2011 में सोनिया जी के विदेश में इलाज कराने जाने के वक्त से डॉ मनमोहन सिंह जी हज़ारे/केजरीवाल के माध्यम से संघ से संबंध स्थापित किए हुये थे जिसके परिणाम स्वरूप 2014 के चुनावों में सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों ने भी परिणाम प्रभावित करने में अपनी भूमिका अदा की है।
1967,1975 ,1980,1989 में लिए गए इन्दिरा जी व राजीव जी के निर्णयों ने 2014 में भाजपा को पूर्ण बहुमत तक पहुंचाने में RSS की भरपूर मदद की है।
हमारे विद्वान क्यों सतही बातों से प्रभावित हो जाते हैं और तथ्य की गहराई तक जाये बिना ही आसान निष्कर्ष निकाल लेते हैं जैसा गिरीश मालवीय जी ने किया ? आइये तथ्यावलोकन करें : यों तो इंदिराजी की हत्या के बाद भी प्रणब मुखर्जी साहब पी एम बनने की अपेक्षा करते रहे किन्तु राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी ने इंका महासचिव और सांसद राजीव गांधी को सीधे ही पी एम पद की शपथ दिलवा दी थी अतः उनको ही इंका संसदीय दल का नेता भी चुन लिया गया। शायद इसी वजह से दोनों में कुछ मतभेद भी हुये और प्रणब साहब ने ' समाजवादी कांग्रेस ' बना ली किन्तु 1989 के चुनावों के समय राजीव गांधी के नेतृत्व में समाजवादी कांग्रेस का कांग्रेस में विलय कर दिया था। 1991 में भी पी एम पद शायद इसीलिए पी नरसिंघा राव साहब को मिला कि, एक बार प्रणब साहब कांग्रेस से बाहर जा चुके थे वैसे उनकी राजनीतिक शुरुआत ' बांग्ला कांग्रेस ' के माध्यम से हुई थी जिसका गठन पूर्व केंद्रीय शिक्षामंत्री हुमायूँ कबीर द्वारा इन्दिरा जी के विरोध में किया गया था।
लेकिन जैसा कि, मनमोहन जी ने कहा उनको 2004 में इत्तेफाक से पी एम बना दिया गया यह बात भ्रामक है। जिन ताकतों ने उनको 1991 में वित्तमंत्री बनवाया था उनके द्वारा ही वह इस पद के लिए चयनित किए गए थे सोनिया जी ने तो अपनी पार्टी की मोहर भर लगाई थी। जैसा कि, पदमुक्त होने के बाद पी नरसिंघा राव साहब ने अपने उपन्यास ' THE INSIDER ' में स्पष्ट कर दिया था कि, " हम स्वतन्त्रता के भ्रमजाल में जी रहे हैं '' ।
यही वजह रही कि, सोनिया जी चाह कर भी प्रणब साहब को पी एम नहीं बनवा सकती थी। और जब 2009 में उन्होने प्रणब साहब को प्रस्तावित करना चाहा तब यही साफ़गोई वाले मनमोहन सिंह साहब अड़ गए थे और 2011 में सोनिया जी के विदेश में इलाज कराने जाने के वक्त से डॉ मनमोहन सिंह जी ने हज़ारे / केजरीवाल के माध्यम से संघ से संबंध स्थापित किए व कारपोरेट घरानों के सहयोग से भ्रष्टाचार संरक्षण आंदोलन शुरू करा दिया था। परंतु सोनिया जी ने 2012 में मनमोहन जी को राष्ट्रपति व प्रणब जी को पी एम बनाने की मुहिम शुरू कर दी तब जापान से लौटते वक्त हवाई जहाज में ही ये साफ़गोई वाले मनमोहन जी ने कहा कि, वह जहां हैं वहीं ठीक हैं बल्कि तीसरा मौका मिले तो उसके लिए भी तैयार हैं जिसके परिणाम स्वरूप 2014 के चुनावों में सरकारी अधिकारियों / कर्मचारियों ने भी परिणाम प्रभावित करने में अपनी भूमिका अदा की है । आज की मोदी सरकार के गठन में आर एस एस , भाजपा के साथ - साथ मनमोहन जी का भी अप्रत्यक्ष व महत्वपूर्ण हाथ है जिसको बताने की साफ़गोई से वह बखूबी बचे रहे हैं। इनके अलावा 1967,1975 ,1980,1989 में लिए गए इन्दिरा जी व राजीव जी के निर्णयों ने भी 2014 में भाजपा को पूर्ण बहुमत तक पहुंचाने में RSS की भरपूर मदद की है।
~विजय राजबली माथुर ©
1967,1975 ,1980,1989 में लिए गए इन्दिरा जी व राजीव जी के निर्णयों ने 2014 में भाजपा को पूर्ण बहुमत तक पहुंचाने में RSS की भरपूर मदद की है।
हमारे विद्वान क्यों सतही बातों से प्रभावित हो जाते हैं और तथ्य की गहराई तक जाये बिना ही आसान निष्कर्ष निकाल लेते हैं जैसा गिरीश मालवीय जी ने किया ? आइये तथ्यावलोकन करें : यों तो इंदिराजी की हत्या के बाद भी प्रणब मुखर्जी साहब पी एम बनने की अपेक्षा करते रहे किन्तु राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी ने इंका महासचिव और सांसद राजीव गांधी को सीधे ही पी एम पद की शपथ दिलवा दी थी अतः उनको ही इंका संसदीय दल का नेता भी चुन लिया गया। शायद इसी वजह से दोनों में कुछ मतभेद भी हुये और प्रणब साहब ने ' समाजवादी कांग्रेस ' बना ली किन्तु 1989 के चुनावों के समय राजीव गांधी के नेतृत्व में समाजवादी कांग्रेस का कांग्रेस में विलय कर दिया था। 1991 में भी पी एम पद शायद इसीलिए पी नरसिंघा राव साहब को मिला कि, एक बार प्रणब साहब कांग्रेस से बाहर जा चुके थे वैसे उनकी राजनीतिक शुरुआत ' बांग्ला कांग्रेस ' के माध्यम से हुई थी जिसका गठन पूर्व केंद्रीय शिक्षामंत्री हुमायूँ कबीर द्वारा इन्दिरा जी के विरोध में किया गया था।
लेकिन जैसा कि, मनमोहन जी ने कहा उनको 2004 में इत्तेफाक से पी एम बना दिया गया यह बात भ्रामक है। जिन ताकतों ने उनको 1991 में वित्तमंत्री बनवाया था उनके द्वारा ही वह इस पद के लिए चयनित किए गए थे सोनिया जी ने तो अपनी पार्टी की मोहर भर लगाई थी। जैसा कि, पदमुक्त होने के बाद पी नरसिंघा राव साहब ने अपने उपन्यास ' THE INSIDER ' में स्पष्ट कर दिया था कि, " हम स्वतन्त्रता के भ्रमजाल में जी रहे हैं '' ।
यही वजह रही कि, सोनिया जी चाह कर भी प्रणब साहब को पी एम नहीं बनवा सकती थी। और जब 2009 में उन्होने प्रणब साहब को प्रस्तावित करना चाहा तब यही साफ़गोई वाले मनमोहन सिंह साहब अड़ गए थे और 2011 में सोनिया जी के विदेश में इलाज कराने जाने के वक्त से डॉ मनमोहन सिंह जी ने हज़ारे / केजरीवाल के माध्यम से संघ से संबंध स्थापित किए व कारपोरेट घरानों के सहयोग से भ्रष्टाचार संरक्षण आंदोलन शुरू करा दिया था। परंतु सोनिया जी ने 2012 में मनमोहन जी को राष्ट्रपति व प्रणब जी को पी एम बनाने की मुहिम शुरू कर दी तब जापान से लौटते वक्त हवाई जहाज में ही ये साफ़गोई वाले मनमोहन जी ने कहा कि, वह जहां हैं वहीं ठीक हैं बल्कि तीसरा मौका मिले तो उसके लिए भी तैयार हैं जिसके परिणाम स्वरूप 2014 के चुनावों में सरकारी अधिकारियों / कर्मचारियों ने भी परिणाम प्रभावित करने में अपनी भूमिका अदा की है । आज की मोदी सरकार के गठन में आर एस एस , भाजपा के साथ - साथ मनमोहन जी का भी अप्रत्यक्ष व महत्वपूर्ण हाथ है जिसको बताने की साफ़गोई से वह बखूबी बचे रहे हैं। इनके अलावा 1967,1975 ,1980,1989 में लिए गए इन्दिरा जी व राजीव जी के निर्णयों ने भी 2014 में भाजपा को पूर्ण बहुमत तक पहुंचाने में RSS की भरपूर मदद की है।
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