05 जून 1984 को स्वर्ण मंदिर,अमृतसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी के आदेश पर सेना का आक्रमण हुआ और भिंडरावाले साहब का खात्मा तोप के गोले से उखड़े प्लास्टर के टुकड़े के उनके सर में घुसने से हुआ.स्वर्ण मंदिर एक धार्मिक -स्थल माना जाता है और इस पर सैनिक आक्रमण की निंदा करने वालों में बांग्ला देश युद्ध के नायक लेफ्टिनेंट जेनरल सरदार जगजीत सिंह अरोरा भी मुख्य रूप से थे.इस कदम की सराहना करने वालों में प्रमुख नाम पूर्व प्रधानमंत्री पं.मोरारजी देसाई का है जिन्होंने अमेरिका से इंदिराजी के इस कदम को साहसिक कहा था. मोरार जी उस समय अमेरिका में खुद पर अमेरिकी पत्रकार द्वारा सी.आई.ए.एजेंट होने के आरोप के विरुद्ध मुक़दमे के सिलसिले में डा.सुब्रमनियम स्वामी के कहने पर उनके साथ गए हुए थे.उस पत्रकार ने शायद जिसका नाम हर्षमेन था इंदिराजी के मंत्रीमंडल में एक सी.आई.ए.एजेंट होने का दावा किया था और इशारा मोरारजी पर था.मोरारजी बाद में यह मुकदमा हार गए थे.
जब इमरजेंसी के बाद जनता सरकार के प्रधानमंत्री मोरारजी बने तो उनकी सरकार को परेशान करने के लिए इंदिराजी ने भिंडरावाला को खुद आगे किया था उनके एक अधिवेंशन में संजय गांधी को भी भेजा था.इंदिराजी मान कर चल रही थीं अब वह कभी सत्ता में वापिस नहीं आ पाएंगी.परन्तु वह 1980 में पुनः प्रधानमंत्री बन गईं और संजय की मृत्यु के बाद राजीव गांधी ने भी भिंडरावाला को इस सदी का महान संत बताया था.लेकिन इन सब बातों का भिंडरावाला पर असर नहीं पड़ा जो अभियान मोरारजी के विरुद्ध इंदिरा जी ने उनसे शुरू कराया था उसे उन्होंने इंदिरा जी के विरुद्ध भी जारी रखा.बचाव के लिए उनके अनुयायी स्वर्ण मंदिर में छिप गए और वहीं से अपनी गतिविधियाँ चलाने लगे जिसके कारण इंदिराजी को स्वर्ण मंदिर पर आक्रमण का आदेश देना पड़ा.
दावा किया गया था कि सेना को स्वर्ण मंदिर में कंडोम ,मादक पदार्थ और शस्त्र भारी मात्रा में मिले थे.कहा तो यह भी गया था वहां घड़ों में मल -मूत्र भी पाया गया था.बताया गया स्वर्ण मंदिर अराजकता का अड्डा बन गया था.
प्रश्न यह है कि जिन मोरारजी के विरुद्ध भिंडरावाला का अभियान शुरू कराया गया वह तो उन्हें प्रेरणा देने वाली इंदिराजी का समर्थन करते हैं.जिन इंदिराजी ने उन्हें खडा किया वह उनका इस हद तक विरोध करती हैं.वस्तुतः मोरारजी सी.आई.ए.एजेंट के आरोप से घबराए हुए थे और उन्हें उस वक्त इंदिराजी की सहायता की जरूरत थी इसीलिए उनके अलोकतांत्रिक कदम की सराहना करने लगे.नैतिकता के अलमबरदार की यह अनोखी नैतिकता थी.
इस स्वर्ण मंदिर काण्ड ने इंदिराजी के प्रति सिक्खों में नफरत भर दी और बावजूद सिक्ख राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह की इंदिरा -भक्ति के ,सिक्ख सुरक्षा कर्मियों ने ही इंदिराजी की कुछ माह बाद हत्या कर दी.
प्रश्न यह भी है कि,क्या सिर्फ राजनीतिक विरोध के लिए इंदिराजी द्वारा देशद्रोही कदम को समर्थन देना उचित था अथवा नहीं ? जो भी हो गलत का नतीजा गलत ही हुआ करता है और हुआ भी.
भिंडरावाला इंदिरा जी के लिए भस्मासुर साबित हुए .तालिबान अमेरिका के लिए भस्मासुर बने हुए हैं.चाहे राजनीति हो या सामजिक क्षेत्र ,साहित्य हो या आध्यात्मिक क्षेत्र,सभी में नैतिकता पालन की महती आवश्यकता है.अहंकार में डूब कर जो गलत करते हैं उन्हें एक न एक दिन उसकी सजा भुगतनी ही पड़ती है.
स्वर्ण मंदिर काण्ड हमें हमेशा बुरे कर्मों का बुरा नतीजा प्राप्त होने की याद दिलाता रहेगा.काश लोग सबक भी ले सकें तो बेहतर है.
जो जैसा करेगा वैसा की फ़ल पायेगा, आप के लेख में कई जानकारी हमारे लिये नई थी,
ReplyDeleteबेतहरीन लेख के लिये फ़िर से बधाई आपको,
कुछ घटनाएँ सदैव अफ़सोस जनक ही रहेंगीं..... जानकारीपरक पोस्ट
ReplyDeleteपर यही तो दिक्कत है कि जब तक मनुष्य के साथ स्वयं कोई बडी घटना न घट जाए, वह सबक लेने को तैयार हीनहीं होता।
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कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत किसे है?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।