Saturday, January 25, 2014

हत्या-आत्महत्या-मार्क्सवाद पर जगदीश्वर जी की चिंता का समाधान ---विजय राजबली माथुर

 
फेसबुक वाल-24 जनवरी 2014






 प्रख्यात मार्क्सवादी चिंतक कामरेड जगदीश्वर चतुर्वेदी जी ने समयोचित वांछित प्रश्न उठाया है। अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुये अर्जित जानकारी के आधार पर मैंने इसी ब्लाग के माध्यम से अनेकों बार दोहराया है कि,मूलतः 'साम्यवाद' भारतीय अवधारणा है और इसे भारतीय ज्ञान-विज्ञान के आधार पर ही सफल बनाया जा सकता है। महर्षि कार्ल मार्क्स ने जर्मनी और ब्रिटेन के मजदूरों की दुर्दशा देखते हुये अपने अध्यन -अनुभव द्वारा केवल और केवल 'आर्थिक पक्ष' का ही समाधान प्रस्तुत किया है। मनुष्य को जीवन से मृत्यु तक आर्थिक के अतिरिक्त और तीन पक्षों को साथ लेकर चलने की आवश्यकता भारतीय मनीषियों ने बताई है। किन्तु मार्क्सवादी/साम्यवादी 'अंध-विश्वास'के आधार पर केवल 'आर्थिक' पक्ष पर ही विचार करते हैं शेष तीन और पक्षों की नितांत अवहेलना करते रहते हैं और इसी कारण असफलताओं का वरण करते रहते हैं। असफलता की निराशा ही 'हत्या' या 'आत्महत्या' को प्रेरित करती है। नब्बे वर्षों के एक-पक्षीय 'साम्यवादी शासन' का सोवियत रूस से उखड़ जाना इसीलिए संभव हुआ क्योंकि बाकी जीवनोपयोगी पक्षों की अवहेलना से वहाँ मानव का सर्वांगीण विकास अवरुद्ध हो गया था। 

मैथिली शरण गुप्त जी की कविता हमें 'निराश' न होने की प्रेरणा देती है :

नर हो न निराश करो मन को

"कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रह के निज नाम करो।

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो!
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को।

सँभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला!
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना।
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को।।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ!
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठ के अमरत्व विधान करो।
देवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को।।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे।
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को।।"


हमारे देश के भी और विदेशी विद्वान भी धर्म,अध्यात्म,भगवान,देवता आदि के वही गलत मतलब मानते हैं जिनको पोंगापंथी शोषक-उत्पीड़क वर्ग के पुजारी/पुरोहित बतलाते हैं। 'विज्ञान' प्रयोगशाला में किए गए रासायनिक परीक्षण ही नहीं हैं बल्कि 'किसी भी विषय के नियमबद्ध एवं क्रमबद्ध अध्यन को विज्ञान' कहा जाता है। विज्ञान के निष्कर्ष किसी के  मानने या न मानने से बदल नहीं सकते हैं। उदाहरणार्थ विज्ञान का निष्कर्ष हमें बताता है कि,:
H2O=जल-पानी-वाटर अब यदि कोई इसे न माने तो क्या इसी अनुपात में पानी के अतिरिक्त कोई और पदार्थ बन सकता है?

H2O2 यदि कोई कर दे और पानी की उपलब्धता की घोषणा करे तो क्या वह पानी हाजिर कर सकेगा? नही न क्योंकि वह तो हाईड्रोजन पराकसाईड बन कर उड़ जाएगा। ठीक यही गति उन मनुष्यों की भी होती है जो मानव जीवन को धारण करने वाले अन्य तीन पक्षों की उपेक्षा करके केवल और केवल आर्थिक पक्ष में क्रान्ति करके 'मानव द्वारा मानव के शोषण को समाप्त करने' की आशाएँ जगा बैठते हैं।

मानव जीवन को समुन्नत बनाने हेतु चार तथ्यों की आवश्यकता है और वे हैं:
धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष।
अब केवल 'अर्थ' पर ज़ोर देकर और बाकी तीन को छोड़ कर आप कैसे शोषण-उत्पीड़न को समाप्त कर सकते हैं? और चूंकि 'ज़िद्द' व 'अंध-विश्वास' से ग्रस्त हैं अतः  स्वंय में सुधार कर नहीं सकते तो 'निराशा'  ही हाथ लगेगी जो या तो दूसरे की 'हत्या' कराएगी या फिर 'आत्महत्या' । कामरेड जगदीश्वर चतुर्वेदी जी की यही वाजिब चिंता है।

'धर्म'=जो मानव शरीर और समाज को धारण करने के लिए आवश्यक हैं; जैसे-
सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य ।
जब हम 'धर्म' का विरोध करेंगे तो मानव के लिए जीवनोपयोगी इन सद्गुणों की अवहेलना ही करेंगे। यह उस गलत सोच की वजह से है कि धर्म  तो केवल पोंगा-पंडितों द्वारा फैलाया पाखंड  ही है। ऐसा करके साम्यवादी/मार्क्सवादी शोषकों-उतपीडकों के लिए मैदान खुला छोड़ देते हैं जिसका लाभ भारतीय संदर्भ में RSS/भाजपा/आ आ पा सरीखे शोषकों के हितैषी उठा ले जाते हैं। यदि साम्यवादी/मार्क्सवादी जनता को 'धर्म' का वास्तविक अर्थ समझाएँ और जागरूक करें तो जनता शोषकों-उतपीडकों के बुने जाल से बाहर आ सकती है। किन्तु वे ऐसा न करके ऐसा करने के कारण मेरी निंदा व विरोध करते हैं और कालांतर से पोंगापंथियों को प्रश्रय ही देते हैं।

बाईं ओर  हाथ के पास माला वाली कुर्सी पर बैठे-कामरेड रमेश मिश्रा ,पूर्व जिलमंत्री आगरा भाकपा उनके साथ हैं इप्टा के राष्ट्रीय  महा -सचिव कामरेड जितेंद्र रघुवंशी 


आगारा  भाकपा के पूर्व जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी ने (2008 में ज़िला सम्मेलन हेतु  मुझे रिपोर्ट डिक्टेट कराते वक्त अनौपचारिक रूप से वार्ता के दौरान)सोवियत रूस में साम्यवाद की विफलता का कारण वहाँ भ्रष्टाचार व अनैतिकता को बताया था। वह खुद जूता उद्योग से संबन्धित थे और उनके संबंध आगरा के जूता उद्यमियों से थे। सोवियत रूस के पतन के बाद आगरा का जूता उद्योग भी जर्जर हो गया था। आगरा के जूता उद्यमी जिन पर भाजपा/RSS का वर्चस्व रहा है सोवियत रूस के जूता उद्योग से आए प्रतिनिधियों को धन और सेक्स के जरिये खरीद लेते थे जिससे रूस में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला। इसी प्रकार अन्य उद्योगों में अन्य देशों द्वारा भी रूस में भ्रष्टाचार व अनैतिकता को बढ़ाया गया जिससे वहाँ साम्यवादी शासन का पतन संभव हो सका।पूर्व पार्टी पदाधिकारियों व सरकारी अधिकारियों ने भ्रष्टाचार द्वारा अर्जित धन से सरकारी उद्यमों को खरीद लिया और खुद पूंजीपति बन बैठे। 

अब यदि मार्क्सवादी अंधविश्वास के कारण 'धर्म' की उपेक्षा न की गई होती तो रूस के प्रतिनिधि न तो भारतीय या अन्य  देशों के व्यापारियों से रिश्वत का धन लेते और न ही 'ब्रह्मचर्य' व्रत के कारण सेक्स में फंस कर गिरते। कम से कम रूस में लगी ठोकर के मद्दे नज़र भारत के साम्यवादी/मार्क्सवादी खुद को सुधार लें तो निश्चय ही सफल हो सकेंगे।

इसी प्रकार 'भगवान','खुदा' या गाड वह नहीं है जिसे पोंगा-पंडित,मुल्ला-मौलवी,पादरी आदि बताते हैं। मानव जीवन ही नहीं संसार के समस्त प्राणियों के अस्तित्व के लिए जिन पाँच तत्वों की नितांत आवश्यकता  होती है उनका समुच्य ही 'भगवान','खुदा' या गाडहैं:
भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)=भगवान । 

चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इनको किसी ने बनाया नहीं है इसलिए ये ही  'खुदा' हैं। 

और इन तत्वों का कार्य है:
G(जेनरेट)+O(आपरेट)+D(डेसट्राय) =GOD

देवता=जो देता है और लेता नहीं है ;जैसे-भूमि,गगन,वायु,अग्नि,जल,वृक्ष,नदी,समुद्र,आदि न कि पोंगा-पंडितों द्वारा घोषित बकवास। 

समस्या यहीं पर है कि साम्यवादी/मार्क्सवादी 'सत्य' को स्वीकारने को तैयार नहीं हैं और मानव -हित की इन बातों को धर्म के विरोध के नाम पर ठुकरा देते हैं तथा इस प्रकार पोंगा-पंडितों/मुल्ला-मौलवियों/पादरियों आदि के भ्रष्ट एवं शोषक-उत्पीडंणकारी आख्यानों को 'धर्म' की संज्ञा देते हैं। जबकि  समाधान यह है कि साफ-साफ कहा जाना चाहिए कि आडंबर और पोंगापंथ धर्म नहीं है और जनता उनसे बच कर 'धर्म' का पालन करे। काश अब भी समय रहते साम्यवादी/मार्क्सवादी चेत जाएँ और हकीकत को पहचान व समझ कर तदनुकूल अपना आचरण व कार्य-व्यवहार अपनाएं तो सफलता हमारे चरण चूम लेगी।


  ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

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