Sunday, May 3, 2020

यों ही जारी रहा लॉकडाउन : न जनता बच पाएगी, न कारोबार ------ स्वामिनाथन एस. अंकलेसरिया अय्यर






स्वामिनाथन एस. अंकलेसरिया अय्यर
न जनता बच पाएगी, न कारोबार
अगर यों ही जारी रहा लॉकडाउन
स्वामिनॉमिक्स
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कोरोना के दौरान शटडाउन का दुनिया भर में सबसे बड़ा सबक यह रहा कि इस दौरान कोरोना वायरस से जितने लोग मारे गए, लगभग उतने ही लॉकडाउन के कारण अपनी जान गंवा बैठे। कोरोना के इलाज का जो तरीका है, वह बीमारी के बराबर ही बुरा है।

फाइनैंशल टाइम्स, लंदन के मुताबिक अधिकतर देशों में मार्च और अप्रैल के महीने में मृत्यु दर पिछले पांच बरसों के मुकाबले ज्यादा थी, खासकर यूरोपीय देशों में। आंकड़ों के मुताबिक सामान्य मृत्यु दर के मुकाबले यह आंकड़ा 49 फीसदी ज्यादा था। लेकिन इसमें से बमुश्किल आधी मौतें कोरोना की वजह से हुई थीं। इनमें भी गैर-कोरोना मौतों के आंकड़ों में शायद कई मौतें ऐसी भी थीं, जिनमें कोरोना का पता नहीं चल पाया। ऐसे ज्यादातर लोग लॉकडाउन के साइड-इफेक्ट्स के कारण मारे गए। इससे क्या सीख मिलती है ?  यही कि भारत को लॉकडाउन जल्दी-से-जल्दी खत्म कर देना चाहिए। हां, हमें ऐहतियात जरूर बरतनी चाहिए। सुरक्षा के कारगर तरीके ढूंढने चाहिए और आर्थिक गतिविधियां चालू कर देनी चाहिए।

बढ़ी हुई मृत्यु दर की बात करें तो बेल्जियम में यह आंकड़ा 60 फीसदी, नीदरलैंड में 51 फीसदी लेकिन स्वीडन में सिर्फ 12 फीसदी ही था। दिलचस्प यह है कि यूरोपीय देशों में स्वीडन इकलौता ऐसा देश है जिसने लॉकडाउन लागू नहीं किया है। उसने सोशल डिस्टेंसिंग, बार-बार हाथ धोने और लगातार सैनिटाइजेशन पर जोर दिया। इससे यह संकेत मिलता है कि दुनिया में सबसे सख्त तरीके से लॉकडाउन लगाने वाले भारत ने शायद लोगों की ज़िंदगी को बचाए बगैर अर्थव्यवस्था की हत्या कर दी क्योंकि लॉकडाउन के कारण कोरोना मौतों में कमी लॉकडाउन की वजह से होने वाली ज्यादा मौतों का मुकाबला नहीं कर पाती है। भारत को जल्द-से-जल्द बढ़ी हुई मृत्यु दर के बारे में विश्लेषण करना चाहिए।

यह मृत्यु दर महानगर केंद्रित है - 1500 फीसदी जर्काता में, 299 फीसदी न्यू यॉर्क में और 96 फीसदी लंदन में। डॉक्टरों का कहना है कि दिल की बीमारी, स्ट्रोक, कैंसर जैसी दूसरी बीमारियों के मरीजों के अस्पताल में आने की संख्या अभी काफी कम हो गई है। लक्षण होने के बावजूद लोग अस्पताल जाने से बच रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अस्पताल जाने पर कहीं कोरोना न हो जाए। पूरा का पूरा मेडिकल तंत्र कोरोना के खिलाफ लड़ाई में इस कदर जुट गया है कि दूसरी बीमारियां नजरअंदाज हो गई हैं। गैर-जरूरी सभी सर्जरी रोक दी गई हैं, आईसीयू के अधिकतर बेड कोरोना मरीजों के लिए रिजर्व रख कर दिए गए हैं। कोरोना को रोकने की इस कोशिश में दूसरी वजहों से मौत का आंकड़ा बढ़ गया है।

ब्रिटेन के कैंसर रिसर्च इंस्टिट्यूट के अनुसार जांच के लिए अस्पताल जाने वाले कैंसर के संभावित मरीजों की तादाद अचानक काफी कम हो गई है। अनुमान है कि हर हफ्ते कैंसर के करीब 2000 मामले नजरअंदाज हो रहे हैं। इनमें से 400 महज इसलिए पकड़ में नहीं आ रहे क्योंकि ब्रेस्ट और पेट के कैंसर की साधारण जांच फिलहाल बंद कर दी गई है। अकेले ब्रिटेन में 20 लाख सर्जरी टाल दी गई हैं।

हमारे देश में प्राइवेट अस्पतालों का मानना है कि लॉकडाउन के कारण सर्जरी और ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या पूरी तरह से कम हो गई है। आईसीयू में बेड खाली पड़े हैं और पैसे का जबरदस्त नुकसान हो रहा है। काम चालू रखने और कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए अस्पतालों को सरकार से वित्तीय मदद की दरकार है।

भारत में हर साल टीबी के 2.50 करोड़ मामले सामने आते हैं जिनमें से 4.40 लाख की हर साल मौत हो जाती है। भारत में हर साल मलेरिया के 20 लाख मामले पता चलते हैं, जिनमें से 20 हजार की मौत हो जाती है। लॉकडाउन के कारण लगभग हर राज्य में एंटी-मलेरिया अभियान रोक दिया गया है। ऐसे में कोरोना से होने वाली कुछ एक हजार मौतें दूसरी बीमारियों से होने वाले कुल मौतों के मुकाबले कहीं कम हैं।

लॉकडाउन ने ट्रैफिक और वर्कप्लेस पर होने वाली मौतों को अच्छी-खासी संख्या में कम किया है। अपराधी घरों में बंद हैं इसलिए हत्याएं कम हो रही हैं। इन सब वजहों से गैर-कोरोना मौतें बेहद कम होनी चाहिए थीं लेकिन लॉकडाउन में हुआ उलटा है। येल यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के मुताबिक इस बार मार्च की शुरुआत से लेकर 4 अप्रैल तक अमेरिका में 15,400 मौतें सामान्य से ज्यादा हुईं। इन ज्यादा मौतों में कोरोना का योगदान 53 फीसदी थ। इसमें सबसे ज्यादा मौतें मिशिगन में 77 फीसदी, जबकि मेरीलैंड में सबसे कम 18 फीसदी थीं।

आंकड़ा विशेषज्ञ प्रणब सेन सही ही कहते हैं कि भारत को न सिर्फ ज़िंदगी बल्कि कारोबार को भी बचाना चाहिए। कारोबार ही लोगों को रोजगार देता है। भारत में उत्पादन करने वाली आधी क्षमता लॉकडाउन में बंद है। भारत में 6.50 करोड़ इंटरप्राइज़ेज हैं जिनमें से मुश्किल से 40 लाख रजिस्टर्ड हैं। नॉन-रजिस्टर्ड काम-धंधे बहुत बड़े तबके को रोजगार मुहैया कराते हैं लेकिन लॉकडाउन में उनकी सामूहिक हत्या हो गई है। अगर जल्दी से आर्थिक गतिविधियां शुरु नहीं होतीं और इन काम-धंधों को चालू नहीं किया गया तो आप न सिर्फ कारोबार बल्कि लोगों की भी हत्या कर देंगे! अमेरिका, जापान और चीन में जीडीपी धड़ाम से नीचे गिर गई है। भारत भी उसी रास्ते पर है। महामंदी के बाद यह सबसे बड़ी गिरावट है।

दुनिया भर का अनुभव यही कहता है कि भारत को अपने लोगों और कारोबार को बचाने के लिए खुला खर्च करना चाहिए। जापान अपनी जीडीपी में से इसके लिए अतिरिक्त 20 फीसदी खर्च कर रहा है। अमेरिका ने जो पहला पैकेज जारी किया है, उसमें यह आंकड़ा जीडीपी का 10 फीसदी है, दूसरे पैकेज में 6 प्रतिशत और मिल सकता है। भारत ने फिलहाल जिस राहत पैकेज का ऐलान किया है, वह जीडीपी के एक फीसदी से भी कम है। इसे पांच गुना बढ़ाए जाने की जरूरत है। चूंकि सरकारी आमदनी सीमित है, टैक्स से मिलने वाली आमदनी में भी कमी होगी इसलिए आरबीआई को जीडीपी की कम-से-कम 5 फीसदी रकम के रुपये छापने चाहिए ताकि लोगों की जिंदगी और कारोबार को बचाने में इसे खर्च किया जा सके। कुछ अर्थशास्त्रियों को डर है कि इससे महंगाई में इजाफा होगा लेकिन दूसरे देशों में जब ऐसी कोशिश हुई थी तो उससे कीमतों में बढ़ोतरी नहीं हुई।


कुल मिलाकर सबसे बड़ी सीख है कि अमेरिका, जापान और यूरोप में लॉकडाउन के दौरान दिए गए राहत पैकेज गिरती हुए जीडीपी को थामने में नाकाम रहे हैं। ऐसे में इस हालत में जान फूंकने के लिए आर्थिक गतिविधियों को फिर से बहाल करना जरूरी है। भारत को लॉकडाउन की सख्ती में काफी ढील देने की जरूरत है। साथ में ऐहतियात को भी बनाए रखना होगा। यह जोखिम भरा है, लेकिन है जरूरी

http://epaper.navbharattimes.com/details/107509-78142-2.html



 ~विजय राजबली माथुर ©

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