तो यही कि वे निशाने पर अर्थात निरापद स्थान पर गिरे".
मजदूरों की जायज मांगों के लिए उनके आन्दोलन को कुचलने के उद्देश्य से जो 'औद्योगिक विवाद विधेयक 'ब्रिटिश सरकार लाई थी उसी का विरोध प्रदर्शन ये बम थे.भगत सिंह और उनके साथी क्या चाहते थे वह भी कोर्ट में दिए उनके बयान से स्पष्ट होता है-"यह भयानक असमानता ....आज का धनिक समाज एक भयानक ज्वालामुखी के मुख पर बैठ कर रंगरेलियाँ मना रहा है और शोषकों के मासूम बच्चे तथा करोड़ों शोषित लोग एक भयानक खड्ड की कगार पर चल पड़े हैं.............साम्यवादी सिद्धांतों पर समाज का पुनर्निर्माण करें .........क्रांति से हमारा मतलब अन्तोगत्वा एक ऐसी समाज -व्यवस्था की स्थापना से है जो इस प्रकार के संकटों से बरी होगी और जिसमें सर्वहारा वर्ग का आधिपत्य सर्वमान्य होगा और जिसके फलस्वरूप स्थापित होने वाला विश्व -संघ पीड़ित मानवता को पूंजीवाद के बंधनों से और साम्राज्यवादी युद्ध की तबाही से छुटकारा दिलाने में समर्थ हो सकेगा."
शहीद भगत सिंह कैसी व्यवस्था चाहते थे उसे लाहौर हाई कोर्ट के जस्टिस एस.फोर्ड ने फैसले में लिखा:"यह बयान कोई गलती न होगी कि ये लोग दिल की गहराई और पूरे आवेग के साथ वर्तमान समाज के ढाँचे को बदलने की इच्छा से प्रेरित थे.भगत सिंह एक ईमानदार और सच्चे क्रांतिकारी हैं .मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि वे इस स्वप्न को लेकर पूरी सच्चाई से खड़े हैं कि दुनिया का सुधार वर्तमान सामजिक ढाँचे को तोड़ कर ही हो सकता है.........."
भारत माँ को आज भी ऐसे सच्चे देशभक्त रणबांकुरों को सख्त जरुरत है ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति के लिए आभार...