सन1942 ई .के भारत छोड़ो आंदोलन मे मात्र 17 वर्ष की आयु मे सक्रिय भाग लेने वाले ग्राम -कांकेरा,पोस्ट-अकबरपुर,जिला-मथुरा-281406 के मूल निवासी विजय आर्य सिद्धान्त शास्त्री जी आर्यप्रतिनिधि सभा से 26 वर्ष एक माह सम्बद्ध रह कर फिर स्वतंत्र रूप से स्वामी दयानन्द'सरस्वती' की नीतियों तथा उपदेशों के प्रचारक रहे हैं उनकी यह देश-भक्तिपूर्ण रचना आप भी देखें-
सुखदाई सत युग लाना है।
कलि काल कलंक मिटाना है।
नित प्रातः प्रभु गुण गायें गे ।
सिर मात -पिता को नायें गे।
शुचि संध्या यज्ञ रचाएंगे। सुंदर सुगंध फैलाएँगे।
दुर्गुण दुर्गंध मिटाना है। । 1 । ।
कुल क्रूर कुरीति तोड़ेंगे,पापों का भण्डा फोड़ेंगे ।
सब दुष्कर्मों को छोड़ेंगे,सत कर्म से नाता जोड़ेंगे।
सबको यह पाठ पढ़ाना है। । 2 । ।
कभी मदिरा मांस न खाएँगे,फल फूल अन्न ही पाएंगे।
भूले भी कुसंग न जाएँगे,मिल मेल मिलाप बढ़ाएँगे।
सत प्रेम की गंग बहाना है। । 3 । ।
जो निर्बल निर्धन भाई है,हरिजन मुस्लिम ईसाई है।
इस देश के सभी सिपाही हैं,सब एक राह के राही है।
समता का सूर्य उगाना है। । 4 । ।
वेदों को पढ़ें पढ़ाएंगे ,यज्ञों को करें कराएंगे।
ताप दान शील अपनाएँगे,ऋषियों के नियम निभाएंगे।
बन 'विजय' वीर दिखलाना है। । 5 । ।
सर्व-प्रथम आचार्य श्री राम शर्मा ने गायत्री परिवार बना कर (जो अब उनके पुत्र और दामाद के बीच दान के बँटवारे को लेकर विवाद मे है) आर्यसमाज और इसके वेदिक सिद्धांतों पर जोरदार हमला बोला एवं पुनः ढोंग-पाखंड को चतुर्दिक फैला दिया। उसके बाद विभिन्न 'बापू' ,'स्वामी' आते गए और पाखंड का जैकारा लगवाते रहे। 1925 मे आर एस एस के गठन के बाद तो द्रुत गति से स्वामी दयानन्द के बताए मार्ग को ध्वस्त किया गया। इस सांप्रदायिक /साम्राज्यवादी/आलोकतांत्रिक संगठन ने 'आर्यसमाज' मे प्रबंध के स्तर पर भी घुस कर उसे मूल सिद्धांतों से भटका दिया। इसलिए हो सकता है कि कहीं-कहीं आर्यसमाज के मंच से आर एस एस ने अपनी बात कहला दी हो । लेकिन क्यों?स्वामी सहजानन्द 'सरस्वती' और गेंदा लाल दीक्षित सरीखे वरिष्ठ आर्यसमजी नेता जहां क्रांतिकारी कम्युनिस्ट रहे हों वहाँ कम्युनिस्टों का आर्यसमाज को समर्थन न देना ही आर एस एस के लिए मैदान खुला छोड़ देने के कारण ही तो। सी पी एम ,पश्चिम बंगाल से संबन्धित एक विद्वान खुल कर ढ़ोंगी -पाखंडी लोगों का समर्थन और आर्यसमाज तथा स्वामी दयानन्द की नाहक निंदा करते हैं-
सन1942 ई .के भारत छोड़ो आंदोलन मे मात्र 17 वर्ष की आयु मे सक्रिय भाग लेने वाले ग्राम -कांकेरा,पोस्ट-अकबरपुर,जिला-मथुरा-281406 के मूल निवासी विजय आर्य सिद्धान्त शास्त्री जी आर्यप्रतिनिधि सभा से 26 वर्ष एक माह सम्बद्ध रह कर फिर स्वतंत्र रूप से स्वामी दयानन्द'सरस्वती' की नीतियों तथा उपदेशों के प्रचारक रहे हैं उनकी यह देश-भक्तिपूर्ण रचना आप भी देखें-
सुखदाई सत युग लाना है।
कलि काल कलंक मिटाना है।
नित प्रातः प्रभु गुण गायें गे ।
सिर मात -पिता को नायें गे।
शुचि संध्या यज्ञ रचाएंगे। सुंदर सुगंध फैलाएँगे।
दुर्गुण दुर्गंध मिटाना है। । 1 । ।
कुल क्रूर कुरीति तोड़ेंगे,पापों का भण्डा फोड़ेंगे ।
सब दुष्कर्मों को छोड़ेंगे,सत कर्म से नाता जोड़ेंगे।
सबको यह पाठ पढ़ाना है। । 2 । ।
कभी मदिरा मांस न खाएँगे,फल फूल अन्न ही पाएंगे।
भूले भी कुसंग न जाएँगे,मिल मेल मिलाप बढ़ाएँगे।
सत प्रेम की गंग बहाना है। । 3 । ।
जो निर्बल निर्धन भाई है,हरिजन मुस्लिम ईसाई है।
इस देश के सभी सिपाही हैं,सब एक राह के राही है।
समता का सूर्य उगाना है। । 4 । ।
वेदों को पढ़ें पढ़ाएंगे ,यज्ञों को करें कराएंगे।
ताप दान शील अपनाएँगे,ऋषियों के नियम निभाएंगे।
बन 'विजय' वीर दिखलाना है। । 5 । ।
एक जमाने में दयानन्द सरस्वती और आर्यसमाज ने मुसलमानों और ईसाइयों के प्रति तीखी नफरत का इजहार किया था। वे इन दोनों को राष्ट्रीय एकीकरण का हिस्सा नहीं मानते थे। भारत में राष्ट्रीय एकीकरण में अल्पसंख्यकों को रखना होगा। विकास में भी उन्हें शामिल करना होगा। वरना समाज अपंग बनेगा।भाजपा को अपनी अल्पसंख्यक विरोधी भावनाओं को त्यागकर राष्ट्रीय एकता के निर्माण में सहयोग करना चाहिए।
एक जमाने में दयानन्द सरस्वती और आर्यसमाज ने मुसलमानों और ईसाइयों के प्रति तीखी नफरत का इजहार किया था। वे इन दोनों को राष्ट्रीय एकीकरण का हिस्सा नहीं मानते थे। भारत में राष्ट्रीय एकीकरण में अल्पसंख्यकों को रखना होगा। विकास में भी उन्हें शामिल करना होगा। वरना समाज अपंग बनेगा।भाजपा को अपनी अल्पसंख्यक विरोधी भावनाओं को त्यागकर राष्ट्रीय एकता के निर्माण में सहयोग करना चाहिए।
पुराण की एक कथा है। देवताओं को पता लगा कि पृथ्वीलोक में सहजानंद नामक एक ऐसे अनूठे साधक रहते हैं, जो भक्ति साधना में कुछ समय लगाने के बाद अधिकांश समय लोगों की सेवा करने, बीमारों का उपचार करने, बच्चों को शिक्षा देने जैसे परोपकार के काम में बिताते हैं। राग, द्वेष, लोभ, अहंकार, आसक्ति जैसे दुर्गुण उन्हें छू भी नहीं पाए हैं।
लाउडस्पीकरसे आवाजें घर पर सुनायी दे रहीं थीं एक वेद-प्रचारक महोदय गा रहे थे-
(यह भजन पिछले वर्ष हमारे घर के समीप हो रहे एक आर्यसमजी कार्यक्रम मे जनता को सुनाया गया था,जिसका अर्थ है कि अभी भी आर्यसमाज मे वास्तविक 'सत्य' बोलने वाले लोग हैं)
दौलत के दीवानों उस दिन को पहचानों ;
जिस दिन दुनिया से खाली हाथ चलोगे..
चले दरबार चलोगे....
ऊंचे-ऊंचे महल अटारे एक दिन छूट जायेंगे सारे ;
सोने-चांदी तुम्हारे बक्सों में धरे रह जायेंगे...
जिस दिन दुनिया से खाली हाथ चलोगे...
चले दरबार चलोगे.......
दो गज कपडा तन की लाज बचायेगा ;
बाकी सब यहाँ पड़ा रह जाएगा......
चार के कन्धों पर चलोगे..
.चले दरबार चलोगे......
पत्थर की पूजा न छोडी-प्यार से नाता तोड़ दिया...
मंदिर जाना न छोड़ा -माता-पिता से नाता तोड़ दिया...
बेटे ने बूढ़ी माता से नाता तोड़ दिया ;
किसी ने बूढ़े पिता का सिर फोड़ दिया....
पत्थर की पूजा न छोडी ;मंदिर जाना न छोड़ा....
दया धर्म कर्म के रिश्ते छूट रहे;
माता-पिता से नाता छोड़ दिया....
उल्टी सीधी वाणी बोलकर दिल तोड़ दिया;
बूढ़ी माता से नाता तोड़ दिया.....
पत्थर की पूजा न छोडी मंदिर जाना न छोड़ा
बूढ़ी माँ का दिल तोड़ दिया.....
वे क्या जाने जिसने प्रभु गुण गाया नहीं ;
वेद-शास्त्रों से जिसका नाता नहीं..
जिसने घर हवन कराया नहीं...
गुरुडम में फंस कर जिसने सत्य से मुंह मोड़ लिया ;
पाखण्ड को ओढ़ लिया ...
इसी कारण भारत देश गुलाम हुआ ...
भाई-भाई का आपस में घोर संग्राम हुआ ;
मंदिर ..मस्जिद तोड़े संग्राम हुआ.....
बुत परस्ती में लगा हुआ देश बुरी तरह गुलाम हुआ ;
देश मेरा बदनाम हुआ.....
कानों में आवाजें आ रहीं थीं कागज पर उतारा और आपको लिख दिया ;लेकिन सब बेकार है .हमारे फेसबुक / ब्लाग जगत में जहाँ सभी बुद्धीजीवी है - पाखंड छोड़ने को तैयार नहीं तो आम जनता तो अबोध है उससे क्या उम्मीद की जाये?
मेरठ सी पी एम से संबन्धित एक ब्लागर साहब तो मेरे पाखंड/ढोंग पर प्रहार का उपहास उड़ाने मे ही गर्व का अनुभव करते हैं जिस प्रकार कि,'गर्व से हिन्दू'होने का खुला ऐलान करने वाला सरकारी विभाग रेलवे का भ्रष्ट सर्जन। हालांकि खुलासा होने के बाद अब उस डॉ ने अपने प्रोफाईल से-'हिन्दी,हिन्दू,हिंदुस्तान'का स्लोगन हटा लिया है और इसी नाम का एक अलग ब्लाग खोल लिया है। एक तरफ सी पी एम यू पी मे चार दलों के बाम मोर्चा मे भी शामिल है दूसरी तरफ सी पी एम के लोग भाजपा/अन्ना के सर्वाधिकारवादी लोकपाल का भी समर्थन कर रहे हैं।
आगामी माह होने वाले चुनावों मे यदि बाम मोर्चा को यू पी मे जनता के बीच अपनी स्थिति सुदृढ़ करनी है तो सन्त कबीर,स्वामी दयानन्द सरस्वती और स्वामी विवेकानंद के विचारों और दृष्टिकोण का सहारा लेकर ही भाजपा/ आर एस एस के मंसूबों को ध्वस्त किया जा सकता है। अब तक प्रचलित नीति का परिणाम यह हुआ है कि भाजपा आदि प्रतिगामी शक्तियाँ पूर्वज महापुरुषों के वचनों को तोड़-मरोड़ कर गलत-सलत व्याख्या प्रस्तुत करके जनता को मूर्ख बनाने मे कामयाब हो जाते हैं। उनके लिए धर्म का मैदान खुला छोडने की नीति ही वह मुख्य कारण है कि वे गलत होते हुये भी सफल रहते हैं और जनता का भारी अहित होता रहता है।
संसदीय लोकतन्त्र मे धर्म (गलत रूप मे प्रचलित),जाति,संप्रदाय के नाम पर मतदाताओं को बहका कर पूंजीवादी दल बहुमत हासिल कर लेते हैं। कम्युनिस्ट पार्टियां और बाम-पंथी दल भी उसी गलत प्रचलित स्वरूप को धर्म मानने के कारण धर्म का विरोध करके जनता से कट जाते हैं और जनता का वोट हासिल नहीं कर पाते हैं। यदि 'धर्म' की वास्तविक व्याख्या प्रस्तुत कर महापुरुषों के हवाले से जनता को समझाया जाए तो ढोंगियों की पोल खुल सकेगी और वे विफल हो जाएँगे। परंतु दिग्गज बाम-पंथी पुराणो और ढोंगियों का समर्थन व्यक्त करके क्या भाजपा के ही मंसूबों को नहीं पूरा कर रहे हैं?
* * *
भाकपा ने प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी की
अगली विधान सभा में मजबूत उपस्थिति दर्ज करेगी भाकपा
लखनऊ 5 जनवरी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने विधान सभा चुनावों के लिये आज अपनी दूसरी सूची जारी कर दी है। इससे पहले भाकपा 30 सीटों पर प्रत्याशियों की सूची जारी कर चुकी है। इस तरह भाकपा अब तक कुल 45 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। भाकपा अपनी अगली सूची शीघ्र ही जारी करेगी।सूची जारी करते हुए भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने बताया कि भाकपा प्रदेश में चारों वामपंथी दलों के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतर रही है। इसके अलावा धर्मनिरपेक्ष, जातिनिरपेक्ष, प्रगतिशील एवं जनवादी कई अन्य पार्टियों से चुनावी तालमेल की कोशिशें जारी हैं।
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा है कि भाकपा प्रदेश में एक संवेदनशील, संघर्षशील एवं सशक्त वामपंथी विकल्प को आगे बढ़ाने के काम में जुटी है। वह महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, शिक्षा के बाजारीकरण, भूमि अधिग्रहण और कानून-व्यवस्था के सवाल पर केन्द्र एवं राज्य सरकारों को बेनकाब करने के प्रयासों में जुटी रही है। इसके अलावा भाकपा सत्तालोलुप जातिवादी एवं सम्प्रदायवादी पार्टियों के मंसूबों को भी जनता के सामने बेनकाब करती रही है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदेश की आम जनता में व्याप्त व्यापक चेतना के कारण आम जनता में वामपंथ के प्रति रूझान है और इस राजनैतिक वातावरण में निश्चय ही भाकपा और वामपंथ अगली विधान सभा में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करेंगे, इस दृढ़ विश्वास के साथ भाकपा चुनाव मैदान में उतर रही है।
भाकपा द्वारा जारी दूसरी सूची
1 - पड़रौना सगीर अहमद2 - गौरा मसीहुद्दीन चौधरी
3 - मेहनौन श्रीमती मीनू वर्मा
4 - महाराजगंज (सुरक्षित) राम केवल पासवान
5 - उतरौला धर्मेन्द्र कुमार मिश्र
6 - जहूराबाद शमीम अहमद
7 - खागा राम राज एडवोकेट
8 - हुसैनगंज राकेश कुमार प्रजापति
9 - बांगरमऊ राज बहादुर त्रिवेदी
10 - ओबरा सर्वचन्द पाण्डेय
11 - अयोध्या अशोक तिवारी
12 - फूलपुर इम्तियाज बेग
13 - लालगंज (सुरक्षित) उमेश चौधरी
14 - आज़मगढ़ सदर जमील आज़मी
15 - बबेरू श्रीमती गीता सागर
शुक्रवार भी आइये, रविकर चर्चाकार |
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति पाइए, बार-बार आभार ||
charchamanch.blogspot.com
सही कहा है आप ने| धन्यवाद|
ReplyDeleteआज बहुत सी बातों का समाधान बस राजनीति के माध्यम से ही रह गया है ... पहले तो इस मिथ्या से बाहर आना होगा फिर समाज को समझाना होगा जो आजकल बहुत दुष्कर है ...
ReplyDeleteशुक्रिया ,बेहतरीन रचना के लिए .
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