Friday, January 25, 2019

हर औरत को अप्सरा दिखना ही क्यों जरूरी है ? ------ नमिता जोशी




औरत यानी उसे सुंदर ही होना चाहिए और सुंदर औरत यानी 34/26/34 फिगर, रंग गोरा, लंबे बाल, गुलाबी या कजरारी आंखें, मोरनी जैसी चाल और खूबसूरत आवाज। 

अब सवाल और वह भी सिर्फ महिलाओं से। ये ऊपर जो हमने खूबसूरती का पैमाना दिया है, इस पर सभी महिलाएं तो खरी नहीं उतरती होंगी/ नहीं न/ किसी न किसी पॉइंट पर ऊपर नीचे होंगी। रंग कुछ सांवला हो सकता है, बाल छोटे हो सकते हैं, वजन बढ़ा हुआ हो सकता है। तो क्या ऐसी महिलाएं सुंदर नहीं मानती खुद को/ मानती हैं न/ तो फिर ये पैमाना किसने बनाया उनके लिए/ पुरुषों ने। 

अब दूसरा सवाल। ऑफिस में आपके काम को क्या आपकी खूबसूरती से तोला जाता है/ आपकी कामयाबी क्या इस बात पर निर्भर करती है कि आप ऊपर दिए गए पैमाने पर कितनी फिट बैठती हैं/ क्या इतनी खूबसूरत दिखने पर आपको पुरुषों के मुकाबले बेहतर पोजिशन या सैलरी देती है कंपनी/ नहीं न/ आपके टैलंट, आपकी मेहनत पर जब आपका प्रोफेशन निर्भर करता है तो उसमें आपके लुक्स मायने नहीं रखते। कितनी मोटी लड़कियां कंपनी में ऊंचे पदों पर हैं, कितनी सावंली लड़कियों के पास पूरी की पूरी टीम है बॉस के तौर पर। फिर एक महिला होकर बीजेपी की साधना सिंह ने यह कहने की हिमाकत कैसे की होगी कि मायावती न तो पुरुष जैसी दिखती हैं न महिला जैसी/ क्या मायावती बॉलिवुड में काम करती हैं, जो उनके लुक्स की वजह से उनके काम को तोला जाएगा। बल्कि अब तो बॉलिवुड भी इतना मैच्योर हो चुका है कि लुक्स की बजाय टैलंट को महत्व मिलने लगा है। तो ऐसे में अपनी मेहनत के बल पर राजनीति के क्षेत्र में अपना दबदबा बनाने वाली मायावती को उनकी नीतियों की बजाय उनके लुक्स के लिए टोकना, उन पर हंसना कितना सही है ? 

दरअसल, हम सब जानते हैं कि चुनावी माहौल गर्म है और हर ओर से नेता अपने वोट बैंक को रिझाने और सामने वाले नेता को नीचा दिखाने के लिए लांछन लगाने में जुट गए हैं। लेकिन पिछले दिनों बीजेपी की एक महिला नेता साधना सिंह ने जिस तरह की बात बीएसपी सुप्रीमो मायावती के खिलाफ की, वह एक अलग ही लेवल है। उनके बयान पर काफी विवाद भी हुआ और माफी भी मांगी गई। लेकिन यह बयान जिस सोच को दर्शाता है वह राजनीतिक आरोप की लिस्ट में तो नहीं आता। आमतौर पर राजनीतिक लोगों पर उनकी नीतियों से सहमत न होने की बात की जाती है या फिर उनके काम करने तरीके पर उंगली उठाई जा सकती है, लेकिन अफसोस की बात है कि मायावती एक एेसी महिला नेता हैं, जो जातिगत, राजनैतिक और अपने लुक्स यानी तीन बातों को लेकर हमेशा से अपने विरोधियों के निशाने पर रही हैं। हैरानी की बात यह है कि इस तरह के बयान न सिर्फ पुरुष बल्कि उनकी महिला विरोधियों की तरफ से भी हमेशा आते रहे हैं। और तो और इंटरनेट और मोबाइल पर हजारों वॉट्सऐप जोक्स और मीम्स आपको मिल जाएंगे, जिसमें मायावती के लुक्स पर कॉमेंट कर हास्य पैदा करने की कोशिश की जाती है। इस सोच का नजारा हम अक्सर डीयू के चुनाव के दौरान देखते हैं जब पार्टियां एक से एक खूबसूरत दिखने वाली लड़कियों को चुनाव लड़ने के लिए टिकट देती हैं और शहरों की दीवारें उन खूबसूरत लड़कियों के फोटोज से भर जाती हैं। दुख तब होता है जब महिलाएं भी इस तरह की सोच रखती हैं, जो कि जाने अनजाने उनके जेहन में पुरुषों द्वारा थोपी गई है। 

मामला यहीं पर नहीं रुकता। इससे पहले भी मायावती के खिलाफ मुलायम सिंह की तरफ से इस तरह के बयान आ चुके हैं कि उनका तो कोई रेप भी ना करे। यह डबल विडंबना है कि नहीं। एक तो आप उस महिला को सुंदर नहीं मानते ऊपर से आप एक सुंदर महिला को रेप के लायक समझते हैं। बीजेपी की ही महिला नेता शायना एन सी ने पिछले चुनावों के दौरान कह दिया कि उन्हें यह समझ नहीं आता कि मायावती ही हैं या शी। इसके अलावा मायावती को परकटी कहना, तेल लगाने वाली और पसीने की बदबू के लिए भी मजाक का विषय बनाया जाता रहा है। 


ऐसे और इससे भद्दे न जाने कितने मजाक मायावती के खिलाफ किए गए। सवाल यह है कि चुनावी माहौल में राजनीतिक तंज कसना अलग बात है, जातिगत टिप्पणियों के कोढ़ ने भी अपने देश के लोगों की मानसिकता को बीमार किया हुआ है, ये लुक्स को लेकर छोटी सोच का नया चलन महिलाओं के खिलाफ कितना सही है/ आम तौर पर साधारण दिखने वाले नेताओं या पुरुषों को अपने यहां रफ एंड टफ, सिंपल और जमीन से जुड़ा कहा जाता है। औरतों के लिए हर वक्त, हर जगह अप्सरा जैसा दिखना क्यों जरूरी है ? 
http://epaper.navbharattimes.com/details/12114-26128-2.html


Namita.Joshi@timesgroup.com





 ~विजय राजबली माथुर ©

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