(हिंदुस्तान,लखनऊ,09-11-2011)
उपरोक्त स्कैन पढ़ कर आपको कैसा लगा?अखबार के संवाददाता ने तो प्रशासन को जम कर कोस डाला क्या यह उचित है?इसी से मिलते -जुलते मामले मे सच्चाई बयान करने पर न्यायपालिका ने स्वामी अग्निवेश को कानूनन अपराधी मान लिया और शायद वह दंडित भी हो जाएँ। क्या जन-आस्था के नाम पर अपराध होते रहें और उस ओर ध्यान दिलाने पर -जनता को जागरूक करने के प्रयास पर लोग दंडित होते रहें तब इस प्रकार के हादसे नहीं होंगे?क्यों नहीं ऐसे कार्यक्रमों के आयोजकों को दोषी माना जाता जिनहोने बेगुनाह 20 लोगों को असमय मौत की नींद सुला दिया और 50 घायल हुये? 'वैज्ञानिक -सत्य' उद्घाटित करना आस्था के नाम पर तो दंडनीय अपराध मान लिया गया किन्तु संविधान-प्रदत्त 'अभिव्यक्ति की स्वन्त्र्ता' का संरक्षण भी स्वामी अग्निवेश को प्राप्त न हुआ। संविधान सर्वोपरि है न की जन-आस्था के नाम पर फैला आडंबर ।
हादसा कराने वाला 'गायत्री परिवार' वेदिक नियमों की अवहेलना करने वाला एक व्यापारिक संगठन है । 1551 कुंडीय यज्ञशाला पूर्णत्यः वेदिक सिद्धांतों के विपरीत है। यज्ञशाला मे एक ही कुंड होना चाहिए और उसमे चारों ओर 2-2 व्यक्ति मिला कर एक बार मे 8 से अधिक व्यक्ति एक साथ आहुतियाँ नहीं दे सकते। किन्तु धनार्जन -दक्षिणा के लालच मे एक से अधिक कुंड बना लिए जाते हैं और इसी दक्षिणा के बटवारे को लेकर आचार्य श्री राम शर्मा के दामाद और पुत्र के मध्य खींच-तान तथा मुक़दमेबाज़ी भी चल रही है।
'सच्चे साधक धक्के खाते ,अब चमचे मजे उड़ाते हैं'-नारद नाम से 'अमर उजाला',आगरा मे 1975 मे एक सज्जन ने जो लिखा था वही सब जगह देखने को मिल रहा है। आज झूठ,मक्कारी, बेईमानी ,ठगी,ढोंग-पाखंड का बोल-बाला है और उन्हीं को कानूनी संरक्षण भी मिला हुआ है। 'खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है'-ग्रेशम का यह अर्थशास्त्रीय सिद्धान्त आज सभी क्षेत्रों मे 'सत्य' सिद्ध हो रहा है।
नन्द लाल जी के इस ज्ञान को समझ सकें तो जनता ऐसे छली आयोजनों के भंवर -जाल मे फँसने से बच सकती है।
यदि आचार्य श्री राम शर्मा द्वारा गायत्री परिवार के माध्यम से स्वामी दयानन्द द्वारा लायी गयी जागरूकता को समाप्त न किया जाता तो इस प्रकार के सभी दूसरे हादसों को भी रोका जा सकता था। इस संदर्भ मे यह लिंक भी देखें--http://janhitme-vijai-mathur.blogspot.com/2011/11/blog-post_09.html
धर्म कर्म के नाम पर भोली भली जनता बेवक़ूफ़ बनती है . और धर्म के ठेकेदार बनाते हैं तथा अपना उल्लू सीधा करते हैं .
ReplyDeleteजाने कब समझ आएगी .
आयोजक और प्रशासन पूरी तरह से उत्तरदायी है. धर्म का व्यापार नए इलैक्ट्रॉनिक आयाम ग्रहण कर चुका है. डॉ. टी.एस. दराल ने सही कहा है.
ReplyDeleteसही बात ...विचारणीय विवेचन
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteदुखद स्थिति।
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