Monday, October 4, 2010

खेल और मजदूरों को ठेल

कल से कामन वेल्थ खेल शुरू हो गए .जैसा कि  गोरखपुर की अपराजिता अग्रवाल ने सवाल उठाया है विचारणीय है .लेकिन खेल सूत्रों का कहना है -दिल्ली में हो रहा यह आयोजन न सिर्फ खेलों के लिए फायेदेमंद साबित होगा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ेगा :- जीडीपी में ४९४ करोड़  डालर  का ,२४ लाख ७० हज़ार लोगों को रोज़गार मिलेगा .
अब जबकि दिल्ली से मजदूरों को हटाया जा रहा है -मतलब निकल गया अब पहचानते नहीं की तर्ज़ पर तो साफ़ है की यह रोज़गार और जी डी पी का लाभ मजदूर या आम जनता को नहीं मिलने जा रहा है .निश्चिय ही यह लाभ उन्ही लोगों को मिलेगा जो आयोजकों के नजदीक होंगे .बिलकुल यही प्रक्रिया पूरे विकास की कहानी है .
इन खेलों के बहाने फिर सोचने का मौका मिला है की जनोन्मुखी विकास की बातें कैसे पूरी की जाएँ ?

11 comments:

  1. vicharniya prasn...aapne sahi muddaa uthaayaa hai.

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  2. स्वार्थी और असंवेदनशील समाज, खुद तो पनप रहा है, लेकिन गरीबों की कोई सुनवाई नहीं।

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  3. ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

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  4. विचारणीय लेख के लिए बधाई

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  5. sochne ka wishay hai....

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  6. बाऊ जी,
    नमस्ते!
    अगर मेरी समझ सही इशारा कर रही है तो आप यशवंत के पिताजी हैं!
    यशवंत आप अच्छा है, इसलिए उसे दूसरे भी अच्छे लगते हैं!
    इश्वर करे के आपका नाम और रोशन करे! आंटी को सादर चरण स्पर्श!
    अब बात करें आपकी पोस्ट की, तो बाउजी.....
    ये समाजवाद और पूंजीवाद का वैचारिक संघर्ष है!
    बहस हो सकती है बहुत, पर ना कोई निष्कर्ष है!
    कर भला हो भला, ले किसी का जो दुःख मिला!
    हमारे जैसों को तो इसी में हर्ष है!
    जय हो!
    आशीष

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  7. ASHISHJi,
    Aapney thik pahchana aur mujhey samman diya uskey liye dhanyawad.Aapka drishtikon bilkul sahi hai.


    Diviyaji,Arvindji,Sanjayji,shekharji-aap sabhi ko dhanyawad.

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  8. विजय माथुर साहब ! सर्वप्रथम आपका शुक्रिया अदा करूँगा कि आप मेरे ब्लॉग पर पधारे ! माथुर साहब, आपने एक प्रश्न किया था और उसमे छुपे आपके आक्रोस/पीड़ा को भी भली प्रकार से समझता हूँ , और सच कहूँ तो उस व्यंग्य को लिखते वक्त एक अलग किस्म के मानसिक दबाव से भी गुजरा कि किसी ख़ास नाम/जाति विशेष पर लेख को उद्घृत/ केन्द्रित करना उचित है अथवा नहीं ! मगर, आपको यह बताते दुःख है कि मैंने उस दिन अयोध्या फैसले पर एक छोटा सा लेख लिखा था, जिस पर एक ब्लोगर माथुर साहब ने बड़ी बेदर्द टिपण्णी कर मेरे दिल को ठेस पहुंचाई थी , जबकि मैंने उस लेख में कुछ भी भड़काऊ अथवा गलत नहीं लिखा था सिर्फ तथ्यों के साथ लोगो से अमन चैन की अपील की थी ! बस, वही टिपण्णी उस लेख की वजह बनी ! फिलहाल मैंने लेख और टिपण्णी दोनों सहेज कर रखे है, यहाँ पोस्ट करना भी उचित नहीं समझता ! उससे आपको अगर कोई कष्ट पहुंचा हो , उसके लिए आपसे तहेदिल से क्षमा माँगता हूँ !

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  9. गोदियाल साहब
    नमस्ते
    मैंने किसी भी आक्रोश अथवा व्यंग्य में प्रश्न नहीं पूछा था.आपको ठेस लगी इसका खेद है.मैंने तो यूँ ही लिख दिया था कि उनके initial भी बताएं उसका और कोई मतलब नहीं था.कृपया अन्यथा न लें और न ही आप कोई क्षमा कहने की आवश्यकता है.वो तो व्यंग्य है और उसका बुरा मानने का सवाल ही कोई नहीं है.मैं आप का ब्लौग नियमित देखता रहूँगा मैं कोई बात किसी को भी व्यक्तिगत ठेस पहुंचाने की लिखता ही नहीं हूँ.अतः आप निश्चिन्त रहें और जैसे लिख रहे हैं वैसे ही लिखते रहें.
    शुभ कामनाओं सहित
    विजय

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  10. शुक्रिया विजय साहब , और सच कहूँ तो तबसे लिखने का भे मूड नहीं बन रहा !

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  11. गोदियाल साहब
    कृपया गलत फहमी न रखें मैं तो आप के अयोध्या संबंधी विचारों में भी आप के साथ हूँ.वो कोई बेवकूफ माथुर साहब रहे होंगे जिन्हें तहजीब का पता नहीं होगा तभी उन्होंने आप को गलत लिखा होगा.ऐसे लोगों की बातों को तत्काल रद्द करें और दिल दिमाग पर बोझ न डालें.मैंने तो खुद अपने पोस्ट पे उस 'सुखा राम बौद्ध विहार' को बौद्धों को वापिस करने की बात कही है अतः यदि वो स्थान आप के सुझाव के अनुसार राष्ट्रीय स्मारक घोषित हो तो मेरा मत आप के साथ है.उसी पोस्ट में अदालती फैसले से सबंधी समाचार की scanned कॉपी भी लगी है.

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