आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक शारदीय नवरात्रि तथा दशमी को दशहरा पर्व मनाए जाते हैं। ऋतु परिवर्तन के संक्रमण काल मे नवरात्रि मनाने का उद्देश्य मानव मात्र को स्वस्थ रखने हेतु हवन द्वारा पर्यावरण को शुद्ध करना था। किन्तु आज कल तथाकथित प्रगतिशीलता और विज्ञान के युज्ञ मे लोग अंधविश्वास से ग्रसित होकर अर्थ का अनर्थ करते हुयी और अधिक पर्यावरण प्रदूषित कर रहे हैं। पोंगावाद के चक्कर मे 'हेल्थ एंड हाईजीन 'के पर्व को ढोंग और पाखंड से जोड़ दिया गया है जिससे शोषण-प्रक्रिया को अधिक मजबूत किया जा सके और अफसोस कि जिंनका शोषण होता है वे ही ऐसे ढोंग -पाखंड को बढ़ाने मे अग्रणी रहते हैं। इसका एक कारण शोषितों के हमदर्दों-कम्यूनिस्टों का धर्म के इस क्षेत्र को शोषकों(पूँजीपतियों,साम्राज्यवादियों) हेतु खुला छोड़ देना है। वे शोषकों(साम्राज्यवादियों) वारा निर्धारित मानदंडों के आधार पर धर्म को ही रद्द कर देते हैं। जबकि धर्म का अर्थ धारण करना है और प्रत्येक मनुष्य को शरीर धारण करने हेतु आवश्यक नियमों का पालन करना ही धर्म कहलाता है। पोंगापंथियों की व्याख्या धर्म नहीं अधर्म मे उलझाती है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अथक प्रयास द्वारा भारत मे व्याप्त कुरीतियों तथा पाखंड पर प्रहार करके जनता को जागरूक किया था किन्तु उन्ही के प्रचारक रहे आचार्य श्रीराम शर्मा ने विशुद्ध आर्थिक स्वार्थों के चलते स्वामी जी की मेहनत पर पानी फेर दिया, गायत्री परिवार द्वारा पुनः ढोंग-पाखंड को जबर्दस्त तरीके से भारत-भर मे फैला दिया गया। आज अनेकों पाखंडी संगठन धर्म के नाम पर जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ रहे हैं । जनता के हितैषी बजाए धर्म के मर्म को समझाने के धर्म को ही गलत ठहरा रहे हैं जबकि धर्म वह नहीं है जिसे पोंगापंथी बताते हैं। आज दुर्गा अष्टमी के अवसर पर प्रस्तुत है श्री गजाधर प्रसाद आर्य द्वारा प्रकाशित आँखें खोलने वाली यह रचना-
'जगदंबा बकरे नहीं खाती है '
आज से दो दिन बाद दशहरा मनाया जाएगा और लोग रावण के पुतले फूँक कर तमाशा मचाएंगे। किंवदंती फैला दी गई है कि इसी दिन राम ने रावण का वध किया था जो बिलकुल गलत है। रावण का संहार चैत्र मास की अमावस्या को हुआ था। आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी 'विजया दशमी' कहलाती है ज्योतिषीय गणना के आधार पर इस दिन किए गए कार्यों मे निश्चित सफलता मिलती है। इसीलिए श्री राम ने इस दिन किष्किंधा की राजधानी 'पम्पापुर' से लंका की ओर प्रस्थान किया था। अंततः उन्हें अपने उद्देश्य मे पूर्ण सफलता मिली थी और वह साम्राज्यवादी रावण को जन-सहयोग से परास्त करने मे सफल रहे थे ।
'विजया दशमी' को राम की सहायता मे सुग्रीव की सेना के प्रस्थान को यादगार बनाने हेतु प्रारम्भ मे इस दिन 'विजय जुलूस' निकालने की परिपाटी पड़ी थी। धीरे-धीरे लोग नाट्य कला के माध्यम से संघर्ष को इस दिन दिखाने लगे। फिर कई दिन तक नाट्य प्रदर्शन शुरू हुये और विजया दशमी के दिन रावण का पुतला फूंका जाने लगा। ढोंग और दिखावे का बोल-बाला बढ़ता गया तथा नीति और आदर्श अदृश्य होते गए ,यही है आज की राम-लीला और दशहरा का सार।
आचार्य किशोरी दास बाजपेयी( जिन्हें हिन्दी का पाणिनी माना जाता है और जिन्हें डा रामधारी सिंह 'दिनकर' ने हिन्दी भाषा और साहित्य का डा राम मनोहर लोहिया कहा था ) ने भाषा-विज्ञान के आधार पर सिद्ध किया है कि 'राक्षस' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'रक्षस' धातु से हुई है जिसका अर्थ है -रक्षा करना। 'रावण' आदि प्रवासी आर्य अपने को 'राक्षस' अर्थात आर्य-सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करने वाले कहते थे। राम और रावण दोनों ही आर्य थे और दोनों के मध्य मतभेद तथा टकराव साम्राज्यवाद के विरुद्ध राष्ट्रवाद के संघर्ष के रूप मे था। विदेशी इतिहासकारों ने इसे आर्य-द्रविड़ संघर्ष बता कर फूट डालने का कृत किया है। रावण एक महान आर्य विद्वान था ,वह दसों दिशाओं का ज्ञाता था।
दस दिशाएँ-
1-पूर्व,2-पश्चिम,3-उत्तर,4-दक्षिण,5-ईशान(उत्तर-पूर्व),6-आग्नेय(दक्षिण -पूर्व),7-ने ऋत्य(दक्षिण-पश्चिम),8-वावव्य (उत्तर-पश्चिम),9-आकाश और 10-पाताल(धरती के भीतर)।
एक महान विद्वान और प्रकांड ज्ञाता को दशानन इसी लिए कहा गया था और उसके पुतले पर गधे के सिर लगाना विद्वता को ठुकराना एवं कुचलना है जो निंदनीय होना चाहिए परंतु बड़ी ठसक से खुद को काबिल कहने वाले लोग भी ऐसी कुत्सित बातों पर इठलाते हैं। खुद राम ने लक्ष्मण को रावण के पास ज्ञान प्राप्त करने भेजा था और अंत समय मे रावण ने लक्ष्मण के माध्यम से राम को ज्ञान प्रदान किया था।
हमारे देश मे एक बड़ा वर्ग पोंगापंथियों को बल प्रदान करता है और दूसरा खुद को काबिल समझने वाला वर्ग धर्म की अवधारणा को ठुकराता है। वास्तविक समस्या यह है जनता को समझाये कौन ?यदि कोई इस ओर प्रयास करे तो पोंगापंथी और प्रगतिशील दोनों मिल कर उस पर सामूहिक प्रहार करने लगते हैं। सत्य से आज किसी को कोई सरोकार नहीं है । ढोंग और पाखंड का पर्दाफाश करने की कड़ी मे एक छोटा सा प्रयास 'विजया दशमी' या दशहरा क्या है ?का रहस्य बताने की चेष्टा की है यह जानते हुये भी कि,आज भी लोग सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे।
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अथक प्रयास द्वारा भारत मे व्याप्त कुरीतियों तथा पाखंड पर प्रहार करके जनता को जागरूक किया था किन्तु उन्ही के प्रचारक रहे आचार्य श्रीराम शर्मा ने विशुद्ध आर्थिक स्वार्थों के चलते स्वामी जी की मेहनत पर पानी फेर दिया, गायत्री परिवार द्वारा पुनः ढोंग-पाखंड को जबर्दस्त तरीके से भारत-भर मे फैला दिया गया। आज अनेकों पाखंडी संगठन धर्म के नाम पर जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ रहे हैं । जनता के हितैषी बजाए धर्म के मर्म को समझाने के धर्म को ही गलत ठहरा रहे हैं जबकि धर्म वह नहीं है जिसे पोंगापंथी बताते हैं। आज दुर्गा अष्टमी के अवसर पर प्रस्तुत है श्री गजाधर प्रसाद आर्य द्वारा प्रकाशित आँखें खोलने वाली यह रचना-
'जगदंबा बकरे नहीं खाती है '
आज से दो दिन बाद दशहरा मनाया जाएगा और लोग रावण के पुतले फूँक कर तमाशा मचाएंगे। किंवदंती फैला दी गई है कि इसी दिन राम ने रावण का वध किया था जो बिलकुल गलत है। रावण का संहार चैत्र मास की अमावस्या को हुआ था। आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी 'विजया दशमी' कहलाती है ज्योतिषीय गणना के आधार पर इस दिन किए गए कार्यों मे निश्चित सफलता मिलती है। इसीलिए श्री राम ने इस दिन किष्किंधा की राजधानी 'पम्पापुर' से लंका की ओर प्रस्थान किया था। अंततः उन्हें अपने उद्देश्य मे पूर्ण सफलता मिली थी और वह साम्राज्यवादी रावण को जन-सहयोग से परास्त करने मे सफल रहे थे ।
'विजया दशमी' को राम की सहायता मे सुग्रीव की सेना के प्रस्थान को यादगार बनाने हेतु प्रारम्भ मे इस दिन 'विजय जुलूस' निकालने की परिपाटी पड़ी थी। धीरे-धीरे लोग नाट्य कला के माध्यम से संघर्ष को इस दिन दिखाने लगे। फिर कई दिन तक नाट्य प्रदर्शन शुरू हुये और विजया दशमी के दिन रावण का पुतला फूंका जाने लगा। ढोंग और दिखावे का बोल-बाला बढ़ता गया तथा नीति और आदर्श अदृश्य होते गए ,यही है आज की राम-लीला और दशहरा का सार।
आचार्य किशोरी दास बाजपेयी( जिन्हें हिन्दी का पाणिनी माना जाता है और जिन्हें डा रामधारी सिंह 'दिनकर' ने हिन्दी भाषा और साहित्य का डा राम मनोहर लोहिया कहा था ) ने भाषा-विज्ञान के आधार पर सिद्ध किया है कि 'राक्षस' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'रक्षस' धातु से हुई है जिसका अर्थ है -रक्षा करना। 'रावण' आदि प्रवासी आर्य अपने को 'राक्षस' अर्थात आर्य-सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करने वाले कहते थे। राम और रावण दोनों ही आर्य थे और दोनों के मध्य मतभेद तथा टकराव साम्राज्यवाद के विरुद्ध राष्ट्रवाद के संघर्ष के रूप मे था। विदेशी इतिहासकारों ने इसे आर्य-द्रविड़ संघर्ष बता कर फूट डालने का कृत किया है। रावण एक महान आर्य विद्वान था ,वह दसों दिशाओं का ज्ञाता था।
दस दिशाएँ-
1-पूर्व,2-पश्चिम,3-उत्तर,4-दक्षिण,5-ईशान(उत्तर-पूर्व),6-आग्नेय(दक्षिण -पूर्व),7-ने ऋत्य(दक्षिण-पश्चिम),8-वावव्य (उत्तर-पश्चिम),9-आकाश और 10-पाताल(धरती के भीतर)।
एक महान विद्वान और प्रकांड ज्ञाता को दशानन इसी लिए कहा गया था और उसके पुतले पर गधे के सिर लगाना विद्वता को ठुकराना एवं कुचलना है जो निंदनीय होना चाहिए परंतु बड़ी ठसक से खुद को काबिल कहने वाले लोग भी ऐसी कुत्सित बातों पर इठलाते हैं। खुद राम ने लक्ष्मण को रावण के पास ज्ञान प्राप्त करने भेजा था और अंत समय मे रावण ने लक्ष्मण के माध्यम से राम को ज्ञान प्रदान किया था।
हमारे देश मे एक बड़ा वर्ग पोंगापंथियों को बल प्रदान करता है और दूसरा खुद को काबिल समझने वाला वर्ग धर्म की अवधारणा को ठुकराता है। वास्तविक समस्या यह है जनता को समझाये कौन ?यदि कोई इस ओर प्रयास करे तो पोंगापंथी और प्रगतिशील दोनों मिल कर उस पर सामूहिक प्रहार करने लगते हैं। सत्य से आज किसी को कोई सरोकार नहीं है । ढोंग और पाखंड का पर्दाफाश करने की कड़ी मे एक छोटा सा प्रयास 'विजया दशमी' या दशहरा क्या है ?का रहस्य बताने की चेष्टा की है यह जानते हुये भी कि,आज भी लोग सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे।
सुंदर सार्थक जानकारी ...आभार
ReplyDeleteभ्रांतियों को भी जनमानस के गहराई में बिठा दिया गया है. अब किसको पड़ी है कि तोड़े . बहुत बातें स्पष्ट हुई है . मैं भी नहीं जानती थी. आपका बहुत-बहुत आभार.
ReplyDeleteआप सभी को विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !!
ReplyDelete___________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
सुंदर सार्थक जानकारी|
ReplyDeleteआप को दशहरे पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
श्री गजाधर प्रसाद आर्य द्वारा प्रकाशित दुर्लभ रचना की प्रस्तुति के लिए आभार...
ReplyDeleteविजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।