Thursday, June 21, 2018

कोई 'योग' बिचारा भला क्या ? ------ मालविका हरिओम


Malvika Hariom
जिस देश में शिक्षा का स्तर इतना अद्भुत हो कि धर्म के नाम पर आसानी से, फिर चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान, एक-दूसरे को जान से मारा जा सकता हो, जहाँ अभिभावक इतने समझदार हों कि अपने ही बच्चों के स्कूल के सामने, बड़ी-बड़ी गाड़ियों में सवार, एक-दूसरे पर ज़ोर-ज़ोर से हॉर्न मारते-फेंकते हों, इस बात से बेपरवाह कि उनका अपना बच्चा भी इस शोर से उपजे प्रदूषण का शिकार हो रहा है, जिस देश में ख़ुद के रहने की जगह भले ही न बची हो लेकिन सदियों पुराना, बड़े से बड़ा कबाड़ भी लोग दिल से चिपका कर रखते हों, जहाँ सड़कों पर ख़ुद के चलने की जगह भले ही न बची हो लेकिन तमाम कंडम और कूड़ा गाड़ियाँ आस-पास मुस्कुराती, चिढ़ाती, जगह घेरे खड़ी नज़र आ जाती हों, जिस देश में कोई ख़ुद से एक भी पौधा न लगाता हो लेकिन बड़ी शान के साथ अपनी अलग-अलग क़िस्म की, ढेरों धुआँ उगलती गाड़ियों में बैठकर, बड़े अधिकार के साथ वातावरण को अशांत और प्रदूषित करने की भरपूर सामर्थ्य रखता हो, जिस देश में एक हज़ार का एक पिज़्ज़ा खा जाने वाले लोग भी घर में काम करने वाले की तनख़्वाह और रिक्शे वाले, सब्ज़ी वाले के साथ एक-एक पैसे की हुज्जत से बाज़ न आते हों, जहाँ आज भी दूरदर्शन वालों को सिखाना पड़ता हो कि हाथों को साबुन से धोना कितना ज़रूरी है, जहाँ राह चलते साफ-सुथरी सड़क पर चाट के पत्तल को हवा में उड़ा देना लोग अपनी शान समझते हों, जिस देश में नदियों का पानी, जिस पानी के बिना आप जीवित नहीं रह सकते, वह पानी स्वयं आपके अत्यधिक कूड़े-कचरे से भयभीय अपने ख़ुद के जीवन की भीख माँगता फिरता हो, जिस देश में अमीर-ग़रीब के बीच की खाई ऐसी हो कि अमीर 'अ से आसमान' पर रहता हो और ग़रीब 'ग से गर्त' में.... एक राजा जैसा और दूसरा उस राजा के लिए सुविधाएँ उत्पन्न करने वाली एक मशीन या साधन जैसा, जिस देश में सड़कों और यातायात का हाल ऐसा हो कि लोग बीमारी से ज़्यादा एक्सीडेंट्स में मरने लगें, जिस देश में बेहतर मेडिकल सुविधाओं का लगभग अकाल-अभाव हो, जिस देश में बेकारी, बेरोज़गारी इतनी हो कि लोग खाली बैठे केवल विध्वंसात्मक गतिविधियों का ही ताना-बाना बुनते हों, जहाँ घर के बूढ़े-बुज़ुर्गों के आशीर्वाद से ज़्यादा लोगों की आस्था बाबाओं के ढोंग और चमत्कारों में हो, जिस देश में बढ़ती आबादी का आलम उसके ज़र्रे- ज़र्रे को लील जाने को बेताब दिखता हो, जिस देश के लोग शारीरिक से ज़्यादा मानसिक बीमारियों के शिकार हों, जिस देश में एक लड़की को छेड़ना, उसका बलात्कार कर देना सबसे बड़ा मनोरंजन हो, जहाँ न्याय व्यवस्था सिरे से चरमरा चुकी हो, जहाँ सुरक्षा करने वाली पुलिस से लोग ख़ुद को सबसे ज़्यादा असुरक्षित महसूस करने लगे हों, जिस देश की आबादी के लगभग अस्सी प्रतिशत ने, जो कि किसान और मज़दूर हैं, दिन भर की मज़दूरी और उससे मिलने वाली दिहाड़ी के अलावा कभी कोई दूसरा सपना पालने की हिम्मत तक ना की हो, जिस देश का मीडिया इंसान मात्र के कष्ट-दुखों से ज़्यादा हर दिन, एक बिकने वाली ख़बर की तलाश में रहता हो और जिस देश की राजनीति हर मुद्दे में सिर्फ़ और सिर्फ़, राजनीति तलाशती हो, 
ऐसे में, इस देश का और यहाँ के लोगों का, कोई 'योग' बिचारा भला क्या बना या उखाड़ लेगा......

योग-दिवस पर आज इतना ही..
साभार : 
https://www.facebook.com/malvika.hariom/posts/1805574059465422
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( योग का तात्पर्य दो या अधिक का समन्वय अर्थात यह जोड़ने की प्रक्रिया है - तोड़ने की नहीं, न ही यह वर्जिश या कसरत है । आत्मा का परमात्मा से समन्वय होना योग है न कि, सरकारी तामझाम द्वारा व्यापार जगत को लाभ पहुंचाना। इस लेख से यही ध्वनित हो रहा है ------ )
 ~विजय राजबली माथुर ©
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