Friday, December 23, 2016

नोटबंन्दी का डिजास्टर स्ट्रोक : राष्ट्रहित के खिलाफ है एक संदिग्ध कंपनी को भारतीय वित्त व्यवस्था से जोड़ना ........... गिरीश मालवीय


Girish Malviya
इस देश मे काला धन सिर्फ 6% ही नकद रूप मे बच पाता है क्योकि ब्यूरोक्रेट और बड़े पूंजीपति और व्यापारी अपना काला धन साल दर साल विदेशो मे अधिकृत रूप या अनाधिकृत रूप से भेजते रहे है..............
इस पोस्ट हम इन अधिकृत रूप और अनाधिकृत दोनों रूपो को समझने की कोशिश करेंगे ......और यह भी जानेंगे क़ि मोदी सरकार अपने ढाई वर्ष के कार्यकाल मे काले धन के बाहर भेजे जाने के प्रति कितनी गंभीर रही है..............
हम पहले काले धन के बाहर भेजे जाने के अधिकृत तरीके (यानी उपहार, दान, चिकित्सा आदि खर्च के रूप मे ) की चर्चा करेंगे..................
आप को यह जान कर बेहद आश्चर्य होगा क़ि मोदी जी काले धन के बाहर भेजे जाने के प्रति इतने उदार रहे है क़ि, मोदी सरकार ने सत्ता मे आते ही सबसे पहले यह काम किया कि विदेश मे पैसा भेजने की लिमिट बढ़ा दी...........
सरकार ने अपने शुरूआती समय में ही विदेशों को धन भेजने की योजना से राशि सीमा सवा लाख डॉलर तक कर दी। लेकिन इतने से ही इनका मन नहीं भरा तो 26 मई 2015 को मोदी सरकार ने इसकी सीमा और आगे बढाकर ढाई लाख डॉलर कर दी...........
इसका परिणाम यह हुआ क़ि मोदी सरकार आने के बाद भारत से विदशों में भेजी जाने वाली राशि में 130 फीसदी की बढ़ोतरी हुई
जहाँ मनमोहन सिंह के दौर में साल 2013 में इन रास्तों से विदेश भेजी जाने वाली राशि 10,400 करोड़ थी वहीँ अब यह राशि 2015 -16 में बढ़कर 30 हजार करोड़ पुहंच गयी
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों की माने तो मोदी सरकार के दौर में ही साल 2016 की बात करें तो अब तक देश से 4.6 बिलियन डॉलर की रकम को विभिन्न तरीकों से देश से बाहर भेजा गया
यानी काला धन बाहर भेजने वालो ने इस छूट का भरपूर लाभ उठाया.........
यह तो रही अधिकृत तरीके की बात अब जरा अनधिकृत तरीके से काला धन विदेश भेजे जाने की चर्चा कर ली जाये........
सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने 2015 की शुरुआत मे एक बड़े मामले की जांच शुरू की थी आरोप था कि 6,172 करोड़ रुपये की राशि बैंक आफ बड़ौदा से हांगकांग भेजी गई। यह राशि काजू, दलहन और चावल निर्यात के रूप में भेजी गई, जबकि वास्तव में निर्यात हुआ ही नहीं था............
कांग्रेस नेता आर एन सिंह ने इस वक्त यह आरोप लगाया था कि 59 कंपनियों से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऑफ बड़ौदा में खाते खुलवा करके काजू, चावल तथा दालें खरीदने के लिय यह पैसा हांगकांग भिजवाया गया। घोटाले की यह प्रक्रिया डेढ़ साल से चल रही थी और केंद्र सरकार की नाक के नीचे यह सब कुछ होता रहा लेकिन उन्हें रोका नहीं गया.............
इसी प्रकार ओरिएंटल बैंक आफ कामर्स की गाजियाबाद स्थित शाखा के माध्यम से भी 550 करोड रूपए हांगकांग भेजे गए
इन मामलो मे कार्यवाही के नाम पर बैंक अधिकारियों का निलंबन जैसी कार्यवाही कर कर्तव्य की इति श्री कर ली गयी
इसी संदर्भ में प्रसिद्ध पनामा पेपर लीक को भी याद कीजिये जहाँ
पनामा की एक कानूनी फर्म मोसेक फोंसका के कुछ दस्तावेज उजागर हुए थे जिसमें कई भारतीयों द्वारा कागजी कंपनी स्थापित करने एवं बैंक खाता खोलने के मामले सार्वजनिक हुए हैं ..........और ऐसे ही निजी और सार्वजनिक बैंकों के अनेक मामले अब नोटबंदी के बाद खुल कर सामने आये है..........
कहने का तात्पर्य बस इतना है कि ऐसा नहीं है कि कांग्रेसी सरकार के समय काला धन विदेशो मे नहीं भेजा गया होगा पर मोदी सरकार के ढाई साल के कार्यकाल मे भी इस प्रकार की मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने की कोई कार्यवाही नहीं की गयी बल्कि बढ़ावा दिया गया यदि यह खेल पहले दिन से रोक दिया जाता तो मोदी जी का नोटबंन्दी का डिजास्टर स्ट्रोक खेलने की कोई जरुरत ही नहीं होती................
Girish Malviya
https://www.facebook.com/girish.malviya.16/posts/1358516657513312


Girish Malviya

पेटीएम कंपनी का स्वामित्व किसके पास है यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इस कंपनी के साथ भारत सरकार ने जियो की तरह सभी देशवासियों के आधार कार्ड के डाटा को साझा किया है, और इसी डाटा से कंपनी ने कई ग्राहक की बायोमेट्रिक पध्दति से e-kyc को कंप्लीट किया है ...........
पेटीएम को irctc यानि रेलवे के टिकटों की खरीदी बिक्री से सीधे जोड़ा गया है इसके लिए सिर्फ इसी कंपनी का पेमेंट गेटवे यूज़ किये जाने की खबर है,और तो और नैशनल हाईवे अथॉरिटी के चेयरमैन राघव चंद्रा ने माना है कि पेटीएम ने ऑटोमेटिक टोल कलेक्शन के कॉन्ट्रेक्ट को हासिल कर लिया है ...................
सरकार दिनप्रतिदिन इसे सरकारी योजनाओं से जोड़े जा रही है,मेट्रो के टिकट, बिजली बिल का भुगतान , आदि सेवाओ से paytm को पहले से ही जोड़ लिया गया है........... 
भारत में होने वाले क्रिकेट मैच के टिकट को बेचने का पहला अधिकार भी इसी कम्पनी के पास है,...............
यानी यह कंपनी बड़े पैमाने पर बिना स्पष्ट बैंकिंग लाइसेंस लिए भारत के नागरिकों के धन का आरहण और वितरणं कर रही है और रिजर्व बैंक ने इसे मात्र डिजिटल वालेट खोलने की अनुमति दी है तो इसके स्वामित्व को लेकर प्रश्न खड़े किये जाना सामयिक ही नहीं बल्कि अति महत्वपूर्ण विषय है.................
विजय शेखर शर्मा जिन्हें इस कंपनी का मालिक बताया जाता है उनकी इस कम्पनी मे भागीदारी मात्र 20% की है यह सिर्फ २०% का हिस्सेदार को पूरी कम्पनी की कमान इसलिए सोपी गयी है ताकि इस कम्पनी के भारतीय अधिपत्य की कहानी से लोगो को बहलाया जा सके................... 
41% की भागीदारी चीन कीअलीबाबा कम्पनी के पेमेन्ट गेटवे अलीपे की है, कहते है कि रतन टाटा की एक छोटी सी हिस्सेदारी इस कम्पनी मे है कितनी है यह किसी को नहीं मालूम ...........
यानि बचे हुए 39% पर अँधेरा बरक़रार है लेकिन इस अँधेरे पर प्रतिष्ठित पत्रिका बिजनेस स्टैण्डर्ड का 30 नवम्बर 2016 का अंक रोशनी डालता है इस खबर के मुताबिक "पेटीएम कंपनी के डॉक्यूमेंट बताते है कि पिछले कुछ महीनो मे केमन आइलैंड की एक कंपनी व्दारा पेटीएम को 600000 शेयर के बदले 60 मिलियन डॉलर यानि भारतीय मुद्रा मे 402 करोड़ का भुगतान किया गया है...................... और चाइनीज भागीदारी के अतिरिक्त इस बात को भी आरएसएस को भी संज्ञान में लेना चाहिए"..........................
(खबर का लिंक कॉमेंट बॉक्स मे है).....................
कैमेंन आइलैंड टैक्स हेवेन कंट्री मे शुमार किया जाता है जैसा क़ि पनामा भी है और यह भी माना जाता है कि बड़े पैमाने पर दुनिया भर के भ्रष्ट राजनेता और ब्यूरोक्रेट का धन इन कंपनियों मे लगाया जाता है, और इन ऑफशोर कम्पनियो के मालिकों के हितों उस टैक्स हेवन देशों की सरकारें करती है...............
अगर यह खबर सच है तो आप खुद अंदाजा लगा सकते है कि देश मे इस कंपनी से किसके हित जुड़े हुए है और इन टैक्स हेवन देशों के जरिये कोन अपना कालधन सफ़ेद कर रहा है.............
लेकिन कुछ भी हो एक संदिग्ध कंपनी को भारतीय वित्त व्यवस्था से जोड़ना राष्ट्रहित के खिलाफ है...........

Girish Malviya


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~विजय राजबली माथुर ©

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