हिंदुस्तान,लखनऊ,29 -04 --2012 |
क्या यह एक कार्टूनिस्ट की कपोल कल्पना है या हकीकत इसे जानने के लिए इस आलेख को गंभीरता से पढ़ना और समझना पड़ेगा। जब मार्क्स का आविर्भाव हुआ था उस समय यूरोप खास कर जर्मनी और इंग्लैंड मे कारखांनदारों द्वारा मजदूरों का शोषण चरम पर था और वहाँ प्रचलित ईसाई धर्म लोगों को कुरीतियों मे जकड़े हुआ था। इसलिए मजदूरों की दशा सुधारने के लिए जो नियम मार्क्स ने निर्धारित किए उनमे धर्म को बिलकुल वर्जित कर दिया। आज हमारे देश के 'मार्क्सवादी' महर्षि कार्ल मार्क्स के इसी नियम को उस प्रकार चिपकाए हुये हैं जिस प्रकार एक बंदरिया अपने मारे हुये बच्चे की खाल को चिपकाए हुये घूमती है। मार्क्स ने तो यह भी कहा था कि जब सम्पूर्ण औद्योगीकरण हो जाएगा और शोषण चरम पर पहुँच जाएगा तब मजदूर वर्ग संगठित होकर 'सर्व हारा वर्ग का अधिनायक वाद' स्थापित कर लेगा। क्या ऐसा ही हुआ ? कदापि नहीं 1917 मे जब रूस मे जार के विरुद्ध क्रांति हुई तो रूस एक कृषि प्रधान देश था और यह क्रांति विभिन्न छोटे-छोटे दलों ने मिल कर की थी जिंनका बहुमत था जिसे रूसी भाषा मे 'बोलेश्विक' कहते हैं इसी लिए इस क्रांति को 'बोलेश्विक क्रांति' कहते हैं। इस क्रांति मे वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी का भी योगदान था किन्तु यह कम्युनिस्टों के नेतृत्व मे नहीं हुई थी। व्लादीमीर इलीच लेनिन जो एक स्कूल इंस्पेक्टर के बेटे थे स्व-निर्वासित थे वह तो सफल क्रांति के बाद रूस लौटे और सरकार का नेतृत्व अपने हाथ मे लेकर वहाँ कम्युनिस्ट शासन उन्होने स्थापित कर दिया। जिसे आगे स्टालिन ने मजबूत किया।
इसी प्रकार जब 1949 मे माओत्से तुंग के नेतृत्व मे चीन मे कम्युनिस्ट शासन स्थापित हुआ तब चीन भी एक कृषि प्रधान देश था। अतएव रूस और चीन दोनों बड़े देशों मे बगैर औद्योगीकरण पूर्ण हुये ही कम्युनिस्ट क्रांतियाँ कर दी गई जो मार्क्स के कथनानुसार गलत कदम था किन्तु इसे कोई मार्क्सवादी गलत नहीं कहता। उनकी सनक और ज़िद्द केवल धर्म के संबंध मे है और भगवान शब्द के संबंध मे। ये तथाकथित मार्क्सवादी विद्वान संकीर्ण सोच को त्यागना ही नहीं चाहते। कई बार समझाने का प्रयत्न किया है कि धर्म -हिन्दू,ईसाई ,इस्लाम आदि-आदि संप्रदाय नहीं हैं इनमे से एक ईसाइयत को देख और धर्म मान कर मार्क्स ने उसे अफीम कहा था। वस्तुतः धर्म=जो शरीर को धरण करने योग्य है,जैसे सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। मार्क्स ने इनका विरोध कब और कहाँ किया है?लेकिन जड़ मार्क्सवादी इसलिए धर्म के विरुद्ध हैं कि ऐसा मार्क्स का कथन है। इसी प्रकार भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)=प्रकृति के इन पाँच तत्वों के मेल को भगवान कहते हैं और चूंकि ये खुद बने हैं इनको किसी ने बनाया नहीं है अतः इन्हे 'खुदा' भी कहते है। G(जेनेरेट)+O(आपरेट)+D(डेसट्राय) करने के कारण इनको ही गाड भी कहते हैं। जब मार्क्स ने इस पर विचार ही नहीं किया फिर विरोध करने के लिए मार्क्स की आड़ लेना कौन सी अक्लमंदी है?
विदेश मे बैठे और उद्योगपतियों-व्यापारियों के हितैषी एक महाशय जो खुद को बड़ा मार्क्सवादी चिंतक विचारक बताते नहीं अघाते मुझ पर इसलिए आक्रोशित हैं क्योंकि मैं मदन तिवारी जी,अमलेंदू उपाध्याय जी ,दयानन्द पांडे जी के आलेखों को शेयर करके युवा साहसी पत्रकार 'यशवन्त सिंह' का समर्थन कर रहा हूँ। यह तथाकथित कामरेड विनोद कापड़ी आदि उतपीडकों के हितचिंतक हैं। इन साहब ने फेसबुक के 'लाल झण्डा यूनिटी सेंटर' ग्रुप मे क्या लिखा एक बानगी देखें-
- पहले यह क्या रहे और अब क्यों बदले?---
- Vijai RajBali Mathur
कृपया मेरा यह आलेख देखने का कष्ट करें-
http://krantiswar.blogspot.com/2011/09/blog-post_18.html
धन्यवाद!
क्रांति स्वर.....: बामपंथी कैसे सांप्रदायिकता का संहार करेंगे?
krantiswar.blogspot.com
अरे भई लीडर नहीं,मैं तो प्लीडर हूँ प्राफेसर नहीं-प्रूफ़ रीडर हूँ . आग फूस की मत मुझको समझो,न एक बबूला हूँ. मत समझो मुझको छैनी,मैं तो एक वसूला हूँ मिट्टी का माधव मैं नहीं,कहलो शेर ए मिटटी हूँ मत समझना मुझको अणु विभु से भारी तुम- परमाणु की एक गिट्टी हूँ
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September 19, 2011
Arun Prakash Mishra
- dekh liyaa ... bahut behtar
September 19, 2011
Vijai RajBali Mathur
- धन्यवाद मिश्रा जी।
April 27
Arun Prakash Mishra
Vijai ji, how much you charge?
Arun
April 27
Vijai RajBali Mathur
- कामरेड आप क्यों चार्ज की चिंता करते हैं?अपना या परिवार के किसी भी सदस्य का आप निसंकोच पूछ सकते हैं। कई ब्लागर्स को जिनमे दो इस समय केनाडा मे हैं मैंने बिना किसी चार्ज के बताया है और उन्होने उसका लाभ भी उठाया है। वे अपनी विचार धारा के भी नहीं हैं। आप अपने हैं किसी प्रकार की चिंता किए बगैर संबन्धित व्यक्ति का जन्म समय,तारीख,स्थान और संभव हो तो दिन भी भेज देंगे मै विवरण तैयार कर दूँगा। विशेष प्रश्न हो तो उसका भी उल्लेख कर दें।
April 27
Arun Prakash Mishra
14:45
3-Nov-1955
kanpur
videsh ki kyaa sthiti ban rahee hai?
April 27
Vijai RajBali Mathur
- कल दिन मे आपको विवरण गणना करके भेज दूँगा।
April 28
Arun Prakash Mishra
- dhanyavad aur aabhaar.
April 28
Vijai RajBali Mathur
- मिश्रा जी आपका विश्लेषण बना कर ई-मेल मे सेव कर लिया है। कृपया अपना ई-मेल एड्रेस दें जिससे आपको भेज सकें क्योंकि मेसेज मे न आ सकेगा।
April 28
Arun Prakash Mishra
- drapm@ymail.com
उपरोक्त के अवलोकन से बिलकुल साफ-साफ स्पष्ट है कि पहले तो तथा कथित कामरेड ए पी मिश्रा जी ने मुझसे अपना ज्योतिषीय विवरण हासिल किया फिर 'भस्मासुर' की भांति मुझ पर ही प्रहार करने लगे। माननीय विवेकानंद त्रिपाठी जी का कथन बिलकुल सही है। किन्तु जब पंडित ए पी मिश्रा जी लगातार आक्रमण किए जा रहे हों तब चुप रहने का मतलब खुद को गलत साबित करना होता। मिश्रा जी के और भी हमले देखें-
इन पंडित जी की भाषा का तमाशा तो दिखा ही दिया है।'लाल झण्डा यूनिटी सेंटर' ग्रुप मे मैं भी एडमिन था इनकी भाषा मे अभद्रता और अश्लीलता के आधार पर मैं भी इनको हटा सकता था किन्तु 'लोकतान्त्रिक स्वतन्त्रता' का पक्षधर होने के कारण मैंने ऐसा नहीं किया। किन्तु खुद एडमिन होने का लाभ लेकर इन पंडित जी ने मुझे ग्रुप से हटा दिया लेकिन खुद CPM पॉलिट ब्यूरो को क्या आदेश दे रहे हैं देखिये-
विदेश मे बैठे यह पंडित जी बड़ी एप्रोच वाले हैं क्यों नहीं लखनऊ,भाकपा को आदेश देते मुझे हटाने वास्ते?न तो मैं किसी ग्रुप से न किसी राजनीतिक दल से व्यक्तिगत लाभ उठाता हूँ जो मुझे कोई घाटा होगा। मैंने सदैव लोगों को अपना समय और दिमाग खर्च कर मदद ही दी है जो यह पंडित जी खुद भी लाभ ले चुके हैं।
ए पी मिश्रा जी सरीखी सोच के मार्क्सवादी ही आज भारत मे साम्यवाद के सबसे शत्रु हैं जो 'राम' की तुलना 'ओबामा' से किए जाने को साम्यवादी सोच बताते हैं और मेरे द्वारा 'राम' को 'साम्राज्यवादी रावण' का संहारकर्ता बताना उनको गैर साम्यवादी लगता है। एक ओर भाकपा अपने नए दस्तावेजों द्वारा भारतीय विद्वानों के माध्यम से भारत की जनता से निकट संबंध बनाना चाहती है दूसरी ओर विदेश मे बैठे ए पी मिश्रा जी और भारत मे उनके पिछलग्गू उल्टी गंगा बहाने मे लगे हैं ताकि 'साम्यवाद' जनता से दूर ही बना रहे एवं शोषकों की लूट बदस्तूर जारी रहे। यही चिंता है कार्टून कार राजेन्द्र धोड़पकर जी की।
परबाबा खोदें कुआँ, पीता पानी लाय ।
ReplyDeleteझक्की-पन में एक ठो, मोटर दिया लगाय ।
मोटर दिया लगाय, बड़ा कचडा है लेकिन ।
पानी रहे पिलाय , सभी को इसका हरदिन ।
देश काल माहौल, बदलता है तेजी से ।
करें इसी का पान, नियम से बन्धेजी से ।।
चिंतन जारी रहे ..... शुभकामनायें
ReplyDeleteआपके लेख ने आँखें खोल दीं......आशा है इसी प्रकार जागरुकतापरक लेख भविष्य में भी पढ़ने को मिलते रहेंगे।
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