Tuesday, May 14, 2013

जब मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा ने संयुक्त सरकार बनाई ---विजय राजबली माथुर

अल्लाह बख्श जी की पुण्य तिथि 14 मई पर विशेष :

 
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शमसुल इस्लाम साहब बधाई एवं धन्यवाद के पात्र हैं जो इतिहास के पन्नों मे छिपी सच्चाई को सब के सामने लाये हैं। यह एक अकाट्य सत्य है कि,1947 में हुआ देश-विभाजन एक 'साम्राज्यवादी साजिश' था जिसे धर्म पर आधारित बताया गया जबकि वह 'सांप्रदायिक' प्रथक्करण था। वस्तुतः 'साम्राज्यवाद' और 'सांप्रदायिकता' सहोदरी हैं। भारत में साप्रदायिकता का विष-वमन  ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा 1857 ई . की प्रथम 'क्रान्ति' को कुचलने के बाद किया गया था। मुगल सम्राट और शायर बहादुर शाह 'जफर' के नेतृत्व मे सम्पन्न हुई इस क्रांति मे मराठे भी तहे-दिल से शामिल थे । अवध की बेगम और झांसी की रानी एक साथ थीं। अतः 'फूट डालो और शासन करो' की नीति के तहत ब्रिटिश साम्राज्यवादियों  ने तथा कथित हिंदुओं एवं मुस्लिमों को सांप्रदायिक आधार पर टकराने का वातावरण सृजित किया। लेकिन क्यों और कैसे?-----

अपनी युवावस्था में 1857 की क्रांति में भाग ले चुके महर्षि स्वामी दयानन्द 'सरस्वती' ने 1875 ई .की  चैत्र प्रतिपदा को 'आर्यसमाज' की स्थापना की जिसका मूल उद्देश्य 'स्व-राज्य'प्राप्ति था। शुरू-शुरू में आर्यसमाजों की स्थापना वहाँ-वहाँ की गई थी जहां-जहां ब्रिटिश छावनियाँ थीं। ब्रिटिश शासकों ने महर्षि दयानन्द को 'क्रांतिकारी सन्यासी' (REVOLUTIONARY SAINT) की संज्ञा दी थी। आर्यसमाज के 'स्व-राज्य'आंदोलन से भयभीत होकर वाईस राय लार्ड डफरिन ने अपने चहेते अवकाश प्राप्त ICS एलेन आकटावियन (A. O.)हयूम के सहयोग से वोमेश चंद्र (W.C.)बेनर्जी जो परिवर्तित क्रिश्चियन थे की अध्यक्षता में 1885 ई .में  इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश साम्राज्य के 'सेफ़्टी वाल्व'के रूप मे करवाई थी। किन्तु महर्षि दयानन्द की प्रेरणा पर आर्यसमाजियों ने कांग्रेस में प्रवेश कर उसे स्वाधीनता आंदोलन चलाने पर विवश कर दिया। 'कांग्रेस का इतिहास' नामक पुस्तक में लेखक -पट्टाभि सीता रमईय्या ने स्वीकार किया है कि देश की आज़ादी के आंदोलन में जेल जाने वाले 'सत्याग्रहियों'में 85 प्रतिशत आर्यसमाजी थे। 

अतः 1905 में बंगाल का विभाजन सांप्रदायिक आधार पर करके ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन को प्रेरित करके ब्रिटिश शासकों ने 'मुस्लिमलीग'की स्थापना 1906 ई .में करवाई। मुस्लिम लीग का कार्य 1857 की क्रांति की भावना को उलट कर मुस्लिमों में हिंदुओं के प्रति नफरत भरना  था  जिसमें वह सफल रही। इस सफलता से उत्साहित होकर ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने लाला लाजपत राय एवं मदन मोहन मालवीय के माध्यम से 'हिंदूमहासभा'का गठन 1920 ई .में करवाया जो हिंदुओं को मुस्लिमों के विरुद्ध एक जुट करने में लग गई किन्तु सफल न हो सकी। अतः पूर्व क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर को मिलाकर ब्रिटिश सरकार ने RSS का गठन 1925 ई .में करवाया। RSS और हिन्दू महासभा मिल कर हिंदुओं में मुस्लिमों के प्रति नफरत भरने मे कामयाब हो गए। 

जहां एक ओर आर्यसमाजियों के प्रभाव से कांग्रेस 'संप्रदाय निरपेक्ष'रही वहीं मुस्लिमों में 'मुस्लिम लीग' के विरोध को जगा कर 1940 ई .में दिल्ली में 'आज़ाद मुस्लिम कान्फरेंस' का आयोजन सिंध प्रांत की  सरकार के मुखिया 'अल्लाह बख्श 'जी ने किया। उन्होने 1942 ई .के 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन का समर्थन भी किया जिस कारण 10 अक्तूबर 1942 ई .को उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और सिंध मे उनके स्थान पर 'हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग'की संयुक्त सरकार बनी जो ब्रिटिश साम्राज्य के हितों की संरक्षक थी। इस संयुक्त सरकार ने 14 मई 1943 ई .को अल्लाह बख्श जैसे देश-भक्त और अखंड-भारत समर्थक की क्रूर व निर्मम हत्या करा दी। 

RSS/हिन्दू महासभा/मुस्लिम लीग गठबंधन भारत-विभाजन की ब्रिटिश साम्राज्यवादी नीति में सहायक रहा और छल -बल से सफल रहा।  आज़ादी के बाद आर्यसमाज में RSS के लोग घुस पैठ कर गए और उसको सांप्रदायिक रंग में रंगने लगे जो महर्षि दयानन्द की नीतियों के विपरीत है। इसी लिए 'अहिंसा' का समर्थक आर्यसमाज आज RSS की 'लाठी-संस्कृति'से प्रभावित है जैसा कि हरियाणा में चले संघर्ष से सिद्ध हो रहा है जहां 'वंदनीय मातृ -शक्ति'का उद्घोष करने वाले आर्यसमाजियों ने महिला पुलिस सिपाहियों को घायल करने मे बहदुरी समझी है। यह न केवल महर्षि के आर्यसमाज के लिए अहितकर है बल्कि भारत की एकता व अक़छुणता के लिए भी घातक है।

यहाँ यह भी ध्यान रखने योग्य तथ्य है कि 1925 ई .में जब क्रांतिकारी कांग्रेसियों ने आज़ादी के आंदोलन को और 'धार' देने हेतु 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' की स्थापना की तो उसमे महा पंडित राहुल सांकृत्यायन,गेंदा लाल दीक्षित एवं स्वामी सहजानन्द सरीखे कट्टर आर्यसमाजी भी देश-प्रेम की भावना से शामिल हुये और अपना सक्रिय सहयोग कम्युनिस्ट पार्टी को दिया। आज RSS के हस्तक्षेप के कारण आर्यसमाज और कम्युनिस्ट पार्टी परस्पर विरोधी हो गए हैं। संस्कृत महा विद्यालय ,हापुड़ के पूर्व प्राचार्य ओरेय्या वासी आचार्य राम किशोर जी जिनहोने 35 वर्ष RSS में रहने के बाद उसे 'राष्ट्र विरोधी' गतिविधियों में शामिल होने के कारण 1992 ई .के बाद छोड़ दिया था;आर्यसमाज-गुरुकुल,एटा में भी आचार्य रहे हैं और प्रभावशाली आर्यसमाजी प्रवचक हैं का कहना है कि "आर्यसमाज व कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियाँ तो एक समान हैं केवल कार्य -पद्धत्ति का अन्तरहै।"वस्तुतः आर्यसमाज के 'कर्तव्य दर्पण' और कम्युनिस्ट पार्टी के संविधान मे आमदनी का एक प्रतिशत संगठन को देने की बातें  ही समान नहीं हैं बल्कि समस्त मानवता के कल्याण की भावना भी समान है। आज अल्लाह बख्श सरीखे अन्य बलिदानियों -राम प्रसाद 'बिस्मिल',अशफाक़ उल्लाह खान,चंद्र शेखर आज़ाद ,सरदार भगत सिंह के सपनों का भारत बनाने की दिशा 'भारत-पाक-बांग्ला देश महासंघ' बनाने की महती आवश्यकता है।

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