२४ सितम्बर 2010 शुक्रवार को फैजाबाद की अदालत ने बाबरी मस्जिद/राम मंदिर विवाद में बौद्ध महा सभा का दावा खारिज कर दिया है,उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट के रुके फैसले पर सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि वह जारी किया जाए या स्थगित रखा जाए.कुछ लोग मंदिर-मस्जिद समर्थकों में समझौता कराने की कोशिश कर रहे हैं,परन्तु सच्चाई कोई भी सामने आने देना नहीं चाहता.ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने सत्ता मुगलों से छीनी थी इसलिए शुरू में मुसलमानों को दबाया और १८५७ की क्रांति के बाद उन्हें उभारा उनका मुख्य उद्देश्य येन-केन-प्रकारेण अपनी सत्ता बनाये रखना था इसलिए वे यहाँ सामाजिक सौहार्द्र नहीं बनने देना चाहते थे.
महाभारत काल के बाद वैदिक मत क्षीण हो चुका था तमाम विसंगतियां उत्पन्न हो गयी थीं.अतः महात्मा बुद्ध ने उस पर करारा प्रहार किया.बौद्ध मत भारत ही नहीं विदेशों में भी फैला.भारत से नेपाल की तराई में बिहार-बंगाल तक बौद्ध मत के अनुयाई हो गए थे.बौद्ध मठों और विहारों की प्रचुरता थी.आज का बिहार तो विहारों की बहुतायात के ही कारण इस नाम को प्राप्त कर सका.वैष्णवों ने बौद्धों पर भीषण अत्याचार किये उनके मठों को उजाड़ा और विहारों को जलाया गया.इसलिए जब भारत में इस्लामी शासक आये तो बौद्धों ने उनका समर्थन और स्वागत किया तथा ख़ुशी-खुशी इस्लाम क़ुबूल कर लिया तथा अपने विहारों व मठों को मस्जिद में तब्दील कर दिया.इन्हीं में से एक वह मस्जिद अयोध्या की भी थी जिसका विवाद परिचर्चा में है.
वास्तविकता यह है कि विवादित अयोध्या की स्थापना सम्राट हर्षवर्धन ने साकेत नाम से की थी जिसे कालान्तर में अयोध्या कहा जाने लगा परन्तु यह राम की जन्म भूमि नहीं है.राम के त्रेता युग की अयोध्या तो वर्तमान झारखंड के गिरिडीह जिले में है जो आज बिलकुल उपेक्षित है और उसके पुनरुद्दार पर किसी का भी ध्यान नहीं है.गोस्वामी तुलसी दास जी ने राम चरित मानस की रचना नाना पुराण निगमागम सम्मत और सर्वजन हिताय बहु जन सुखाय की थी जिस में राम-सीता विवाह वर्णन में जिन साधनों व समय का ज़िक्र किया गया है वह गिरिडीह से मिथिला पहुँचने का है.इस आज की अयोध्या से इतने कम समय में उन साधनों से नहीं पहुंचा जा सकता था.लेकिन आज के बुद्धिजीवी भी तथ्यों को सही सन्दर्भ में समझने को तैयार नहीं हैं तथा आस्था व विश्वास के नाम पर मरने और मारने की गुलाम मानसिकता से ग्रस्त है.
डाक्टर अम्बेडकर की द्वितीय पत्नी डाक्टर सविता अम्बेडकर जो ब्राह्मण पुत्री थीं इलाहबाद हाईकोर्ट में बौद्ध मठ का दावा करने आयीं थीं.वह कई दिन होटल में रुकने के बाद निराश हो कर लौट गयीं.कोई वकील उनकी रिट दायर करने को तैयार नहीं था,सच कोई भी सामने नहीं आने देना चाहता था.तब भारतीय बौद्ध महासभा की ओर से बौद्ध भिक्षु दीपंकर धम्म ने फैजाबाद की अदालत में वाद संख्या १९/९१ के द्वारा विवादित स्थल को बौद्ध संपत्ति घोषित करने का दावा किया था.उन्होंने बताया कि इस का निर्माण बौद्ध अनुयायी विशाखा ने ''सुखा राम बौद्ध विहार''के रूप में कराया था.वह वाद तत्कालीन सिविल जज ने १० जुलाई १९९२ को अदम पैरवी में खारिज कर दिया जिस के बाद बौद्ध भिक्षु श्री धम्म ने १७ मई २००२ को वाज दायरा किया.उन्होंने बरेली के वकील महेंद्र प्रताप सिंह को पैरोकार नियुक्त किया था और बराबर फीस देते रहे जबकि वह वकील साः लगभग १०० वर्ष के हैं और वकालत छोड़ कर दिल्ली चले गए हैं.वादी के अधिवक्ता शत्रुहन गोस्वामी अब जिला न्यायाधीश के समक्ष रेगुलर सूट दायर करेंगे.
इस प्रकार हम देखते हैं कि आजादी के ६३ वर्ष बाद भी साम्राज्यवादी कुचक्र के तहत मंदिर/मस्जिद विवाद उभारा जाता है जबकि यह अयोध्या त्रेता युग के राम की है ही नहीं तो राम जन्म भूमि वहां कैसे हो गयी?
बौद्धों को उनकी वास्तविक संपत्ति वापिस की जानी चाहिए अथवा देश हित का कोई कार्य -संग्राहलय आदि वहां बनाना चाहिए तथा गुलामी के विवाद का सदा के लिए समाधान कर लेना चाहिए.
Typist -यशवन्त
badhiya jaankari-parak lekh.
ReplyDeleteगिरिडिह के पक्ष में प्रमाण क्या है? ये पहली बार मैने सुना है। हां अयोध्या ही में भगवान के सात जन्मस्थान के बारे में सुना था। पर ये तो तय है कि बाबर ने वो ढांचा तोड़ा था। तो आज का फैसला भी इस बात को साबित करता है। अब समय है आगे बढ़ जाने का। करवट बदलने का समय है।
ReplyDeleteAdarniy Rohitji,
ReplyDeleteFaisley me Mandir torney ki bat kahin nahi hai.
Kripya post ka punravlokan karen to Spsht ho jayega ki PRAMANSWAROOP Goswami Tulsidasji ke us VARNAN ka ULLEKH hai jisme Ramcharit Manas me unhoney Ayodhya se Maharaj Dashrath dwara BARAT kin SADHNO se gai bataya hai.Yadi VIMAN ka ullekh hota to vivadit Ayodhya ho sakti thi,
parantu Varnit Sadhno se Varnit SAMAY me kewal aur kewal GIRIDIH-tatkalin Ayodya-se hi Mithila
pahuncha ja sakta hai-NISANDEH.
आपकी बात काफी हद तक सही है। पर ये जगह मिथिला के किसी और दिशा में भी हो सकती है क्या?
ReplyDelete2-इसके अलावा भी कोइ न कोई प्रमाण होना लाजिमी है।
3-फैसले में कहा गया है कि नीचे एक हिंदू ढांचा था, जिसपर मस्जिद बनाई गई। ASI की रिपोर्ट ने ये साबित किया है। जाहिर है कि काफी बड़े ढांचे को तोड़े बिना मस्जिद बनाना संभव नहीं था।
4-500 साल से एक ही जगह के लिए लड़ने वाले हमारे पूर्वज क्या गलत थे।
5-हर आस्था के प्रमुख केंद्र वाले मंदिर के साथ ही मस्जिद देश में खड़ी हुई क्यों मिलती है।
Param Adarniy Rohitji,
ReplyDeleteAapki shankayen mitaney ka pryas kar raha hun :-
1.-Aap patrkar hai kisi silsile me Giridih jayen
to kripya gaur karen ki Goswami Tulsidasji dwara
kiya Ayodhya ka varnan wahan lagu hota hai.
2.-Post me spasht likha tha ,Hindustan me chapi cutting bhi di thi ki Sukha Ram Baudh Vihar-Badhon dwara Islam kabul karne ke saath Masjid me pariwartit hua tha.Lihaza bldg.ke purane avshesh to rahney hi thaiy.
3.-post me hi saf likha tha ki Satta Muglon se lene per shuru me British Imperialists ne Muslimon ko dabane hetu Hindus ko badhawa diya tha jis karan Mandir -Maszid vivad khara hua.
Divide and Rule policy ka varnan to har history -Book me hai .Atah aapkey har qus. ka jawab yahi hai ki Videshi Shaskon dwara lagai Aag ke karan tamam Pjasthal Vivad hai,Gulami gai magar Gulam mansikta aaj bhi barkarar hai.
Kya kabhi SATYA ka samna hone per usey thukra kar purani Gulam Mansikta ka parichaiy dena hi
Uchit hai?
Rohit ji,
ReplyDeleteKripya "HINDUSTAN" me asociate editor Shri Arun Tripathi dwara 1 oct.ko vyakt vichar-''aam taur par yah dekha gaya hai ki angrejon ne apni foot dalo aur raj karo neeti ke tahat samprdaayik vivad ke prtikon ko jinda rakha tha".
yahi karan hai ki poorvaj jhagadte rahe to kya aaj azaadi me bhii jhagadte hi rahna hi chahiye?aur gulami ko yadon ko zinda rakhana chahiye.