Wednesday, October 8, 2014

समय की मांग : ' संयुक्त साम्यवादी मोर्चा' -----विजय राजबली माथुर







*"संत कबीर आदि दयानंद सरस्वती,विवेकानंद आदि महापुरुषों ने धर्म की विकृतियों तथा पाखंड का जो पर्दाफ़ाश किया है उनका सहारा लेकर भारतीय कम्यूनिस्टों को जनता के समक्ष जाना चाहिए तभी अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति और जनता का शोषण समाप्त किया जा सकता है.दरअसल भारतीय वांग्मय में ही कम्यूनिज्म सफल हो सकता है ,यूरोपीय वांग्मय में इसकी विफलता का कारण भी लागू करने की गलत पद्धतियाँ ही थीं.सम्पूर्ण वैदिक मत और हमारे अर्वाचीन पूर्वजों के इतिहास में कम्यूनिस्ट अवधारणा सहजता से देखी जा सकती है -हमें उसी का आश्रय लेना होगा तभी हम सफल हो सकते हैं -भविष्य तो उज्जवल है बस उसे सही ढंग से कहने की जरूरत भर है."
http://communistvijai.blogspot.in/2013/09/blog-post.html   

*'पदम्श्री 'डॉ कपिलदेव द्विवेदी जी कहते हैं कि,'भगवद  गीता' का मूल आधार है-'निष्काम कर्म योग'
"कर्मण्ये वाधिकारस्ते ....................... कर्मणि। । " (गीता-2-47)

इस श्लोक का आधार है यजुर्वेद का यह मंत्र-
"कुर्वन्नवेह कर्मा................... न कर्म लिपयाते नरो" (यजु.40-2 )

इसी प्रकार सम्पूर्ण बाईबिल का मूल मंत्र है 'प्रेम भाव और मैत्री' जो यजुर्वेद के इस मंत्र पर आधारित है-
"मित्रस्य मा....................... भूतानि समीक्षे।  ....... समीक्षा महे । । " (यजु .36-18)

एवं कुरान का मूल मंत्र है-एकेश्वरवाद-अल्लाह की एकता ,उसके गुण धर्मा सर्वज्ञ सर्व शक्तिमान,कर्त्ता-धर्त्तासंहर्त्ता,दयालु आदि(कुरान7-165,12-39,13-33,57-1-6,112-1-4,2-29,2-96,87-1-5,44-6-8,48-14,1-2,2-143 आदि )। 

इन सबके आधार मंत्र हैं-

1-"इंद्रम मित्रम....... मातरिश्चा नामाहू : । । " (ऋग-1-164-46)
2-"स एष एक एकवृद एक एव "। । (अथर्व 13-4-12)
3-"न द्वितीयों न तृतीयच्श्तुर्थी नाप्युच्येत। । " (अथर्व 13-5-16)


पहले के विदेशी शासकों ने हमारे महान नेताओं -राम,कृष्ण आदि को बदनाम करने हेतु तमाम मनगढ़ंत कहानियाँ यहीं के चाटुकार विद्वानों को सत्ता-सुख देकर लिखवाई जो 'पुराणों' के रूप मे आज तक पूजी जा रही हैं। बाद के अंग्रेज़ शासकों ने तो हमारे इतिहास को ही तोड़-मरोड़ दिया। यूरोपीय इतिहासकारों ने लिख दिया आर्य एक जाति-नस्ल थी जो मध्य यूरोप से भारत एक आक्रांता के रूप मे आई थी जिसने यहाँ के मूल निवासियों को गुलाम बनाया। इसी झूठ को ब्रह्म वाक्य मानते हुये 'मूल निवासियों भारत को आज़ाद करो' आंदोलन चला कर भारत को छिन्न-भिन्न करने का कुत्सित प्रयास चल रहा है।  

http://communistvijai.blogspot.in/2013/10/blog-post_12.html 

*किन्तु बुद्धिजीवी विद्वान अभी भी 18वीं सदी की सोच से साम्यवाद लाने के नाम पर नित्य ही साम्राज्यवाद के हाथ मजबूत कर रहे हैं  फेसबुक पर अपने थोथे  बयानों से।और तो और मजदूर नेता एवं विद्वान कामरेड ने तो तब हद ही कर दी जब RSS की वकालत वाला एक लेख ही शेयर कर डाला।
http://communistvijai.blogspot.in/2013/10/blog-post_13.html  

*Asrar Khan  ..../ मैं नौ साल की उम्र में कम्युनिस्ट बन गया था इस तरह २२ साल की उम्र में माकपा का असली चेहरा सामने आ चुका था ...अगर भारत का वामपंथी आंदोलन सही दिशा में आगे बढ़ा होता तो मैं भी वहीँ होता और मेरे जैसे अनेकों लोग जो वामपंथ से निराश होकर इधर-उधर विखर गए हैं और उनकी भूमिका संदिग्ध नज़र आ रही है वे भी वाम के लिए मर मिटते ..
http://communistvijai.blogspot.in/2013/10/blog-post_19.html  
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उत्तर-प्रदेश के जुझारू और कर्मठ नेता कामरेड सरजू पांडे जी की एक प्रतिमा गाजीपुर कचहरी में स्थापित हुई है फागू चौहान साहब के विशेष प्रयास से कामरेड झारखण्डे राय और कामरेड जय बहादुर सिंह की प्रतिमाएँ लगभग आठ वर्षों से तैयार हैं और उनका अनावरण 30 नवंबर 2013 को मुलायम सिंह जी द्वारा मऊ में होना था जिसमें वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता कामरेड वर्द्धन जी तथा उनके साथ अतुल अंजान साहब को आना था। किन्तु भाकपा, उत्तर प्रदेश के शक्तिशाली नेता जो अकेले दम पर पार्टी चलाने का दावा करते हैं ने अपने मौसेरे भाई आनंद प्रकाश तिवारी द्वारा वर्द्धन जी तथा अंजान साहब के विरुद्ध घृणित अभियान चला कर इस कार्यक्रम को स्थगित करा दिया। हालांकि केजरीवाल की आ आ पा से संसदीय टिकट मांगने को आधार बना कर अब ए पी तिवारी को निष्कासित किया जा चुका है परंतु उस अभियान ने यह बू भी दी कि पांडे जी के ब्राह्मण होने के कारण उनकी मूर्ती स्थापित होने दी गई जबकि कामरेड झारखण्डे राय और कामरेड जय बहादुर सिंह के गैर ब्राह्मण होने तथा उस कार्यक्रम में गैर ब्राह्मण नेताओं (कामरेड वर्द्धन जी और अंजान साहब ) को आमंत्रित किए जाने के कारण ही कार्यक्रम स्थगित कराया गया है। जब तक उस संकुचित विचारों वाले शक्तिशाली पोंगापंथी व्यक्ति के प्रभाव से पार्टी को मुक्त नहीं कराया जाता तब तक उत्तर-प्रदेश में न तो पार्टी का विस्तार हो सकेगा और न ही साम्यवादी अथवा वामपंथी आंदोलन मजबूत हो सकेगा और हिन्दी प्रदेशों यथा बिहार व उत्तर प्रदेश में भाकपा को मजबूत किए बगैर जितने भी प्रयास किए जाएँगे सार्थक व सफल नहीं हो सकेंगे :यह एक ऐतिहासिक सत्य है । 





  ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

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