गुरूवार की रात जापान में भूकम्प के पश्चात भीषण सुनामी-प्रकोप हुआ जिसमे काफी जान-माल की क्षति हुई है.कुछ वैज्ञानिकों ने आगामी १९ मार्च को पूर्णिमा के दिन चंद्रमा के प्रथ्वी के अत्यधिक निकट से गुजरने पर ऐसी आशंकाओं को व्यक्त किया था.लेकिन रूडकी विश्वविद्ययालय के भूकम्प इंजीनियरिंग के वरिष्ठ प्रो.अश्वनी कुमार इसे रद्द करते हैं.ऐसा ही तब हुआ था जब भारत को सुनामी का शिकार होना पड़ा था.ईसा से ३५० वर्ष पूर्व प्लूटो की लिखित भविष्य-वाणी के आधार पर श्री आरजे होरे ने १९७१ ई.में प्राकाशित पुस्तक 'गाईड इंग्लिश फार इण्डिया 'के सेकिंड एडीशन बुक I I के लेसन १६ पर स्पष्ट लिखा था की १८८२ ई.में सूर्य व प्रथ्वी के बीच शुक्र के आनेसे भयंकर बाढ़ और तूफ़ान के प्रकोप से एक पूरा साम्राज्य समुद्र के अन्दर समा गया था.पुनः २००४ ई.में प्रथ्वी व सूर्य के बीच शुक्र के आने से ऐसी ही तबाही होगी.यह पुस्तक C .B .S .E .के कोर्स में कक्षा ७ में पढाई जा रही थी.परन्तु इस पर कोई सचेत न था.सुनामी ने एटलान्टिस थ्योरी के अनुसार २६ दिसंबर २००४ को भारत में भी अपना कहर ढा ही दिया था.
इसी प्रकार संवत २०६७ वि.अर्थात ई.सन २०१० -२०११ के निर्णय सागर पंचांग प्र.५५ पर स्पष्ट लिखा हुआ है :-
'कन्या राशि स्थिते सौरे संग्रामः स्याद्वरानने.जयस्त्र नरेंद्राणां मलेच्छहानिदिर्ने ..'जिसका अर्थ हुआ-कन्या राशि में शनि के रहने से मुस्लिम देश राष्ट्रों में दिनमान सामान्य -अनुकूल वातावरण की कमी ;जन-धन क्षति विषयक प्रारूप रहेगा.त्यूनिश्या और मिस्त्र के बाद अब लीबिया में वही सब तो घटित हो रहा है जिसकी घोषणा पूर्व में की जा चुकी है.किसने बचाव किया नहीं तो फिर भुगतना ही होगा.
इसी प्र.पर यह भी लिखा हुआ है-'यदा सुरगुरूमीर्ने दुर्भिक्षं तत्र रौरवम.सागराः सर्व नद्द्योsपि विनश्यन्ति चतुष्पदः..' अर्थात ऋतू जनित विषमता विशेषकर बनते समुद्र तटीय देश-नगर संभाग में प्रपीड़ा -जन धन हानि क्षति का कुचक्र तथा चक्रवात अंधड़ -वायुवेग प्रकोप का वातावरण बने.और यही हुआ १० मार्च की अर्द्ध-रात्री २ बजे के बाद आये जापान के सुनामी में.
सन २००४ की दिसंबर २६ को पक्षी अभ्यारण के लिए प्रसिद्द पिछ्वारम गाँव की रक्षा मैग्रोव के वृक्षों ने ही की थी. लेकिन बाकी जगहों पर पर्यटन तथा आर्थिक लाभ की वजह से इनकी कटाई हो चुकने के कारण भारी तबाही हुयी थी.बच्चों को कक्षा में पढवाते रहे और मैग्रोव वृक्षों की अंधाधुंध कटाई भी करते रहे अर्थात इस तबाही का उत्तरदायित्व सरकार एवं समाज का है.प्रकृति तो अपने हिसाब से ही चलेगी उससे तालमेल नहीं करेंगे तो बेगुनाहों को चन्द अमीरों के लाभ के लिए मारते ही रहेंगे. २७ दिसंबर २००४ को ही समुद्र तल से १७३७ मी.ऊंचाई पर स्थित U .A .E .की अल्जीस पर्वत श्रेणी पर भारी बर्फ़बारी हुयी और मुम्बई में १२ .६ मि.मी.बारिश के बाद तापमान शून्य से १२ डिग्री सेल्सियस नीचे चला गया जहाँ गर्मियों का तापमान ५० डिग्री रहता था.
सिर्फ ग्रह-नक्षत्र ही हमें प्रभावित नहीं करते हैं बल्कि हमारे कृत्यों का ग्रह-नक्षत्रों पर भी प्रभाव पड़ता है.आप समुद्र में एक कंकड़ फेंकें तो उससे बन्ने वाली तरंगें आप को भले ही न दिखें परन्तु उस कंकड़ को फेंकने के प्रभाव से तरंगें बनेंगी अवश्य ही .वही कंकड़ जब बाल्टी भरे पानी में फेंकेंगें तो आप तरंगें देख सकेंगें हम प्रथ्वी वासी प्रथ्वी पर जो कुछ कर रहे हैं उसका प्रभाव अखिल ब्रह्माण्ड पर क्षण-प्रतिक्षण पड़ रहा है.दुष्प्रभाव भी समय-समय पर प्रतीत होता जा रहा है.पर्यावरण सुंतलन बिगड़ चूका है.ओजोन की परत भी प्रभावित हो गयी है.२६ दिसंबर २००४ को दक्षिण भारत समेत कई देशों को सुनामी का प्रकोप झेलना पड़ा हो या अब जापान को १० मार्च २०११ की अर्द्ध-रात्रि में है सब कुछ मानवीय गलतियों का परिणाम ही.
अमेरिका में ओजोन की परत में छिद्र हो गया था तो उन्होंने अपने यहाँ अग्निहोत्र विश्वविद्यालय की स्थापना कर ली और वहां अखण्ड अग्निहोत्र अनवरत चल रहा है;परिणामतः उनके क्षितिज पर ओजोन की परत भर गई और वह छिद्र सरक कर दक्षिण-पूर्व एशिया चला आया है जो इतनी जल्दी-जल्दी इस क्षेत्र को सुनामी के चपेटे में डाल रहा है.वैज्ञानिक चाहे अमेरिका के हों या यूरोप के या हमारे देश के कभी भी सच्चाई न समझेंगे न मानेंगे और न बचाव करेंगें.यह तो जनता को स्वंय को पहले खुद को सुधारना होगा और ढोंग व पाखण्ड को तिलांजली देकर अपनी अर्वाचीन हवन-पद्धति को अपनाना होगा.हमारे ज्ञान का लाभ अमेरिका उठा रहा है परन्तु हमारे अपने पोंगा -पंथी हमारी अपनी जनता को गुमराह किये हुए हैं.
लाउड स्पीकरसे आवाजें घर पर सुनायी दे रहीं थीं एक वेद-प्रचारक महोदय गा रहे थे-
दौलत के दीवानों उस दिन को पहचानों ;
जिस दिन दुनिया से खाली हाथ चलोगे..
चले दरबार चलोगे....
ऊंचे-ऊंचे महल अटारे एक दिन छूट जायेंगे सारे ;
सोने-चांदी तुम्हारे बक्सों में धरे रह जायेंगे...
जिस दिन दुनिया से खाली हाथ चलोगे...
चले दरबार चलोगे.......
दो गज कपडा तन की लाज बचायेगा ;
बाकी सब यहाँ पड़ा रह जाएगा......
चार के कन्धों पर चलोगे..
.चले दरबार चलोगे......
पत्थर की पूजा न छोडी-प्यार से नाता तोड़ दिया...
मंदिर जाना न छोड़ा -माता-पिता से नाता तोड़ दिया...
बेटे ने बूढ़ी माता से नाता तोड़ दिया ;
किसी ने बूढ़े पिता का सिर फोड़ दिया....
पत्थर की पूजा न छोडी ;मंदिर जाना न छोड़ा....
दया धर्म कर्म के रिश्ते छूट रहे;
माता-पिता से नाता छोड़ दिया....
उल्टी सीधी वाणी बोलकर दिल तोड़ दिया;
बूढ़ी माता से नाता तोड़ दिया.....
पत्थर की पूजा न छोडी मंदिर जाना न छोड़ा
बूढ़ी माँ का दिल तोड़ दिया.....
वे क्या जाने जिसने प्रभु गुण गाया नहीं ;
वेद-शास्त्रों से जिसका नाता नहीं..
जिसने घर हवन कराया नहीं...
गुरुडम में फंस कर जिसने सत्य से मुंह मोड़ लिया ;
पाखण्ड को ओढ़ लिया ...
इसी कारण भारत देश गुलाम हुआ ...
भाई-भाई का आपस में घोर संग्राम हुआ ;
मंदिर ..मस्जिद तोड़े संग्राम हुआ.....
बुत परस्ती में लगा हुआ देश बुरी तरह गुलाम हुआ ;
देश मेरा बदनाम हुआ.....
कानों में आवाजें आ रहीं थीं कागज पर उतारा और आपको लिख दिया ;लेकिन सब बेकार है .हमारे ब्लाग जगत में जहाँ सभी बुद्धीजीवी है पाखंड छोड़ने को तैयार नहीं तो आम जनता तो अबोध है उससे क्या उम्मीद की जाये.
12 comments:
आपका लेख पढ़ कर दिल और दिमाग दोनों झन्ना गए , एक बिजली सी नसों में दौड़ गयी !
सच्चाई तो यही है कि प्रकृति का असंतुलन हमारी ही देन है !
कौन जाने कल कैसा होगा !
बहुत खूब, लेख पढ़ते वक्त शुरू से अंत तक रोचकता बनी रही !
वेद प्रचारक ने बहुत सही बातें कही हैं । लेकिन कोई समझे तो ।
यहाँ तो सब पैसा बटोरने में लगे हैं मानो ये दुनिया उनकी जागीर है ।
सुन्दर आलेख माथुर जी ।
:)
आपका आलेख बहुत ही प्रभावी है।
प्रभावी और सार्थक आलेख.... प्रकृति का रूठना सच में भयानक परिणाम लाने वाला है ...ला रहा है.......
पोस्ट का विवेचन बहुत विचारणीय है..... आभार
बहुत सी नयी बातें मालूम हुई.प्रभावी प्रस्तुति.
.......१९ मार्च तक क्या और अनिष्ट की आशंका है?
दिसंबर २०१२ के विषय में भी यही सब कहा जा रहा है कि दुनिया खतम हो जायेगी ?..क्या वह भी सच होगा?निर्णय सागर पंचांग क्या है ?
-सादर
प्रभावशाली आलेख.
आप सब को विचारिभ्यक्ति हेतु धन्यवाद.
@अल्पना जी -'निर्णय सागर पंचांग 'म. प्र.के नीमच नगर से प्रकाशित होता है.इसके निष्कर्ष संहिता मेदिनी शास्त्र पर आधारित हैं.१९ मार्च तक की संभावनाओं पर शीघ्र लेख देने की कोशिश करूंगा.
२०१२ की प्रलय की झूठी भविष्यवाणी पर इसी ब्लाग में मैं पहले ही 'प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है;यह दुनिया अनूठी है'शीर्षक से विस्तृत विवेचना दे चूका हूँ.जन-हित के आपके प्रश्नों के लिए धन्यवाद.
सही कहा आपने- हमारा प्रत्येक कृत्य ब्रह्माण्ड को प्रभावित करता है।
प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का दुष्प्रभाव हम भुगत रहे हैं।
मानव जाति को अब सचेत हो जाना चाहिए।
प्रभावशाली आलेख। वेदों मे तो सब कुछ सही लिखा है मगर हम मानें तो। शुभकामनायें।
गहन चिन्तनयुक्त विचारणीय और सार्थक आलेख...
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