~विजय राजबली माथुर ©
Saturday, July 31, 2021
Tuesday, July 20, 2021
Sunday, July 18, 2021
Friday, July 16, 2021
Thursday, July 1, 2021
Wednesday, May 19, 2021
Sunday, May 16, 2021
शववाहिनी गंगा • पारुल खख्खर (गुजराती से अनुवाद : इलियास)
पारुल खख्खर
गुजरात में आजकल
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धूम मचाती "शववाहिनी गंगा" : एक गीत जो
कर रहा है मोदी-सरकार की नाकामियों को नंगा
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आजकल की इस कोरोना-महामारी के दौर में जब अनुपस्थितप्राय मोदी-सरकार के फेल होने की लोक-टिप्पणियां अनुप्राणित हो रही हों, जब महामारी के इस दौर की विभीषिका को भाजपा-सरकारों व भाजपाई नेताओं द्वारा प्रायोजित बताया जा रहा हो, जब न्यायपालिका तक इसे "सरकारी नरसंहार" करार देती हो, जब अकाल मौतों के आंकड़े कयासों को भी पीछे छोड़ रहे हों, जब हाउसफुल श्मशानों में प्रतीक्षित लाशों के लिए लकड़ियों के भी घोर अभाव के चलते उन्हें हाथ-भर ज़मीन में गड्ढा खोदकर जैसे-तैसे दफ़नाने और गंगा जैसी पावन नदियों में खड़े-खड़ बहाने पर लोग मज़बूर हो रहे हों... ऐसे में उसी गुजरात में, जहां से अघोषित तानाशाहे-आज़म अनन्त-श्री-विभूषित स्वनामधन्य नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी महाराज ने अपनी पातक-घातक राज-यात्रा शुरू की थी, उसी गुजरात में आजकल एक गुजराती गीत की धूम मची हुई है।
गुजराती-कवयित्री पारुल खख्खर (फोटो संलग्न) द्वारा विरचित यह गीत दरअसल मौजूदा कोरोना-काल के दौरान गंगा में बहायी जा रही बेशुमार लाशों के बहाने मोदी-सरकार की नाकामियों को नंगा करता है।
इस गीत ने गुजरात में आजकल इस क़दर तूफ़ान मचा रखा है कि इसकी मुद्रित-प्रतियों तथा सॉफ्ट-संस्करणों को तो लोग बांट और साझा कर ही रहे हैं, साथ ही बहुतेरे लोग इसे संगीतबद्ध करके शहरों-गांवों में गा-सुना भी रहे हैं।
इस बहुचर्चित तथा बहुप्रसारित गीत को यहां उसके मूलरूप, गुजराती लिपि, में प्रस्तुत करने के साथ ही उसके हिन्दी-अनुवाद को भी दिया जा रहा है। इस गीत का सीधे गुजराती से हिन्दी-अनुवाद भी अनेक लोगों ने किया है, लेकिन यहां इलियास का किया हुआ अनुवाद ही प्रस्तुत किया जा रहा है, जो इतना सटीक बन पड़ा है कि मूल-रचना सरीखा ही आस्वाद देता है।
इस मूल गुजराती गीत के कथ्य, शिल्प और भावनाओं में ज़रा भी फेरबदल किये बिना इसके प्रस्तुत हिन्दी-अनुवाद में इलियास ने हालांकि हिन्दी की प्रकृति और मीटर को ध्यान में रखते हुए कुछ छूट भी ली है (जैसे कि मूल गुजराती के "રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા" यानी "राज, तुम्हारे रामराज्य में शववाहिनी गंगा" के शाब्दिक रूपांतरण के बजाय "सा'ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा" अनूदित किया गया है)-- लेकिन इससे इस हिन्दी-अनुवाद में और निखार आने के साथ ही मौलिकता भी रेखांकित हुई है।
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શબવાહિની ગંગા
• પારુલ ખખ્ખર
એક અવાજે મડદા બોલ્યાં 'સબ કુછ ચંગા-ચંગા'
રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા.
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રાજ, તમારા મસાણ ખૂટયા,
ખૂટયા લક્કડભારા,
રાજ, અમારા ડાઘૂ ખૂટયા,
ખૂટયા રોવણહારા,
ઘરેઘરે જઈ જમડાંટોળી
કરતી નાચ કઢંગા
રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા.
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રાજ, તમારી ધગધગ ધૂણતી
ચીમની પોરો માંગે,
રાજ, અમારી ચૂડલી ફૂટે,
ધડધડ છાતી ભાંગે
બળતું જોઈ ફીડલ વગાડે
'વાહ રે બિલ્લા-રંગા'!
રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા.
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રાજ, તમારા દિવ્ય વસ્ત્ર ને
દિવ્ય તમારી જ્યોતિ
રાજ, તમોને અસલી રૂપે
આખી નગરી જોતી
હોય મરદ તે આવી બોલો
'રાજા મેરા નંગા'
રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા.
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शववाहिनी गंगा
• पारुल खख्खर
(गुजराती से अनुवाद : इलियास)
एक-साथ सब मुर्दे बोले ‘सबकुछ चंगा-चंगा’,
सा’ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा.
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ख़तम हुए श्मशान तुम्हारे,
ख़तम काष्ठ की बोरी;
थके हमारे कंधे सारे,
आंखें रह गयीं कोरी;
दर-दर जाकर यमदूत खेलें--
मौत का नाच बेढंगा.
सा’ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा.
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नित्य निरंतर जलती चिताएं
राहत मांगें पल-भर;
नित्य निरंतर टूटती चूड़ियां,
कुटती छाती घर-घर;
देख लपटों को फ़िडल बजाते--
वाह रे ‘बिल्ला-रंगा’!
सा’ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा.
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सा’ब, तुम्हारे दिव्य वस्त्र,
दिव्यत् तुम्हारी ज्योति;
काश, असलियत लोग समझते,
हो तुम पत्थर, ना मोती;
हो हिम्मत तो आके बोलो--
'मेरा साहब नंगा’.
सा’ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा.
साभार :
~विजय राजबली माथुर ©
Friday, April 2, 2021
Monday, March 15, 2021
बंगाल इलेक्शन जीतना अडानी अम्बानी के कारपोरेट गैंग की पकड़ के लिए भाजपा की चाहत ------ गिरीश मालवीय
15-03-2021
आपने कभी ध्यान से सोचा कि आखिरकार पश्चिम बंगाल में ऐसा क्या खास है जो पिछले कई सालों से भाजपा अपनी पूरी ताकत लगा कर यहाँ के राजनीतिक समीकरण को अपने पक्ष में करने मे इतनी आतुर नजर आती है ?......
राजनीतिक विश्लेषण तो बहुत से समीक्षक करते हैं लेकिन वे नही बताते कि पश्चिम बंगाल का इलेक्शन जीतना पूर्वोत्तर भारत और उसके जरिए पूरे उत्तर पूर्वी एशिया के देशो तक अडानी अम्बानी के कारपोरेट गैंग की पकड़ बना देगा .......
दरअसल बंगाल चुनाव में भाजपा के पीछे अडानी अम्बानी की कारपोरेट लॉबी पूरी ताकत से धन बल के साथ जुटी हुई है,........साम दाम दंड भेद का हर सम्भव तरीके से इस्तेमाल हो रहा है , ...
दस साल पहले सोची समझी रणनीति के तहत वाम का किला ढहाया गया और अब उस किले को ढहाने वाले को ढहाया जा रहा है .....वाम के किले में सेंध ममता ने लगाई और अब ममता के किले में सेंध बीजेपी लगा रही है ममता को 21 सदी के पहले दशक में कारपोरेट घरानों और नए उदार अमीरों का अंध समर्थन मिला था लेकिन 2021 में तो असली डाकू आए हैं
दरअसल अभी तक वाम के लाल रंग के कारण बंगाल एक ऐसा मजबूत गढ़ था जहाँ अडानी अम्बानी अब तक अपना खेल खुल कर नही खेल पा रहे थे.....इसलिए अडानी अम्बानी गैंग के लिए 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव जीतना करो या मरो जैसा प्रश्न है वह बंगाल को भी देश की 'मुख्य धारा' में शामिल करने के लिए हर कीमत देने को तैयार है .....बीजेपी का विकास “मॉडल” अब बंगाल में भी दोहराए जाने को तैयार है
हम सब जानते हैं कि अडानी का कब्जा पूरे देश की कोस्टल लाइन पर हो गया है, अडानी ग्रुप के पास देश का सबसे बड़ा पोर्ट नेटवर्क है। पश्चिमी तट के जितने भी प्रमुख बन्दरगाह है वह मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उसके नियंत्रण में आना शुरू हो गए थे 2014 से 2019 के दौर में पूरी तरह से उसके कब्जे में आ चुके हैं देश के पूर्वी तट पर भी एक एक करके बन्दरगाह वह अपने कब्जे में कर रहा है , अब सिर्फ बंगाल का हल्दिया पोर्ट ही ऐसा है जहाँ उसे राज्य सरकार के प्रतिकार का सामना करना पड़ता है , हल्दिया पोर्ट से नेपाल तक को माल सप्लाई होता है
अडानी अम्बानी इस वक्त बंगाल को साउथ-ईस्ट एशिया और नॉर्थ-ईस्ट इंडिया को जोड़ने के लिए एक गेटवे की तरह देख रहे हैं।
बिहार में कारपोरेट की पहली जीत हो चुकी है, भाजपा नीतीश कुमार को इस चुनाव में वह सबक सिखा चुकी हैं, अब भाजपा बड़ा भाई है और जेडीयू छोटा भाई , नीतीश के पर कतरे जा चुके हैं, वहाँ वे बीजेपी के रबर स्टैंप के बतौर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं
अडाणी समूह ने 2018 में कह चुका है कि वह पश्चिम बंगाल के हल्दिया में कंपनी की खाद्य तेल रिफाइनरी की क्षमता को दोगुना करने के लिए 750 करोड़ रुपए का निवेश करेगा मुकेश अंबानी भी पश्चिम बंगाल में 5,000 करोड़ रुपए का निवेश करने का ऐलान कर चुके हैं. यह निवेश पेट्रोलियम और खुदरा कारोबार में किया जाएगा.
वाराणसी से हल्दिया के बीच गंगा में विकसित हो रहे जलमार्ग पर अडानी ग्रुप 10 जलपोतों का संचालन करने जा रहा है पटना टर्मिनल तक भी वह दो हजार टन क्षमता के जहाज चलाना चाहता है
इसके अलावा उन्हें एक पूरी तरह से अनछुआ व्यापार क्षेत्र मिलने जा रहा है, भारत को जमीन के रास्ते दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने की योजना है। भारत-म्यांमार-थाईलैंड को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए भारत के सहयोग से ट्राई लेटरल हाईवे का निर्माण चल रहा है। अब थाईलैंड और भारत के मध्य व्यापार बढ़ाने के लिए थाईलैंड के रानोंग बंदरगाह से भारत के चेन्नई व अंडमान को भी समुद्र मार्ग से जोड़ने की योजना है।
बांग्लादेश भी तीनों तरफ से पूर्वोत्तर भारत से घिरा हुआ है यानी वहाँ भी व्यापार की अपार संभावनाएं हैं और मोदी अपने हर दौरे में अडानी अम्बानी के लिए वहाँ जाकर बड़े बड़े प्रोजेक्ट हासिल करते आए हैं
साफ है कि अडानी अम्बानी जैसे गुजराती पूंजीपतियों के लिए बंगाल चुनाव जीतना बहुत महत्वपूर्ण है इससे उन्हें पूर्वोत्तर भारत और उस रास्ते के जरिए दक्षिण-पूर्व एशिया तक पैर जमाने का मौका मिल जाएगा
इसी के लिए हिंदुत्व की जमीन तैयार की जा रही है जब बिहार में कॉरपोरेट पूंजीपतियों ने अपने कदम बढाने शुरू किए तो उन्होंने बेगुसराय जिले के सिमरिया में कुंभ के नाम एक बहुत बड़ा धार्मिक इवेंट करवाया था इस इवेंट में गुजरात के कई उद्योगपतियों ने अपना पैसा लगाया था। इस पैसे से बीजेपी ने वहाँ वोटों की तगड़ी फसल काटी है .....इसी पैटर्न पर पिछले कुछ सालों से बंगाल में धार्मिक ध्रुवीकरण का माहौल बनाया जा रहा है, ओर जमकर पैसा झोंका गया है.... 2019 के लोकसभा चुनाव में इस पैसे से मिली सफलता हम देख चुके हैं और 2021 में भी भाजपा लोकसभा चुनाव जैसी सफलता की उम्मीद कर रही है
बंगाल चुनाव में भाजपा के पीछे से जो अडानी अम्बानी जैसे बड़े कारपोरेट घरानों का एजेण्डा है उसे एक बार ध्यान से समझना जरूरी है.....
ऐसा आपने कितनी बार देखा है कि निवर्तमान 4 सांसदो को केंद्र का सत्ताधारी दल विधायक बनाना चाहता हो ?
खेल बहुत गहरा है ......
~विजय राजबली माथुर ©
Tuesday, March 9, 2021
भारतीय संस्कृति का मूल तत्व ------ हरिदत्त शर्मा
अभिषेक श्रीवास्तव साहब ने कुछ समय पूर्व स्व हरिदत्त शर्मा जी के संबंध में जानकारी चाही थी तब इतना ही सूचित कर पाया था कि, वह नवभारत टाईम्स, दिल्ली में समाचार संपादक थे और उनका कालम ' विचार - प्रवाह ' नियमित छपता था अब उसका प्रमाण भी प्रस्तुत कर रहा हूँ । स्व हरिदत्त शर्मा जी का एक लेख ' प्रभात ' , मेरठ में 26 जनवरी 1975 को प्रकाशित हुआ था उसकी स्कैन कापी का अवलोकन किया जा सकता है ------
~विजय राजबली माथुर ©
Tuesday, January 26, 2021
कौन ऐसा सत्ता का दलाल है जिसकी दम पर इतनी भीड़ लाल किले तक आ गई ? ------ पंकज चतुर्वेदी
26-01-2021
26 जनवरी जब दल्ली पुलिस कहती है कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता, इतने लोग लाल किला तक पहुंचे कैसे?
चूंकि किसानों की कई सौ किलोमीटर लंबी रैली बाकायदा निकल ही रही थी सो आखिर कौन ऐसा सत्ता का दलाल है जिसकी दम पर इतनी भीड़ लाल किले तक आ गई।
इस वीडियो को ध्यान से देखें । इस भीड़ का अगुआ दीप सिद्धू है जो भा ज पा संसद सन्नी देवल का खास है।