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आजादी की चाह लिए खामोश हो गईं रत्ती जिन्ना
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नाइश हसन
रियर व्यू मिरर
1928 में जब जिन्ना को सर की उपाधि देने की बात चली तो रत्ती ने यहां तक कहा था कि मेरे पति ने सर का खिताब मंजूर किया तो मैं उनसे तलाक ले लूंगी
बीसवीं शताब्दी के पहले तीन दशकों का वह दौर जब मुंबई की रगों में भारतीय आजादी आंदोलन की धड़कनें काफी तेज थीं, कई पारसी परिवार इस्लाम स्वीकार करने के दबाव से आजाद होकर ईरान से यहां आकर बस गए थे। इसी माहौल में उस वक्त के एक मशहूर पारसी उद्योगपति सर मानक जी दिनशा पेटिट के घर 20 फरवरी 1900 को रतनबाई पेटिट का जन्म हुआ। प्यार से सब उन्हें रत्ती बुलाते थे।
रत्ती एक बेहद खूबसूरत और तेज दिमाग बच्ची थी। उस वक्त के माहौल में उनके घर दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, मैडम भीकाजी कामा, बदरुद्दीन तैयबजी, गोपाल कृष्ण गोखले, श्रीमती ऐनी बेसेंट, सरोजनी नायडू, मुहम्मद अली जिन्ना, अतिया फैजी जैसे महान लोगों का आना जाना था। उनकी बातचीत का असर रत्ती पर बहुत हुआ। वह मुल्क की आजादी का ख्वाब देखने लगी।
इसी गहमागहमी में उसकी जिंदगी में एक अनकहा मधुर संबंध आकार लेने लगा। 16 साल की रत्ती और 40 साल के जिन्ना के बीच, जो रत्ती के पिता के दोस्त थे। समाजी, सियासी, कारोबारी हलके में मुंबई के अनेक दिग्गजों के बीच जिन्ना की एक खास जगह थी। 20 फरवरी 1918 को अपने 18वें जन्मदिन पर रत्ती पिता का घर छोड़ जिन्ना के पास चली गई। रत्ती ने 1919-1920 में कांग्रेस के कलकत्ता और नागपुर अधिवेशन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। उसके बाद ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन के पहले अधिवेशन में भी धाराप्रवाह और ओजस्वी भाषण दिया। उस समय रौलट कानून का विरोध तेजी पर था।
रत्ती की हाजिरजवाबी अंग्रेजों को बहुत चुभती थी। शिमला अधिवेशन में उन्होंने वॉयसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड का अभिवादन हाथ जोड़ कर किया। प्रोग्राम के खत्म होने पर चेम्सफोर्ड ने अपनी रोबीली और गुस्सैल आवाज में कहा, मिसेज जिन्ना आप के पति का सियासी मुस्तकबिल बहुत शानदार है। इसलिए आप जहां हैं उसी के मुताबिक व्यवहार करें। इन रोम यू मस्ट डू एज रोमन्स डू।’ उन्होंने बहुत नरमी और अदब से फौरन जवाब दिया, ‘ठीक वही तो किया है मैंने। हिंदुस्तान में मैंने आपका अभिवादन हिंदुस्तानी ढंग से ही तो किया।’ इस जवाब ने लॉर्ड चेम्सफोर्ड को खामोश कर दिया।
इसी तरह 1921 में जब लॉर्ड रीडिंग हिंदुस्तान के वॉयसराय थे, उन्होंने एक बार रत्ती से कहा कि उनके मन में जर्मनी जाने की बहुत इच्छा है, पर वह वहां जा नहीं सकते। रत्ती ने पूछा ऐसा क्यों/ उन्होंने जवाब दिया कि जर्मन हम अंग्रेजों को पसंद नहीं करते। इस पर हाजिरजवाब रत्ती ने सहज भाव से लॉर्ड रीडिंग से पूछा, ‘महामहिम फिर आप यहां कैसे आ गए/’ रत्ती के इस प्रश्न का व्यंग्यार्थ रीडिंग फौरन समझ गए।
1928 में जब जिन्ना को सर की उपाधि देने की बात चली थी तो रत्ती ने यहां तक कहा था कि मेरे पति ने सर का खिताब मंजूर किया तो मैं उनसे तलाक ले लूंगी।
शेक्सपीयर ने कहा है, ‘मर्द जब प्यार करते हैं तो बसंत होते हैं। शादी होते ही वे शीत ऋतु में बदल जाते हैं।’ कुछ ऐसा ही जिन्ना के साथ भी था। रत्ती अपनी शामें जिन्ना के साथ गुजारना चाहती थीं। लेकिन प्रेम की जो रसधार दोनों की जिंदगी में फूट पड़ी थी वह जिन्ना की बेरुखी, कड़कमिजाजी और रूखेपन से खत्म होने लगी।
उपेक्षित रत्ती 1928 में मुंबई के ताज होटल में रहने लगीं। उस वक्त देश में सांप्रदायिक राजनीति अपने उफान पर थी। जिन्ना की जिद उन्हें रत्ती और वतनपरस्ती से कहीं दूर लेकर चली जा रही थी। रोज-बरोज रत्ती कमजोर होती जा रही थी। दबे पांव मौत रत्ती की तरफ बढ़ी चली आ रही थी। आखिर 20 फरवरी 1929 को 29 साल की उम्र में एक जहीन, हिम्मतवर, खुशदिल, प्रतिभासंपन्न युवती अपने देश को गुलामी से मुक्त देखने की ख्वाहिश मन में लिए हमेशा के लिए खामोश हो गई। मुंबई के पास ठाणे में उसकी मजार खामोश है। अब कोई वहां फातेहा पढ़ने वाला भी नहीं जाता। जमाने ने रत्ती के योगदान को जिन्ना के बड़े क़द के आगे आसानी से भुला दिया। इत्तफाकन 20 फरवरी उनकी पैदाइश और मौत दोनों का दिन है।
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~विजय राजबली माथुर ©
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