Thursday, June 16, 2011

क्या आप जानना चाहेंगे?

भोजन,वस्त्र और आवास जैसी प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ती किसी न किसी रूप में किसी न किसी प्रकार सभी करते ही हैं.प्राचीन -काल में विभिन्न पर्वों के अवसर पर नए -नए वस्त्र पहनने का प्राविधान रखा गया था.अब तो लोग अपनी क्षमता और जरूरत के अनुसार चाहे जब वस्त्र धारण कर लेते हैं.यहाँ हम आपको सूती -वस्त्र धारण करने का अनुकूल एवं प्रतिकूल अवसर के सम्बन्ध में बतलाना चाहते हैं.आजकल तो खादी में भी टेरीकोट का प्रचलन बढ़ गया है.परन्तु  टेरीन में काटन मिलाने पर ही टेरीकाट बनता है ,अतः उसके लिए भी यही नियम लागू होगा केवल ऊनी वस्त्र  इस दायरे में नहीं आयेंगें.  

कैलेण्डर,पंचांग आदि से आप कौन नक्षत्र कब तक और कबसे रहेगा इसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.किस नक्षत्र में नए सूती /टेरीकाट वस्त्र धारण करने पर क्या फल होता है ,इसे निम्नलिखित तालिका से जानें-

१.अश्वनी-वस्तु  अति प्राप्त होवे.
२.भरनी -अर्थ की हानि व् क्लेश .
३.कृतिका-खुशी और वस्तु की प्राप्ति.
४.रोहिणी-धन का लाभ.
५.मृगशिरा-वस्तु खराब हो या चूहे काटें.
६.आद्रा-अति कष्ट,रोग.
७.पुनर्वसु-सर्व-सुख की प्राप्ति.
८.पुष्य-यश,धन का लाभ,उन्नति.
९.आश्लेषा-और वस्त्र प्राप्त होता है.
१०.मघा-मृत्यु सम भय.
११.पूर्वा फाल्गुनी-कष्ट,मृत्यु भय.
१२.उत्तरा फाल्गुनी-लाभ-यश.
१३.हस्त-सुख,कार्य-सिद्धि.
१४.चित्रा-सर्व-सुख प्राप्ति.
१५.स्वाती- अच्छे भोजन की प्राप्ति .
१६.विशाखा-प्रिय जन मिलाप *
१७.अनुराधा-प्रिय जन समागम **
१८.ज्येष्ठा-वस्त्र क्षय होता है.
१९.मूल -जल से कष्ट
२०पूर्वाषड-.बीमारी-रोग होता है.
२१.उत्त्राशाड-मिष्ठान्न,भोजन की विशेष प्राप्ति.
२२.श्रवण-.नेत्र आदि पीड़ा होती है.
२३.धनिष्ठा-अन्न का लाभ होता है.
२४.शतभिषा-कोई आपत्ति या भय का सामना होता है.
२५.पूर्वा भाद्रपद -जल स भय होता है.
२६.उत्तरा भाद्रपद -संतान का या संतान से लाभ होता है.
२७.रेवती-मान-ऐश्वर्य की वृद्धि होती है.

नोट-*   = मिलना-जुलना कहीं भी संभव है.
        **  =आप के घर आना .
उपरोक्त विश्लेषण प्राचीन ऋषि-मुनियों ने वैज्ञानिक आधार पर अनुभव एवं परिक्षनोप्रांत निरूपित किये थे.


ज्वर के सम्बन्ध में

ज्वर खुद में कोई बीमारी नहीं है.ज्वर-बुखार-फीवर किसी बीमारी का साइड इफेक्ट होता है.परन्तु इसे मामूली भी नहीं समझ लेना चाहिए.किन-किन नक्षत्रों में ज्वर प्रारम्भ होने का क्या फल रहता है ,इसे निम्नांकित तालिका से जानें-

१.-स्वाती,पूर्वा फाल्गुनी,पूर्वाषाड,पूर्वा भाद्रपद ,आद्रा    =बीमार की मृत्यु हो.

२.-रेवती,अनुराधा                                                          =कुछ दिन बीमार रहे.

३.- भरनी ,शतभिषा,चित्रा                                              =ज्वर ११ दिन रहे.

४.-विशाखा,हस्त ,ज्येष्ठा                                              =ज्वर १५ दिन रहे.

५.-मूल,आश्लेषा,अश्वनी                                           =ज्वर ९ दिन रहे.

६.-मघा                                                                   =ज्वर २० दिन रहे.

७.-उत्तराभाद्रपद ,उत्तराषाड                                       =ज्वर ३० दिन रहे.

यह बताने का यह मतलब  नहीं है  ज्वर का कोई इलाज न किया जाए.चिकित्सकीय इलाज के अलावा ज्वर आने वाले नक्षत्र का वैज्ञानिक समाधान-शान्ति भी कर लें तो शीघ्र उपचार भी संभव है या कम से कम कष्ट में तो कमी हो ही सकती है.पहले वैद्य लोग इन बातों का ख्याल करते हुए औशद्दियाँ देते थे .आज कल अति-आधुनिकता के चक्कर में इन बातो  को कोई ध्यान नहीं देना चाहता और आज के चिकित्सक तो कहेंगे ही दकियानूसी बकवास है यह सब.लोग भी इसे नजरअंदाज ही करेंगे.ज्योत्षी लोग भी जन -सामान्य को इन सब की जानकारी देने के पक्ष नहीं रहते है.ज्ञान कंजूस का धन नहीं होता है अतः मैंने इसे सार्वजनिक करना अपना कर्तव्य समझा .

ज्वर के उपचार में साधारण तौर पर यदि 'ओम घ्रिणी सूर्याय नमः ' का १०८ बार पश्चिम दिशा की और मुंह करके जाप किया जाये तो भी लाभ प्राप्त हो सकता है.साथ-साथ बायोकेमिक कम्पाउंड  न. ११ का ४ टी डी एस सेवन भी हितकर रहेगा.

यह जानकारी क्यों?

क्या आप यह जानना चाहेंगें कि,मैंने ये जानकारियाँ आज क्यों सार्वजनिक की हैं?दरअसल इसका काफी ठोस आधार है-मेरी पूर्व श्रीमती जी स्व.शालिनी माथुर ने इस जानकारी की पूर्ण अवहेलना करते हुए 'आद्रा' नक्षत्र में कुछ नये वस्त्र धारण कर लिए थे. और नतीजा यह हुआ कि सात माह की लम्बी बीमारी के बाद (१६ नवंबर १९९३ को राजामंडी रेलवे क्वार्टर पर अपने भाई के घर खाना खा कर लौटने पर ज्वर आकर जो बीमार पडीं तो ठीक नहीं हुईं)आज ही के दिन १६ जून १९९४ को सायं उनका निधन हो गया.उनके बाद एक वर्ष के भीतर हमारे बाबूजी का निधन १३ जून १९९५ एवं बउआ का निधन १२ दिन बाद २५ जून १९९५ को हुआ. अपने घर नक्षत्र नियम का पालन न होने का खामियाजा भुगतने के बाद मुझे लगा इस ज्ञान का सार्वजानिक करना गलत नहीं होगा,बल्कि यह स्व.शालिनी माथुर के प्रति सच्ची श्रद्धांजली  होगी एवं यदि कुछ लोग इस  जानकारी  का लाभ उठा कर अपना बचाव कर सकें तो अत्युत्तम होगा.

6 comments:

  1. behad hi adbhud aur rochak jankaari | ek sawal poochana chahoongi , vyakti ka janm kis nakshatra mai hua hai is baat ka prabhav uske vyaktitva par padata hai |

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  2. जी हाँ जन्मकालीन नक्षत्र का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है.बल्कि नक्षत्र के चरणों का प्रभाव भी पड़ता है.भरत और राम इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं.

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  3. रोचक जानकारी इतने विस्तार से समझाने का आभार......

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  4. काम की जानकारी। धन्यवाद।

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  5. ज्ञानवर्द्धक जानकारी...

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  6. इस जानकारी से थोडा आश्चर्य भी हुआ है कि ऐसा भी संभव है!
    साथ ही ये पोस्ट रोचक भी लगी .

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