आओ विचारें आज मिल कर,यह समस्याएँ सभी। ।
राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी की ये काव्य पंक्तियाँ आज बेहद उपयोगी लग रही हैं,इसी कारण शीर्षक मे लिया है। सन 1857 ई .मे पहली बार राष्ट्र व्यापी रूप मे हमारे देश की जनता ने अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के नेतृत्व मे जिसमे मराठाओ का सम्पूर्ण सहयोग था ईस्ट इंडिया क के साम्राज्यवादी -शोषणवादी शासन के विरुद्ध 'क्रान्ति' की थी जो हमारे अपने ही लोगो द्वारा विश्वासघात किए जाने के कारण विफल हो गई थी। इससे पूर्व भी और बाद मे भी 'स्वातंत्र्य आंदोलन' चलते रहे। क्रांतिकारी धारा के श्यामजी कृष्ण वर्मा, शिव वर्मा, लाला हरदयाल,सरदार भगत सिंह,राम प्रसाद'बिस्मिल',लाहिड़ी बंधु,बटुकेश्वर दत्त,चंद्रशेखर 'आजाद',अशफाक़ उल्लाह खान,राजगुरु,सुखदेव सरदार ऊधम सिंह आदि-आदि एवं उदार धारा के गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गांधी,डा राजेन्द्र प्रसाद,जवाहर लाल नेहरू,डा भीम राव अंबेडकर,सरोजनी नायडू,विजय लक्ष्मी पंडित,एनी बेसेंट,सी एफ एन्द्र्यूज,मौलाना अबुल कलाम आजाद,खान अब्दुल गफ्फार खान, आदि-आदि एवं अग्रगामी विचार-धारा के लाल-बाल-पाल,नेताजी सुभाष चंद्र बॉस आदि-आदि के असीम त्याग एवं बलिदान के बाद हम यह आजादी 15 अगस्त 1947 को प्राप्त कर सके हैं ।
आजादी के पूर्व का काल नेताओ एवं जनता के त्याग -तपस्या का काल था। आजादी के बाद त्याग-तपस्या का स्थान लूट,अफरा-तफरी,शोषण-अत्याचार ,उत्पीड़न,स्वार्थन्ध्ता ,देश और राष्ट्र से दुराव आदि लेते चले गए। ये भ्रष्ट आचरण भौतिक प्रगति के साथ-साथ बढ़ते रहे। नैतिकता,चारित्रिकता ,ईमानदारी,सर्व-हित की भावना का निरंतर लोप होता गया।
जिस प्रकार मानव शरीर मे हृदय का कार्य सम्पूर्ण अवयवो का समुचित विकास होता है और किसी अवयव मे टूट-फूट या कमी होने पर हृदय उस अंग की ओर विशेष ध्यान देते हुये उसे अतिरिक्त रक्त प्रदान करता और ऊतकों की मरम्मत करता है.उसी प्रकार 'राज्य'-स्टेट का कार्य सभी नागरिकों का समान रूप से विकास करना होता है.यदि किसी क्षेत्र-विशेष या वर्ग -विशेष की स्थिति अत्यधिक कमजोर है तो यह राज्य का कर्तव्य है कि उसे अतिरिक्त सहायता मुहैया कराये. इसी उद्देश्य से संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गयी है.अन्ना-आन्दोलन का एक लक्ष्य इस आरक्षण की धारणा को पंगु करना भी था.
१९६२,१९६५,१९७१ के युद्धों ने हमारे देश की जितनी क्षति की उससे कहीं अधिक क्षति २०११ में अन्ना औरउनकी टीम द्वारा संविधान एवं संसद की सार्वभौमिकता को नग्न चुनौती देने से हो चुकी है जिसके दुष्परिणाम हमें निकट भविष्य में दुरूह रूप में देखने को मिलेंगे.
राज्यसभा सांसद-शोभना भरतिया कहती हैं "रामलीला मैदान का दबाव विधेयक पर नहीं होना चाहिए."
उन्हीं के अखबार -हिन्दुस्तान के प्रधान सम्पादक शशि शेखर साहब कहते हैं-"हमारे माननीय सांसदों में से कुछ यदा-कदा राजनीतिक तहजीब का उल्लघन करते रहे हैं. उनकी वजह से इस वक्त समूचा सिस्टम सवालों के घेरे में कैद हो गया है. सवाल उठता है कि क्या कोई भी १२१ करोड़ की आबादी वाले इस ताकतवर देश की संस्थाओं को अपने इशारों पर इस तरह नचा सकता है?"
जिस व्यक्ति ने देश के संविधान और संसद को बेशर्म चुनौती दी है उसके अपने गृह प्रदेश का हाल देखें-
Hindustan-Lucknow-28/08/2011 |
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कैसे अन्ना और उनकी टीम की हिम्मत हुयी कि वे संविधान और संसद को चुनौती दे सके और सरकार ने उनके विरुद्ध कारवाई क्यों नहीं की? इस बाबत जागरूक पत्रकार महेंद्र श्रीवास्तव साहब ने अपने ब्लॉग में यह स्पष्ट किया है-
"सोनिया गांधी गंभीर रुप से बीमार हैं और अमेरिका में इलाज करा रही हैं। जानकार कहते हैं कि तीन चार महीने वो पार्टी के काम में सक्रिय नहीं रह सकती। अपनी अनुपस्थिति में पार्टी का कामकाज चलाने के लिए उन्होंने एक चार सदस्यीय कमेटी बनाई। इसमे राहुल गांधी, जनार्दन द्विवेदी, अहमद पटेल और ए के एंटोनी को शामिल किया है। इस टीम को लेकर सरकार और पार्टी में शामिल तमाम नेता पार्टी से सख्त नाराज हैं।
अन्ना ने जब आंदोलन की धमकी दी तो पहले ही बातचीत करके मसले का कुछ हल निकाला जा सकता था। लेकिन सोनिया की बनाई टीम को लोग उसकी औकात बताना चाहते थे, लिहाजा किसी ने कोई पहल ही नहीं की। जो कोई आगे आया भी तो वो बाबा रामदेव के तर्ज पर अन्ना से भी निपटने का सुझाव देते रहे। वो ऐसे सुझाव देते रहे, जिससे सरकार की किरकिरी हो। इसी के तहत पहले अन्ना को गिरफ्तार कराया गया, सरकार की किरकिरी हुई, फिर अन्ना को छोडने का फरमान सुनाया गया तो सरकार की किरकिरी हुई, अन्ना ने जेल से बाहर आने से इनकार कर दिया, फिर सरकार की किरकिरी हुई। अनशन के लिए जगह देने में जिस तरह का ड्राम सरकार की ओर से किया गया, उससे भी सरकार की किरकिरी हुई। अब सरकार ने संसद में इस मामले में पूरे दिन चर्चा की, लेकिन बिना किसी नियम के हुई इस चर्चा से वो किसे बेवकूफ बना रहे हैं। ये समझ से परे है। सरकार में तो आपस में मतभेद और संवादहीनता रही है है, टीम अन्ना सही तरह से आंदोलन चलाने में नाकाम रही है।
बेचारे अन्ना की अंग्रेजी जानते नहीं और हिंदी कम समझते हैं। टीम अन्ना के सदस्य उन्हें जिस तरह से बात समझाते हैं, वो उन्हें समझ में ही नहीं आती। कई बार देखा गया है कि मंत्रियों से बात कुछ हुई और रामलीला मैदान तक पहुंचते पहुंचते बात कुछ और हो जाती है। हालत ये हुई कि सरकार को अन्ना के नुमाइंदों से किनारा करना पडा और एक ऐसे मंत्री को अन्ना से बात करने की जिम्मेदारी दी गई जो महाराष्ट्र से आते हैं। जिससे अन्ना से सीधे मराठी में बात करके उन्हें समझाया जा सके और उनके चंगू मंगू को दूर किया जा सके। "
मुझे लगता है कि पी एम् मनमोहन सिंह जी ,अरविन्द केजरीवाल जी,किरण बेदी जी ने मिल कर एक योजनाबद्ध तरीके से अन्ना हजारे साहब को मोहरा बना कर 'भ्रष्टाचार' के नाम पर यह बखेड़ा इसलिए खडा कराया था कि आम -गरीब-मेहनतकश जनता का ध्यान पेट्रोल,डीजल,गैस में हुयी मूल्य-वृद्धि से फ़ैली मंहगाई ,घपलो-घोटालो की और से हटाया जा सके.अपने मिशन में वे कामयाब रहे. यही कारण है कि स्वाधीनता दिवस पर रात्रि-ब्लैकाउट ,राष्ट्र ध्वज का रात्रि में फहराया जाना और राष्ट्र ध्वज के साथ अन्ना-आन्दोलन चलने पर सरकार ने उनके विरुद्ध कोई कारवाई नहीं की.
मेरे विचारों का आज निश्चय ही मखौल बनाया जाएगा.परन्तु मुझे विशवास है और में पहले भी लिख चुका हूँ कि मेरा लेखन आज के लिए नहीं आज से पचास वर्ष आगे के लिए है.ऐसा ही सोचना महान साहित्यकार श्रद्धेय स्व .भगवती चरण वर्मा जी (जिनकी आज जयंती है )का भी था जैसा कि,उनके पुत्र श्री धीरेन्द्र वर्मा,साहित्यकार ने उनके हवाले से बताया-"लेखन का महत्त्व १०० साल बाद पता चलता है. हमारा मूल्यांकन समकालीन आलोचक नहीं करेंगे.वे मूल्यांकन पूर्वाग्रह से करते हैं."(हिन्दुस्तान,लखनऊ,२९ अगस्त २०११,प्र.०७ )
अफ़सोस और दुःख के साथ कहना पड़ता है कि पत्रकार-शेष नारायण सिंह जी,अमलेंदु उपाध्याय जी,महेंद्र श्रीवास्तव जी तथा वकील रंधीर सिंह'सुमन' जी को छोड़ कर बाकी सभी ब्लागर्स के विचारों से में पूर्णतयः असहमत हूँजिन्होंने राष्ट्रद्रोही अन्ना आन्दोलन के गीत गाये हैं
विचारणीय बातें...
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कसौटी पर शिखा वार्ष्णेय..
फेसबुक पर वक्त की बर्बादी से बचने का तरीका।
विचारणीय बातें हैं... जिसे आज हम समझ नहीं पारहे हैं शायद ...
ReplyDeleteसटीक और प्रभावी विश्लेषण .....
ReplyDeleteSAhi kaha apne...
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