रतन टाटा को त्रिशंकु बना दिया है। कुछ उन्हें अतिरिक्त महान बनाने पर तुले हैं ,कुछ उन्हें इस अतिरिक्त महानता से नीचे खींचकर उनकी पोल पट्टी खोलकर नीचे उतारने पर ।वे विशुद्ध उद्योगपति ही थे । सारे समझौते उन्होंने भी किए होंगे। अब सो गए तो सोने दो। सारी जमा पूंजी यहीं रह गई ये सोचने वाली बात है । अदानियों खदानियों की भी यहीं रहनी है। अच्छाई और बुराई मरने पर भी साथ नहीं छोड़ती । अगर हम झर से झरने वाले नमक के बजाय डली का नमक खाते तो वह क्या बुरा था ? आधी जनता को थायराइड हो गया । पहले किसी को न था । उद्योगपतियों ने साफ, नकली ,मिलावटी घी ,तेल, दूध, डालडा , दवा आदि से बीमार बना डाला। सुई से लेकर जहाज तक भी बनाए ।अच्छी चीज़ के साथ में बुरी भी आती है । पूर्ण शुद्ध कोई नहीं ।न हम, न तुम, न टाटा ।बस परिमाण का अंतर है ।मिलावट नमक जितनी हो तो चलती है । हम तो उनकी नैनो पर फिदा थे । उनके बारे में एक पोस्ट पर यह भी पढ़ा ।जो रतन टाटा प्रेमियों की आँखें मेरी आँखों की तरह फ़ाड़ देगा।मेरे दिमाग में उनकी अन्य से थोड़ी सी बेहतर छवि रही ।
दिगंबर जी की पोस्ट पर अजित पाटिल का ये कमेंट देखिए
Digamber पढ़ी हम तो नैनो पर ही फिदा थे ।वे अपनी।
टिप्पणी डिलीट कर गए ये वाली
[10/10, 10:26] Ajit Patil: मरने के बाद महान बनाने की जो रेस चलती है उसकी स्पीड सुपरसोनिक या रॉकेट से भी तेज़ होती है । रतन टाटा चले गये , जाना सबको है । लेकिन यही टाटा साहब की नैनों जब बंगाल के सिंगुर से गुजरात के सानंद तक पहुँची तो क्या - क्या नहीं हुआ ?.... उसके बाद मोदी की मार्केटिंग का ठेका रतन टाटा ने अपने कंधों पर लिया तथा वाइब्रेंट गुजरात और गुजरात मॉडल की मार्केटिंग करी । देश के बड़े टाइकून को गुजरात लाया गया , कोआर्डिनेशन कमेटी बनाई गई और क़ातिलो को स्टेटसमैन साबित करने की चालाकियां शुरू किया गया ... याद है कि नहीं ? ... बाक़ी , कलिंगनगर उड़ीसा से लेकर कुसुमा के जंगलों तक के आदिवासियों से पूछ लीजिएगा , उनकी गोली , उनकी बंदूक़ की ताक़त के बारे में । इसके बाद भी दिल ना भरे तो इस वक़्त फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ जो कंपनी इसराइल को माल सप्लाई कर रही है उसकी भी लिस्ट देख लीजिएगा । शोक व्यक्त करना हो , शौक से करिए , लेकिन महान बनाने के इतने जोश में ना आइये .... इनका आधुनिक इतिहास , जमशेदपुर का आधुनिक इतिहास , चीन के साथ अफ़ीम के व्यापार का इतिहास ...... वगैरह तो सब कुछ भूल ही जाइए फिलहाल ..... यह सब आप बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे शायद ...
[10/10, 10:26] Ajit Patil: क्या कोई गैर शोषक, गैर लुटेरा, कल्याणकारी, संत पूंजीपति भी होता है, या हो सकता है?
“Capital comes dripping from head to foot, from every pore, with blood and dirt.” - Marx
("पूंजी के सिर से पैर तक, हर छिद्र से, खून और गंदगी टपकती है।”)
अजित पाटिल
अगर आत्मा सोचती देखती है तो क्या सोच रहे होंगें ।वो तो जो सोचेंगे सोचेंगे पढ़कर अदाणी खदानी क्या सोचेंगें ।मगर उन्हें अभी सोचने की फुरसत नहीं जब जाएंगे तब सोचेंगें ।हम सभी जीवित रहते सोचते ही कहाँ है।
~विजय राजबली माथुर ©
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