Vijai RajBali Mathur added 2 new photos.
19-11-2015 at 9:30am · Lucknow ·
उत्पादक (किसान तथा मजदूर ) और उपभोक्ता (जनता )का एक साथ उत्पीड़न व शोषण करने वाला व्यापारी वर्ग बड़ी ही धूर्तता के साथ सारी विकृतियों का दोष 'राजनीति' और 'राजनीतिज्ञों' पर मढ़ कर अपनी जकड़बंदी को मजबूत करता रहता है। अपने गलत कार्यों में रिश्वत के जरिये अधिकारियों व राजनीतिज्ञों को पहले खरीदने की प्रवृति थी, फिर अपने चहेते लोगों को राजनीति में आगे करके राजनीति को खरीदने की अब तो व्यापारी/उद्योगपति खुद ही चुनाव लड़ कर विधानसभाओं व लोकसभा/राज्यसभा में छा गए हैं तब भी बदनाम राजनीतिज्ञों को ही करना है। यह इसलिए कि जनता वास्तविक लुटेरे को पहचान न सके और राजनीतिज्ञों को दोषी मान कर उनके विरुद्ध खड़ी हो जाये। इसी हेतु हज़ारे/केजरीवाल आंदोलन खड़ा करके व्यापारियों/साम्राज्यवादियो की फासिस्ट सरकार केंद्र में गठित करवा दी अब उसे मजबूत तानाशाही में बदलने हेतु व्यापारियों द्वारा राजनीतिज्ञों पर प्रहार की नई प्रक्रिया शुरू की गई है। प्रबुद्ध जनता को इस खतरे को भाँपना व सचेत रहना होगा अन्यथा लोकतन्त्र का खात्मा इन व्यापारियों का लक्ष्य है ही जिसे वे आसानी से हासिल कर लेंगे।
ज्योतिष= ज्योति +इष (ज्योति=प्रकाश +इष =ज्ञान )। लेकिन व्यापारी वर्ग की बुद्धि देखिये कि राजनीति के साथ-साथ ज्योतिष पर भी प्रहार किया जाता है जिससे जनता वास्तविक ज्ञान से दूर रहे और व्यापारियों के हितैषी ब्राह्मणों के अनर्थकारी चंगुल में फंस कर खुद को लुटवाती रहे। मंदिर का ढ़ोंगी पुजारी या सड़क किनारे बैठा व्यापारी ज्योतिषी नहीं ठग होता है लेकिन उसका विरोध न करके ज्योतिष का ही मखौल उड़ाया जाता है तब स्पष्ट है कि, व्यापारियों के छल-कपट पर पर्दा डालना अभीष्ट है।
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/970862519642391?pnref=story
लेकिन कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि प्रगतिशील कहे जाने वाले विद्वान भी आर एस एस के भंवर जाल में इस कदर फंस चुके हैं कि उससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। ज्वलंत उदाहरण के रूप में मेरे द्वारा व्यक्त निम्नोक्त टिप्पणियाँ प्रस्तुत हैं जिनको डिलीट कर दिया गया है । अतः मैंने पोस्ट लेखिका को अंफ्रेंड तो कर दिया परंतु जो प्रश्न मैंने प्रगतिशील तबके के समक्ष उठाया है उसका उत्तर बड़े से बड़े विद्वान के भी पास इसलिए नहीं है क्योंकि वे 'हिन्दू' और 'हिन्दुत्व' के मकड़जाल से बाहर निकलना और जनता को निकालना ही नहीं चाहते हैं। केवल हवा में लट्ठ / तलवार चलाने से आप अपने शत्रु को नहीं परास्त कर सकते हैं।
~विजय राजबली माथुर ©
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।
19-11-2015 at 9:30am · Lucknow ·
उत्पादक (किसान तथा मजदूर ) और उपभोक्ता (जनता )का एक साथ उत्पीड़न व शोषण करने वाला व्यापारी वर्ग बड़ी ही धूर्तता के साथ सारी विकृतियों का दोष 'राजनीति' और 'राजनीतिज्ञों' पर मढ़ कर अपनी जकड़बंदी को मजबूत करता रहता है। अपने गलत कार्यों में रिश्वत के जरिये अधिकारियों व राजनीतिज्ञों को पहले खरीदने की प्रवृति थी, फिर अपने चहेते लोगों को राजनीति में आगे करके राजनीति को खरीदने की अब तो व्यापारी/उद्योगपति खुद ही चुनाव लड़ कर विधानसभाओं व लोकसभा/राज्यसभा में छा गए हैं तब भी बदनाम राजनीतिज्ञों को ही करना है। यह इसलिए कि जनता वास्तविक लुटेरे को पहचान न सके और राजनीतिज्ञों को दोषी मान कर उनके विरुद्ध खड़ी हो जाये। इसी हेतु हज़ारे/केजरीवाल आंदोलन खड़ा करके व्यापारियों/साम्राज्यवादियो की फासिस्ट सरकार केंद्र में गठित करवा दी अब उसे मजबूत तानाशाही में बदलने हेतु व्यापारियों द्वारा राजनीतिज्ञों पर प्रहार की नई प्रक्रिया शुरू की गई है। प्रबुद्ध जनता को इस खतरे को भाँपना व सचेत रहना होगा अन्यथा लोकतन्त्र का खात्मा इन व्यापारियों का लक्ष्य है ही जिसे वे आसानी से हासिल कर लेंगे।
ज्योतिष= ज्योति +इष (ज्योति=प्रकाश +इष =ज्ञान )। लेकिन व्यापारी वर्ग की बुद्धि देखिये कि राजनीति के साथ-साथ ज्योतिष पर भी प्रहार किया जाता है जिससे जनता वास्तविक ज्ञान से दूर रहे और व्यापारियों के हितैषी ब्राह्मणों के अनर्थकारी चंगुल में फंस कर खुद को लुटवाती रहे। मंदिर का ढ़ोंगी पुजारी या सड़क किनारे बैठा व्यापारी ज्योतिषी नहीं ठग होता है लेकिन उसका विरोध न करके ज्योतिष का ही मखौल उड़ाया जाता है तब स्पष्ट है कि, व्यापारियों के छल-कपट पर पर्दा डालना अभीष्ट है।
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/970862519642391?pnref=story
लेकिन कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि प्रगतिशील कहे जाने वाले विद्वान भी आर एस एस के भंवर जाल में इस कदर फंस चुके हैं कि उससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। ज्वलंत उदाहरण के रूप में मेरे द्वारा व्यक्त निम्नोक्त टिप्पणियाँ प्रस्तुत हैं जिनको डिलीट कर दिया गया है । अतः मैंने पोस्ट लेखिका को अंफ्रेंड तो कर दिया परंतु जो प्रश्न मैंने प्रगतिशील तबके के समक्ष उठाया है उसका उत्तर बड़े से बड़े विद्वान के भी पास इसलिए नहीं है क्योंकि वे 'हिन्दू' और 'हिन्दुत्व' के मकड़जाल से बाहर निकलना और जनता को निकालना ही नहीं चाहते हैं। केवल हवा में लट्ठ / तलवार चलाने से आप अपने शत्रु को नहीं परास्त कर सकते हैं।
~विजय राजबली माथुर ©
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