Tuesday, June 30, 2020

मोदी मनमोहन गठबंधन और अमेरिका ------ कुमुद सिंह











30-06-2020
मनमोहन की गद्दारी देश 100 साल बाद समझेगा


नेहरू ने जैसे जमींनदारी हस्तानांतरण कर रैयतों को मूर्ख बनाया, वैसे ही मनमोहन ने उपभोक्ता को गदहा बनाया है। नेहरू की बात छोडिये, वो मरे उनकी नीति मरी और वो समाज भी मर चुका है। बात करते हैं मनमोहन की।
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पाकिस्तान में जन्मा और इंग्लैंड में पढा यह आदमी विश्व बैंक और अमेरिका का घोषित एजेंट रहा है। पहले ललित बाबू, फिर प्रणब दा, फिर नरसिम्हा‍ राव और अंत में सोनिया गांधी इसके टारगेट लीडर हुए। इस सूची से आप समझ सकते हैं कि अर्थशास्त्र से अधिक राजनीति शास्त्र इस आदमी का मजबूत है।
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अब आइये नीति पर। याद कीजिए 1989 का कालखंड। उदारवाद के पक्ष में सबसे बडा दावा क्या था। मनमोहन सिंह भारत को बाजार बनाने में लगे थे और उपभोक्ता को क्या समझा रहे थे। सबसे ज्यादा जोर किन बातों पर था। आइये बात टेलीकॉम से शुरु करते हैं। उस समय बीएसएनएल एक मात्र कंपनी थी। लोगों के पास कोई विकल्प नहीं था। मनमोहन ने कहा, "हम उदारवाद के तहत विकल्प देंगे।" भारत का उपभोक्ता लहालोट हो गया। फिर तो बीएसएनएल को "भाईसाहेबनहींलगेगा" का नाम मनमोहन सिंह ने दिला दिया। याद कीजिए जब अटल की सरकार बनी, तो भारत में 22 टेलीकॉम कंपनियां थी। उपभोक्ता मनमोहन को भारत रत्न समझने लगे। विकल्पों में गोदा लगाने लगे। लोहा पूरा गर्म हो चुका था। मनमोहन को अब वो करना था जो करने के लिए उदारवाद लाया गया था, मतलब बाजार पर एकाधिकार।
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इसी क्रम में मनमोहन ने एक घोटाला प्लांट किया, नाम दिया स्पेंट्रम घोटाला। इस घोटाले ने इस सेक्टर के तमाम खिलाडी को मैदान से बाहर कर दिया। आज टेलीकॉम सेक्टर मे कितने विकल्प हैं। एयरटेल और वोडा का सरकार पर क्या आरोप है। बीएसएनएल की तरह जिओ का बाजार शेयर 100 फीसदी के पास कैसे पहुंचा। जिओ मे अमेरिकी कंपनी की हिस्सेदारी कैसे बढ रही है। क्या 1989 में उदारवाद के पक्षकार ने ऐसा दावा किया था कि आज बीएसएनएल का एकाधिकार है, उदारवाद आने के बाद जिओ का एकाधिकार होगा, जिसमें अमेरिकी कंपनी की हिस्सेदारी होगी। विश्व बैंक और अमेरिका का घोषित एजेंट मनमोहन जी इससे बेहतर नीति और क्या बना सकते थे, अमेरिका के लिए। कहां है वो विकल्प जिसकी बात 1989 में उदारवाद के पक्षकार किया करते थे। समाजवाद का मतलब सरकारी और उदारवाद का मतलब रिलायंस कैसे हो गया मनमोहन बेटा। 
साभार : 

कुमुद सिंह

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 ~विजय राजबली माथुर ©

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