यह मंटो की आत्मकथा है जिसमें बीच-बीच में कहानियों को पिरोया गया है।
Publish Date:Fri, 21 Sep 2018 04:20 PM (IST)
Movie Review: बहुत दिलचस्प है ‘मंटो’ की यह दास्तां
सआदत हसन मंटो एक ऐसे दीवाने का नाम जिसने बेबुनियाद उम्मीद पर अपने कहानियों की नींव नहीं रखी बल्कि कड़वे यथार्थ को आग में लपेट कर लावा बनाकर अपने अफसाने कहे। उसकी आग उगलती कलम उससे निकलने वाले और रूह को बेदर्दी से थप्पड़ मारते अफसाने ना हिंदुस्तान को पसंद आए और ना ही पाकिस्तान को जहां पार्टीशन के बाद मंटो ने अपनी ज़िंदगी गुजार दी। सिर्फ 42 साल की उम्र में दुनिया से फना हो जाने वाले इस अजूबे कहानीकार का नाम दुनिया के साहित्य में अलग मुकाम रखता है।
नंदिता दास ने एक निर्देशक के तौर पर ‘मंटो’ के उन सारे जज्बातों को कड़वाहटों को उसकी जहर उगलती जुबान को बेहद संजीदगी के साथ सेल्यूलाइड पर उकेरा है। यह मंटो की आत्मकथा है जिसमें बीच-बीच में कहानियों को पिरोया गया है। फिर भले ‘खोल दो’ हो या ‘ठंडा गोश्त’। उनके फिल्म इंडस्ट्री के अनुभव या उनकी निजी ज़िंदगी के ताल्लुकात को ध्यान में रखते हुए नंदिता ने मंटो के जीवन के सारे आयामों को समेट कर एक खूबसूरत फिल्म बनाई है।
जिन लोगों ने मंटो को पढ़ा है उनके लिए तो यह एक कमाल का तोहफा है मगर जिन लोगों ने मंटो को नहीं पढ़ा उनके लिए यह एक अलग दर्जे का अलहदा सिनेमा है।
अभिनय की बात करें तो नवाज पूरी फिल्म में सिर्फ मंटो ही नजर आए किसी एक फ्रेम में भी यूं नहीं लगता कि वह नवाज है। उनकी पत्नी बनी रसिका दुग्गल ने भी कमाल का परफॉर्मेंस दिया है। इसके अलावा छोटे छोटे किरदारों में ऋषि कपूर, परेश रावल और जाने-माने लेखक और शायर जावेद अख्तर भी नजर आते हैं।
कुल मिलाकर मंटो उस समय का सामाजिक दस्तावेज तो है ही साथ ही एक कालजई लेखक ‘मंटो’ से रूबरू होने का मौका भी है। अगर आप हटकर सिनेमा देखना पसंद करते हैं तो ‘मंटो’ आपको जरूर देखनी चाहिए।
-पराग छापेकर
https://naidunia.jagran.com/entertainment/film-review-manto-movie-review-by-parag-chhapekar-2580316
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24-09-2018:
~विजय राजबली माथुर ©
फोटो साभार : नई दुनिया |
Publish Date:Fri, 21 Sep 2018 04:20 PM (IST)
Movie Review: बहुत दिलचस्प है ‘मंटो’ की यह दास्तां
सआदत हसन मंटो एक ऐसे दीवाने का नाम जिसने बेबुनियाद उम्मीद पर अपने कहानियों की नींव नहीं रखी बल्कि कड़वे यथार्थ को आग में लपेट कर लावा बनाकर अपने अफसाने कहे। उसकी आग उगलती कलम उससे निकलने वाले और रूह को बेदर्दी से थप्पड़ मारते अफसाने ना हिंदुस्तान को पसंद आए और ना ही पाकिस्तान को जहां पार्टीशन के बाद मंटो ने अपनी ज़िंदगी गुजार दी। सिर्फ 42 साल की उम्र में दुनिया से फना हो जाने वाले इस अजूबे कहानीकार का नाम दुनिया के साहित्य में अलग मुकाम रखता है।
नंदिता दास ने एक निर्देशक के तौर पर ‘मंटो’ के उन सारे जज्बातों को कड़वाहटों को उसकी जहर उगलती जुबान को बेहद संजीदगी के साथ सेल्यूलाइड पर उकेरा है। यह मंटो की आत्मकथा है जिसमें बीच-बीच में कहानियों को पिरोया गया है। फिर भले ‘खोल दो’ हो या ‘ठंडा गोश्त’। उनके फिल्म इंडस्ट्री के अनुभव या उनकी निजी ज़िंदगी के ताल्लुकात को ध्यान में रखते हुए नंदिता ने मंटो के जीवन के सारे आयामों को समेट कर एक खूबसूरत फिल्म बनाई है।
जिन लोगों ने मंटो को पढ़ा है उनके लिए तो यह एक कमाल का तोहफा है मगर जिन लोगों ने मंटो को नहीं पढ़ा उनके लिए यह एक अलग दर्जे का अलहदा सिनेमा है।
अभिनय की बात करें तो नवाज पूरी फिल्म में सिर्फ मंटो ही नजर आए किसी एक फ्रेम में भी यूं नहीं लगता कि वह नवाज है। उनकी पत्नी बनी रसिका दुग्गल ने भी कमाल का परफॉर्मेंस दिया है। इसके अलावा छोटे छोटे किरदारों में ऋषि कपूर, परेश रावल और जाने-माने लेखक और शायर जावेद अख्तर भी नजर आते हैं।
कुल मिलाकर मंटो उस समय का सामाजिक दस्तावेज तो है ही साथ ही एक कालजई लेखक ‘मंटो’ से रूबरू होने का मौका भी है। अगर आप हटकर सिनेमा देखना पसंद करते हैं तो ‘मंटो’ आपको जरूर देखनी चाहिए।
-पराग छापेकर
https://naidunia.jagran.com/entertainment/film-review-manto-movie-review-by-parag-chhapekar-2580316
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24-09-2018:
~विजय राजबली माथुर ©
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