आंध्र में गुंटूर जिले के न्यायाधीश जे.वी.वी.सत्यनारायण मूर्ती ने एक दिन में १११ मामलों का निपटारा कर के लोगों को रहत क्या पहुचाई कि,वकील उनके विरुद्ध इसलिए नाराज़ हो गए कि मुकदमा लम्बा चलने पर उन्हें जो आमदनी होती उस का नुक्सान हुआ.इस बात से यह भी मतलब निकलता है कि वकील अपनी आमदनी के चक्कर में मुकदमों को लम्बा खिचवाकर आम जनता की जेबें ढीली करते हैं.लखनऊ में मेडिकल प्रमाणपत्र बनवाने के विवाद में वकीलों ने सी.ऍम.ओ.कार्यालय में तोड़-फोड़ कर के रास्ता जाम कर दिया.कानून के जानकारों द्वारा क़ानून तोड़ने कि दूसरी मिसाल और क्या हो सकती है.६० वर्षों से अधिक समय तक अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद का मुकदमा चला अब फैसला आने से पहले ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तय्यारी शुरू हो गयी है.मतलब यह कि मुकदमे चलते रहें और वकीलों की जेबें भरती रहें और जनता अन्याय सहती रहे -यह कैसी न्याय व्यवस्था है.१९९२ में डाक्टर आंबेडकर की पत्नी सविता आंबेडकर इलाहबाद उच्च न्यायलय में याचिका दायर कर यह बताना चाहती थीं कि अयोध्या में न तो मंदिर था न मस्जिद वह तो एक बौद्ध मठ था किन्तु इलाहबाद के दोनों पक्षों के वकीलों ने एकजुट हो कर सविता आंबेडकर का बहिष्कार कर दिया कोई वकील उनकी याचिका दायर करने को तैयार नहीं हुआ वह निराश होकर लौट गयीं.यदि वह याचिका दायर हो जाती तो एक दबी हुई सच्चाई सामने आ जाती लेकिन वकीलों के हठ के कारन सच्चाई का खात्मा हो गया।
जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि यदि सब लोग अपने दायित्वों का पालन करने लगें तो लोगों को अपने अधिकार की प्राप्ति अपने आप ही हो जाएगी.लेकिन आज सब अपने अधिकार की बात करते हैं अपने दायित्व को कोई पूरा नहीं करता.एक जज ने अपने दायित्व का पालन किया है तो उन्हें सम्मानित करने की जरूरत है.वकीलों को उनका विरोध नहीं समर्थन करना चाहिए.इससे अदालतों और वकीलों दोनों का मान बढेगा.
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