'आधार बना देगा नागरिकों को कैदियों से बदतर'
राज्यसभा की ओर से दिए गए सुझावों को अस्वीकार करते हुए आधार विधेयक 2016 को संसद में पास कर दिया गया है. विपक्ष के अलावा सिविल सोसाइटी से जुड़े कुछ बुद्धिजीवी भी इसका विरोध करते रहे हैं.
यूआईडी आधार के खिलाफ काम कर रहे कार्यकर्ता गोपाल कृष्ण इसे 'संविधान पर हमला' मानते हैं. डॉयचे वेले से बात करते हुए गोपाल कृष्ण इस विधेयक को एक छद्म विधेयक बताते हुए कहते हैं, ''2010 में आधार बिल डायरेक्ट तरीके से पास नहीं हो पाया तो सरकार ने इंडायरेक्ट तरीके से इसे मनी बिल के बतौर पेश किया. इस पूरे विधेयक का हम लोगों ने अध्ययन किया है. उसके अध्ययन से भी ये स्पष्ट होता है कि ये धन विधेयक नहीं है. साथ ही ये नागरिकों के अधिकारों पर हमला है और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है.''
गोपाल कृष्ण कहते हैं, ''जिस तरह से आधार के तहत अंगुलियों के निशान और आंखों की तस्वीरें ली जा रही हैं वे नागरिकों को कैदियों की स्थिति से भी बदतर हालत में खड़ा कर देता है. क्योंकि कैदी पहचान कानून के तहत ये प्रावधान है कि कैदी अगर बाइज्जत बरी होता है या सजा काट लेता है तो उसके अंगुलियों के निशान को नष्ट कर दिया जाता है. आधार के मामले में ये कभी नष्ट नहीं होगा.''
वित्तमंत्री अरूण जेटली ने आधार के जरिए जुटाए जा रहे बायोमेट्रिक आंकड़ों को पूरी तरह सुरक्षित बताया है. राज्यसभा में उन्होंने कहा ''ये केवल खास मकसद से है और सटीक तरीका भी इसके लिए बनाया गया है. ये कहना कि इस जानकारी का वैसे इस्तेमाल किया जाएगा जैसे नाजी लोगों को टार्गेट करने के लिए इस्तेमाल करते थे. मुझे ये लगता है कि ये महज एक राजनैतिक बयान है. ये ठीक नहीं है.''
लेकिन गोपाल कृष्ण वित्तमंत्री अरूण जेटली पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि वे तथ्यों को गलत ढंग से पेश कर रहे हैं, ''हम लोगों ने सूचना के अधिकार के तहत वे कॉन्ट्रेक्ट एग्रीमेंट निकाले हैं.. उसमें स्पष्ट लिखा गया है कि ऐक्सेंचर, साफ्रान ग्रुप, एर्नेस्ट यंग नाम की ये कंपनियां भारतवासियों के इन संवेदनशील बायोमेट्रिक आंकड़ों को सात साल के लिए अपने पास रखेगी.''
गोपाल कृष्ण दूसरे देशों का उदाहरण देते हुए कहते हैं, ''दूसरे देशों ने इस तरह की परियोजनाओं पर जो कदम उठाए उनके अनुभवों को दरकिनार करके ये विधेयक लाया गया है. यूरोप में जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन के अलावा अमेरिका, चीन, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में इस तरह की परियोजनाओं को रोक दिया गया है.''
गोपाल कृष्ण इस परियोजना को विदेशी बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी कंपनियों के मुनाफे के लिए बनाई गई योजना बताते हुए कहते हैं, ''आधार परियोजना में हर एक पंजीकरण पर 2 रूपया 75 पैसा खर्च हो रहा है. भारत की आबादी लगभग 125 करोड़ के आस पास है. ना सिर्फ पंजीकरण के समय बल्कि जब जब इसे इस्तेमाल किया जाएगा, डिडुप्लिकेशन के नाम पर इन कंपनियों को ये मुनाफा पहुंचाया जाएगा. इन बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी कंपनियों को मुनाफा पहुंचाने के लिए ये सब किया जा रहा है. गोपाल मानते हैं कि ये देशहित में नहीं है और ये मानवाधिकारों का बड़ा उल्लंघन है.''
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~विजय राजबली माथुर ©
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-03-2016) को "दुखी तू भी दुखी मैं भी" (चर्चा अंक - 2286) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'