आज जब अराजनीति की घोषणा करते करते आ आ पा (AAP) दिल्ली विधानसभा के जरिये सरकार बना चुकी है राजेन्द्र घोड़पकर जी का प्रस्तुत लेख वास्तविकता का ध्यानाकर्षण करता है। लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व जब हज़ारे/केजरी आंदोलन 'राजनीति' और 'राजनीतिज्ञों' पर प्रहार करके जनता को गुमराह कर रहा था तब मैंने फेसबुक पर निम्नांकित यह स्टेटस दे कर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया था। प्रस्तुत लेख मेरे प्रयास को सकारात्मक सिद्ध करता है।
वास्तविकता से मुंह मोड़ना है -'राजनीति' और 'राजनीतिज्ञों' पर प्रहार:
July 14, 2012 at 10:27am
गुवाहाटी,लखनऊ के पुलिस थाना और बागपत की खाप पंचायत की आड़ मे उदभट्ट विद्वान 'राजनीति' और 'राजनीतिज्ञों' को जम कर कोस रहे हैं और इस प्रकार प्रकारांतर से वे RSS तथा भ्रष्ट IAS आफ़ीसर्स द्वारा देश मे अर्द्ध-सैनिक तानाशाही स्थापित होने पर जनता को उसका स्वागत करने हेतु तैयार कर रहे हैं।
समाज मे व्याप्त 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' जिसे धर्म के नाम पर पूजा जा रहा है ही वस्तुतः उच्श्रंखलता हेतु उत्तरदाई है। धन और धनवानों को अनावश्यक सम्मान उसमे और इजाफा कर देता है। दक़ियानूसी और संकीर्ण सोच वाले साम्यवादी विद्वान सिर्फ और सिर्फ 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' को ही धर्म मानते हैं। अतः वे सिरे से ही धर्म को खारिज करते हुये उसे अफीम कह कर आलोचना करते हैं परिणामतः पाखंडियों को लूट का खुला मैदान मिल जाता है।
अज्ञान या न समझने की ज़िद्द के कारण ये विद्वान जनता को वास्तविक 'धर्म' से परिचित नहीं होने देना चाहते हैं। यदि जनता को समझाया जाए कि 'धर्म' वह नहीं है जिसे पाखंडी पुरोहितवादी/ब्राह्मणवादी कहते हैं तो सभी समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है। जड़ पर प्रहार न करके राजनीति और राजनीतिज्ञों पर हमला करना लोकतन्त्र/जनतंत्र की जड़ों मे 'मट्ठा' डालना है।
~विजय राजबली माथुर ©
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।
No comments:
Post a Comment
इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है.फिर भी तर्कसंगत असहमति एवं स्वस्थ आलोचना का स्वागत है.किन्तु कुतर्कपूर्ण,विवादास्पद तथा ढोंग-पाखण्ड पर आधारित टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं किया जाएगा;इसी कारण सखेद माडरेशन लागू है.