कुछ विद्वानों का दृष्टिकोण है कि कम्युनिस्ट नेताओं एवं विद्वान अध्येताओं ने अतीत में अपने बारे में व्यक्तिगत रूप से कुछ भी सार्वजनिक नहीं किया है अतः अब भी वही परंपरा कायम रहनी चाहिए। किन्तु अब कुछ नेताओं एवं अध्येताओं के बारे में उनके परिजन व अन्य विद्वजन सार्वजनिक रूप से प्रकाश डाल रहे हैं और मैं समझता हूँ कि ऐसा पहले ही किया जाना चाहिए था। कामरेड होमी दाजी के जीवन चरित्र पर उनकी जीवन संगिनी कामरेड पेरिन दाजी ने 'यादों की रोशनी में' पुस्तक की रचना की है जिसके विमोचन से संबन्धित सारिका श्रीवास्तव द्वारा प्रेषित विवरण 'पार्टी जीवन' में प्रकाशित हुआ था। -
मार्क्स का तप और त्याग "हालांकि एक गरीब परिवार में जन्में और कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा,परन्तु मार्क्स ने हार नहीं मानी,उन्होंने अपने कठोर तपी जीवन से गहन अध्ययन किया.समाज के विकास क्रम को समझा और भावी समाज निर्माण के लिए अपने निष्कर्षों को निर्भीकता के साथ समाज के सम्मुख रखा.व्यक्तिगत जीवन में अपने से सात वर्ष बड़ी प्रेमिका से विवाह करने के लिए भी उन्हें सात वर्ष तप-पूर्ण प्रतीक्षा करनी पडी.उनकी प्रेमिका के पिता जो धनवान थे मार्क्स को बेहद चाहते थे और अध्ययन में आर्थिक सहायता भी देते थे पर शायद अपनी पुत्री का विवाह गरीब मार्क्स से न करना चाहते थे.लेकिन मार्क्स का प्रेम क्षण-भंगुर नहीं था उनकी प्रेमिका ने भी मार्क्स की तपस्या में सहयोग दिया और विवाह तभी किया जब मार्क्स ने चाहा.विवाह के बाद भी उन्होंने एक आदर्श पत्नी के रूप में सदैव मार्क्स को सहारा दिया.जिस प्रकार हमारे यहाँ महाराणा प्रताप को उनकी रानी ने कठोर संघर्षों में अपनी भूखी बच्चीकी परवाह न कर प्रताप को झुकने नहीं दिया ठीक उसी प्रकार मार्क्स को भी उनकी पत्नी ने कभी निराश नहीं होने दिया.सात संतानों में से चार को खोकर और शेष तीनों बच्चियों को भूख से बिलखते पा कर भी दोनों पति-पत्नी कभी विचलित नहीं हुए और आने वाली पीढ़ियों की तपस्या में लीन रहे.देश छोड़ने पर ही मार्क्स की मुसीबतें कम नहीं हो गईं थीं,इंग्लैण्ड में भी उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था.लाईब्रेरी में अध्ययनरत मार्क्स को समय समाप्त हो जाने पर जबरन बाहर निकाला जाता था।" http://krantiswar.blogspot.in/2012/05/blog-post_05.html
अभी हाल ही में एक विद्वान द्वारा जेनी मार्क्स द्वारा कार्ल मार्क्स को दिये योगदान के बारे में इस प्रकार वर्णन किया है जबकि पूर्व में मैंने भी महर्षि कार्ल मार्क्स से संबन्धित पोस्ट में उपरोक्त उद्धृण दिया था।-
"वह जेनी ही थी जो धनी माता-पिता की पुत्री होने के बावजूद मार्क्स के साथ भीषण गरीबी और अभाव का जीवन जीती रही. कभी उफ् तक न की. खुद तंगहाली में रहते हुए वह बल्कि कदम-दर-कदम उसका हौसला बढ़ाती रही.
मार्क्स के लंदन के दिनों का उल्लेख जेनी ने इन शब्दों में किया है—
‘मैंने फ्रैंकफर्ट जाकर चांदी के बर्तन बेच दिए और कोलोन में फर्नीचर बेचना पड़ा. लंदन के महंगे जीवन में हमारी सारी जमा-पूंजी जल्द ही समाप्त हो गई. हमारा सबसे छोटा बच्चा जन्म से ही बीमार रहता था. एक दिन मैं स्वयं छाती के दर्द से पीड़ित थी कि अचानक मकान-मालकिन किराये के बकाया पाउंड मांगने के लिए आ धमकी. उस समय हमारे पास उसको देने के लिए कुछ भी नहीं था. वह अपने साथ दो सिपाहियों को लेकर आई थी. उसने हमारी चारपाई, कपड़े, बिछौने, दो छोटे बच्चों के पालने तथा दोनों लड़कियों के खिलौने तक कुर्क कर लिए. सर्दी से ठिठुर रहे बच्चों को लेकर मैं कठोर फर्श पर पड़ी हुई थी. अगले दिन हमें घर से निकाल दिया गया. उस समय पानी बरस रहा था और बेहद ठंड थी. पूरे वातावरण में मनहूसियत छायी हुई थी…’
और ऐसे विकट समय में दवावाले, राशनवाले और दूधवाला अपना-अपना बिल लेकर उसके सामने खड़े हो गए. उनका बिल चुकाने के लिए जेनी को बिस्तर आदि घर का बचा-कुचा सामान भी बेचना पड़ा. इसके बावजूद वह महान स्त्री मार्क्स को कदम-कदम ढांढस बंधाती रही. मार्क्स घर की गरीबी देखकर जब भी खिन्न होता, जेनी का जवाब होता था—
‘दुनिया में सिर्फ हम लोग ही कष्ट नहीं झेल रहे हैं.’http://omprakashkashyap.wordpress.com/2010/03/07/कार्ल-मार्क्स-वैज्ञानिक/#comment-168
इसी वर्ष लखनऊ में कैफी/शौकत आज़मी के संबंध में उनके पुत्री/दामाद द्वारा सार्वजनिक रूप से नाटक-मंचन द्वारा प्रकाश डाला गया है।
यह एक अच्छी परंपरा और चलन है कि अब महान कम्युनिस्ट नेताओं एवं विद्वानों के बारे में जनता को जानकारी हासिल हो सकेगी कि उनको किन संघर्षों से गुजरना पड़ा परंतु फिर भी वे झुके नही।
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।
मार्क्स का तप और त्याग "हालांकि एक गरीब परिवार में जन्में और कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा,परन्तु मार्क्स ने हार नहीं मानी,उन्होंने अपने कठोर तपी जीवन से गहन अध्ययन किया.समाज के विकास क्रम को समझा और भावी समाज निर्माण के लिए अपने निष्कर्षों को निर्भीकता के साथ समाज के सम्मुख रखा.व्यक्तिगत जीवन में अपने से सात वर्ष बड़ी प्रेमिका से विवाह करने के लिए भी उन्हें सात वर्ष तप-पूर्ण प्रतीक्षा करनी पडी.उनकी प्रेमिका के पिता जो धनवान थे मार्क्स को बेहद चाहते थे और अध्ययन में आर्थिक सहायता भी देते थे पर शायद अपनी पुत्री का विवाह गरीब मार्क्स से न करना चाहते थे.लेकिन मार्क्स का प्रेम क्षण-भंगुर नहीं था उनकी प्रेमिका ने भी मार्क्स की तपस्या में सहयोग दिया और विवाह तभी किया जब मार्क्स ने चाहा.विवाह के बाद भी उन्होंने एक आदर्श पत्नी के रूप में सदैव मार्क्स को सहारा दिया.जिस प्रकार हमारे यहाँ महाराणा प्रताप को उनकी रानी ने कठोर संघर्षों में अपनी भूखी बच्चीकी परवाह न कर प्रताप को झुकने नहीं दिया ठीक उसी प्रकार मार्क्स को भी उनकी पत्नी ने कभी निराश नहीं होने दिया.सात संतानों में से चार को खोकर और शेष तीनों बच्चियों को भूख से बिलखते पा कर भी दोनों पति-पत्नी कभी विचलित नहीं हुए और आने वाली पीढ़ियों की तपस्या में लीन रहे.देश छोड़ने पर ही मार्क्स की मुसीबतें कम नहीं हो गईं थीं,इंग्लैण्ड में भी उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था.लाईब्रेरी में अध्ययनरत मार्क्स को समय समाप्त हो जाने पर जबरन बाहर निकाला जाता था।" http://krantiswar.blogspot.in/2012/05/blog-post_05.html
अभी हाल ही में एक विद्वान द्वारा जेनी मार्क्स द्वारा कार्ल मार्क्स को दिये योगदान के बारे में इस प्रकार वर्णन किया है जबकि पूर्व में मैंने भी महर्षि कार्ल मार्क्स से संबन्धित पोस्ट में उपरोक्त उद्धृण दिया था।-
"वह जेनी ही थी जो धनी माता-पिता की पुत्री होने के बावजूद मार्क्स के साथ भीषण गरीबी और अभाव का जीवन जीती रही. कभी उफ् तक न की. खुद तंगहाली में रहते हुए वह बल्कि कदम-दर-कदम उसका हौसला बढ़ाती रही.
मार्क्स के लंदन के दिनों का उल्लेख जेनी ने इन शब्दों में किया है—
‘मैंने फ्रैंकफर्ट जाकर चांदी के बर्तन बेच दिए और कोलोन में फर्नीचर बेचना पड़ा. लंदन के महंगे जीवन में हमारी सारी जमा-पूंजी जल्द ही समाप्त हो गई. हमारा सबसे छोटा बच्चा जन्म से ही बीमार रहता था. एक दिन मैं स्वयं छाती के दर्द से पीड़ित थी कि अचानक मकान-मालकिन किराये के बकाया पाउंड मांगने के लिए आ धमकी. उस समय हमारे पास उसको देने के लिए कुछ भी नहीं था. वह अपने साथ दो सिपाहियों को लेकर आई थी. उसने हमारी चारपाई, कपड़े, बिछौने, दो छोटे बच्चों के पालने तथा दोनों लड़कियों के खिलौने तक कुर्क कर लिए. सर्दी से ठिठुर रहे बच्चों को लेकर मैं कठोर फर्श पर पड़ी हुई थी. अगले दिन हमें घर से निकाल दिया गया. उस समय पानी बरस रहा था और बेहद ठंड थी. पूरे वातावरण में मनहूसियत छायी हुई थी…’
और ऐसे विकट समय में दवावाले, राशनवाले और दूधवाला अपना-अपना बिल लेकर उसके सामने खड़े हो गए. उनका बिल चुकाने के लिए जेनी को बिस्तर आदि घर का बचा-कुचा सामान भी बेचना पड़ा. इसके बावजूद वह महान स्त्री मार्क्स को कदम-कदम ढांढस बंधाती रही. मार्क्स घर की गरीबी देखकर जब भी खिन्न होता, जेनी का जवाब होता था—
‘दुनिया में सिर्फ हम लोग ही कष्ट नहीं झेल रहे हैं.’http://omprakashkashyap.wordpress.com/2010/03/07/कार्ल-मार्क्स-वैज्ञानिक/#comment-168
हिंदुस्तान,लखनऊ,09 मई 2013 |
यह एक अच्छी परंपरा और चलन है कि अब महान कम्युनिस्ट नेताओं एवं विद्वानों के बारे में जनता को जानकारी हासिल हो सकेगी कि उनको किन संघर्षों से गुजरना पड़ा परंतु फिर भी वे झुके नही।
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।
.सार्थक जानकारी हेतु आभार . चमन से हमारे जाने के बाद . साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
ReplyDeleteफेसबुक ग्रुप communist party of india में प्राप्त टिप्पणी---
ReplyDeleteShamim Shaikh : वेवस्था बदलने के लिए देश की भौतिक परिस्थियो का ज्ञान ज़रूरी है,