हिंदुस्तान,लखनऊ,19-08-2011 |
हिंदुस्तान,लखनऊ,05 -12-2011 |
हिंदुस्तान,लखनऊ,19-08-2011 |
स्वाधीनता दिवस -15 अगस्त,गणतन्त्र दिवस -26 जनवरी और गांधी जयंती -02 अक्तूबर को राष्ट्र ध्वज सार्वजनिक रूप से सभी जगह फहराया जा सकता है। शेष दिनों मे केवल सरकारी कार्यालयों मे ही राष्ट्र ध्वज फहराया जा सकता है। राष्ट्र ध्वज लेकर आंदोलन करना राष्ट्र द्रोह है जिसके लिए आंदोलनकारियों के विरुद्ध 'राष्ट्रध्वज का अपमान' करने के नियम के अंतर्गत कारवाई होनी चाहिए। परंतु अन्ना टीम शुरू से ही राष्ट्र ध्वज का अपमान करती आ रही है और कोई कारवाई न किया जाना इसमे सरकारी मिली-भगत के षड्यंत्र की ओर इंगित करता है।
अन्ना आंदोलन अमेरिकी प्रशासन,अमेरिकी व भारतीय कारपोरेट घरानों के हित मे कांग्रेस के मनमोहन गुट के समर्थन से चल रहा है और आर एस एस का भी इसे खुला समर्थन है।
अमेरिका मे जार्ज वाशिंगटन ने कहा था- जो कोई अमेरिकन राष्ट्र ध्वज का अपमान करे उसे तत्काल गोली मार दो। (Who hail the American Flag shoot him at the spot ) और भारत मे खुलमखुल्ला राष्ट्र ध्वज का अपमान हो रहा है और अपराधी सिर-माथे पर बैठाये जा रहे हैं,क्यों?
निम्नाकिंत स्कैन देख कर आपको सच्चाई का आभास हो जाएगा।
जिस अमेरिकी सरकार से वहाँ के नागरिक असंतुष्ट हैं और अपने देश के कारपोरेट घरानों की लूट के विरुद्ध 'आकुपाई वाल स्ट्रीट' आंदोलन एक लंबे अरसे से चला रहे हैं। उनकी देखा-देखी यूरोप के दूसरे देशों मे भी कारपोरेट अत्याचार के विरुद्ध आंदोलन चल रहे हैं। लेकिन हमारा देश जो 'भूतपूर्व विश्व गुरु ' है उल्टी गंगा बहाये जा रहा है। हमारे यहाँ प्रबुद्ध लोग 'कारपोरेट घरानों 'के आव्हान पर उनके हितों की रक्षा के लिए जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ कर 'अन्ना आंदोलन' मे जोत रहे हैं। अपनी रोजी-रोटी,भूख-प्यास,बेरोजगारी,असमानता,शोषण,लूट,उत्पीड़न,अत्याचार आदि मूलभूत समस्याओं को न उठा कर भोली जनता दीवानों की तरह कारपोरेट-भक्त 'अन्ना-टीम' के पीछे भटक रही है।
सरकारी अधिकारी भी अपने-अपने ब्लाग्स और फेसबुक स्टेटस द्वारा 'अन्ना आंदोलन' का समर्थन कर रहे हैं। वस्तुतः IAS अधिकारियों ने अपनी-अपनी पत्नियों के नाम पर NGOs गठित कर रखे हैं जिनके जरिये सरकारी अनुदान हड़प कर जाते हैं साथ ही विदेशी कंपनियों को अनुग्रहीत करने के बदले 'दान' या 'चन्दा' भी झटक लेते हैं। समस्त NGOs ने अपनी ताकत 'अन्ना आंदोलन' के समर्थन मे झोंक रखी है और वे 'लोकपाल' से NGOs को अलग रखने की मुहिम चला रहे हैं। अन्ना-आंदोलन चाहता है कि सरकारी अधिकारी और उनकी पत्नियों के NGOs के भ्रष्टाचार को कारपोरेट भ्रष्टाचार के साथ ही बचाए रखा जाये तथा निम्न पदों के कर्मचारियों को 'लोकपाल' के डंडे के सहारे 'आतंकित' रखा जाये। अनपढ़ लोग तो 'अज्ञान'के कारण अन्ना की आंधी मे बह रहे हैं लेकिन 'इंटरनेटी विद्वान' क्यों अन्ना के अंध-भक्त बने हुये हैं?क्या उनमे अपने देश के प्रति कुछ भी स्वाभिमान नहीं बचा है?लगता ऐसा ही है और यही सन 2011 की सबसे बड़ी 'राष्ट्रीय त्रासदी' है। भावी इतिहास आज की पीढ़ी को कभी छमा नहीं करेगा।
कृपया इस लिंक को अवश्य देखें-
http://jantakapaksh.blogspot.com/2011/12/blog-post_14.html
अन्ना के आन्दोलन का आज तो आपने वो सच दिखाया है जो हम सब समझना ही नहीं चाहते | राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान मन को बहुत व्यथित करता है ....
ReplyDeleteरैली में झंडा देख कर तो हम भी हैरान थे ।
ReplyDeleteआपकी बाकी बातों में भी दम है ।
अन्ना का आंदोलन एनजीओ उन्मुख आंदोलन बना हुआ है. इसी से इस के उद्देश्यों पर संदेह होता है.
ReplyDeleteमेल पर प्राप्त डॉ सुनीता की टिप्पणी ---
ReplyDeleteसर नमस्कार..! आज देखी हूँ.बहुत ही अच्छा लगा.बेहतरीन तरीके से आपने हर एक बिंदु को बड़ी संजीदगी से पकड़ा है.
आपकी बात से सहमत हूँ की ... झंडे का अपमान नहीं होना चाहिए किसी भी हालात में ...
ReplyDeleteबेहद ही विचारणीय ..चिंतन के लिए विवश करती प्रस्तुति.....
ReplyDelete