Sunday, December 17, 2017

' हम पंछी एक डाल के ( 1957 ) ' : आज के हालात में युवा पीढ़ी के लिए पूरी तरह प्रेरणादाई ------ विजय राजबली माथुर


  
पूजा के दो फूल चढ़ा कर कहता है इंसान कि, मुझको मिल जाये भगवान। .... भगवान बसे भैया खेतों में, भगवान बसे भैया खलिहानों में, वह तो बसे भैया बांधों में, खानों में, भैया वह तो बसे  कल- कारखानों में।..... माथे पे तिलक लगा कर , पूजा के दो फूल चढ़ा कर कहता है इंसान मुझको मिल जाये भगवान। ..... जो सोचा है बावले यदि मिल जाये भगवान तो जगा ले मन में इतना ध्यान, जगा ले मन में इतना ज्ञान कि, जग में है क्या अमीर और क्या गरीब सब एक समान। ............ 
इस फिल्म के माध्यम से संदेश दिया गया है कि, प्रिंसिपल सरीखे आदर्श शिक्षक नंदू जैसे होनहार बालकों को पहचान कर उनको समर्थन व सहयोग देकर अमीरों को भी गरीबों का हमदर्द बनाने में सफल हो सकते है। नौकर धामू की ही तरह आज के युवा भी पेट की खातिर (रोजगार बचाने की मजबूरी के चलते ) अमीरों के इशारे पर गलत कार्य में सहयोगी बन रहे हैं उनको भटकने से बचाने के लिए रेहमान चाचा जैसे सुधारकों की भी आज महती आवश्यकता है। 
आज के कारपोरेटी लूट के युग में युवाओं और बालकों के मध्य इस फिल्म के प्रसार - प्रचार से उस पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा सकता है जिसे योग्य और देशभक्त फिल्म निर्माताओं ने साठ वर्ष पूर्व दूरदृष्टियुक्त कल्पना के सहारे प्रस्तुत किया था। 
 



के ए नारायन राओ की कहानी पर आधारित निर्माता सदाशिव जे राओ की बाल फिल्म  ' हम पंछी एक डाल के ' जो पी एल संतोषी की पट - कथा व निर्देशन में बन कर 1957 में रिलीज़ हुई थी आज 60 वर्ष बाद की परिस्थितियों में  हमारी युवा पीढ़ी का मार्ग - दर्शन करने व उन्हें प्रेरणा देने में पूरी तरह समर्थ है,  नितांत आवश्यकता है आज इसके प्रचार - प्रसार की। पी एल संतोषी ने ही इसके गीत भी लिखे हैं जिनको  कर्णप्रिय संगीत से संवारा है एन दत्ता ने और स्वर दिये हैं शमशाद बेगम , आशा भोंसले, सुमन कल्याणपुर , उषा मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने। 
पात्र परिचय : 
रोमी ------------ राजनलाल नाथ  मेहरा 
डेज़ी ईरानी -------------- चटपट 
जगदीप ----------------महमूद 
मोहन चोटी ------------गुरु 
घनश्याम --------------डाक्टर 
पप्पू ------------------पप्पू 
डेविड अब्राहम --------------मिर्ज़ा उस्मान 
मारुति --------------------- धामू 
मुराद ---------------------- राय बहादुर कैलाशनाथ मेहरा 
निरंजन शर्मा ---------------शक्तिनाथ शर्मा 
बी एम व्यास ------------------- रेहमान 
कृष्णकांत ---------------------- प्रिंसिपल 
वी डी पुराणिक ---------------पुराणिक 
अमीरबाई करनाटकी ---------------- नंदू की माँ 
अचला सचदेव ---------------- प्रेरणा के मेहरा ( रोमी की माँ ) 
छोंकर --------------------    ........................ 

https://www.youtube.com/watch?v=-bxXgAd3hxg&t=2s


राय बहादुर कैलाशनाथ का इकलौता पुत्र राजनलाल नाथ मेहरा एक स्कूल में नंदू,महमूद,चटपट आदि के साथ पढ़ता था उसे पहुंचाने  व बुलाने का काम नौकर धामू ड्राईवर के साथ कार से करता था। साथ के बच्चे उससे अलग - थलग रहते थे और उसको चिढ़ाते भी थे। उसे इस प्रकार अलग रहना अच्छा नहीं लगता था। स्कूल के प्रिंसिपल साहब नंदू के व्यवहार से संतुष्ट ही नहीं थे उनको उस पर बहुत भरोसा भी था जिसे उसने पूरा भी करके दिखाया । जब नंदू के नेतृत्व में बच्चों का एक ट्रिप आयोजित हुआ तब उसमें उसे शामिल करने के पक्ष में कुछ बच्चे नहीं थे लेकिन वह उनके साथ शामिल होना चाहता था तब नंदू ने उसे गले लगा कर साथ ले चलने का आश्वासन दे दिया था। अब समस्या कैलाशनाथ उसके पिताश्री की तरफ से थी लेकिन उसकी माँ प्रेरणा ने उसे नौकर के साथ भेजने की योजना बनाई तब चटपट के सहयोग से राजनलाल नौकर को चकमा देकर छोड़ जाने में कामयाब रहा और सभी सहपाठियों के साथ सभी कार्य स्वम्य  भी सम्पन्न करता रहा, उसके पिता ने नौकर को उसे वापिस लौटा लाने को भेजा था। राजन ने रेहमान साहब के सहयोग से उसे वापिस खाली लौट जाने में सफलता प्राप्त कर ली तब कैलाशनाथ ने मिर्ज़ा साहब को राजन को लौटा लाने को भेजा । मिर्ज़ा ने राजन को नंदू के खिलाफ तैयार करना चाहा थोड़ा भटकते हुये फिर संभल कर  उसने नाटक में मिर्ज़ा साहब को ही भालू बनवा दिया और वह भी खाली हाथ लौटने पर मजबूर हुये। 

अंततः कैलाशनाथ खुद ही राजन को लौटा लाने को पहुंचे लेकिन तब तक बच्चे घर पहुँच गए और वह भी अकेले ही लौटे। तब उन्होने राजन को स्कूल से हटाने का फैसला और उसे घर पर पढ़वाने का प्रबंध किया। पहले राजन के साथी बच्चे ही ट्यूटर बन कर पहुँच गए उनके पहचाने जाने के बाद सर्कस के रिंग मास्टर शक्तिनाथ शर्मा को रखा गया जिनको चटपट के सहयोग से चकमा देकर राजन स्कूल के नाटक की तैयारी और पढ़ाई दोनों करता रहा। नाटक के रोज़ कैलाशनाथ नाटक रुकवाने पहुंचे तब रिहर्सल चल रही थी उनके पहुँचने की खबर से राजन घबड़ा गया और उससे सीढ़ी गिर गई जिससे नंदू घायल हो गया। इस दुर्घटना के बाद नंदू ने राजन को ही निर्देशन सौंप दिया जिसने अपने पिता की उपस्थिती और अध्यक्षता में सम्पन्न नाटक का कुशल प्रस्तुतीकरण व संचालन किया। 

इतना ही नहीं राजन ने नंदू की बीमारी में सहयोग के ख्याल से उसके बदले हाकर की भूमिका भी अदा की इस दृश्य को राजन को उसकी माँ के दबाव में ढूँढने के क्रम में देख कर कैलाशनाथ को वेदना हुई और उसका पीछा करते हुये नंदू के घर पहुँच गए और वहाँ नंदू  की माँ को राजन को समझाते हुये देख कर उनकी आँखें खुल गईं और वह सब बच्चों के लिए पुस्तकालय और नाट्यशाला हेतु अपना एक भवन देने को प्रस्तुत हो गए। 

इस फिल्म के माध्यम से संदेश दिया गया है कि, प्रिंसिपल सरीखे आदर्श शिक्षक नंदू जैसे होनहार बालकों को पहचान कर उनको समर्थन व सहयोग देकर अमीरों को भी गरीबों का हमदर्द बनाने में सफल हो सकते है। नौकर धामू की ही तरह आज के युवा भी पेट की खातिर (रोजगार बचाने की मजबूरी के चलते ) अमीरों के इशारे पर गलत कार्य में सहयोगी बन रहे हैं उनको भटकने से बचाने के लिए रेहमान चाचा जैसे सुधारकों की भी आज महती आवश्यकता है। 

आज के कारपोरेटी लूट के युग में युवाओं और बालकों के मध्य इस फिल्म के प्रसार - प्रचार से उस पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा सकता है जिसे योग्य और देशभक्त फिल्म निर्माताओं ने साठ वर्ष पूर्व दूरदृष्टियुक्त कल्पना के सहारे प्रस्तुत किया था। 
~विजय राजबली माथुर ©

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